NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
यूपी चुनाव: ख़ुशी दुबे और ब्राह्मण, ओबीसी मतों को भुनाने की कोशिश
2020 में हुए गैंगस्टर विकास दुबे के एनकाउंटर ने यूपी में योगी आदित्यनाथ के शासनकाल में ब्राह्मणों की स्थिति को लेकर एक बहस छेड़ दी थी। जैसा कि विधानसभा चुनाव नजदीक हैं उस खूनी घटना से छलकाव की गूंज आज भी प्रतिध्वनित हो रही है।
सौरभ शर्मा
25 Jan 2022
Khusi Dubey's parents

कानपुर: यह 1 अगस्त, 2021 की बात है, जब उत्तर प्रदेश के आगरा में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा ने दहाड़ते हुए कहा था कि ख़ुशी दुबे को जेल से बाहर निकालने के लिए उनकी पार्टी क़ानूनी लड़ाई लड़ेगी। लेकिन जल्द ही यह गर्जना समाप्त हो गई।

कथित गैंगस्टर अमर दुबे की विधवा ख़ुशी दुबे को उत्तरप्रदेश पुलिस की कानपुर ईकाई ने 4 जुलाई को हिरासत में ले लिया था और भारतीय दंड संहिता की 17 अलग-अलग धाराएं लगाने के बाद 8 जुलाई, 2020 को उसे आधिकारिक तौर पर जेल में डाल दिया गया था, जिसमें धारा 302 (हत्या करने का कृत्य), धारा 307 (हत्या का प्रयास), धारा 394 (लूट का प्रयास) आदि हैं। 18 वर्षीया विधवा अभी भी जेल में बंद है, जबकि उसके परिवार का दावा है कि गिरफ्तारी के वक्त वह किशोरी थी।

हाल ही में, कानपुर में कांग्रेस की स्थानीय ईकाई ने उनके परिवार से मुलाकात की, जिन्होंने कथित तौर पर ख़ुशी को विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए टिकट देने का प्रस्ताव रखा था, जिसे ख़ुशी की माँ गायत्री ने अस्वीकार कर दिया था।

गायत्री देवी के अनुसार, 31 जुलाई, 2021 (29 जून, 2020) को जब ख़ुशी की शादी विकास दुबे के भतीजे अमर दुबे से हुई थी तब वह महज 16 साल की थी, और चार दिन बाद 3 जुलाई, 2020 को बिकरू कांड हो गया था। मारे गये गैंगस्टर विकास दुबे ने 2 जुलाई से लेकर 3 जुलाई, 2020 के बीच देर रात को आठ पुलिसकर्मियों को घात लगाकर मार डाला था, जब वे विकास दुबे को गिरफ्तार करने के लिए कानपुर जिले के बिकरू गाँव जा रहे थे।

10 जुलाई, 2020 को विकास दुबे पुलिस हिरासत से कथित तौर पर भागते समय पुलिस एनकाउंटर में मारा गया था। उस दिन से यह बहस चल निकली कि उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा ‘ब्राह्मणों की उपेक्षा’ की जा रही है। 

क्या यूपी में ब्राह्मण उपेक्षित हैं?

हिंदी समाचार संस्थान दैनिक भास्कर के द्वारा एक हालिया सर्वेक्षण के मुताबिक, राज्य में जिलाधिकारी (डीएम) की कुर्सी पर आसीन 26% प्रशासनिक अधिकारी ठाकुर हैं, और ब्राह्मण 11% हैं, जबकि राज्य में जिलों में पुलिस प्रमुख के पदों पर तैनात ठाकुर और ब्राहमण समान अनुपात में हैं। 75 जिलों में से सिर्फ चार जिलों में अनुसूचित जाति के जिलाधिकारी तैनात हैं, जबकि 14 जिलों में अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी) से संबंधित जिला प्रमुख हैं, और 12 जिलों में ओबीसी पुलिस प्रमुख हैं। सिर्फ एक जिला ऐसा है जहाँ पर यादव (ओबीसी) अधिकारी पुलिस अधीक्षक और डीएम दोनों ही पदों पर तैनात हैं। वहीँ उत्तरप्रदेश मंत्रिमंडल में सवर्ण जाति से 27 और ओबीसी जातियों से 23 मंत्री हैं।

