NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
लातिन अमेरिकी और कैरिबियाई देशों से चीन को बाहर करने की जुगत में है अमेरिका 
नवंबर, 2018 में सांचेज सेरेन ने चीन पहुंच कर राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की थी।
विजय प्रसाद
06 Nov 2020
लातिन अमेरिकी और कैरिबियाई देशों से चीन को बाहर करने की जुगत में है अमेरिका 

20 अगस्त 2018 को अल सल्वाडोर के वामपंथी राष्ट्रपति सांचेज सेरेन ने राष्ट्रीय टेलीविजन पर ऐलान किया कि उनका देश ताइवान से अपने संबंध तोड़ लेगा और पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मान्यता दे देगा। सेरेन ने कहा कि ऐसा करना अंतरराष्ट्रीय कानून के मुताबिक होगा और इससे उनके ‘देश को काफी फायदा’ होगा। 

इस घटनाक्रम के कुछ ही देर बाद अमेरिकी सीनेटर मार्को रूबियो ने ट्वीट कर कहा कि इससे अमेरिका के साथ अल सल्वाडोर के रिश्ते खराब होंगे। इससे #AllianceforProsperity  में भी उसकी भूमिका को चोट पहुंचेगी। इससे पहले डोमिनिक रिपब्लिक और पनामा ने भी पाला बदला था लेकिन रूबियो ने कहा कि अल सल्वाडोर को खास तौर पर सजा मिलेगी क्योंकि यहां वामपंथी पार्टी फाराबुंदो मार्ती नेशनल लिबररेशन फ्रंट यानी (FMLN) का शासन है। लेकिन रूबियो को इस बात से कोई लेनादेना नहीं है कि खुद उनके देश यानी अमेरिका ने 1979  में ताइवान से अपने संबंधों को दरकिनार कर चीन से नाता जोड़ लिया था। 

अपने जिस हैशटेग ‘अलायंस फॉर प्रॉस्पेरिटी’ (# Alliance for Prosperity) के साथ रूबियो ने जो ट्वीट किया था, वह पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की ओर कुछ मध्य अमेरिकी देशों के साथ किया गया समझौता था। इस सौदे के तहत इन देशों को अमेरिका में घुसने वालों अपने नागरिकों को रोकने के लिए सुरक्षा बंदोबस्त कड़ा करना था। बदले में उन्हें अमेरिका ओर से विकास के लिए मामूली फंड दिया जाना था। दरअसल इसके तहत सीमा पर पुलिस बल मजबूत करना था और दूसरे सुरक्षा उपाय किए जाने थे। इन्हें विकास का नाम दिया गया था। रूबियो की इस धमकी का कोई असर नहीं हुआ। क्योंकि अमेरिका इन देशों को जो फंड दे रहा था और वह बहुत कम था। और इसके बदले मध्य अमेरिकी देश की जनता जो कीमत अदा कर रही थी वह बहुत ज्यादा थी.। 

नवंबर, 2018 को सांचेज सेरेन ने चीन की यात्रा की। वहां उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की। दोनों की बातचीत के अहम मुद्दे आपसी कारोबारी रिश्ते थे। इसमें अल सल्वाडोर को चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव यानी BRI में शामिल होने के लिए प्रोत्साहन देने की बात भी शामिल थी। एक साल बाद यानी दिसंबर 2019 में सांचेज सेरेन के उत्तराधिकारी नयीब बुकेले चीन पहुंचे और उन्होंने अल सल्वाडोर और चीन के संबंधों की मजबूती की पुष्टि की। साथ ही अपनी सेंटर-राइट सरकार की ओर से भी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में साझेदार बनने की इच्छा जताई। इससे कोई फर्क नहीं पड़ा कि अल सल्वाडोर की ओर से कोई वामपंथी राष्ट्रपति बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल होने की इच्छा जता रहा था या फिर सेंटर-राइट राष्ट्रपति। दोनों इस क्षेत्र में चीन को भूमिका को स्वीकार करने के लिए तैयार थे। और दोनों, जैसा कि रूबियो ने चेताया था, अमेरिका के साथ अपने देश के ‘रिश्तों को खराब’ करने के लिए तैयार थे। 

