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भारत
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यूपी: महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा के बीच क्यों बंद हो गई ‘181 सीएम हेल्पलाइन’?
योगी सरकार की महत्वकांक्षी योजनाओं में शामिल महिला हेल्पलाइन सेवा 181 फंड के आभाव में बंद कर दी गई है। इस हेल्पलाइन के माध्यम से पीड़ित महिलाओं को रेस्क्यू करने से लेकर शेल्टर होम पहुंचाने, उनकी काउंसलिंग और कानूनी सहायता करने आदि की कई सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाती थीं।
सोनिया यादव
15 Jun 2020
सीएम हेल्पलाइन

“पहले महिला हेल्पलाइन सिर्फ़ 11 जिलों में काम करती थी, लेकिन अब 75 जिलों में काम करेगी। सात दिन तक 24 घंटे खुला रहने वाला यह कॉलसेंटर महिलाओं की ताकत बनेगा और 24 घंटे व सातों दिन काम करेगा।"

उत्तर प्रदेश में महिला हेल्पलाइन '181' का विस्तार करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे महिलाओं की ताकत बताया था। लेकिन अफसोस कि जब लॉकडाउन के बीच महिलाओं के खिलाफ हिंसा में लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज हो रही है, प्रदेश में सबसे ज्यादा महिलाओं को इसकी जरूरत है। ऐसे में 10 जून से पूरे प्रदेश में 24 घंटे वूमेन पावर हेल्पलाइन की सेवाएं बंद कर दी गई हैं। सिर्फ इतना ही नहीं रोजगार देने के दावों के बीच हेल्पलाइन चलाने वाली आशा ज्योति केंद्र की मददगार महिलाएं भी बेरोजगार हो गई हैं। लाइव हिंदुस्तान की ख़बर के अनुसार आशा केंद्र की महिलाओं ने मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर महिला हेल्पलाइन को दोबारा चलाने और एक साल का बकाया वेतन दिलाने की मांग की है।

क्या है पूरा मामला?

दिसंबर 2012 में निर्भया जब जिंदगी की जंग हार गई तो उसकी मौत ने सड़क से संसद तक एक नया आक्रोष पैदा किया। महिला सुरक्षा, सहायता और कानूनों को सख्त करने की बहस शुरू हुई। दिल्ली समेत देश के कई राज्यों ने हेल्पलाइन नंबर और कड़े कानून का प्रावधान किया। इसी क्रम में उस समय उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आठ मार्च 2016 को महिला हेल्पलाइन 181 लांच की। इसकी देखरेख की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार के महिला एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को दी गई वहीं संचालन का जिम्मा निजी कंपनी जीवीके एमआरआई को 5 सालों के लिए मिला।

पीड़ित महिलाओं की मददगार थी हेल्पलाइन

महिला हेल्पलाइन 181 एक निशुल्क सेवा थी। जिसके जरिए पीड़ित महिलाएं या उनके जानकार इस हेल्पलाइन पर फोन करके अपनी परेशानी बता सकते थे। इसके बाद मामले की गम्भीरता को देखते हुए जिले में बने वन स्टॉप सेंटर (आशा ज्योति केंद्र) पर तैनात स्टाफ रेस्क्यू वैन की मदद से पीड़िता को हर संभव मदद करने की कोशिश करता था।

आशा ज्योति केंद्र के माध्यम से पीड़ित महिलाओं को शेल्टर होम में पहुंचाने से लेकर उनकी काउंसलिंग, कानूनी सहायता और मानसिक चिकित्सा आदि की सुविधा भी उपलब्ध करवाई जाती थी।

