NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
चुनाव 2022
भारत
राजनीति
यूपी चुनाव: सीएए विरोधी आंदोलन से मिलीं कई महिला नेता
आंदोलन से उभरी ये औरतें चूल्हे-चौके, रसोई-बिस्तर के गणित से इतर अब कुछ और बड़ा करने जा रही हैं। उनके ख़्वाबों की सतरंगी दुनिया में अब सियासत है।
नाइश हसन
07 Feb 2022
CAA

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ खड़ा हुआ शाहीनबाग आंदोलन दुनिया के नक्शे पर एक अलग मुकाम दर्ज कर गया। बड़ी तादाद में औरतों का लामबंद होना ऐसा पहले कभी नही देखा गया, और वो भी खास कर मुसलमान औरतों का इस तरह एहतिजाज करना दूर तलक असर छोड़ गया। वो औरतें जिनके बारे में सरकार और समाज का ये नजरिया था कि ये दबी कुचली औरतें है ये क्या कर सकती है, उन्हें तरस और हिकारत की नजरों से देखा जा रहा था, उन औरतों ने एक नई इबारत रच डाली।

लखनऊ पहुँचते-पहुँचते उसकी आंच और तेज़ हो गई। उसके बंद कमरों के दरवाज़े जो खुले तो रौशनी घर के कोने-कोने में दाखिल हो गई। यही रौशनी तो उसके हिस्से की रौशनी है। वो वक्त जब शहर के कोने-कोने से औरतों का क़ाफ़िला घंटा घर की ओर बढा चला जा रहा था। बड़ी तादाद में वो औरतें भी थीं जो अपने घरों से पहली बार निकली थीं, पुलिस की लाठी और गेालियां भी खा रही थीं, गिरफ्तारियां भी दे रही थीं लेकिन दिन रात डटी थीं। अपने बच्चों को गोद से चिपकाए, शदीद सर्द रातों में खुले आसमान के नीचे रहती रहीं, हुकूमत जिन्हें मुल्क बदर कर डा़लने पर आमादा थी। वो अपना घर और दस्तूर (संविधान) बचाए रखने के नारे लगा रही थीं। ये बात भी तारीख में दर्ज हो गई कि ऐसी हिम्मतवर औरतों से घबराए सूबे के मुखिया ने उन्हें ही नही उनकी पुश्तों को सबक सिखाने की धमकी दे डाली थी।

इस आंदोलन का एक खास असर और नजर आया, जब उनकी पीठ पर पुलिस की लाठियां रक्स कर रही थी, उसी वक्त वो औरतें खुली आंखों से कुछ बड़े ख्वाब देख रही थीं, उन ख्वाबों की ताबीर अब नज़र आने लगी है।

हमने घंटाघर आंदोलन से उभरी लड़कियों से बात की तो उस फलक पर कई और चांद सितारे नजर आने लगे, उनके इरादों की दुनिया बड़ी वसी’ नजर आई। आप इसे हुकूमत की लाठियों का असर भी कह सकते है।

रानी सिद्दीकी बड़े तपाक से कहती हैं हम विधायकी लड़ने जा रहे हैं, सोशलिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से, मेरी जिंदगी में इस आंदोलन ने बड़ा असर डाला, हम पढ़े लिखे नहीं हैं, लेकिन हम अपना ख्वाब जरूर पूरा करेंगे। उम्र महज 30 साल, वो विधायक बन कर शिक्षा को हर बच्चे की पहुँच तक लाना चाहती हैं जिस तालीम से वो महरूम रहीं, वो उसे हर बच्चे तक पहुँचाने के लिए ख्वाब देख रही हैं।

वो कहती हैं कॉलेज बहुत दूर है घर वाले लड़कियों को कॉलेज तक नही जाने देते हम विधायक बनके ऐसा करेंगे कि कॉलेज हमारे पास आ जाए। महिलाओं को भी नौकरी मिल सके। ये है सपना रानी का जिसे देखने का हौसला आंदोलन ने उन्हें दिया।

उज़्मा परवीन घंटाघर में एक ऐसी आंदोलनकारी बन के उभरी कि सभी पर उनकी नजर टिक गई। गोद में एक छोटा सा बच्चा दबाए यह बुर्कापोश आजादी और संविधान में बराबरी का नारा लगाती थी, उसे दुनिया के करोडों लोगों ने फॉलो किया, बस यहीं से उज़्मा के हौसलों को पंख लग गए।