चीन के साथ अल सल्वाडोर के सौदों की जैसी ही घोषणा हुई, बुकेले की यह कह कर आलोचना होने लगी की वह अल सल्वाडोर को कर्ज के जाल की ओर ले जा रहे हैं। लेकिन उन्होंने ट्वीट पर कड़े अंदाज में पूछा- ‘नॉन रिफेंडबल’ का कौन सा हिस्सा आपको समझ नहीं आया? उन्होंने कहा कि चीन ने अल सल्वाडोर को अनुदान दिया है, कर्ज नहीं। 

अमेरिका क्रेस 

लेकिन खेल अभी खत्म नहीं हुआ था। 30 जनवरी, 2020 को बुकेले यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन ( DFC) के प्रमुख एडम बोहलर के बगल में खड़े थे। उनके साथ वह अपने देश में 

 “America Crece” (अमेरिका क्रेस) को लागू करने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले थे।

दिसंबर में चीन से अल सल्वाडोर लौटते वक्त बुकेले टोक्यो में रुके, जहां जापानी पीएम ( अब पूर्व) शिंजो आबे ने उन्हें कहा कि वे अपने देश के ला यूनियन पोर्ट में चीनी कंपनियों को निवेश न करन दें। चीन की एशिया पैसिफिक शुआन होआ इनवेस्टमेंट कंपनी इस पोर्ट में एक बड़ी रकम निवेश करने के लिए बातचीत कर रही थी। अमेरिकी सरकार इस पोर्ट में चीनी निवेश का विरोध कर रही थी। अब जापानी पीएम आबे ने अमेरिका की चेतावनी उनके कान में डाल दी।

बहरहाल, अमेरिका और चीन के ठंडे रिश्तों ने बुकेले के कदम रोक दिए हैं। अब यह साफ हो चुका है कि वह जहां तक संभव हो चीन से संबंध तोड़े बिना अमेरिका को अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे हैं।

लातिन अमेरिकी देशों की बांह मरोड़ने का एक जरिया है अमेरिका क्रेस.  ‘ अमेरिका (अमेरिकी महाद्वीप) में विकास’ एक अमेरिकी प्रोजेक्ट है, जिसे 2018 में शुरू किया गया था। अमेरिका अक्सर चीन पर पारदर्शी न होने के आरोप लगाता रहा है। लेकिन अमेरिका क्रेस के बारे में लगभग नहीं के बराबर जानकारी उपलब्ध है। ( अमेरिका विदेश विभाग और DFC ने इस बारे में टिप्पणी की मांग किए जाने पर तुरंत कोई जवाब नहीं दिया) । अमेरिकी विदेश विभाग की वेबसाइट पर जो FAQ है उसके मुताबिक यह कार्यक्रम लातिन अमेरिकी और कैरिबियाई देशों के इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देना चाहता है’’।  इसके लिए अमेरिकी सरकार अपने देश की कंपनियों के लिए ((काफी हद तक इजराइली कंपनियों के लिए भी) दरवाजे खुले रखेगा।

2018 में अमेरिकी संसद ने बेटर यूटिलाइजेशन ऑफ इनवेस्टमेंट लीडिंग टु डेवलपमेंट यानी BUILD कानून पारित किया। इसने ओवरसीज प्राइवेट इनवेस्टमेंट कॉरपोरेशन और द डेवलपमेंट क्रेडिट अथॉरिटी को DFC में जोड़ दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जेरेड कुशनर के रूम मेट रहे बोहलर को इसका चीफ बना दिया। इस एजेंसी के लिए छह करोड़ डॉलर का बजट निर्धारित किया गया था। सितंबर, 2020 संसद में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच अमेरिका लेबर, इकनॉमिक कंपीटिटिवनेस, अलायंस, डेमोक्रेसी एंड सिक्योरिटी एक्ट  (America LEADS) बनाने पर सहमति कायम हो गई, जिसमें चीनी निवेश को रोकने की तैयारी की गई थी। डेमोक्रेट्स और रिपब्लिक दोनों चीन विरोधी एजेंडे को लेकर प्रतिबद्ध दिखते हैं।

