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भारत
राजनीति
पूर्वांचल में रैलियों का दौरः यूपी में जिस दरवाज़े से सत्ता में आई थी भाजपा, उस पर अखिलेश-ओमप्रकाश ने लगा दी कुंडी!
पूर्वांचल में ऐसी 30 सीटें हैं जिस पर हार-जीत का फैसला राजभर समाज के लोग करते रहे हैं। सुभासपा की रैली में जुटे जमीनी कार्यकर्ताओं ने यह बता दिया कि वह बड़ा नतीजा लेकर आने वाली है। ऐसा नतीजा जिससे पूर्वांचल में भाजपा पसीने-पसीने हो सकती है।
विजय विनीत
28 Oct 2021
Akhilesh

उत्तर प्रदेश की सियासत में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जिस दरवाजे से सत्ता में आई थी, उसे समाजवादी पार्टी (सपा) ने भारतीय सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के साथ मिलकर बंदकर दिया और बाहर से कुंडी भी लगा दी है। मऊ जिले के हलधरपुर गांव में सुभासपा के 19वें स्थापना दिवस के मौके पर आयोजित रैली में जुटी अपार भीड़ ने शंखनाद करके बता दिया कि यूपी का सियासी निजाम अब बदल जाएगा। अगले विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ दल भाजपा को लोहे के चने चबाने पड़ सकते हैं। पूर्वांचल में ऐसी 30 सीटें हैं जिस पर हार-जीत का फैसला राजभर समाज के लोग करते रहे हैं। सुभासपा की रैली में जुटे जमीनी कार्यकर्ताओं की भीड़ ने यह बता दिया है कि वह बड़ा नतीजा लेकर आने वाली है। ऐसा नतीजा जिससे पूर्वांचल में भाजपा पसीने-पसीने हो सकती है। 

साल 2016 में सुभासपा सुप्रीमो ओमप्रकाश राजभर ने मऊ में अमित शाह की मौजूदगी में इसी तरह की रैली आयोजित कर भाजपा की जीत का रास्ता आसान कर दिया था। हालांकि सुभासपा पिछली मर्तबा जब भाजपा के खेमे में थी, उस समय उतनी भीड़ नहीं जुटी थी, जितनी हरधरपुर की रैली में उमड़ी। ओमप्रकाश सर्वाधिक पिछड़े वर्ग की राजभर जाति से आते हैं। इस जाति की ज्यादातर आबादी छोटे किसानों और खेतिहर मजदूरों की है।

27 अक्टूबर 2002 को वाराणसी के सारनाथ स्थित सुहेलदेव राजभर पार्क में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की नींव रखी गई थी। भाजपा से जुदा होने के बाद ओमप्रकाश ने ‘सत्ता के ताज’ की तलाश में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया। 27 अक्टूबर 2021 को दोनों नेता हेलीकाप्टर से रैली में पहुंचे। हलधरपुर में जुटी भारी भीड़ ने यह संकेत दिया कि अगला चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं रहने वाला है।

किसानों के मुद्दों पर तेज़ हुआ विमर्श

सुभासपा की रैली से दो दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बनारस में रैली थी। रैली में भीड़ जुटाने के लिए भाजपा नेताओं के साथ पूर्वांचल की समूची सरकारी मशीनरी कई दिनों से लगी हुई थी। मोदी आए, लेकिन जन-सरोकार के मुद्दों पर कोई बात नहीं की। अखिलेश यादव हलधरपुर आए तो उन्होंने सिर्फ जनता के रिसते घावों को कुरेदा। आसमान छू रही महंगाई और किसानों के मुद्दों को जनता के विमर्श में लाकर मजबूती के साथ रखा तो भीड़ ने हाथ उठाकर अपनी रजामंदी का सुबूत पेश किया। अखिलेश ने मोदी को घेरा और कहा, "यूपी में 9 मेडिकल कालेज खोलने का दावा झूठा और एक नया जुमला है। भाजपाई गरीबों को सिर्फ धोखा दे रहे हैं। दिल्ली वाले लखनऊ वालों के लिए और लखनऊ वाले दिल्ली वालों के लिए झूठ पर झूठ बोल रहे हैं। नौजवान नौकरी ढूंढ रहे हैं। मगर न नौकरी है, न रोजगार।"

