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अपराध
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यूपी: मुज़फ़्फ़रनगर में स्कूली छात्राओं के यौन शोषण के लिए कौन ज़िम्मेदार है?
इस मामले में शुरुआती जांच के दौरान पुलिस की कार्रवाई भी सवालों के घेरे में है। खबरों के मुताबिक हाई स्कूल की 17 छात्राओं से हुई सामूहिक अश्लीलता के इस सनसनीखेज मामले को पुरकाजी पुलिस पिछले कई दिनों से शिकायत के बावजूद भी दबाने में लगी हुई थी।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
09 Dec 2021
sexual abuse
Image courtesy : Feminism in India

यूपी में ‘न्यूनतम अपराध' का दावा करने वाली बीजेपी की योगी आदित्यनाथ की सरकार आए दिन किसी न किसी महिला हिंसा की खबर को लेकर सुर्खियों में बनी ही रहती है। बुलंदशहर में 13 साल की नाबालिग के साथ रेप और गला दबाकर मारने की कोशिश के बाद अब मुजफ्फरनगर में 17 लड़कियों के साथ कथित यौन शोषण की घटना सामने आई है। एक के बाद एक सामने आती ये घटनाएं यूपी सरकार के शासन-प्रशासन के 'रामराज्य' की स्याह तस्वीर पेश करती कड़वी सच्चाई है।

बता दें कि ये मामला पुरकाज़ी इलाके का है और घटना 18 नवंबर की बताई जा रही है। खबरों के अनुसार एक प्राइवेट स्कूल के मालिक पर दसवीं में पढ़ने वाली कुछ लड़कियों के साथ यौन शोषण का आरोप है। फिलहाल मामले में स्कूल के प्रबंधक को गिरफ्तार किया गया है और एक अन्य आरोपी को पकड़ने के प्रयास जारी हैं।

उत्तर प्रदेश: मुज़फ्फ़रनगर में कुछ छात्राओं के साथ छेड़खानी के मामले में पुलिस ने एक आरोपी को गिरफ़्तार किया है।

मुज़फ्फ़रनगर के पुलिस अधीक्षक नगर ने बताया, "2 आरोपी नामित थे जिसमें एक को गिरफ़्तार कर लिया गया है। दूसरे आरोपी की तलाश जारी है। जांच के लिए 5 टीमें गठित की गई थी।" pic.twitter.com/ISFBaVbjSQ

— ANI_HindiNews (@AHindinews) December 7, 2021

क्या है पूरा मामला?

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, घटना के दिन इन लड़कियों को प्रैक्टिकल परीक्षा की तैयारी के बहाने से स्कूल बुलाया गया था। ये परीक्षा अगले दिन एक अलग स्कूल में होनी थी। यहां इन लड़कियों से एक-एक कॉपी लिखवाई गई। उसके बाद उनसे कहा गया कि वो स्कूल में ही रुक जाएं। रात में लड़कियों ने खिचड़ी बनाई थी, इसे प्रिंसिपल ने कहा कि ठीक से पका नहीं है। इसके बाद प्रिंसिपल ने खुद खिचड़ी बनाई। ये खिचड़ी खाने के बाद लड़कियां बेहोश हो गईं और उसके बाद उनका यौन शोषण किया गया।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, जिन लड़कियों को रोका गया था वो गरीब परिवारों से आती हैं। अगले दिन लड़कियों को घर जाने दिया गया। हालांकि, घर भेजने से पहले उन्हें धमकी दी गई कि अगर उन्होंने इस बारे में किसी को बताया तो वो उनके परिवार वालों को मार डालेंगे और परीक्षा में फेल कर देंगे। लेकिन दो छात्राओं ने हिम्मत दिखाते हुए पूरे मामले के बारे में अपने परिवार को बताया जिसके बाद लड़कियों के परिवार ने स्थानीय पुलिस में इस मामले की शिकायत करने की कोशिश की, लेकिन मामला तब सामने आया जब दो लड़कियों के अभिभावक ने स्थानीय विधायक प्रमोद अटवाल से संपर्क किया। विधायक ने मुजफ्फरपुर के एसपी को इस मामले में जांच के निर्देश दिए।

इस मामले में की गई एक शिकायत में लिखा है कि कक्षा में कुल 29 विद्यार्थी हैं लेकिन केवल 17 लड़कियों को ही बुलाया गया था।

पुलिस का क्या कहना है?