अल सल्वाडोर में DFC का एक अहम प्रोजेक्ट है- अकाजुतला में नेचुरल गैस प्लांट का निर्माण। यह अमेरिकी एनर्जी कंपनी इनवेनएनर्जी और इसकी सल्वाडोरियन सब्सिडियरी Energía del Pacífico की संयुक्त परियोजना है. अमेरिकी राजदूत रोनाल्ड जॉनसन ने पिछले दिनों इस परियोजना के बारे में कहा कि DFC इसे वित्तीय मदद देगा। ( यह मदद 1 अरब डॉलर की हो सकती है)। लेकिन इस पर अल सल्वाडोर के लोग काफी चौंके क्योंकि इस प्लांट के पर्यावरण पर पड़ने वाले असर को लेकर कोई चिंता नहीं जताई जा रही थी। प्लांट के लिए समुद्र के नीचे पाइपलाइन बिछाई जानी है। इससे समुद्र की पारिस्थितिकी और समुद्र तटीय पर्यावरण को नुकसान पहुंचने का खतरा है। लेकिन इस पर चिंता के कोई संकेत नहीं दिखे। 

‘अमेरिका क्रेस’ का बदसूरत चेहरा 

अमेरिका क्रेस से अमेरिकी सीमा की दूसरी ओर होंडुरास में जिलामितो पनबिजली प्लांट के निर्माण के लिए भी फंड का ऐलान किया गया है। 13 अगस्त 2020 को इलहान उमर समेत 27 अन्य अमेरिकी रिप्रजेंटेटिव्स ने बोहलर को एक चिट्ठी लिखी. इसमें उन्होंने कहा था कि जब से इस परियोजना का ऐलान हुआ तब से इससे प्रभावित होने वाले स्थानीय समुदाय इसके खिलाफ अभियान चला रहे हैं”। इस मामले को लेकर इन समुदायों के एक अटॉर्नी कार्लोस अर्ननांदेज की अप्रैल 2018 में हत्या कर दी गई थी. इससे पहले जनवरी, 2018 में कार्यकर्ता रेमन फियालोस की हत्या कर दी गई  थी।

जुला, 2020 में हथियारंबद लोग ट्रांयन्फो डा ला क्रुज में स्नेडर सेंतेनो के घर में घुस आए और उनका अपहरण कर लिया। गारिफुना समुदाय के तीन अन्य नेताओं के साथ भी उन्होंने यही किया। अमेरिकी प्रतिनिधियों ने लिखा कि डीएफसी होंडुरास के राष्ट्रपति जुआन ओरलांडो हर्ननांदेज से सौदेबाजी में लगा है। अर्ननांदेज बड़े पैमाने पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपी रहे हैं. उन पर चुनाव पर फर्जीवाड़ा करने के पुख्ता आरोप  हैं। उनके ड्रग्स कारोबारियों से संबंध रहे हैं और वह संगठित अपराध और भ्रष्टाचार में फंसे हैं। यह अमेरिका क्रेस का बदसूरत चेहरा है. 

एक ट्रिलियन डॉलर बनाम 60 बिलियन डॉलर 

अमेरिका ने डीएफसी (DFC) को 60 अरब डॉलर देने का वादा किया है। जबकि चीन का इरादा रोड एंड बेल्ट इनिशिएटिव पर 1 ट्रिलियन डॉलर खर्च करने का है। चीन से रवाना होते वक्त बुकेले ने कहा था कि इस रकम का ज्यादातर हिस्सा अनुदान के रूप में है। 