मौजूदा जातीय समीकारण 

जब पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार से कई मौजूदा विधायकों और कैबिनेट में शामिल मंत्रियों को अपनी समाजवादी पार्टी (सपा) में शामिल करना शुरू कर दिया, तो ब्राह्मणों को अपनी ओर लुभाने वाली राज्य की राजनीति ने यू-टर्न लेते हुए पिछड़ी जातियों को अपनी ओर आकर्षित करना शुरू कर दिया। समाजवादी खेमे में शामिल होने वालों में सबसे बड़ा नाम स्वामी प्रसाद मौर्य का था, जो पूर्वी उत्तर प्रदेश के पडरौना निर्वाचन क्षेत्र से मौजूदा विधायक हैं। 2016 से पहले मौर्य बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ थे और 2017 के विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले ही 2016 में भगवा जहाज पर चढ़े थे। भाजपा ने चुनावों में भारी जीत दर्ज की, और बसपा महज 19 सीटों पर सिमटकर रह गई थी।

यहाँ पर यह उल्लेखनीय है कि मौर्य के पास मौर्य, कुशवाहा, साख्य और सैनी उपजातियों के बीच में एक मजबूत वोट आधार है। समाजवादी कबीले में शामिल होने के बाद अपने शुरुआत भाषण में उन्होंने उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के “80% बनाम 20%” वाले नैरेटिव के जवाब में “85% हमारा है, और बाकी के बचे 15% में भी हमारा हिस्सा है” कहकर जवाबी हमला किया।

राज्य की जनसंख्या में ब्राहमण करीब 11% हैं, ठाकुर करीब 5%, और मौर्य की 15% में विभाजन वाली टिप्पणी इन सवर्ण वोटों में सेंध को लक्ष्य करके की गई थी।

ख़ुशी दुबे वाला मामला 

इस अदालत में उनका प्रतिनिधित्व कर रहे वकील, शिवा कांत दीक्षित के अनुसार, 18 जुलाई, 2020 से जेल में बंद ख़ुशी दुबे को तीन विभिन्न न्यायिक फोरमों से 18 से अधिक बार जमानत देने से वंचित किया जा चुका है, जिसमें किशोर न्यायिक मंडल, सत्र न्यायालय और इलाहाबाद उच्च न्यायालय शामिल है। उन्होंने बताया, “मामला अब माननीय सर्वोच्च नयायालय के पास है, और हमारी पहली प्राथमिकता लड़की को जेल से बाहर निकालने में है, क्योंकि उसे कई बार जमानत से वंचित किया जा चुका है। हमारा एकमात्र तर्क है कि वह निर्दोष है और उसने बिना किसी अपराध के पहले ही जेल में बहुत समय गुजार लिया है।”

हालाँकि, इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की समीक्षा में: “मामले की समस्त परिस्थितियों पर समग्रता से देखने पर यह तथ्य सामने आता है कि जो घटना घटी, उसमें संशोधित लोग शामिल थे, और यह कोई सामान्य प्रकार की नहीं थी। कार्यवाई में न सिर्फ स्वतःस्फूर्त ढंग से आठ पुलिसकर्मियों का खात्मा और छह अन्य का घायल हो जाना एक जघन्य अपराध है, जिसने समाज की अंतरात्मा को झकझोर कर रख दिया है, बल्कि एक ऐसा कृत्य भी है जिसने राज्य प्राधिकार के क्षेत्र की जड़ों पर प्रहार किया है।”

अधिवक्ता शिवा कान्त दीक्षित ने आगे कहा कि यदि माननीय उच्च न्यायलय केस डायरी की समीक्षा की होती तो यह अवलोकन कभी नहीं आता क्योंकि पुलिस बल द्वारा उस घटनास्थल पर छापेमारी करने के मात्र एक घंटे पहले ही प्राथमिकी दर्ज की गई थी जहाँ पुलिसकर्मियों पर घात लगाकर हमला किया गया था।

वकील ने कहा, “ख़ुशी दुबे सिर्फ मीडिया ट्रायल की कीमत चुका रही हैं, और राज्य सरकार भी उन्हें जेल में बनाये रखने के लिए जी जान से जुटी हुई है। उन्हें जमानत से वंचित किये जाने के पीछे कोविड भी प्रमुख वजहों में से एक है।” उनका आगे कहना था कि उत्तर प्रदेश सरकार ने जीवित बच गए पुलिसकर्मियों के बयानों के आधार पर भी जमानत का विरोध किया है।