अखिलेश यहीं नहीं रूके। बोले, "यूपी में भुखमरी है। लोगों के पास खाना नहीं, कपड़ा नहीं, नौकरी नहीं और खेती में मुनाफा नहीं है। खाद-बीज का संकट है। लाचारी में किसानों को आत्महत्याएं करनी पड़ रही हैं। यह कैसी सरकार है जो बार-बार हमें-आपको लाइन में लगा देती है। कभी नोटबंदी के बहाने तो कभी भ्रष्टाचार मिटाने के नाम पर। भाजपा सरकार ने चुपके से यूरिया और डीएपी की बोरियों से खाद चोरी कर ली। खाद भी यूपी से गायब है। जहां है भी वहां किसानों की लंबी-लंबी लाइनें लगवाई जा रही हैं। ललितपुर लाइन में दो दिन तक खड़े किसान की मौत हो गई। एक अन्य किसान ने खाद न मिलने पर आत्महत्या कर ली। कितनी जालिम है यह सरकार? " 

अखिलेश ने नए कृषि कानून का कड़ा विरोध किया। आंदोलनरत किसानों का समर्थन करते हुए कहा, "किसानों ने काले कानून का विरोध किया तो उन पर जीप चढ़वा दी। अधिकार मांगने पर जीपों से रौंदवा दिया गया। जिस अपराधी का बाप केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हो और बेटा कातिल, तो न्याय कहां से मिलेगा? देश की अर्थ व्यवस्था को चौपट करने वाले कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन में 600 से ज्यादा किसान शहीद हो गए। ऐसी निष्ठुर सरकार से जनता को क्या मिलेगा?"

दुखती रगों पर अखिलेश ने रखा हाथ

अखिलेश ने किसानों की दुखती रगों पर हाथ रखा तो भीड़ ने हाथ उठाकर झंडे लहराने शुरू कर दिए। तब उन्होंने भीड़ से पूछा, "दुनिया में कहीं ऐसा होता है कि अपना अधिकार मांगने पर किसानों को गाड़ियों से रौद दिया जाए? "जनता ने हाथ उठाकर जवाब दिया- "नहीं"। अखिलेश ने फिर सवाल किया, "झूठ बोलने वाली पार्टी का नाम बताओ? "भीड़ की ओर से जवाब आया-"भाजपा"...। फिर अखिलेश ने कहा, "चप्पल पहनने वालों को जहाज में सफर कराने का जुमला फेंकने वालों ने पेट्रोल इतना महंगा कर दिया है कि जिंदगी बेहद कठिन हो गई है। देखा नहीं कोरोना का संकट आया तो इस सरकार ने गरीबों की तनिक भी सुधि नहीं ली। सरकार लापता हो गई और लोगों को मरने के लिए बेसहारा व अनाथों की तरह छोड़ दिया। हमने गरीबों के लिए जो एंबुलेंस चलवाई तो उसे भी इस सरकार ने खड़ा करा दिया।"  

सपा मुखिया अखिलेश यादव और सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने पहली चुनावी रैली में मोदी और योगी के काम पर सीधा और पुरबिया जुबान में तीखा हमला बोला। ओमप्रकाश ने तो यहां तक कह दिया, "देश के सबसे नंबर-वन झूठे मोदी और दूसरे नंबर पर योगी।" रैली में उम्मीद से ज्यादा जुटी भीड़, व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंकती नजर आई। रैली में मौजूद बनारस के वरिष्ठ पत्रकार विनय मौर्य ने पीली टोपी और लहराते झंडों की ओर इशारा करते हुए कहा, "अखिलेश पर यादववाद का जो लेबल चस्पा था, उसे उन्होंने हटा दिया है। मोदी ने बनारस की रैली में पुरानी नाकामियों पर नए जुमलों का जो पर्दा डालने का प्रयास किया था, हरधरपुर में जुटे किसानों-मजदूरों ने उसकी धज्जियां उड़ा दीं। भीड़ ने हर बात पर हाथ उठाकर अपनी रजामंदी दिखाई। संकेत दिया कि यूपी में अब छोटी-छोटी जातियां भी गोलबंद हो सकती हैं।" 