अमेरिका को इससे चिढ़ मची हुई है। फरवरी, 2018 में अंतरराष्ट्रीय मामलों के अमेरिकी अंडर सेक्रेट्री डेविड मलपास ने कहा कि चीन की ‘गैर कारोबारी गतिविधियों’ ने अमेरिका के सामने बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। उन्होंने कहा कि चीन लातिन अमेरिकी देशों में निवेश कर रहा है और उन्हें अनुदान दे रहा है। वह उन्हें अपनी माइक्रो-इकोनॉमिक स्थिति ठीक करने पर जोर नहीं दे रहा है। कहने का मतलब यह है कि चीन उन देशों को कर्ज देते समय अपनी शर्तें नहीं थोप रहा है। जैसे कि वह उन्हें श्रम कानूनों को कमजोर करने के लिए नहीं कह रहा है।  शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए सब्सिडी घटाने की शर्तें (जैसा कि आईएमएफ और अमेरिकी वित्त मंत्रालय अक्सर करता है) नहीं रख रहा है। चीन ऐसे मामलों में निजी क्षेत्र को भी तवज्जो नहीं देता है। अमेरिका की नजर में यही चीन की ‘गैर कारोबारी गतिविधियां’ हैं।

चाइनीज एकेडेमी ऑफ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर सुन होंगदो ने अपने हाल के एक लेख में लिखा कि अमेरिकी सरकार “ लातिन अमेरिकी देशों पर अमेरिका की अंतरराष्ट्रीय नीतियों के एजेंडे में सहयोग देने का दबाव डालती है’’। लिहाजा अल सल्वाडोर जैसे देशों को चीन और अमेरिका में से किसी एक को चुनना होता है। चीन की ओर से इन देशों पर ऐसा कोई दबाव नहीं डाला जाता है। 

लातिन अमेरिकी और कैरिबियाई देशों की राजधानियों में भी ऐसा ही महसूस किया जा रहा है। इन देशों पर अमेरिका की ओर से चीन के साथ संबंध तोड़ने का दबाव डाला जा रहा है। इनमें से कुछ देश इस अमेरिकी दबाव से नफरत करते हैं। अल सल्वाडोर के राष्ट्रपति बुकेले ने अपनी इस भावना को जाहिर भी कर दिया है। 

-----------------

यह लेख ग्लोबट्रॉटर की ओर से पेश किया गया है. विजय प्रसाद भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं. वह ग्लोबट्रॉटर के राइटिंग फेलो और मुख्य संवाददाता हैं. वह लेफ्टवर्ल्ड बुक्स के चीफ एडिटर है और ट्राइकॉन्टिनेंटल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल रिसर्च के डायरेक्टर हैं. वह चीन में रेनमिन यूनिवर्सिटी के चोंगयांग इंस्टीट्यूट फॉर फाइनेंशियल स्टडीज में सीनियर नॉन-रेजिडेंट फेलो हैं. 

अंग्रेजी में छपे मूल लेख को यहां पढ़ सकते हैं।

U.S. Is Doing Its Best to Lock Out China From Latin America and the Caribbean

United States of America
China
Taiwan
El Salvador
Panama
Immigration
Human Rights
health care
Right wing
Democratic Party

Related Stories

विरोध करने के लोकतांत्रिक अधिकार में अड़चन डालती लॉस एंजेलिस पुलिस

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन में हो रहा क्रांतिकारी बदलाव

जॉर्ज फ्लॉय्ड की मौत के 2 साल बाद क्या अमेरिका में कुछ बदलाव आया?

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

जलवायु परिवर्तन : हम मुनाफ़े के लिए ज़िंदगी कुर्बान कर रहे हैं

क्या दुनिया डॉलर की ग़ुलाम है?

सऊदी अरब के साथ अमेरिका की ज़ोर-ज़बरदस्ती की कूटनीति

रूस की नए बाज़ारों की तलाश, भारत और चीन को दे सकती  है सबसे अधिक लाभ

गर्भपात प्रतिबंध पर सुप्रीम कोर्ट के लीक हुए ड्राफ़्ट से अमेरिका में आया भूचाल

मैक्रों की जीत ‘जोशीली’ नहीं रही, क्योंकि धुर-दक्षिणपंथियों ने की थी मज़बूत मोर्चाबंदी


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License