योगी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना बंद

इस महिला हेल्पलाइन सेवा योजना को प्रदेश में सीएम हेल्पलाइन योजना के नाम से भी जाना जाता है। इसकी शुरुआत पहले 11 जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर हुई थी लेकिन इसके अच्छे नतीजों को देखते हुए नयी योगी सरकार ने इसे अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं में शामिल कर इसका विस्तार सभी 75 जिलों में कर दिया। 23 जून 2017 को प्रदेश की महिला एवं बाल विकास कल्याण विभाग की पूर्व कैबिनेट मंत्री रीता बहुगुणा जोशी से हरी झंड़ी मिलने के बाद प्रदेशभर में 'आपकी सखी आशा ज्योति केन्द्र' (वन स्टॉप सेंटर) और महिला हेल्पलाइन 181 को छह सीटर से बढ़ाकर 30 सीटर कर दिया गया। सभी जिलों में रेस्क्यू वैन और फील्ड काउंसलर की नियुक्ति भी कर दी गई। इसमें प्रशिक्षित महिलाओं की तैनाती हुई लेकिन अब फंड के आभाव में इस योजना ने दम तोड़ दिया है।

क्या कहना है कंपनी का?

निजी कम्पनी 'जीवीके एमआरआई' के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त  पर बताया कि सरकारी विभाग की तरफ से फरवरी 2019 से ही कम्पनी का भुगतान रोक दिया गया था। जिसके बाद अब इसे बंद करने के अलावा उनके पास कोई और रास्ता नहीं था।

उन्होंने कहा, “कंपनी ने कर्मचारियों को जून 2019 यानी लगभग पांच महीने तक का वेतन खुद से दिया जिससे योजना ठप न हो, लेकिन अब हम इस योजना को खुद से चलाने में सक्षम नहीं है। इसमें काम करने वाले कर्मचारियों को जुलाई महीने से कोई मानदेय नहीं मिला है। ऐसे में अब हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है।

कर्मचारी क्या कह रहे हैं?

वन स्टॉप सेंटर की एक पूर्व प्रभारी ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा कि हेल्पलाइन केंद्रों की सुविधाएं दिन-प्रतिदिन बदतर होती जा रही थी। करीब एक साल से केंद्र में काम करने वाली महिलाओं को वेतन नहीं मिल रहा था और अब अचानक कंपनी ने हेल्पलाइन बंद कर सभी महिलाओं को आशा ज्योति केंद्र से बर्खास्त कर दिया है अभी भी उन्हें उनका बकाया एक साल का वेतन नहीं दिया गया है।

वो कहती हैं, “जिन सुविधाओं और नियमों के तहत इस सुविधा की शुरुआत हुई थी, उसे बाद में बदला जाने लगा। 26 जुलाई 2019 को नए आदेश में जिस प्रभारी की नियुक्ति 40,000 के मासिक वेतन पर की गयी थी, उसे घटाकर अब 24,000 कर दिया गया। इतना ही नहीं कई जिलों में कर्माचारियों की आवश्यकता अनुसार भर्ती भी नहीं की गई। स्टाफ पहले से कम था अब उसे बाद में और कम कर दिया गया। एक रेस्क्यू वैन पर्याप्त नहीं थी इनकी संख्या बढ़ाने के बजाय सेवा ही ठप कर दी गई। 300 बेड हॉस्पिटल कैंपस में चल रहे आशा ज्योति केंद्र में ताले लटक रहे हैं। हम केवल फोन पर काउंसलिंग के जरिए पीड़ित तक मदद पहुंचा पाते थे लेकिन अब वो भी बंद हो गया।”

हेल्पलाइन ने की पांच लाख से अधिक पीड़ितों की मदद

हेल्पलाइन में कार्यरत एक काउंसलर महिला के अनुसार उत्तर प्रदेश में 181 महिला हेल्पलाइन पांच लाख से ज्यादा पीड़ित महिलाओं की मदद कर चुकी है जबकि दो लाख से ज्यादा महिलाओं का रेस्क्यू किया गया है। हजारों घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के सुलह समझौता कराए गये हैं। सैकड़ों लड़कियों का बाल विवाह रोका गया है। रेप और गैंगरेप जैसी घटनाओं में जब कई बार मामले ग्रामीण क्षेत्रों में लोग संकोचवश दर्ज नहीं करवाते ऐसे में इस हेल्पलाइन पर मामले दर्ज हो जाते हैं क्योंकि यहां सुनने वाली महिलाएं होती हैं।

