NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अपराध
भारत
राजनीति
विडंबना: आम जनता पर भारी, अपराधियों से हारी यूपी पुलिस!
देश के सबसे बड़े राज्य में यह बहस का मुद्दा बना गया है, कि पुलिसकर्मियों पर लगातार हो रहे हमले समाज और स्वयं पुलिस विभाग पर क्या असर डालेंगे? आम जनता और निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर रोज़ लाठियां बरसाने वाली पुलिस, अपराधियों के सामने लगातार कमज़ोर क्यों नज़र आ रही है!
असद रिज़वी
12 Feb 2021
Attack on UP Police
कासगंज में शराब माफ़िया के हमले के बाद अपने साथी को ले जाते पुलिसकर्मी। फोटो साभार

क्या उत्तर प्रदेश में अपराधी ख़ाकी वर्दी पर भारी पड़ रहे हैं? इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की बुलन्दशहर में हुई हत्या से लेकर बदमाश विकास दुबे द्वारा एक वक़्त में आठ पुलिसकर्मियों की गई हत्या से क्या पुलिस ने कोई सबक़ नहीं लिया? आख़िर कासगंज का शराब माफ़िया पुलिस से इतना बेख़ौफ़ क्यूँ था कि उसने पुलिस को पीटा, बंदूक़ छीनी एक सिपाही की हत्या कर दी?

देश के सबसे बड़े राज्य में यह बहस का मुद्दा बना गया है, कि पुलिसकर्मियों पर लगातार हो रहे हमले समाज और स्वयं पुलिस विभाग पर क्या असर डालेंगे? आम जनता और निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर रोज़ लाठियां बरसाने वाली पुलिस, अपराधियों के सामने लगातार बेबस क्यों नज़र आती है।

राजनीति के जानकार और पुलिस विभाग में उच्च पदों पर रह चुके अधिकारी मानते हैं कि अपराधियों के सामने पुलिस के कमज़ोर पड़ने के कई कारण हैं। जिसमें एक बड़ा कारण हैं, अपराधियों को मिलने वाला राजनीतिक संरक्षण और पुलिस का स्वयं की ग़लतियों से सबक़ नहीं लेना है।

कासगंज कांड

हाल में ही उत्तर प्रदेश के कासगंज के शराब माफ़िया मोती सिंह और उसके साथियों ने मिलकर एक सिपाही की हत्या कर दी और एक दरोग़ा को पीट कर जंगल में फेंक दिया। बताया जा रहा है कि माफ़िया मोती सिंह सिढ़पुरा की काली नदी के कटरी के इलाके में आठ सालों से अवैध शराब की भट्टी चला रहा था। पुलिस ने इस शराब माफ़िया पर मुक़दमे तो दर्ज किये, लेकिन उसकी अवैध शराब की भट्टियां बंद कराने के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।

जब बीती 9 फ़रवरी को दरोग़ा अशोक कुमार और सिपाही देवेंद्र सिंह, शराब भट्टी पर कार्रवाई के लिए पहुंचे तो, मोती सिंह और उनके गुर्गों ने, उन पर हमला कर दिया। इस हमले में सिपाही देवेंद्र सिंह की मौत हो गई और दरोग़ा अशोक सिंह बुरी तरह घायल हुए। घायल दरोग़ा को दूर खेत में फेंक दिया गया।

जवाहर बाग मथुरा

जवाहर बाग मथुरा में 2 जून 2016 को तत्कालीन एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और एसओ (फरह) संतोष यादव की हत्या कर दी गई थी। उस समय कहा गया था कि, पुलिस बगैर तैयारी के जवाहर बाग को कब्जाधारियों से खाली कराने के लिए पहुंच गई थी।

लेकिन पुलिस ने मथुरा कांड से कोई सबक़ नहीं लिया। सूत्रों के अनुसार शराब माफ़िया की जानकारी ख़ुफ़िया विभाग से लिए बग़ैर पुलिस वहाँ पहुँची। लापरवाही यहाँ तक कि पुलिस टीम में केवल एक सिपाही और दरोग़ा ही था, वह भी बिना जीप के भेजा गया।

