NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
दलित+ब्राह्मण: क्या 2007 दोहरा पाएगी बीएसपी?
पार्टी अपने 2007 के सोशल इंजीनियरिंग के प्रयोग को दोहराने की कोशिश कर रही है, लेकिन ये इस बार इतना आसान नहीं होगा। एक विश्लेषण...
असद रिज़वी
23 Jul 2021
अयोध्या में बीएसपी के कार्यक्रम का पोस्टर। बीएसपी नेता सतीश चंद्र मिश्रा के ट्विटर हैंडल से साभार
अयोध्या में बीएसपी के कार्यक्रम का पोस्टर। बीएसपी नेता सतीश चंद्र मिश्रा के ट्विटर हैंडल से साभार

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के लिए बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की नज़र ब्राह्मण समाज पर है। पार्टी अपने 2007 के सोशल इंजीनियरिंग के प्रयोग को दोहराने की कोशिश कर रही है।

ब्राह्मण समाज को एक बार फिर अपने के क़रीब लाने के लिए बीएसपी आज, 23 जुलाई को अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन कर रही है। बीएसपी अध्यक्ष मायावती ने ब्राह्मण समाज को पार्टी से जोड़ने की ज़िम्मेदारी सतीश मिश्रा को दी है।

अयोध्या में सतीश चंद्र मिश्रा अपने परिवार के साथ। फोटो ट्विटर से साभार

मायावती ने 2007 में दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण समाज का समर्थन हासिल कर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। उस वक़्त बीएसपी को 403 सीटों वाली विधानसभा में 206 सीटें हासिल करी थी। लेकिन 2012 में ब्राह्मण समाज और मुस्लिम दोनो ने बीएसपी का छोड़ दिया।

जिसके बाद से बीएसपी प्रदेश में दोबारा सत्ता में नहीं लौट सकी है। अयोध्या आंदोलन के समय (80 के दशक के आख़िर) से ब्राह्मण समाज बीजेपी से जुड़ा हुआ है। इस से पहले ब्राह्मण समाज कांग्रेस का परंपरागत वोटर माना जाता था।

याद रहे कि प्रदेश ब्राह्मण समाज को बीएसपी के क़रीब लाने के लिए दलित समर्थक पार्टी बीएसपी ने 2007 में नारा दिया था, “हाथी नहीं गणेश हैं ब्रह्मा विष्णु महेश हैं”। बीएसपी ने ब्राह्मण समाज का विश्वास जीत भी लिया था और उसके 206 विधायकों में क़रीब 41 ब्राह्मण थे। बीएसपी ने उस समय 80 से अधिक ब्राह्मणों को टिकट दिया था।

देश के महत्वपूर्ण प्रदेश की 20 करोड़ से अधिक आबादी में क़रीब 11 प्रतिशत ब्राह्मण हैं। विधानसभा चुनाव 2017 में कुल 56 ब्राह्मण विधायक जीते थे। इनमें 46 बीजेपी के टिकट पर जीते थे। लेकिन कहा यह जाता है कि सत्ता के शीर्ष पर “ठाकुर” नेता योगी आदित्यनाथ के आने से ब्राह्मणों में असंतोष है।

मायावती काफ़ी समय से ब्राह्मण समाज के वोटों पर नज़र रखे हुए हैं। हालाँकि अभी तक उनकी ओर से 2007 की तरह 20 प्रतिशत मुस्लिम समाज को बीएसपी से जोड़ने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है।

बीएसपी सुप्रीमो ने एक मल्टीनेशनल कंपनी के कर्मचारी विवेक तिवारी की लखनऊ में पुलिसकर्मियों द्वारा 2018 में की गई कथित हत्या के बाद, योगी आदित्यनाथ को सवर्णों के शोषण के मुद्दे पर घेरा था।

उन्होंने कहा था कि बीजेपी सरकार वाले राज्य में, अगड़ी जाति विशेषकर ब्राह्मण समाज के लोगों का कुछ ज्यादा ही शोषण एवं उत्पीड़न हो रहा है। इसके बाद 2022 में गैंगस्टर विकास दुबे की पुलिस एनकाउंटर में हुई मौत पर भी मायावती ने प्रदेश सरकार पर हमला किया था। बीएसपी सुप्रीमो ने एक बयान में कहा था ''बीएसपी का मानना है कि किसी गलत व्यक्ति के अपराध की सज़ा के तौर पर उसके पूरे समाज को प्रताड़ित व कठघरे में नहीं खड़ा करना चाहिए”।

पार्टी सूत्र बताते हैं कि विकास दुबे के शूटर अमर दुबे की पत्नी खुशी दुबे का केस अब पार्टी महासचिव और राज्यसभा सांसद सतीश मिश्र कोर्ट में लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। अभी हाल में मायावती ने एक बयान में कहा कि ब्राह्मणों के हित-अधिकार के केवल बीएसपी में ही सुरक्षित हैं।

