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अमेरिका को महसूस हो रही है चीन के साथ आर्थिक संबंध सुधारने की ज़रूरत
ताइवान मुद्दे पर जी-7 की विज्ञप्ति का सार इस बात की पुष्टि करता है कि अमेरिका, चीन-अमेरिकी संबंधों में लचीलापन बनाए रखना चाहता है।
एम. के. भद्रकुमार
17 Jun 2021
Translated by महेश कुमार
अमेरिका को महसूस हो रही है चीन के साथ आर्थिक संबंध सुधारने की ज़रूरत
जी-7 नेताओं ने इस बात का जश्न मनाया कि अंशातिप्रिय डोनाल्ड ट्रम्प राष्ट्रपति पद से हट गए हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन (बाएं) राष्ट्रपति बाइडेन के साथ खुशी के पल साझा करते हुए, कॉर्नवाल, यूके, 12 जून, 2021

अमेरिकी नेतृत्व का खुली बांह स्वागत करते हुए यूरोप ने ट्रांस-अटलांटिकवाद को पुनर्जीवित तो किया, लेकिन उन्होने चीन के साथ अपने सहयोग को खतरे में नहीं डाला क्योंकि यूरोपीय देशों की अपनी खुद की कुछ योजनाएं हैं। वे फिलहाल चीन पर नकेल कसने के वाशिंगटन के आह्वान के बारे में नरमी बरताना चाहते हैं। व्यापारिक हलकों में जारी सहयोग में कोई सेंध नहीं लगने दी जाएगी क्योंकि उद्यम अपना फैंसला खुद लेंगे। 

सीएनएन ने बताया कि जी-7 शिखर सम्मेलन के एक सत्र के दौरान, विशेष रूप से जर्मनी और इटली के साथ-साथ यूरोपीयन यूनियन के नेताओं ने चीन के साथ टकरावपूर्ण तरीके से निपटने का विरोध किया और सातों नेताओं ने इस बारे में अपने गंभीर मतभेद जताए हैं। 

न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि यूरोप में आम तौर पर अमेरिकी राजनीति के बारे में एक "चिंता" रहती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में जर्मन मार्शल फंड के उपाध्यक्ष इयान लेसर को यह कहते हुए उद्धृत किया गया कि "अब, मध्यावधि चुनावों में क्या होने वाला है? क्या ट्रम्पवाद श्री ट्रम्प से अधिक टिकाऊ साबित होगा। अमेरिकी राजनीति में आगे क्या होने वाला है?”

समान रूप से, यूरोपीय लोग ये बात अच्छी तरह से जानते हैं कि व्यापार युद्ध ने अमेरिका को बुरी तरह प्रभावित किया है। इस साल जनवरी में ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स के एक अध्ययन के अनुसार, अमेरिका की व्यापार युद्ध की लागत 2018-2019 में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.5 प्रतिशत थी, जिसके जारी 245,000 नौकरियों और वास्तविक घरेलू आय का 88 बिलियन का नुकसान अनुमानित है। यदि यही परिदृश्य जारी रहता है, तो अमेरिकी जीडीपी अगले पांच वर्षों में 1.6 ट्रिलियन डॉलर तक कम हो जाएगी और इसके परिणामस्वरूप 2022 में अमेरिका में 732,000 नौकरियों की कमी हो जाएगी।

वास्तव में, बाइडेन प्रशासन को भी इस बात का एहसास हो गया है कि चीन के साथ संघर्ष करना या आँख बंद करके कट्टर होना केवल एक नासमझी होगी, क्योंकि अमेरिका को अभी भी व्यापार और क्षेत्रीय व्यवस्था जैसे मुद्दों पर चीन के साथ समन्वय करने की जरूरत पड़ती है। कॉर्नवाल में जी-7 शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या पर, 11 जून को विदेश मामलों पर चीन के शीर्ष अधिकारी यांग जिएची के साथ राज्य सचिव एंटनी ब्लिंकनफोन पर हुई बात से ये संकेत मिले हैं। 

विदेश विभाग ने ब्लिंकन की फोन पर हुई वार्ता को चीन के साथ चुनिंदा सहयोग का एक बेहतरीन उदाहरण माना जैसा कि बाइडेन प्रशासन चाहता है। लेकिन चीनी विज्ञप्ति/रीडआउट ने रेखांकित किया है कि बीजिंग अपनी मूल चिंताओं पर काफी सख्त है।