इस मामले में पुलिस ने कहा कि मामले में प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है और आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए पांच टीमों का गठन किया गया है। मुजफ्फरनगर जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक अभिषेक यादव ने मीडिया को बताया कि बीजेपी के नेता और स्थानीय विधायक प्रमोद उटवाल के हस्तक्षेप के बाद परिवार की शिकायत पर मामला दर्ज किया गया। इसके अलावा पुरकाजी पुलिस थाना के प्रभारी विनोद कुमार सिंह को इस मामले में कथित लापरवाही बरतने को लेकर लाइन हाजिर कर दिया गया।

वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक यादव ने कहा कि आरोपियों ने लड़कियों को इस वारदात के बारे में किसी को भी नहीं बताने की धमकी दी थी। परिवार के अनुसार, जब वे स्थानीय पुलिस के पास गए तो उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की, जिसके बाद उन्होंने विधायक से संपर्क किया।

पुलिस अधीक्षक (शहर) अर्पित विजयवर्गीय ने मंगलवार, 7 दिसंबर को बताया कि योगेश चौहान नाम के आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया है और एक अन्य फरार आरोपी अर्जुन को पकड़ने के लिए पांच टीमों का गठन किया गया है। उन्होंने बताया कि एक पीड़िता को चिकित्सा जांच के बाद बयान दर्ज कराने के लिए मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जाएगा।

अर्पित विजयवर्गीय के मुताबिक जांच के दौरान यह पता चला कि दोनों लड़कियों का यौन उत्पीड़न हुआ है। यह वारदात उस समय हुई जब आरोपी प्रायोगिक परीक्षा के लिए 15 अन्य लड़कियों के साथ इन दोनों को किसी और विद्यालय में ले गया था, उन्हें रात भर वहीं पर रुकना पड़ा।

बता दें कि शिकायत में कहा गया कि दोनों आरोपियों ने नाबालिगों को नशीला पदार्थ खिलाकर कथित तौर पर दुष्कर्म की कोशिश की। एएसपी ने बताया कि आईपीसी की संबंधित धाराओं और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण पॉक्सो एक्‍ट के तहत केस दर्ज कर लिया गया है।

पुलिस जांच में लापरवाही

मालूम हो कि इस मामले में शुरुआती जांच के दौरान पुलिस कार्रवाई पर भी सवाल खड़े हुए थे। कहा गया था कि हाई स्कूल की 17 छात्राओं से हुई सामूहिक अश्लीलता के इस सनसनीखेज मामले को पुरकाजी पुलिस पिछले 5 दिन से शिकायत के बावजूद भी दबाने में लगी हुई थी। लेकिन जब दो परिवारों ने सीधे एसएसपी से शिकायत की तब जाकर पुलिस पर एक्शन लेने का दवाब बना और केस की जांच आगे बढ़ सकी। इस इंपेक्टर विनोद कुमार को लापरवाही बरतने पर लाइन हाजिर भी कर दिया गया है।

महिला सुरक्षा के मामले पर लगातार योगी सरकार विफल

गौरतलब है कि प्रदेश में महिला सुरक्षा के बड़े-बड़े दावे करने वाली योगी सरकार के राज में यह कोई पहली बलात्कार की घटना नहीं हैं जो उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था और प्रशासन की संवेदनहीनता पर सवाल खड़े करती हो। बीते साल ही बहुचर्चित हाथरस कांड में भी पुलिस की भूमिका पर कई सवाल खड़े हुए थे। तब भी पुलिस पर मामले को गंभीरता से न लेने का आरोप था। घटना के 10 दिन बाद तक पुलिस ने किसी की गिरफ़्तारी नहीं की थी। इतना ही नहीं पुलिस और प्रशासन पर पीड़िता के परिवार की सहमति के बिना ही उसका अंतिम संस्कार किए जाने का भी गंभीर आरोप है।