बता दें कि बीएसपी के ब्राह्मण चेहरा कहे जाने वाले ब्रजेश पाठक पहले ही पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल हो चुके हैं। पाठक मौजूदा प्रदेश सरकार में क़ानून मंत्री हैं। बीएसपी के एक और क़द्दावर ब्राह्मण नेता रामवीर उपाध्याय,सादाबाद के विधायक हैं, करीब दो साल से वह पार्टी से निलंबित हैं। कहा जा रहा है उनकी नज़दीकी भी भाजपा से बढ़ रही है।

कहा यह जा रहा है कि अपने समाज के लोगों के हुए कथित एनकाउंटर से लेकर सत्ता के बंटवारे में कम हिस्सा मिलने तक कई मुद्दों को लेकर ब्राह्मणों में बीजेपी के ख़िलाफ़ नाराज़गी है।

अभी हाल में नरेंद्र मोदी सरकार में हुए विस्तार में प्रदेश से केवल एक ब्राह्मण नेता लखीमपुर खीरी के सांसद अजय कुमार मिश्रा को जगह मिली। जबकि 3 ओबीसी और 3 दलित नेताओं को मंत्री बनाया गया।

हालाँकि बीएसपी के अलावा  समाजवादी पार्टी (एसपी) और कांग्रेस दोनों की नज़र भी ब्राह्मण वोटों पर है। दोनों का कहना है कि बीएसपी का ब्राह्मण प्रेम मात्र दिखावा है। कांग्रेस का दावा है कि उसने प्रदेश में 5 ब्राह्मण मुख्यमंत्री दिए हैं।

कांग्रेस नेता अंशु अवस्थी कहते हैं कि सिर्फ़ उनकी पार्टी ने ब्राह्मण समाज को सरकार में उच्च प्रतिनिधित्व दिया है। अवस्थी के अनुसार कांग्रेस ने प्रदेश में पांच ब्राह्मण मुख्यमंत्री, गोविंद बल्लभ पंत, कमलापति त्रिपाठी, श्रीपति मिश्रा, हेमवती नंदन बहुगुणा और नारायण दत्त तिवारी दिये हैं। कांग्रेस नेता कहते हैं कि बीएसपी का ब्राह्मण प्रेम चुनावों से पहले समाज के वोट हासिल करने के लिए एक राजनीतिक ड्रामा है।

प्रदेश की प्रमुख विपक्षी पार्टी सपा ने भी कहा है कि बीएसपी अब 2007 की तरह ब्राह्मण समाज को बहका नहीं सकती है। पार्टी के फ़ैज़ाबाद (अयोध्या) से पूर्व विधायक पवन पाण्डेय प्रश्न करते हैं कि “प्रदेश में अनेक बार ब्राह्मण की कथित एनकाउंटर के नाम पर हत्या हुई, मायावती या उनकी पार्टी कितने परिवारों से मिलने उनके घर गईं?”

पांडेय के अनुसार केवल घर में बैठ कर राजनीति करने वाली मायावती को अब स्वयं उनके समाज का समर्थन भी नहीं है। इसी लिए चुनावों से पहले उनकी पार्टी बीएसपी दूसरे समाज को लुभाने की कोशिश कर रही है।

ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली संस्था अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा (आर ए) के अनुसार बीएसपी का ब्राह्मण सम्मेलन सिर्फ़ वोटों के लिए है। महासभा के सभा अध्यक्ष राजेंद्र नाथ त्रिपाठी मानते हैं कि बीएसपी और बीजेपी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। त्रिपाठी के कहते हैं की जब से योगी आदित्यनाथ सरकार बनी है, प्रदेश में ब्राह्मणों का शोषण हो रहा है, लेकिन मायावती ने इसके विरुद्ध कब सड़क पर आकर आवाज़ उठाई है?

दलित चिंतक मानते हैं की बीएसपी को सम्मेलन से ब्राह्मण समाज से समर्थन नहीं मिलेगा बल्कि उसका दलित वोट भी कम हो जायेगा। राम कुमार जो काफ़ी समय से दलित अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं, कहते हैं 80 प्रतिशत ब्राह्मण समाज, बीजेपी के साथ मिलकर “हिन्दू राष्ट्र” का सपना देख रहे हैं, वह किसी दूसरी पार्टी में क्यूँ जायेंगे?