ओमप्रकाश ने उड़ाई भाजपा की खिल्ली

रैली में ओमप्रकाश राजभर ने भाजपा की खूब खिल्ली उड़ाई और कहा, "उनकी पार्टी सत्ता में आई तो जातिवार गणना करवाई जाएगी। मौजूदा सरकार जुमलेबाजों की है। पिछली मर्तबा मोदी ने जुमला फेंका था कि किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। सत्ता में आए तो किसानों को दंड दे दिया। अन्ना पशु (छुट्टा और आवारा) छोड़वा कर खेती-किसानी चौपट करा दी। हवाई जहाज से सस्ते में सफर कराने का जुमला फेंककर एयरपोर्ट ही बेचना शुरू कर दिया। कालाधन लाने और भ्रष्टाचार मिटाने के लिए नोटबंदी व जीएसटी लेकर आए और छह करोड़ नौजवानों की नौकरियां छीन लीं।" राजभर ने भीड़ से पूछा, "मोदी ने वादे के मुताबिक 15-15 लाख सभी के खाते में भेजा क्या? "भीड़ ने जवाब दिया- "नहीं"। तब उन्होंने कहा, "भाजपा नेताओं पर भरोसा मत कीजिए। इन्हें तो मोतियाबिंद हो गया है।"  

पूर्वांचल की सियासत की नब्ज टटोलने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार ने कहा, "ओमप्रकाश राजभर दूसरे नेताओं से इसलिए ज्यादा विश्वसनीय हैं कि उन्होंने अपनों के लिए और मुद्दों के लिए भाजपा छोड़ी थी। इनका मुकाबला न अपना दल की अनुप्रिया पटेल कर सकती हैं, न निषाद पार्टी के अध्यक्ष डा. संजय निषाद। जो नेता अपने समाज के लिए सत्ता से लड़ता नजर आता है उसके प्रति जनता का भरोसा ज्यादा होता है। हलधरपुर की रैली में जो भीड़ जुटी थी उसकी बॉडी लैंग्विज बता रही थी कि पूर्वांचल के मेहनतकश लोगों का भरोसा जनभागीदारी संकल्प मोर्चा में ज्यादा है। खाद-बीज और महंगाई की मार से हांफते किसानों पर भाजपा अंकुश नहीं लगा पाएगी तो यूपी चुनाव में सत्ता उनके हाथ से निकल सकती है। चुनावी रैली में एक नारा उछला, "खेला नहीं, खदेड़ा होवे”। इस नारे ने संकेत दिया कि तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी भी चुनाव में ललकार लगाने आ सकती हैं। तब शायद भाजपा की मुश्किलें और भी ज्यादा बढ़ सकती हैं।"

बनारस के अजगरा विधायक कैलाशनाथ सोनकर ने न्यूजक्लिक से कहा, "भीड़ का हुजूम देख लीजिए। यहां वह भीड़ उमड़ी है जिसे अडानी-अंबानी की गुलामी बर्दाश्त नहीं है। गुलामी चाहे आर्थिक हो, राजनीतिक हो अथवा धार्मिक, अपने बल और विवेक को गिरवी रख कर की जाती है। पूर्वांचल के किसान मजदूर कारपोरेट की गुलामी करने के लिए तैयार नहीं हैं। लोग चाहते हैं कि तीनों नए कृषि बिल खत्म हो। नहीं तो लोग भाजपा को खदेड़कर भगा देंगे।" 

