NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
सवाल दर सवाल : किस ओर जा रहा है उत्तर प्रदेश?
बीमारी, पिछड़ापन, अपराध और भ्रष्टाचार से जूझ रहा है उत्तर प्रदेश। आखिर इस प्रदेश को इस चक्रव्यूह से बाहर निकालने का क्या रास्ता होगा? इस अहम सवाल का जवाब केवल राज्य और केंद्र के आला कमानों को ही नहीं, बल्कि प्रदेश के सोचने-समझने वाले हर व्यक्ति को देना होगा।
कुमुदिनी पति
01 Sep 2020
Yogi Adityanath
Image courtesy: India Today

उत्तर प्रदेश आजकल सुर्खियों में है, पर सारे गलत कारणों से। सबसे बड़ी जनसंख्या वाले इस प्रदेश पर सभी की नज़र टिकी है क्योंकि कई कारणों से यह राज्य भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए काफी महत्व रखता है। पर महिलाओं और बच्चियों पर हमले, मुस्लिमों के विरुद्ध एकतरफा वार और दलितों के साथ बदसलूकी व हिंसा प्रदेश की पहचान बनते जा रहे हैं, यानी कानून-व्यवस्था का खात्मा हो चुका है। एन्काउंटर हत्याएं और विपक्षियों व मीडियाकर्मियों पर हमले जारी हैं। नतीजा- उत्तर प्रदेश को ‘जंगल राज’ के विशेषण से समझा जाने लगा है। पर भाजपा के कई विधायकों के खुले विरोध के बावजूद योगी की प्रधानमंत्री मोदी ने न कभी आलोचना की न ही उनके विरोधियों को शह दी।

आखिर क्यों? क्या मोदी उत्तर प्रदेश के विकास से प्रसन्न हैं, या कि वे उत्तर प्रदेश में अपराध के तथाकथित ‘घटते आंकड़ों’ को देखकर संतुष्ट हैं? क्या योगी द्वारा हर विरोध के स्वर को बलपूर्वक दबाने तथा राम मंदिर की स्थापना के लिए राज्य में माहौल बनाने के लिए मोदी उन्हें पुरस्कृत करना चाहते हैं? या फिर हम यह मानें कि भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश एक प्रयोगशाला है; प्रयोग सफल रहा तो केंद्र को लाभ होगा और विफल हुआ तो ठीकरा योगी के सिर फूटेगा।

लेकिन सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि विश्व के कई देशों से बड़ा राज्य उत्तर प्रदेश का, जो विविधता में एकता के लिए जाना जाता है, हश्र क्या होगा? इस असीम संभावनाओं व क्षमताओं से परिपूर्ण राज्य को, जहां प्रकृतिक संसाधनों और श्रम करने वाले लोगों की कमी नहीं हैं, जो कला व कौशल का केंद्र ही नहीं बल्कि गंगा-जमुनी तहज़ीब का भी केंद्र रहा है, जहां आज़ादी के आन्दोलन के पुरोधाओं ने अपने राजनीतिक गढ़ की स्थापना की थी, आज किस जगह पहुंचा दिया गया है? बीमारी, पिछड़ापन, अपराध और भ्रष्टाचार से जूझ रहा है यह प्रदेश। आखिर प्रदेश को इस चक्रव्यूह से बाहर निकालने का क्या रास्ता होगा? इस अहम सवाल का जवाब केवल राज्य और केंद्र के आला कमानों को ही नहीं, बल्कि प्रदेश के सोचने-समझने वाले हर व्यक्ति को देना होगा। वरना प्रदेश को पिछड़ेपन के गर्त में डूबे रहने और हिंसात्मक वारदातों का गढ़ बनने से कोई नहीं रोक सकता। क्या भविष्य होगा उस राज्य का जहां की बहुसंख्यक जनता युवा है (मीडियन एज 20) और देश की सबसे बड़ी उत्पादक शक्ति बन सकती है?

इसे भी पढ़ें- यूपी: क्या ‘रामराज’ में कानून व्यवस्था ‘भगवान भरोसे’ है?