अमेरिका को इस बात का भी एहसास है कि अगर वह ताइवान के मुद्दे पर चीन द्वारा खींची गई लाल रेखा को पार करता है, तो इसके लिए अमेरिका को अपने हितों की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। मूल रूप से, यह अमेरिका के दीर्घकालिक हितों को जोखिम में डाले बिना बीजिंग को खेल में रखने की उम्मीद कर रहा है। कहने का मतलब यह है कि सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए, बाइडेन प्रशासन चीन की लाल रेखा का सम्मान कर रहा है और बीजिंग के साथ समग्र संबंधों को संभालने में लचीलापन बनाए रखना चाहता है।

यह बहुत महत्वपूर्ण बात है, क्योंकि दोनों पक्ष जानते हैं कि चीन-अमेरिका संबंधों को गति देने में बीजिंग का ताइवान मुद्दे पर सबसे महत्वपूर्ण संकेतक है।

फिर से, पिछले गुरुवार को, जी-7 शिखर सम्मेलन की बैठक के संबंध में, चीन के वाणिज्य मंत्री वांग वेंटाओ और अमेरिकी वाणिज्य सचिव जीना रायमोंडो ने व्यापार क्षेत्र में पारस्परिक चिंताओं के प्रासंगिक मुद्दों पर विचारों का "स्पष्ट और व्यावहारिक" आदान-प्रदान किया। दिलचस्प बात यह है कि जी-7 शिखर सम्मेलन से पहले अमेरिका के शीर्ष आर्थिक और व्यापार अधिकारियों ने अपने चीनी समकक्षों की दो सप्ताह की अवधि में यह तीसरी चर्चा थी।

चीनी उप-प्रधानमंत्री लियू हे ने 2 जून को अमेरिकी ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन के साथ एक आभासी बैठक की थी और लियू ने 27 मई को अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन ताई से भी  फोन पर बात की थी। दरअसल, जॉन केरी, बाइडेन के जलवायु दूत हैं, और वे ज़ी झेंहुआ जो  चीन के विशेष दूत हैं, शंघाई की अपनी यात्रा के दौरान (14-17 अप्रैल) को मिले थे। 

दोनों वाणिज्य मंत्रियों के बीच हुई बातचीत पर गुरुवार को चीन ने एक बयान जारी कर बताया कि व्यापार क्षेत्र में आपसी चिंताओं से जुड़े प्रासंगिक मुद्दों पर एक "स्पष्ट और व्यावहारिक" आदान-प्रदान वाली वार्ता थी और दोनों पक्ष कामकाजी संचार को बनाए रखते हुए व्यापार और निवेश में व्यावहारिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए सहमत हुए हैं। 

इससे पहले, आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक चीनी प्रवक्ता ने कहा था कि बीजिंग और वाशिंगटन ने आर्थिक और व्यापार क्षेत्रों में "सामान्य संचार" फिर से शुरू कर दिया है, और उत्पादकों और उपभोक्ताओं के लिए व्यावहारिक तरीके से "विशिष्ट समस्याओं" को हल करने के लिए मिलकर काम करेंगे। यह सब इस बात को रेखांकित करता है कि अमेरिका ने चीन-अमेरिका आर्थिक व्यापार संबंधों को पटरी पर लाने की अहमियत और जरूरत को महसूस किया है।

इस बीच, जैसे ही अमेरिका ने जी-7 में चीन के खिलाफ शीत युद्ध के मुहावरे को आगे बढ़ाया, चीन ने खुद ही इसका एक शक्तिशाली प्रतिवाद किया। पिछले गुरुवार को, चीन की शीर्ष विधायिका ने अन्य देशों द्वारा लगाए गए एकतरफा और भेदभावपूर्ण उपायों के खिलाफ चीन को मजबूत कानूनी समर्थन और गारंटी प्रदान करते हुए, अपनी तरह का पहला विदेशी प्रतिबंध के खिलाफ कानून पारित किया है।

नया कानून चीन की स्टेट काउंसिल को चीन के खिलाफ लगाए जाने वाले प्रतिबंधों पर निर्णय लेने या उन्हे लागू करने में भाग लेने वाले किसी भी संगठन या व्यक्ति पर खुद के प्रतिबंध लगाने का अधिकार देती है। प्रभावी रूप से, यह कानून बीजिंग को उन संस्थाओं को लक्षित करने के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है जो जानबूझकर चीन को बदनाम करने वाले अभियानों से चीन की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं।

स्पष्ट रूप से, यह कदम अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन के बढ़ते आत्मविश्वास की गवाही देता है। यदि पहले चीन में अमेरिकी प्रतिबंधों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने के लिए आर्थिक शक्ति या राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी थी, तो अब उसके पास वह क्षमता आ गई है। ऐतिहासिक रूप से, चीन पहले मामला-दर-मामला आधार पर अपने प्रतिवाद के जरिए प्रतिबंधों का विरोध करता था। लेकिन चीन अब खुद प्रतिबंधों के खेल में घुस गया है, जिससे यह स्पष्ट हो गया है कि अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा चीन पर अपने विशिष्ट राजनीतिक मूल्यों को थोपने के साधन के रूप में प्रतिबंधों के इस्तेमाल का एकाधिकार नहीं होगा।