एमआईएम सहित कई पार्टियों से उनकी बात हुई पर उन्हें लगा कि वहां भी मर्दो को तरजीह दी जा रही है, इरादे में रेफ न आई और अब वो निर्दलीय चुनाव लड़ने जा रही हैं। करोना काल में भी उज़्मा बुर्का पहने पीठ पर सेनेटाइजर का टैंक लादे गली-मोहल्लों में छिड़काव करती नजर आ जाती थीं।

हुस्न आरा कांग्रेस पार्टी के साथ शाना-बशाना खड़ी है, उनका कहना है कि ये एक ऐसा आंदोलन था जो पहली बार हमारी जिंदगी में आया, इससे पहले हमने ऐसा कोई आंदोलन नही देखा था, जिसने हमारे अंदर की शक्ति को जगा दिया, और उन्होंने इरादा बनाया कि कुछ ऐसा करें कि जिससे हमारे देश के हिंदू मुस्लिम सिख इसाई एक थाली में खाएं, सर पर तिरंगा लहराता रहे जिस मिट्टी में जन्में हैं उसी में दफ्न हो जाएं। नफरत मिटा सके, लिहाजा उन्हें लगा कि कांग्रेस से बेहतर विकल्प उनके लिए और कोई न होगा। वो कहती है कि अगर उन्हें विधायक बनने का मौका मिल गया तो वो शिक्षा, स्वास्थ्य और बच्चियों की हिफाजत पर काम करेंगी।

उरूसा राना ने भी कांग्रेस का दामन थाम लिया, वो कहती है इस आंदोलन के बदौलत उन्हें काफी फायदा मिला, उनकी जान-पहचान बहुत बढ़ गई। हमने उस वक्त भी हुकूमत से फाइट किया, सर्दी, बारिश में लोगों की जान बचाई, हम कांग्रेस पार्टी के साथ आगे बढ़कर मुल्क के काम आएंगे। हम चाहते है कि पार्टी हमें टिकट दे तो हम अपने क्षेत्र की बदहाल स्थिति को सुधारने का काम करें।

उरूसा कहती है कि गरीब इलाकों में बच्चे पढ़ने में बहुत होशियार हैं लेकिन उन्हें मौके नहीं हैं, घर वाले मजबूरी में उन्हें काम पर बैठा देते है, अस्पताल गंदगी से पटे है, एक बिस्तर पर तीन मरीज मिल जाएंगे। हम ऐसे हालात को बदलना चाहते हैं।

आंदोलन की एक और सरबरा इरम रिजवी ने आम आदमी पार्टी में जाना बेहतर समझा। वो कहती है इस आंदोलन ने न सिर्फ उनकी बल्कि उनके जैसी लाखों औरतों की जिंदगी बदल दी। जो कभी घर से निकली नही थीं उन्हें इतना बड़ा प्लेटफार्म मिला, उन्हें बोलने की हिम्मत मिली, अपने जैसी तमाम औरतों को देख एक नई ताकत का एहसास हुआ। मेरा ख्वाब है कि मैं लोगों के लिए काम करूं और ये ख्वाब अकेले पूरा नही हो सकता। इसी लिए राजनीति में आई हूं। हमारी नस्लें बिगड न जाए लिहाजा राजनीति में जाकर कुछ बड़ा काम करने का इरादा है। विधायक बनी तो सबसे बड़ा काम शिक्षा के लिए करूंगी ये मेरा सपना है।

महिलाओं की स्थिति सुधारना चाहूंगी

सुमैया राना ने इसी दौरान समाजवादी पार्टी की सदस्यता ली। शहर में कई होर्डिग पर उनकी तस्वीरे नजर आईं।

रफत फातिमा ने कई बरस पहले कांग्रेस पार्टी की सदस्यता लेकर अपने मजबूत दरादे का इजहार किया था और काम करते नजर आती रही हैं।

सदफ़ ज़ाफर की आंदोलन में गिरफ्तारी, और उन पर बरसी पुलिस की लाठियों ने भी समाज का ध्यान उनकी ओर खींचा। योगी जी ने आंदोलनकारी लोगों का पोस्टर हरजाना मांगने के लिए चौराहों-चौराहों पर चस्पा कराया। सदफ उनमें अकेली महिला थीं। पुलिस की इतनी यातनाएं झेलने के बाद इरादा और पुख्ता हो गया, अब वो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में है।