कुमार आगे कहते हैं कि आज प्रदेश में दलित की एफआईआर भी दर्ज नहीं होती है और आरक्षण समाप्त करने की कोशिश हो रही है। बहनजी (मायावती) को इस मुद्दे पर रणनीति बनाना चाहिए थी, ताकि दलित एकजुट किया जा सकें। लेकिन वह वैचारिक मतभेदों को भूलकर, ब्राह्मण समाज को पार्टी में लाने की कोशिश कर रही हैं।

माना यह जा रहा है की विधानसभा चुनाव 2022 बीएसपी के लिए बड़ी चुनौती साबित होगा। क्यूँकि पार्टी ने पिछले कुछ वर्षों से ज़मीन पर दलित समाज के अधिकारों के लिए कोई बड़ा आंदोलन नहीं किया है। पार्टी के मूल वोटर दलित समाज के पास अब चन्द्रशेखर आज़ाद की “आज़ाद समाज पार्टी” भी एक विकल्प है। इसके अलावा 2007 में बीएसपी को 30 प्रतिशत वोट तब मिले थे, जब उनको दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण का समर्थन मिला था। लेकिन इस बार बीएसपी ने अभी तक मुस्लिम समाज से जुड़ने की कोशिश नहीं की है।

अब मायावती के सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं। एक दलित वोटों को बिखराव से रोकना, क्यूँकि दलितों के पास अब चन्द्रशेखर बीएसपी के विकल्प के रूप में विकसित हो रहे हैं। दूसरे ब्राह्मण समाज, जिस पर उनकी नज़र है, उसको अपनी तरफ़ लाना है। क्यूँकि नाराज़गी के बावजूद ब्राह्मण वैचारिक रूप से भगवा पार्टी को ही प्राथमिकता देते हैं। ब्राह्मण समाज को बीएसपी से क़रीब करना उनकी रणनीति है,जिस पर पार्टी काम कर रही है। लेकिन नीति यानी दलित अधिकारों की लड़ाई उसके लिए कहा जाता है उन्होंने काफ़ी समय से  कुछ नहीं किया है।

(लखनऊ स्थित लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

UttarPradesh
UP ELections 2022
Satish Chandra Mishra
BSP
MAYAWATI
Dalits
Brahmin
Ram Mandir
Brahminism

Related Stories

बदायूं : मुस्लिम युवक के टॉर्चर को लेकर यूपी पुलिस पर फिर उठे सवाल

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

विचारों की लड़ाई: पीतल से बना अंबेडकर सिक्का बनाम लोहे से बना स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी

विशेष: क्यों प्रासंगिक हैं आज राजा राममोहन रॉय

यूपी में  पुरानी पेंशन बहाली व अन्य मांगों को लेकर राज्य कर्मचारियों का प्रदर्शन

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!

राम मंदिर के बाद, मथुरा-काशी पहुँचा राष्ट्रवादी सिलेबस 

बच्चों को कौन बता रहा है दलित और सवर्ण में अंतर?

मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?


बाकी खबरें

  • भाषा
    ईडी ने फ़ारूक़ अब्दुल्ला को धनशोधन मामले में पूछताछ के लिए तलब किया
    27 May 2022
    माना जाता है कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला से यह पूछताछ जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन (जेकेसीए) में कथित वित्तीय अनिमियतता के मामले में की जाएगी। संघीय एजेंसी इस मामले की जांच कर रही है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    एनसीबी ने क्रूज़ ड्रग्स मामले में आर्यन ख़ान को दी क्लीनचिट
    27 May 2022
    मेनस्ट्रीम मीडिया ने आर्यन और शाहरुख़ ख़ान को 'विलेन' बनाते हुए मीडिया ट्रायल किए थे। आर्यन को पूर्णतः दोषी दिखाने में मीडिया ने कोई क़सर नहीं छोड़ी थी।
  • जितेन्द्र कुमार
    कांग्रेस के चिंतन शिविर का क्या असर रहा? 3 मुख्य नेताओं ने छोड़ा पार्टी का साथ
    27 May 2022
    कांग्रेस नेतृत्व ख़ासकर राहुल गांधी और उनके सिपहसलारों को यह क़तई नहीं भूलना चाहिए कि सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई कई मजबूरियों के बावजूद सबसे मज़बूती से वामपंथी दलों के बाद क्षेत्रीय दलों…
  • भाषा
    वर्ष 1991 फ़र्ज़ी मुठभेड़ : उच्च न्यायालय का पीएसी के 34 पूर्व सिपाहियों को ज़मानत देने से इंकार
    27 May 2022
    यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की पीठ ने देवेंद्र पांडेय व अन्य की ओर से दाखिल अपील के साथ अलग से दी गई जमानत अर्जी खारिज करते हुए पारित किया।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    “रेत समाधि/ Tomb of sand एक शोकगीत है, उस दुनिया का जिसमें हम रहते हैं”
    27 May 2022
    ‘रेत समाधि’ अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाला पहला हिंदी उपन्यास है। इस पर गीतांजलि श्री ने कहा कि हिंदी भाषा के किसी उपन्यास को पहला अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार दिलाने का जरिया बनकर उन्हें बहुत…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License