योगी सरकार इस मोर्चे पर लगातार विफल ही नज़र आती है। ऊपर से बीते कुछ समय में खस्ता कानून व्यवस्था और शासन-प्रशासन की पीड़ित को प्रताड़ित करने की कोशिश, बलात्कार और हत्या जैसे संवेदशील मामलों में एक अलग ही ट्रैंड सेट करता दिखाई पड़ रहा है।

एनसीआरबी के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले में अभी भी पहला स्थान उत्तर प्रदेश का ही है। साल 2020 में देशभर में महिलाओं के खिलाफ कुल 3,71,503 मामले दर्ज किए गए। जिसमें यूपी से लगभग 50 हजार मामले सामने आए। साल 2019 में देश भर में महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले कुल अपराधों में क़रीब 15 फ़ीसद अपराध यूपी में हुए हैं। हालांकि महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश का आंकड़ा राष्ट्रीय औसत से कम रहा है। साल 2019 में इस मामले में देश का कुल औसत 62.4 फ़ीसद दर्ज किया गया जबकि उत्तर प्रदेश में यह 55.4 फ़ीसद ही रहा।

महत्वपूर्ण बदलाव के बावजूद देश में बलात्कार के मामलों में कोई कमी नहीं

यूं तो सिर्फ यूपी ही नहीं पूरे देश की स्थिति यही है। निर्भया कांड के बाद जनता के फूटे गुस्से के चलते भारतीय दण्ड संहिता में हुए महत्वपूर्ण बदलाव के बावजूद देश में बलात्कार के मामलों में कोई कमी नहीं आई है। आज भी परिस्थिति ज्यों कि त्यों हैं। राष्‍ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्‍यूरो के 2019 की रिपोर्ट के अनुसार देश में हर रोज़ 88 बलात्कार की घटनाएँ सामने आती हैं। अगर और ध्यान से इन आंकड़ों को देखें तो पता चलेगा कि स्थिति इतनी भयावह है कि 88 महिलाओं में से 14 नाबालिग लड़कियां होती हैं। बलात्कार के मामलों में उत्तर प्रदेश, राजस्थान के बाद, दूसरे नंबर पर है, जहाँ हर रोज़ करीबन 17 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएँ सामने आती हैं।

यह सिर्फ इसी मामले की कहानी नहीं है, बल्कि पूरे देश की स्थिति दिखाने वाले आधिकारिक आंकड़े हैं। महिलाओं के खिलाफ हिंसा बढ़ती जा रही है, लेकिन जब मामले दर्ज होते हैं तो अदालतों में उन पर सुनवाई पूरी होने में सालों लग जाते हैं और उसके बाद भी बहुत ही कम मामलों में जुर्म साबित होता है और मुजरिम को सजा होती है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश में रोज कम से कम 88 बलात्कार के मामले दर्ज होते हैं, लेकिन इनमें अपराध सिद्धि यानी कन्विक्शन की दर सिर्फ 27.8 प्रतिशत है।

यानी हर 100 मामलों में से सिर्फ करीब 28 मामलों में अपराध सिद्ध हो पाता है और दोषी को सजा हो पाती है। इस मामले में सबूत पर्याप्त जुटाए गए हैं या नहीं और पुलिस की जांच विश्वसनीय है या नहीं यह तो बाद में ही पता चल पाएगा, क्योंकि अभी इस मामले का अंत नहीं हुआ है। न ही अंत हुआ है महिलाओं के खिलाफ शासन-प्रशासन के लापरवाही भरे रवैये का, जो पीड़ित को शारीरिक के साथ साथ मानसिक कष्ट भी देती है।

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