निज़ाम बदलने की छटपटाहट

ओमप्रकाश राजभर ने जिस स्थान पर रैली रखी थी उससे सटा गांव है ढोलवन। करीब 400 आबादी वाले इस गांव में राजभर, यादव, वैश्य और गिरि समुदाय के लोग रहते हैं। यहां हमें मिली सावित्री। इनके पति बरखू मूक-वधिर हैं। झोपड़ी बनाकर रहती हैं। सरकारी आवास इनके लिए सपना है। भैंस-बकरी पालकर परिवार का गुजारा करती हैं। वे हमें अपना घर दिखाने ले गईं। बातों-बातों में सावित्री ने पूछा, "यह कैसी सरकार है जो सिर्फ शक्तिशाली लोगों को ही सरकारी सुविधाएं देती है। हमारे पास न तो उज्जवला का रसोई गैस कनेक्शन है, न ही आवास। इतना पैसा नहीं कि बच्चों को पढ़ा सकें। पेट भरने की जद्दोजहद के बीच हमने ठान लिया है कि अबकी भाजपा की सत्ता को उखाड़ फेकेंगे।"

सावित्री के पक्ष में कमलावती, रीता, सुशीला रमेसरी ने भी हामी भरी। कहा, "हम खेती नहीं कर पा रहे हैं। ये जो सरकार है उसने साड़ों और भाड़ों का बढ़ावा दिया है। दोनों मिलकर देश और खलिहान चर गए।" आसपास के गांवों के लोगों में अबकी निजाम बदलने की छटपटाहट है। 

ये भी पढ़ें: यूपी: साढ़े चार सालों में मात्र 35 रुपए की बढ़ोत्तरी गन्ना किसानों के साथ 'धोखा' है!

‘सत्ता के ताज’ की तलाश में राजभर समुदाय पर दांव लगाने और उन पर डोरे डालने की सियासी कवायद तेज हो गई है। सपा के खेमे में ओमप्रकाश राजभर के अलावा बसपा के पूर्व अध्यक्ष रहे रामअचल राजभर खड़े हैं। बसपा ने भीम राजभर को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर पूर्वांचल में अपनी गणित दुरुस्त करने की कोशिश की है। भाजपा के पास मौजूदा मंत्री अनिल राजभर हैं। माना जा रहा है कि राजभरों पर विपक्ष का दांव पूर्वांचल में भाजपा की चुनौती बढ़ा सकता है। 

पूर्वांचल में दस से बीस फीसदी राजभर

आबादी के लिहाज से प्रदेश की कुल जनसंख्या में राजभर बिरादरी की हिस्सेदारी सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट के मुताबिक लगभग तीन फीसदी ही है, लेकिन अयोध्या से लेकर अंबेडकरनगर तक और पूर्वांचल के बस्ती से बलिया तक कई जिलों में विधानसभा की सीटों पर इनकी संख्या 10 से 20 प्रतिशत तक है। आंकड़ों के मुताबिक वाराणसी, जौनपुर, चंदौली, गाजीपुर, आजमगढ़, देवरिया, बलिया और मऊ के ग्रामीण इलाकों में राजभर समाज की आबादी करीब 20 फीसदी तक है। गोरखपुर, अयोध्या, अंबेडकरनगर, बहराइच, श्रावस्ती, बस्ती, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर, महराजगंज, कुशीनगर के अंचलों राजभर समाज की आबादी दस फीसदी से कम नहीं है। 

कितनी ताकतवर रहेगी भाजपा

साल 2017 से पहले भाजपा ने राजभर समाज की राजनीति करने वाले ओमप्रकाश राजभर के साथ गठबंधन किया था। पूर्वांचल में कई सीटों पर राजभर बिरादरी का प्रभाव था। अति पिछड़ों के लिए आरक्षण के फार्मूले और यूपी में पिछड़ी जाति का मुख्यमंत्री पदस्थापित करने आदि मुद्दों पर ओमप्रकाश और भाजपा के बीच अन-बन हो गई। ओमप्रकाश की लगातार बयानबाजी के बाद योगी आदित्यनाथ ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया। सुभासपा के वरिष्ठ नेता शशि राजभर कहते हैं, "ओमप्रकाश राजभर के सहारे सपा मुखिया अखिलेश अबकी बार पूर्वांचल में भाजपा का गणित फेल कर देंगे।"