पिछले दिनों प्रदेश में क्षोभ और दहशत की लहर दौड़ गई जब एक सप्ताह के अंदर लखीमपुर खीरी में दो बेटियों के साथ जघन्यतम बलात्कार और हत्या का मामले सामने आये। 14 अगस्त को एक 13-वर्षीय दलित लड़की का बलात्कार होता है और उसका शव क्षत-विक्षत अवस्था में अपराधियों के गन्ने के खेत में पाया जाता है। बच्ची की आंखें निकाल दी गई थीं और जीभ तक काट दी गई थी। शायद उसने प्रतिरोध किया तो उसे अंत में गला घोंटकर मार डाला गया। गोला, गोरखपुर में एक नाबालिग दलित बच्ची के साथ बलात्कार और सिगरेट से जलाने की घटना भी सामने आई।

2014 से 2018 के बीच प्रदेश में दलितों पर तरह-तरह के हमलों की फेहरिस्त भी लम्बी है औरं इन चार वर्षों में इस हिंसा में 47 प्रतिशत इजाफा हुआ है। दलित बच्चियां ही नहीं, टीनएजर लड़कियां भी, खासकर यदि वे साधारण घर की हों, प्रदेश में सबसे अधिक असुरक्षित हैं क्योंकि वे ‘soft target’ बन जाती हैं और प्रशासन जल्दी हरकत में नहीं आता।

लखीमपुर खीरी की ही एक अलग घटना में एक 17-वर्षीय लड़की, जो फॉर्म भरने पास के कस्बे की ओर जा रही थी, बलात्कार का शिकार बनाकर धारदार अस्त्र से मार डाली गई। उसका शव गांव से 200 मीटर दूर एक सूखे तालाब में मिला। अब पुलिस इस डूबने का मामला बना रही है।

इसके अलावा राज्य में दरिंदगी की कई ऐसी घटनाएं हुईं- हापुड़ में 6 साल की बच्ची का बलात्कार, गोरखपुर में स्कूल मैनेजर द्वारा 7 साल की बच्ची का बलात्कार और वीडियो बनाकर ब्लैकमेल, मुज़फ्फरपुर में बलात्कार, फिर जबरन विवाह और ट्रिपल तलाक की घटना, बनारस में ब्यूटी पारलर में नौकरी के नाम पर लड़की को जिस्मफरोशी में धकेलना, ग्रेटर नोएडा में 12 साल की बच्ची के साथ बलात्कार के बाद अपराधी द्वारा पुलिस पर फायरिंग। फेहरिस्त लंबी है।

इसे पढ़ें- यूपी: लखीमपुर खीरी के बाद गोरखपुर में नाबालिग से बलात्कार, महिलाओं की सुरक्षा में विफल योगी सरकार!

एनसीआरबी की सालाना रिपोर्ट में चैंकाने वाले तथ्य सामने आए कि प्रदेश में हर दो घंटों में एक बलात्कार और हर 90 मिनटों में किसी बच्चे के साथ अपराध की घटना दर्ज होती है! महिलाओं पर हिंसा के 162 मामले रोज़ दर्ज किये जाते हैं। आधी आबादी को दहशत में जीने के लिए मजबूर होना पड़े तो प्रदेश कैसे आगे बढ़ सकता है? आखिर किसी भी समाज के विकास को उसकी महिलाओं की स्थिति से ही आंका जाता है।

फिरौती के लिए अपहरण और हत्या के मामले, गोली मारकर हत्या के वारदात, एन्काउंटर के नाम पर हत्याओं के मामले, जिसमें विकास दुबे का मामला चर्चित रहा और ढेर सारे सवाल खड़े करते हैं-यह राज्य की कानून व्यवस्था के बारे में खुद-ब-खुद प्रश्नचिह्न लगाते हैं;  औरैया में एक एलआइसी एजेन्ट के अपहरण और हत्या और कानपुर में लैब टेक्निशियन की हत्या के मामले सहित जुलाई में ही 6 अपहरण के मामले सामने आए थे। पर प्रदेश में अपराध क्यों बढ़ रहा है? कृषि और उद्योगों के विकास तथा मनरेगा के तहत काम दिलाने के उपाय नहीं किये गए तो फिरौती के लिए अपहरण और हत्याएं और बढ़ेंगी, जैसे कानपुर देहात के चैरा गांव के अकाउंटैंट ब्रिजेश की हुई।