शाहजहांपुर पुलिस पर पथराव

कासगंज कांड को अभी दो दिन हुए है की अपराधियों ने शाहजहांपुर (कलान) में पुलिसकर्मियों पर हमला कर दिया। वहाँ पुलिस छेड़खानी की शिकायत के बाद पहुंची थी। लेकिन प्राप्त समाचार के अनुसार शराब के नशे में धुत आरोपियों ने पुलिस की जमकर पिटाई कर दी। पुलिसकर्मीयों पर पथराव भी किया गया। जिसमें एक दरोग़ा के काफ़ी चोट आई है।

इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या

लेकिन यह सब कुछ पहली बार नहीं हो रहा है, काफ़ी समय से प्रदेश में पुलिस को निशाना बनाया जा रहा है। प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद से हिंदुत्ववादी संगठन भी सक्रिय हो गए। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर में तीन दिसंबर 2018 को गौ-हत्या की ख़बर फैलने के बाद हालात तनावग्रस्त हो गये थे।

गौ हत्या से नाराज़ लोग जिसमें कथित तौर से कई हिंदुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्ता भी शामिल थे, सड़क पर आकर अराजकता करने लगे। बिगड़ते हालत को संभलने के लिए पुलिस सक्रिय हुई। लेकिन सड़क पर अराजकता फैला रही भीड़ ने मौक़े पर मौजूद पुलिस टीम की कमान सम्भाले इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या कर डाली। इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह का शव उनकी ही गाड़ी से लटका हुआ एक खेत में मिला।

हिंसा के बाद बुलंदशहर के हालत की समीक्षा के लिए मुख्यमंत्री ने शासन और पुलिस अधिकारियों के साथ एक मीटिंग की। दिलचस्प बात यह रही की मीटिंग के बाद जारी सरकारी प्रेस नोट में इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की भीड़ द्वारा की गई हत्या का कोई ज़िक्र ही नहीं था। सरकारी प्रेस नोट का केंद्र-बिंदु केवल गौ-हत्या था।

हत्या के आरोपी को सम्मान

बता दें कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बुलंदशहर के अध्यक्ष अनिल सिसोदिया, ने इंस्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या के आरोपी को 14 जुलाई 2020 सम्मानित किया। साम्प्रदायिक दंगा रोकते समय मारे गये इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या के आरोपी शिखर अग्रवाल को “प्रधानमंत्री जनकल्याणकारी योजना जागरूकता अभियान” का महामंत्री बनाया गया।

हालाँकि आलोचना होने के बाद भाजपा का बयान आया कि इंस्पेक्टर सुबोध सिंह के हत्यारे को सम्मानित करने वाली  संस्था “प्रधानमंत्री जनकल्याणकारी योजना जागरूकता अभियान” से उसका कोई सम्बंध नहीं। हालाँकि संस्था के लेटर हेड पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह समेत छह मंत्रियों के नाम लिखे थे।

विकास दुबे- 8 पुलिसकर्मियों की हत्या

कानपुर के चौबेपुर स्थित बिकरु गांव में अपराधी विकास दुबे द्वारा तीन जुलाई, 2020 को एक डीएसपी समेत 8 पुलिसकर्मियों की हत्या ने न सिर्फ़ प्रदेश बल्कि सारे देश को हिला दिया। इस हत्याकांड के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार और स्वयं पुलिस विभाग सवालों के घेरे में घिर गया। प्रश्न किया जाने लगा कि एनकाउंटर से अपराध क़ाबू करने का दावा करने वाली सरकार में विकास दुबे जैसा कुख्यात अपराधी खुले आम कैसे घूम रहा था?

विकास दुबे नेताओ और राजनीतिक दलों के सम्बंध पर भी ख़ूब चर्चा हुई। इसके अलावा पुलिस विभाग को उस समय ज़्यादा शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा जब यह ख़बर मीडिया में आई के पुलिस के ही कुछ लोग विकास दुबे के लिए मुख़बरी कर रहे थे।

अपराधियों को राजनीति संरक्षण

पुलिस पर लगातार हो रहे हमलों से एक बार फिर साँठगाँठ पर चर्चा तेज़ हुई है। वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं कि सत्ता पक्ष को अपनी पार्टी में शामिल गुंडे, अपराधी नहीं लगते हैं। वह कहते हैं जब सरकारें अपराध रोकने के लिए दोहरा चरित्र नहीं छोड़ेगी, अपराध पर क़ाबू नहीं किया जा सकता है।

