NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
यूपी: सीएए विरोधी आंदोलन को एक साल, लेकिन आज भी कम नहीं हुईं हैं प्रदर्शनकारियों की मुश्किलें
राजधानी लखनऊ समेत पूरे प्रदेश में पिछले साल 19, दिसंबर को विवादास्पद नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए थे। लेकिन आज भी आंदोलनकारियों को कभी होर्डिंग लगाकर और कभी वसूली के नोटिस भेज कर प्रताड़ित किया जा रहा है।
असद रिज़वी
19 Dec 2020
सीएए विरोधी आंदोलन
लखनऊ के परिवर्तन चौक पर सीएए के विरोध में 2019 में हुए प्रदर्शन की झलक। फाइल फोटो।

लखनऊ: नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) के ख़िलाफ़ हुए प्रदर्शनों को आज, 19 दिसंबर, 2020 को एक साल पूरा हो गया। लेकिन प्रदर्शनकारियों की मुश्किलें ख़त्म नहीं हो रही हैं। प्रदर्शनकारियों को कभी उनकी तस्वीरों की होर्डिंग लगाकर और कभी वसूली के नोटिस भेज कर प्रताड़ित किया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश में राजधानी लखनऊ समेत पूरे प्रदेश में पिछले साल 19, दिसंबर को विवादास्पद नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हुए थे। जिसको रोकने के लिए प्रदेश सरकार ने अपनी पूरी ताक़त लगा दी थी। प्रदर्शन को रोकने के लिए पूरे प्रदेश में धारा 144 लागू की गई थी। विपक्षी राजनीतिक दलों और नागरिक संगठनों पर शासन-प्रशासन द्वारा,प्रदर्शन में शामिल नहीं होने का दबाव बनाया गया था।

सरकार के सख़्ती के बावजूद 19 दिसंबर, 2019 को प्रदेश के कई शहरों लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, मेरठ, रामपुर, बिजनौर, मुज़फ़्फ़रनगर, संभल और फ़िरोज़ाबाद आदि में नागरिकों ने सड़क पर आ कर अपना विरोध दर्ज कराया। विरोध के दौरान पुलिस ने जम कर लाठीचार्ज किया और आँसू गैस के गोले छोड़े।

क़रीब 23 लोगों की जान गई

पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुए टकराव में क़रीब 23 लोगों की जान गई। इस दौरान कई पुलिसकर्मी भी घायल हुए। प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया की ज़्यादातर लोग पुलिस की गोलियों से मारे गए। जबकि पुलिस प्रदर्शन के दौरान गोली चलाने से इंकार करती रही है। मरने वालों में एक मौत भगदड़ में कुचलकर हुई और एक पत्थर लगने से भी हुई।

मुख्यमंत्री ने कहा ‘बदला लिया जायेगा’

प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक और निजी सम्पत्ति के बड़े नुक़सान का दावा किया गया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदर्शन में बाद अपने बयान में कहा कि प्रदर्शनकरियों से बदला लिया जायेगा। जबकि प्रदर्शनकारी लगातार यह कह रहे थे कि उनकी भीड़ में कुछ असामाजिक तत्व घुस आये थे। जिसका प्रदर्शन से कोई लेना-देना नहीं था। जो तोड़-फोड़ कर के आंदोलन को बदनाम करना चाहते थे। लेकिन पुलिसकर्मियों ने उन शरारती तत्वों को देखकर भी नज़रअंदाज़ किया और प्रदर्शनकारियों पर लाठियां बरसाईं।

गिरफ़्तारियां और हिरासत

प्रदर्शनकारियों की गिरफ़्तारियां 19 दिसंबर को प्रदर्शन के दौरान ही शुरू हो गईं थी। लेकिन मुख्यमंत्री के बयान के बाद पुलिस प्रदर्शनकारियों पर और सख़्त हो गई और कई दिन तक प्रदेश भर में गिरफ़्तारियां की जाती रहीं। प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रदेश में क़रीब 1100 प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार किया गया और 550 से अधिक को हिरासत में लिया गया।

गिरफ़्तार किये जाने वालों में रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शोएब, पूर्व आईपीएस एसआर दारापुरी, समाज सेविका सदफ़ जाफ़र, अम्बेडकरवादी लेखक पीआर अम्बेडकर, प्रोफ़ेसर रॉबिन वर्मा और रंगकर्मी दीपक कबीर आदि शामिल रहे। इनके अलावा “द हिन्दू” समाचारपत्र के रिपोर्टर उमर राशीद को हिरासत में लिया गया। उल्लेखनीय है कि पुलिस द्वारा गिरफ़्तार किये गये लोगों में नाबालिग़ बच्चे भी शामिल थे।

पुलिस पर बर्बरता के आरोप

इस प्रदर्शन के दौरान पुलिस पर भी कई तरह के गंभीर आरोप लगे। पुलिस पर आरोप लगा कि गिरफ़्तार लोगों से उसने बर्बरता की और अभद्र शब्दों का प्रयोग किया। सदफ़ जाफ़र के अनुसार हज़रतगंज कोतवाली में एक महिला पुलिसकर्मी ने उनके चेहरे को नाख़ूनों से नोंचा था और थप्पड़ मारे।

पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी और अधिवक्ता मोहम्मद शोएब ने आरोप लगाया की लखनऊ पुलिस  के आला अधिकारियों ने उनको गालियां दी। रंगकर्मी दीपक कबीर ने जेल से बाहर आकर बताया कि पुलिस ने उनको बेरहमी से मारा और कहा कि “तुम्हारे अंदर का भगत सिंह निकाल” देंगे।

बता दें कि प्रदर्शन के एक दिन पहले से एसआर दारापुरी और मोहम्मद शोएब नज़रबंद थे। लेकिन उनको भी प्रदर्शन में शामिल होने और दंगा भड़काने का आरोप लगाकर गिरफ़्तार किया गया। पुलिस पर यह भी आरोप लगा की छापेमारी के दौरान उसने बुज़ुर्गों,बच्चों और महिलाओं पर भी लाठियां बरसाईं जिसमें कई लोग बुरी तरह घायल हुए।

पुलिस पर सांप्रदायिकता का आरोप

अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति ने प्रदर्शन और उसके बाद की घटनाओं पर एक जाँच रिपोर्ट पेश की थी। रिपोर्ट में समिति ने पुलिस कि भूमिका पर कई प्रश्न खड़े किये। महिला संगठन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि पुलिस गिरफ़्तार प्रदर्शनकारियों को “पाकिस्तानी और अर्बन नक्सल” कह कर मार रही थी। पुलिस द्वारा अल्पसंख्यक मुस्लिम समाज और सरकार से सवाल करने वाले नागरिक समाज को निशना बनाया गया।

समिति ने कहा कि सीएए विरोधी आंदोलन के दौरान पुलिस पूरी तरह ‘सांप्रदायिक’ हो गई थी। प्रो. रॉबिन वर्मा ने भी जेल से बाहर आने के बाद अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि पुलिस ने हिरासत में उनको मरते वक़्त कहा कि “तुम हिन्दू होकर मुसलमानो से दोस्ती क्यूं करते हो?”

विवादास्पद होर्डिंग

जब प्रदर्शनकारी धीरे-धीरे ज़मानत पर रिहा होने लगे, तो सरकार ने उनकी मुसीबत को और बढ़ा दिया। सरकार द्वारा प्रदेश के प्रमुख चौराहों पर प्रदर्शनकरियों की तस्वीरो वाली होर्डिंग लगा दिए गए। इन होर्डिंग के माध्यम से प्रदर्शनकरियों से प्रदर्शन के दौरान हुए सार्वजनिक संपत्ति की भरपाई के लिए मुआवज़ा मांगा गया था।

प्रदर्शनकारियों ने अपनी तस्वीरों की होर्डिंग पर सख़्त अप्पत्ति की और कहा कि सरकार उनका जुर्म साबित हुए बग़ैर उनको सज़ा देना चाहती है। प्रदर्शनकारियों ने आशंका जताई कि इस तरह उनकी लिंचिंग तक की जा सकती है।

मामले को क़ानून के ख़िलाफ़ मानते हुए हाईकोर्ट ने इसका संज्ञान लिया और सख़्त टिप्पणी के साथ प्रदेश सरकार को होर्डिंग हटाने का आदेश दिया। लेकिन प्रदेश सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। अब मामला अदालत में विचाराधीन है।

वसूली के नोटिस 

संशोधित नगरिकता क़ानून का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों को सरकार द्वारा सार्वजनिक संपत्ति के नुक़सान की भरपाई के लिए,जुलाई 2019, में वसूली के नोटिस भेजना शुरू कर दिए गए। लखनऊ में प्रदर्शनकारियों को नोटिस देकर 7 दिन के अंदर 64 लाख रुपये जमा करने को कहा गया। नोटिस में कहा गया है कि अगर क्षतिपूर्ति की रक़म समय पर जमा नहीं हुई, तो प्रदर्शनकारियों की संपत्ति को ज़ब्त कर लिया जायेगा।

सरकारी आदेश में यह भी कहा गया कि अगर मुआवज़े कि रक़म वक़्त रहते नहीं जमा की गई तो (उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006) के अधीन उत्पीड़नात्मक करवाई की जायेगी। जिसके अंतर्गत प्रदर्शनकारियों कि गिरफ़्तारियां भी हो सकती हैं।

जबकि कुछ प्रदर्शनकारियों ने मुआवज़े को लेकर लगाई गई होर्डिंग्स के बाद ही इस को अदालत में चुनौती दे दी थी। एक प्रदर्शनकारी तौफ़ीक़ ने बताया की अदालत से रोक लगने के बावजूद भी उनके घर के बाहर वसूली और संपत्ति ज़ब्त करने नोटिस लगाया गया।