यक़ीनन सीएए-एनआरसी आंदोलन ने कई नगीने दिए हैं हमारे समाज को, जिन्होंने बहुत कुछ बदल डालने के इरादे के साथ सियासत में कदम रखा है, वो प्रदेश और देश की बिगड़ी स्थिति पर कह रही हैं कि सीना पिरोना है धंधा पुराना, हमें दो ये दुनिया गर रफू है कराना। यही है उन ख्वाबों की ताबीर। जिसे कुचल ड़ालने पर सूबे ही हुकूमत अभी भी दम भर रही है। योगी सरकार इन्हें सबक सिखाने की धमकी बार-बार दे रही है लेकिन ऐसा लगता है कि ये सितारे इतने बुलंद होकर उभरे हैं कि अब पुलिस की लाठियां भी इनके इरादों को कुचल न पाएगी।

फ़िक्र की बात - इरादे यूं ही फौलादी बने रहे, लेकिन इन सब के बीच एक बात है जो काबिले फिक्र नज़र आती है, वो ये कि चुनाव लड़ने की होड़ में ये महिलाएं एमआईएम, आप, सोशलिस्ट, निर्दलीय, सपा, कांग्रेस आदि पार्टियों में जा रही हैं, बस इन्हें खयाल ये रखना होगा कि इधर-उधर बिखरते जाने से वोटों का बंटवारा न हो जाए, एक ऐसे दौर में जब हुकूमत सेक्युलरिज्म खत्म करने पर आमादा है, जब गांधी नहीं गोडसे के जयकारे लगाए जा रहे हों, गांधी के पुतले पर गोली एक महिला मार रही हो और उसकी गिरफ्तारी भी न हो, इन महिलाओं को ये समझना होगा कि न सिर्फ चुनाव लड़े बल्कि सही रणनीति बनाकर चुनाव लड़ें तभी मुल्क की गंगा-जमनी तहज़ीब को बचाने, संविधान को बचाने, फिरकापरस्त ताकतों को मात देने में मदद मिलेगी। सियासत में चौकन्ना रहने और मुल्क के असली दुश्मन को मात देने की बड़ी चुनौती को सामने रखने की भी निहायत ज़रूरत है।

आंदोलन से उभरी ये औरतें चूल्हे-चौके, रसोई-बिस्तर के गणित से इतर अब कुछ और बड़ा करने जा रही हैं। उनके ख़्वाबों की सतरंगी दुनिया में अब सियासत है। तारीख़ गवाह है कि जब औरतों ने कुछ ठान लिया और फ़ैसले लिए तो वह बेनतीजा और बेअसर नहीं रहे। अब वो वक्त आ गया है।

(लेखिका रिसर्च स्कॉलर व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

UP elections
UP Assembly Elections 2022
CAA Protest
CAA
Congress
BJP
AAP
SP
BSP

Related Stories

यूपी : आज़मगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा की साख़ बचेगी या बीजेपी सेंध मारेगी?

त्रिपुरा: सीपीआई(एम) उपचुनाव की तैयारियों में लगी, भाजपा को विश्वास सीएम बदलने से नहीं होगा नुकसान

हार के बाद सपा-बसपा में दिशाहीनता और कांग्रेस खोजे सहारा

पक्ष-प्रतिपक्ष: चुनाव नतीजे निराशाजनक ज़रूर हैं, पर निराशावाद का कोई कारण नहीं है

यूपीः किसान आंदोलन और गठबंधन के गढ़ में भी भाजपा को महज़ 18 सीटों का हुआ नुक़सान

BJP से हार के बाद बढ़ी Akhilesh और Priyanka की चुनौती !

यूपी के नए राजनीतिक परिदृश्य में बसपा की बहुजन राजनीति का हाशिये पर चले जाना

जनादेश-2022: रोटी बनाम स्वाधीनता या रोटी और स्वाधीनता

पंजाब : कांग्रेस की हार और ‘आप’ की जीत के मायने

यूपी चुनाव : पूर्वांचल में हर दांव रहा नाकाम, न गठबंधन-न गोलबंदी आया काम !


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License