प्रदेश में कोविड-19 के केस भयानक रफ्तार से बढ़े हैं और अस्पतालों में लचर व्यवस्था है। अब तक 2 लाख 26 हज़ार केसों और 54 हज़ार से अधिक सक्रिय केसों के अलावा कानपुर, उन्नाव, राय बरेली, बनारस, बरेली से अस्पतालों के बारे में लगातार ऐसी खबरें आती रहीं कि रोगी अस्पताल से भाग निकल रहे हैं, छत से बरसात का पानी वार्ड में बहने लगा, बेड व चिकित्सा सुविधाएं नहीं मिल रहीं और मरीज मर रहे हैं; कई वीडियो भी वायरल हुए हैं। कई जिलों में तो पुलिस अधिकारी व कर्मी कोविड-पॉजिटिव पाए गए हैं, जिनमें प्रमुख हैं कानपुर, बनारस, हरदोई, जौनपुर, बरेली, मेरठ और अयोध्या। अन्त में इलाहाबाद उच्च न्यायालय को प्रदेश सरकार को फटकार लगानी पड़ी कि वह यदि सरकार ठीक ढंग से लॉकडाउन लागू नहीं कर सकती तो कोर्ट को हस्तक्षेप करना होगा। प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है कि करोना से तीन हज़ार से अधिक लोग मर चुके हैं।

कोविड के बढ़ते आंकड़ों के बीच प्रकृतिक आपदा प्रबंधन की  खस्ताहाल स्थिति भी सामने आई। सो बाढ़ की स्थिति भी कोविड की भांति गंभीर है। 25 जिलों में लगभग 3000 गांव बाढ़ की चपेट में हैं और 477 से अधिक गांव बर्बाद हो चुके हैं। मुख्यमंत्री राहत की घाषणा कर रहे हैं और हवाई नीरीक्षण चल रहा है। पर बाढ़-प्रबंधन के लिए उच्च-स्तरीय समिति बनाकर आगे के लिए पुख़्ता इन्तेज़ामात न किये गए तो जो नदियां खतरे के निशान के ऊपर बह रही हैं वे न जाने कितने घरों को निगल जाएंगी। आश्चर्य है कि उड़ीसा जैसे एक गरीब प्रान्त में चक्रवाती तूफानों का मुकाबला कितनी कुशलता से किया जाता है, पर बेहतर संसाधनों वाला उत्तर प्रदेश पीछे रह जाता है।

पर इतना कुछ होने के बाद भी विपक्षी दलों ने दबे स्वर में बयान दिये और विधानसभा में कुछ सांकेतिक हंगामा ही किया। मायावती का भी सरकार के गैरजिम्मेदाराना दलित-विरोधी, महिला-विरोधी रवैये पर हमला किये बिना करोना-काल में ‘‘पार्टी दायरे से ऊपर उठकर जनहित में काम करने’’ की बात कही। दुर्भाग्यपूर्ण है कि विधानसभा के तीन-दिवसीय सत्र में विपक्ष की नारेबाजी के बीच बिना बहस 168 बिल पारित कर लिए गए जिनमें से एक है दंगों और प्रदर्शनों के दौरान सम्पत्ति को नुकसान की भरपाई से सम्बंधित विधेयक। भीम आर्मी नेता चंद्रशेखर ने योगी के इस्तीफे की मांग की है, पर किसी तरह का व्यापक जन-अभियान प्रदेश में क्यों नहीं दिख रहा यह सोचने की बात है।

इसके पीछे एक बड़ा कारण हो सकता है बोलने व लड़ने वालों के खिलाफ ‘विचहंट’(witch hunt); मीडिया समाज का चौथा खम्बा कहलाता है, उसे पहले खत्म करो! उसे सुनियोजित तरीके से यदि खत्म कर दिया जाए तो बहुत सी बातें जनता की नज़र में आएंगे ही नहीं। सरकारी प्रचार ही सच माना जाएगा। इसलिए जिन पत्रकारों और सोशल मीडिया रिपोर्टरों ने प्रदेश सरकार की आलोचना करने की गुस्ताखी की उनके विरुद्ध मुकदमे दर्ज किये गए, कुछ की गिरफ्तारी हुई और कुछ को तो ‘ठिकाने लगा दिया गया’। द वायर (The Wire) के सिद्धार्थ वर्दराजन के यहां पुलिस अधिकारी आ धमके और उन्हें अयोध्या समन किया गया। पिछले 3 महीनों में बलिया के रतन सिंह सहित 3 पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया गया। राइट्स ऐण्ड रिस्क्स एनेलिसिस ग्रुप (RRAG) ने बताया कि कोविड प्रबंधन के मामले में सरकारी लापरवाही का खुलासा करने के लिए सबसे अधिक पत्रकार- ग्यारह- उत्तर प्रदेश में उत्पीड़न के शिकार बने। स्क्रोल की पूर्व संपादक सुप्रिया शर्मा पर मुकदमा दर्ज किया गया क्योंकि उन्होंने मोदी के गोद लिए डोमरिया गांव में कोविड के बढ़ते संक्रमण पर रिपोर्ट लिखी। पर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया ने केवल चार मामलों में संज्ञान लेकर प्राथमिकी दर्ज करवाई।