काउंसलर महिला कहती हैं,"भले ही हमें आठ महीने से मानदेय नहीं मिला है फिर भी हम ऑफिस लगातार ऑटो से जाते थे, लॉकडाउन में हमें कई जगह से पर्सनल लेवल पर भी शिकायतें मिल रही हैं, लेकिन हम अब पीड़ित की मदद करने में असहाय हैं। लॉकडाउन में सरकार रोजगार देने के वायदे कर रही है। हमारा रोजगार छीन लिया। घर का खर्च और बच्चों की स्कूली पढ़ाई कैसे करायें।”

निर्भया फंड के पैसों का क्या हुआ?

गांव कनेक्शन की रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में निर्भया फंड का 119 करोड़ रुपये का बजट है जिसमें अभी तक मात्र तीन करोड़ 93 लाख रुपये ही खर्च हुए हैं। ऐसे में पत्रकार और समाजिक कार्यकर्ता ऋचा सिंह प्रदेश सरकार से सवाल करती हैं कि आखिर निर्भया फंड का बाकी बचा पैसा कहां गया? क्यों महिला सुरक्षा की महत्वपूर्ण योजना बंद हो गई?

ऋचा कहती हैं, “उत्तर प्रदेश सरकार लगातार बेहतर कानून व्यवस्था का ढोल पीटने में व्यस्त है लेकिन वास्तविकता इससे परे है। देश में सबसे ज्यादा महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाएं यहीं से सामने आ रही हैं। लॉकडाउन के दौरान भी महिला आयोग के पास यूपी से औरतों के उत्पीड़न की सबसे अधिक शिकायतें आई। ऐसे में क्या मंशा है योगी सरकार की महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण को लेकर? क्या प्रदेश में अब महिला के साथ हो रही हिंसा खत्म हो गई है, अगर नहीं तो इस योजना को बंद करने के पीछे क्या कारण है?”

इसे भी पढ़ें: लॉकडाउन के चलते घरेलू हिंसा के मामले बढ़े, महिला उत्पीड़न में यूपी सबसे आगे

विपक्ष ने सरकार को घेरा

इस मामले पर समाजवादी पार्टी ने एक बयान जारी कर कहा है कि 'महिला सशक्तिकरण पर सिर्फ भाषणबाजी करने वाले मुख्यमंत्री अपनी महत्वकांक्षी वूमेन पावर हेल्पलाइन 181 तक न चला सके, शर्मनाक! सरकार ने प्रदेश भर में हजारों मददगार महिलाओं को वैश्विक महामारी काल में बेरोजगार कर दिया। आशा ज्योति केंद्रों में 1 साल का वेतन  बकाया। अविलंब हो वेतन भुगतान।'

उत्तर प्रदेश में महिलाओं का हाल

गौरतलब है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में महिलाओं के प्रति अपराध पूरे देश में सबसे ज़्यादा हैं। पुलिस हर दो घंटे में बलात्कार का एक मामला दर्ज करती है, जबकि राज्य में हर 90 मिनट में एक बच्चे के ख़िलाफ़ अपराध की सूचना दी जाती है। 2018 में बलात्कार के 4,322 मामले दर्ज किए गए थे। जबकि नाबालिगों के मामलों में, 2017 में 139 के मुकाबले 2018 में 144 लड़कियों के बलात्कार के मामले सामने आए थे।

इस संबंध में हमने उत्तर प्रदेश महिला कल्याण विभाग से संपर्क करने का प्रयास किया। मेल के माध्यम से उन्हें सवाल भेजे हैं, जवाब मिलते ही खबर अपडेट कर दी जाएगी।

इसे भी पढ़ें: यूपी: एक ही दिन में तीन नाबालिगों के साथ गैंगरेप, कहां है कानून? कहां है व्यवस्था?

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