भाजपा ने साल 2014 में हरिनारायण राजभर को लोकसभा का टिकट दिया और उन्हें संसद में पहुंचाया। लेकिन वह न तो अपना कद बढ़ा पाए और न ही राजभर समुदाय के लोगों के दिलों में पैठ जमा सके। प्रदेश में सरकार बनने के बाद भाजपा ने अनिल राजभर को मंत्री बनाकर और सकलदीप राजभर को राज्यसभा भेजकर राजभर बिरादरी के बीच पार्टी की सीधी पकड़ और पहुंच बढ़ाने का काम किया। इनके मुकाबले ओमप्रकाश राजभर और रामअचल राजभर जैसे नेताओं की सपा के साथ मौजूदगी भाजपा की राह कठिन कर सकती है। 

माफिया डॉन मुख्तार का इलाका है मऊ

सुभासपा की चुनावी रैली जिस क्षेत्र में आयोजित की गई थी, वो इलाका माफिया डॉन मुख्तार अंसारी का है। मुख्तार खबरों में इतना रहते हैं कि यूपी ही नहीं, उत्तर भारत में लोग उनके बारे में जानते हैं। इसी वजह से मऊ विधानसभा सीट भी चर्चा में रहती है। मौजूदा समय में मुख्तार अंसारी मऊ से विधायक हैं। साल 2017 के चुनाव में उन्होंने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के महेंद्र राजभर को 8 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। मुख्तार पिछले पांच चुनावों से मऊ सीट पर जीत दर्ज करते आ रहे हैं। वह बसपा से जीते, निर्दलीय लड़े तो भी जीते और एक बार कौमी एकता दल के टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे। वह साल 1996 से लगातार जीतते आ रहे हैं। इससे पता चलता है कि उनका सियासी रसूख कितना है।

दरअसल, मऊ में सीधे तौर पर जातिगत समीकरण और धर्म के आधार पर वोट पड़ते हैं। यहां दलित, पिछड़े और मुस्लिम वोटों की तादाद सबसे अधिक है। आजकल माफिया और उनके परिवार से जुड़ी संपत्तियों को सील, कुर्की या गिराने की कार्रवाई चल रही है। खुद को कृषक बताने वाले मुख्तार अंसारी पर मुकदमों की फेहरिस्त काफी लंबी है। करोड़पति मुख्तार के पास चल-अचल संपत्तियां खूब हैं। बैंक जमा, मोटर गाड़ी, गहनों के अलावा करोड़ों की जमीन है। कमर्शियल बिल्डिंग की बात करें तो कुछ साल पहले तक उनके पास 12 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति थी।

एक समय मऊ सीट से लेफ्ट और उससे पहले कांग्रेस और भारतीय जन संघ के उम्मीदवार जीते थे। बसपा ने मुख्तार को अपनी पार्टी से निकाल दिया है। हालांकि पार्टी से ज्यादा यहां मुख्तार अंसारी का चेहरा मायने रखता है। माफ़िया से नेता बने मुख्तार अंसारी की पहचान उनके इलाक़े में एक अलग रूप में भी होती है। उनके विधानसभा क्षेत्र के लोग बताते हैं कि इलाक़े के विकास के लिए वो अपनी विधायक निधि से भी ज़्यादा पैसा ख़र्च करते हैं।

मुख़्तार अंसारी कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और अपने ज़माने में नामी सर्जन रहे डॉक्टर एमए अंसारी के परिवार से आते हैं। यही नहीं, मुख़्तार अंसारी के पिता भी स्वतंत्रता सेनानी और कम्युनिस्ट नेता थे। मौजूदा समय में इनके बड़े भाई शिबगतुल्लाह अंसारी समाजवादी पार्टी से जुड़ गए हैं। माना जा रहा है कि मुख्तार का कुनबा एक बार फिर समाजवादी पार्टी का दामन थाम सकता है।

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