खैर, राज्य के सामाजिक संकेतक उसके पिछड़ेपन को बयां करते हैं। मस्लन ‘बेटी पढ़ाओ’ के ये आलम हैं 25 प्रतिशत किशोरियां स्कूल छोड़ देती हैं और 36 प्रतिशत महिलाएं कभी स्कूल गईं ही नहीं। 6 माह-5 वर्ष आयु के शिशुओं में 63 प्रतिशत और महिलाओं में 52 प्रतिशत रक्ताभाव (एनीमिया) से ग्रस्त हैं। प्रदेश में केवल 17 प्रतिशत महिलाएं वैतनिक रोजगार करती हैं, बाकी को कुछ अन्न अथवा अन्य वस्तुएं दी जाती हैं, या उनसे लगभग बेगार कराया जाता है। प्रदेश की करीब आधी महिलाओं के पास बैंक खाता तक नहीं है। जहां तक कृषि पर निर्भर जनता की बात है तो 55 प्रतिशत जनता कृषि पर निर्भर है पर राज्य के जीडीपी में इसका योगदान महज 27.5 प्रतिशत है। प्रदेश के गन्ना किसानों का 11,000 करोड़ का बकाया उन्हें आत्महत्या के कगार पर खड़ा कर चुका है। योगी सरकार ने अब जाकर बकाया अदायगी के लिए सहकारी मिल मालिकों को 500 करोड़ कर्ज दिया है।

इसे पढ़ें- आगरा: भूख और बीमारी से बच्ची की मौत मामले में NHRC का योगी सरकार को नोटिस, विपक्ष ने भी मांगा जवाब

प्रदेश में बेरोज़गारी भी बढ़ती जा रही है- पिछले दो सालों में यह 12.5 प्रतिशत अंकों से बढ़ी है; और श्रम विभाग के ऑनलाइन पोर्टल के अनुसार 34 लाख शिक्षित बेरोज़गारों के नाम दर्ज हुए हैं। रोज़गार के मामले में दो बातें सामने आई हैं-एक-जितनी अधिक शिक्षा है, रोज़गार की संभावना प्रदेश में उतनी ही कम है। दूसरे, उपलब्ध रोज़गार और बेरोज़गारों के कौशल या काबिलियत में कोई सामंजस्य नहीं है। पर कौशल विकास के लिए मात्र 130 करोड़ खर्च किये गए। मनरेगा का हाल देखें तो मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वत्तीय वर्ष 2020-21 में अब तक केवल 24,287 परिवारों को 100 दिन का रोज़गार मिला है और एक परिवार को औसत 28.26 दिन काम मिला जबकि मांग 200 दिन काम की है। मजदूरी आज भी 201 रुपये पर अटकी है जबकि कई राज्यों में 375 रु हो चुकी है। शिक्षा में सबसे अधिक एनरोलमेंट (enrolment) के बाद भी रोजगार न हो तो युवाओं का क्या होगा? आखिर, किस ओर बढ़ रहा है उत्तर प्रदेश?

कुल मिलाकर हमें सोचना होगा कि प्रदेश की 23 करोड़ जनता के लिए बेहतर जीवन के क्या विकल्प बचे हैं? अगर हम आगे नहीं बढ़े तो उत्तर प्रदेश बलात्कार, अपराध और पिछड़ेपन में अव्वल बनेगा। तब भविष्य में राम मंदिर कितना ही भव्य क्यों न बने, वह प्रदेश को न ही गौरव प्रदान कर सकेगा न भक्तजनों को शान्ति देगा; भाजपा का ‘रामराज्य’ कलंकित ही होता रहेगा। आगे की रणनीति तय हमें ही करनी है।

( कुमुदिनी पति स्वतंत्र लेखक और महिला एक्टिविस्ट हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

UttarPradesh
Yogi Adityanath
yogi sarkar
UP Law And Order
CRIMES IN UP
Poverty in UP
unemployment in UP
Corruption in UP
Narendra modi
modi sarkar

Related Stories

बदायूं : मुस्लिम युवक के टॉर्चर को लेकर यूपी पुलिस पर फिर उठे सवाल

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License