शरत प्रधान कहते हैं, जब अपराधियों को सत्ता के शीर्ष पर बैठें लोगों का संरक्षण मिलता है, तो उनके हौसले बुलंद होते है। फिर वह, पुलिस को भी अपना निशना बनाते हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति और पुलिस की गतिविधियों पर नज़र रखने वाले मानते हैं कि पुलिस अपनी सारी ताक़त का प्रयोग आम जनता पर कर लेती है, लेकिन उसके पास अपराधियों से निपटने के लिए कोई ठोस रणनीति नहीं है।

जनता में असुरक्षा का भाव

अंग्रेज़ी समाचार पत्र “द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया” के संपादक अतुल चंद्रा कहते हैं कि पुलिस बिना किसी तैयारी के दबिश देने पहुँच जाती है, और यही कारण है कि पुलिस पर अपराधी भारी पड़ जाते हैं। अतुल चंद्रा कहते हैं जब कोई पुलिसकर्मी मारा जाता है तो पूरे विभाग के आत्मविश्वास पर इसका नकारात्मक असर पड़ता है। इसके अलवा पुलिस के मारे जाने से जनता में भी असुरक्षा का भाव जन्म ले रहा है।

अगर पुलिस ही असुरक्षित है तो समाज को अपराधियों से कौन बचायेगा। वह कहते हैं कि पुलिस को धरना-प्रदर्शन रोकने से ज़्यादा, भू-माफ़िया, शराब माफ़िया और बालू माफिया पर लग़ाम लगाने पर ज़ोर देना चाहिए।

पुलिस स्वयं अपनी ग़लतियों से सीखे

पुलिस पर लगातार हो रहे हमलों पर विभाग में उच्च पदों पर रह चुके अधिकारियों को भी चिंता है। प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि पुलिस को आम नागरिकों के साथ दोस्त की तरह रहना चाहिए है, और अपराधियों के साथ सख़्ती के साथ, ताकि पुलिस का इक़बाल क़ायम रहे। उन्होंने कहा अगर पुलिस कि रणनीति ठीक होती तो इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह को भीड़ मार नहीं सकती थी, न कानपुर बिकरु गांव में आठ सिपाही मारे जाते और न कासगंज में पुलिस पर हमला होता।

उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन के दौरान 26 जनवरी को दिल्ली पुलिस के संयम से काम लिया, जिस से एक बड़ा टकराव टल गया। विक्रम सिंह कहते हैं कि जब एक पुलिसकर्मी मारा जाता है तो कम से कम छह महीने तक और कभी तो सालों तक समाज और विभाग दोनों ओर नकारात्मक असर रहता है। वरिष्ठ और अनुभवी पुलिस अधिकारी रहे विक्रम सिंह कहते है, पुलिस को स्वयं अपनी ग़लतियों से सीखना चाहिए है, ताकि उसका नुक़सान कम से कम हो, और जनता के बीच उसका विश्वास, सुरक्षा का एहसास बना रहे।

UttarPradesh
UP police
UP Law And Order
CRIMES IN UP
Yogi Adityanath
Ram Rajya
BJP

Related Stories

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

चंदौली पहुंचे अखिलेश, बोले- निशा यादव का क़त्ल करने वाले ख़ाकी वालों पर कब चलेगा बुलडोज़र?

यूपी : महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा के विरोध में एकजुट हुए महिला संगठन

2023 विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र तेज़ हुए सांप्रदायिक हमले, लाउडस्पीकर विवाद पर दिल्ली सरकार ने किए हाथ खड़े

चंदौली: कोतवाल पर युवती का क़त्ल कर सुसाइड केस बनाने का आरोप

प्रयागराज में फिर एक ही परिवार के पांच लोगों की नृशंस हत्या, दो साल की बच्ची को भी मौत के घाट उतारा

रुड़की से ग्राउंड रिपोर्ट : डाडा जलालपुर में अभी भी तनाव, कई मुस्लिम परिवारों ने किया पलायन

हिमाचल प्रदेश के ऊना में 'धर्म संसद', यति नरसिंहानंद सहित हरिद्वार धर्म संसद के मुख्य आरोपी शामिल 

प्रयागराज: घर में सोते समय माता-पिता के साथ तीन बेटियों की निर्मम हत्या!


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License