एक चीनी टिप्पणीकार ने कहा है कि, "एक पूर्ण कानूनी ढांचे के साथ तदर्थ प्रतिक्रिया से आगे बढ़ते हुए, चीन ने अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में अपने व्यवहार में कानून के शासन को बढ़ावा देने की अपनी इच्छा का भी प्रदर्शन किया है। यह चीन की संप्रभुता की रक्षा करने के लिए कानून के शासन का इस्तेमाल करने के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के निर्देशों का पालन भी करता है। यह एक जरूरी प्रतिवाद भी है जिसे "लंबे समय तक अधिकार क्षेत्र" के रूप में वर्णित किया गया है ... अमेरिका और उसके सहयोगी इसे स्वीकार करना पसंद करते हैं या नहीं, ईरान और डीपीआरके (उत्तर कोरिया) संप्रभु राज्य हैं ... चीन के पास अब स्थिर और स्थिर और पूर्वानुमेय ढांचा या पहले से तय ढांचा है जिसके ज़रीए वह अपनी प्रतिक्रिया दे सकता है।”

शुक्रवार तक, जी-7 शिखर सम्मेलन के पहले ही राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अधिनियम को कानून बनाने के लिए हस्ताक्षर कर दिए थे ताकि बड़ा संकेत दिया जा सके कि यदि चीन के खिलाफ उन्मादी या बदनामी भरा अभियान (जैसे कि वुहान लैब परिकल्पना) सुनियोजित तरीके से चलाया जाता है तो चीन भी प्रतिबंधों को लागू कर सकता है।

बीजिंग ने, ताकि सनद रहे कहा है कि जी-7 विज्ञप्ति "प्रमुख पश्चिमी शक्तियों द्वारा चीन के खिलाफ सबसे व्यवस्थित निंदा और हस्तक्षेप" का मामला है। लेकिन इसकी भाषा स्पष्ट रूप से "नरम" है। जाहिर है, जबकि जी-7 में चीन के खिलाफ सामूहिक स्वर संभव था, लेकिन वाशिंगटन जी-7 से चीन की निंदा करवाने में विफल रहा। संक्षेप में, अंतिम विज्ञप्ति सभी के साथ समझौते की कवायद के साथ अमेरिका के प्रभुत्व वाले उत्पाद के रूप में सामने आती है।

सभी प्रयोगसिद्ध साक्ष्य पश्चिमी समन्वित कदमों के खिलाफ ढेर हुए हैं, फिर चीन के खिलाफ कोई भी एकीकृत शत्रुतापूर्ण कार्रवाई को छोड़ ही दें। लब्बोलुआब यह है कि यूरोपीय देशों के चीन के साथ "व्यवस्थित" मतभेद हो सकते हैं, चीन के साथ उनके आर्थिक संबंध प्रतिस्पर्धी हैं लेकिन उन्हें सहयोग के लिए चीन की रणनीतिक जरूरत भी हैं।

दिलचस्प बात यह है कि चाइना सेंट्रल टेलीविजन के अनुसार, ब्लिंकन ने भी कॉर्नवाल शिखर सम्मेलन की पूर्व संध्या पर शुक्रवार को यांग के साथ फोन पर बात के दौरान स्वीकार किया कि हाल के हफ्तों में अमेरिका और चीन के बीच संपर्कों की श्रृंखला द्विपक्षीय संबंधों और अमेरिका के लिए फायदेमंद है। सभी स्तरों पर चीन के साथ संपर्क और आदान-प्रदान बढ़ने की उम्मीद कर रहा है।

ब्लिंकन ने कथित तौर पर यह भी कहा कि अमेरिका एक-चीन सिद्धांत का पालन करता है और तीन चीन-अमेरिका संयुक्त विज्ञप्तियों का पालन करता है और प्रमुख अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों पर चीन के साथ बातचीत/संचार और समन्वय बनाए रखने की उम्मीद करता है।

ताइवान मुद्दे पर जी-7 विज्ञप्ति का सार/सूत्रीकरण इस बात की पुष्टि करता है कि अमेरिका चीन-अमेरिका संबंधों में लचीलापन बनाए रखना चाहता है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण संकेतक है।

सौजन्य:  Indian Punchline

इस लेख का पहला भाग यहाँ पढ़ें।

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