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अतुल चन्द्रा का मानना है कि उत्तरप्रदेश विधान सभा चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों का ब्राह्मणों से ओबीसी समुदाय की ओर फोकस शिफ्ट करना निहायत ही स्वाभाविक बात है क्योंकि ओबीसी मतदाता कहीं अधिक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उन्होंने कहा, “कोई भी पार्टी बड़े वोट बैंक को खोने का खतरा नहीं मोल लेना चाहेगी। 2017 में सत्तारूढ़ भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) ने अपना दल, राजभर और निषाद को अपना सहयोगी बनाकर यूपी की राजनीति में अपनी पैठ बनाने में सफलता हासिल की थी, जिसके जरिये वे (ओबीसी) मतों का 60% से अधिक हिस्सा प्राप्त कर पाने में सक्षम रहे थे।”

इस बीच, ख़ुशी दुबे के बड़े भाई को बिकरू की घटना के तत्काल बाद उनकी नौकरी से निकाल दिया गया था और अब वे दिहाड़ी मजदूरी पर काम करने के लिए मजबूर हैं। ख़ुशी की माँ गायत्री तिवारी, जो परिवार चलाने के लिए अपने पति के साथ पेंटर का काम करती हैं, के मुताबिक इसकी वजह कुछ हद तक समाज के द्वारा परिवार के बहिष्कार के चलते है। फिलहाल ख़ुशी दुबे की जमानत पर सर्वोच्च न्यायालय में मामला विचाराधीन है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

UP Elections: Khusi Dubey and the Churning of Brahmin, OBC Votes

Vikas Dubey
Gangsterism
Vikas Dubey Encounter
Supreme Court
Allahabad High Court
UP elections
UP Assembly Elections 2022
OBC
Brahmins
Thakurs
Yogi Adityanath
AKHILESH YADAV
Swami Prasad Maurya

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

राज्यसभा चुनाव: टिकट बंटवारे में दिग्गजों की ‘तपस्या’ ज़ाया, क़रीबियों पर विश्वास

यूपी में  पुरानी पेंशन बहाली व अन्य मांगों को लेकर राज्य कर्मचारियों का प्रदर्शन

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक


बाकी खबरें

  • भाषा
    ज्ञानवापी मामला : अधूरी रही मुस्लिम पक्ष की जिरह, अगली सुनवाई 4 जुलाई को
    30 May 2022
    अदालत में मामले की सुनवाई करने के औचित्य संबंधी याचिका पर मुस्लिम पक्ष की जिरह आज भी जारी रही और उसके मुकम्मल होने से पहले ही अदालत का समय समाप्त हो गया, जिसके बाद अदालत ने कहा कि वह अब इस मामले को…
  • चमन लाल
    एक किताब जो फिदेल कास्त्रो की ज़ुबानी उनकी शानदार कहानी बयां करती है
    30 May 2022
    यद्यपि यह पुस्तक धर्म के मुद्दे पर केंद्रित है, पर वास्तव में यह कास्त्रो के जीवन और क्यूबा-क्रांति की कहानी बयां करती है।
  • भाषा
    श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही मस्जिद ईदगाह प्रकरण में दो अलग-अलग याचिकाएं दाखिल
    30 May 2022
    पेश की गईं याचिकाओं में विवादित परिसर में मौजूद कथित साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ की संभावना को समाप्त करने के लिए अदालत द्वारा कमिश्नर नियुक्त किए जाने तथा जिलाधिकारी एवं वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक की उपस्थिति…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बेंगलुरु में किसान नेता राकेश टिकैत पर काली स्याही फेंकी गयी
    30 May 2022
    टिकैत ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘स्थानीय पुलिस इसके लिये जिम्मेदार है और राज्य सरकार की मिलीभगत से यह हुआ है।’’
  • समृद्धि साकुनिया
    कश्मीरी पंडितों के लिए पीएम जॉब पैकेज में कोई सुरक्षित आवास, पदोन्नति नहीं 
    30 May 2022
    पिछले सात वर्षों में कश्मीरी पंडितों के लिए प्रस्तावित आवास में से केवल 17% का ही निर्माण पूरा किया जा सका है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License