आप को बता दें लखनऊ प्रशासन ने क़रीब 57 प्रदर्शनकारियों को 1.56 कोरोड रुपये के मुआवज़े की वसूली के लिए नोटिस दिए हैं। जिनमें ज़्यादातर मामलों में अदालत ने वसूली पर रोक लगा दी है।

मुआवज़े के लिये दुकानें सील 

राजधानी लखनऊ के हसनगंज इलाक़े में प्रशासन को 13 लोगों से मुआवज़े के 21.76 लाख वसूलना थे। जिसके लिए उसने स्क्रैप का काम करने वाले माहेनूर चौधरी की दुकान को सील कर दिया। माहेनूर का कहना था कि उसकी दो वक़्त की रोटी छीन ली गई। वही दूसरी ओर गोमती नदी के किनारे एक कपड़े की दुकान को सील कर दिया गया। जिसके सहायक मैनेजर धर्मवीर सिंह पर प्रदर्शन में शामिल होकर सार्वजनिक सम्पत्ति को नुक़सान पहुँचाने का आरोप है।

प्रदर्शनकारियों की ज़मानत रद्द कराने की अर्ज़ी

योगी सरकार ने एक बार फिर अगस्त 2019 में प्रदर्शनकारियों को वापस जेल भेजने की कोशिश की और अदालत में सीएए विरोधियों की ज़मानत रद्द करने के लिए अर्ज़ी दाख़िल की। सरकार द्वारा ज़मानत रद्द करने के लिए तर्क दिया गया कि प्रदर्शनकारी ज़मानत पर रिहा होने के बाद, दोबारा फिर धरना-प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं। जो ज़मानत की शर्तों का उल्लंघन है।

बता दें कि सीएए के विरुद्ध प्रदर्शन के मामले में अभियुक्त मोहम्मद शोएब, सदफ़ जाफ़र और दीपक कबीर की ज़मानत को रद्द करने के लिए अदालत में अर्ज़ी दी गई थी।

लखनऊ प्रशासन का तर्क था कि ज़मानत पर रिहा होने बाद,यह प्रदर्शनकारी घंटाघर पर चल रहे सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन में शामिल हुए थे। जो एक अवैध धरना था। इस मामले में इन तीनों प्रदर्शनकारियों के विरुद्ध लखनऊ के ठाकुरगंज थाने में मामला भी दर्ज हुआ था।

राजनीतिक पार्टियों को भी बनाया निशाना

उल्लेखनीय है कि भारत की कम्युनिस्ट पार्टी- मार्क्सवादी (सीपीएम) को लखनऊ प्रशासन द्वारा एक नोटिस देकर 19 दिसंबर को लखनऊ में हुई हिंसा का दोषी बताया गया था। सीपीएम मुख्यालय 10 विधानसभा मार्ग, पर 23 दिसंबर 2019 को भेजे गए सरकारी नोटिस में आरोप लगाया गया कि सीएए के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा के लिए पार्टी के नेता और कार्यकर्ता ज़िम्मेदार थे।

धारा 149 सीआरपीसी के तहत पार्टी के सचिव छोटेलाल पाल को संबोधित प्रशासन द्वारा भेजे नोटिस में आरोप लगाया गया है कि पार्टी के नेताओं के उकसाने से ही राजधानी में प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़की थी।

उस समय सीपीआई नेता अतुल कुमार अंजान ने कहा कि न सिर्फ़ लखनऊ में बल्कि पूरे प्रदेश में वामपंथियों को योगी सरकार द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। उनके अनुसार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में क़रीब 67 वामपंथियों को सीएए के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के दौरान पकड़ कर जेल भेजा गया।

प्रदेश कांग्रेस (अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ) के अध्यक्ष शाहनवाज़ आलम को सीएए के विरुद्ध दिसंबर 2019 में हुए एक प्रदर्शन में शामिल होने के आरोप में 29 जून 2020 की रात लखनऊ से गिरफ़्तार कर लिया गया। इसको लेकर कांग्रेसियों और पुलिस-प्रशासन के बीच 29-30 जून को कई बार झड़पे भी हुईं। आख़िर में शाहनवाज़ को जेल भेज दिया गया।

दिसंबर 2019 में सीएए के विरुद्ध आवाज़ उठाने वालों पर कोरोना काल में भी योगी सरकार का क़हर जारी रहा। ज़मानत पर रिहा होने वालों को अभी भी अदालत के चक्कर काटना पड़ रहे हैं। लाखों रुपये की वसूली के नोटिस अभी भी आम प्रदर्शनकारियों को डरा रहे हैं। इन सब के बावजूद प्रदर्शनकारियों का कहना है कि जब भी सरकार सीएए लाएगी, इसका विरोध किया जायेगा।

UttarPradesh
CAA
Citizenship Amendment Act
Anti CAA Protest
UP police
Yogi Adityanath
BJP
yogi sarkar

Related Stories

बदायूं : मुस्लिम युवक के टॉर्चर को लेकर यूपी पुलिस पर फिर उठे सवाल

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License