NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
यूरोप
यूक्रेन-रूस युद्ध के ख़ात्मे के लिए, क्यों आह्वान नहीं करता यूरोप?
रूस जो कि यूरोप का हिस्सा है, यूरोप के लिए तब तक खतरा नहीं बन सकता है जब तक कि यूरोप खुद को विशाल अमेरिकी सैन्य अड्डे के तौर पर तब्दील न कर ले। इसलिए, नाटो का विस्तार असल में यूरोप के सामने एक वास्तविक खतरा है।  
बोअवेंटुरा डे सौसा सैंटोस
08 May 2022
Ukraine Crisis
चित्र- एन्टोन वेर्गुन/तास

उत्तर अटलांटिक मीडिया एक अभूतपूर्व सूचना युद्ध (Information War) में उलझा हुआ है।  यह तथ्यों, भावनाओं और धारणाओं को तोड़ने-मरोड़ने और अप्राप्य सत्य के बीच के अंतर के निरंतर क्षरण के लक्षणों से युक्त है।  मैं इस प्रकार के सूचना युद्ध को पहली बार संयुक्त राज्य अमेरिका में वियतनाम के ऊपर किये गए युद्ध के अंतिम वर्षों के दौरान और इराक पर युद्ध की अगुआई के दौरान देखा था– दोनों ही युद्ध राजनीतिक झांसे से प्रेरित थे जिसमें असंख्य युद्ध अपराध हुए।  

यूक्रेन पर रूस के युद्ध के इर्दगिर्द की खबरों को तोड़-मरोड़कर पेश करने का उद्येश्य जनमत को यूक्रेन और क्षेत्र दोनों के लिए स्थायी शांति की मांग करने से रोकने का बना हुआ है।  इस सूचना युद्ध का लक्ष्य उन लोगों के हितों की सेवा करने के लिए युद्ध को लंबा खींचना है जो इसे बढ़ावा देने की मंशा रखते हैं।  कैसे कोई इस बात का पता लगा सकता है कि तथ्यों को कैसे गढ़ा जाता है और झूठ को कैसे निर्मित किया जाता है, और कैसे कोई समर्थन करने का आरोप लगे बिना इन घटनाओं की व्याख्या करना सीख सकता है?

युद्ध की ओर ले जाने वाले कारण 

अपने शत्रुओं को खलनायक साबित करने के लिए आपको सबसे पहले उनका अमानवीयकरण करना होगा।  उन्हें आपराधिक और बगैर किसी उकसावे के कृत्य करने वाले के तौर पर परिभाषित करना होगा। मैंने बिना किसी पूर्व शर्त के यूक्रेन पर अवैध आक्रमण की निंदा की है, लेकिन इसके बावजूद मैं अभी भी इस बात को जानने के लिए उत्सुक हूँ कि आखिर हम इस बिंदु तक पहुंचे कैसे। स्टीफन कोहेन की 2019 की पुस्तक वार विद रूस? सोवियत संघ के पतन के बाद से संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के बीच के रिश्तों के साथ ही 2013 के बाद से यूक्रेन के संबंध में इन रिश्तों की क्या गतिशीलता रही है के बारे में गहन विश्लेषण प्रदान करता है। 

यूक्रेन संघर्ष को कोहेन एक “छद्म युद्ध” के तौर पर मानते हैं, लेकिन साथ वे इसमें “कई अमेरिकी और रुसी प्रशिक्षकों, विचारकों और संभवतः लड़ाकुओं” के भी शामिल होने की संभावना को देखते हैं। वे हमें जार्जिया (2008) और सीरिया (2011) में हुए युद्ध को याद करने के लिए कहते हैं। कोहेन ने 2019 में अपनी पुस्तक में लिखा था, “अमेरिका और रूस के बीच में “प्रत्यक्ष संघर्ष का खतरा” “यूक्रेन में लगातार बढ़ता जा रहा है।”

लोकतंत्र और निरंकुशता 

संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार दुनिया को लोकतन्त्रों और निरंकुशता के बीच में विभाजित करके देखती है। जिन सरकारों को वाशिंगटन अपने प्रति शत्रुतापूर्ण मानता है, उन्हें निरंकुशता के तौर पर परिभाषित कर दिया जाता है। उदाहरण के लिए, दिसंबर 2021 में हुए समिट फॉर डेमोक्रेसी सम्मेलन के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका ने बोलीविया को निमंत्रित नहीं किया था, जबकि यह देश अभी हाल ही में चुनावी प्रक्रिया से गुजरा था। जबकि वहीँ दूसरी तरफ अमेरिका ने पाकिस्तान, फिलीपींस और यूक्रेन को आमंत्रित किया था, भले ही अमेरिकी सरकार ने कहा था कि इन देशों के बारे में संदेह था (यूक्रेन के मामले में, अभी कुछ महीने पहले ही पैंडोरा पेपर के खुलासे ने यूक्रेन के अभिजात वर्ग के बीच में भ्रष्टाचार की गहराई का खुलासा करके रख दिया था, जिसमें राष्ट्रपति व्लोदोमिर ज़ेलेंस्की तक लिप्त पाए गए थे।  

युद्ध को जायज ठहराने के लिए वास्तविक और निर्मित धमकियां  

अब चूँकि यूक्रेन रूस की “निरंकुशता” के खिलाफ “लोकतंत्र” के संघर्ष का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए ज़ेलेंस्की को शिखर वार्ता में आमंत्रित किया गया था। “लोकतंत्र” की अवधारणा के इसके अधिकांश राजनीतिक अंतर्वस्तु को लूट लिया गया है और सरकार के बदलावों को बढ़ावा देने के उद्येश्य की पूर्ति करने के लये हथियार बनाया जा रहा है जो संयुक्त राज्य अमेरिका के वैश्विक हितों के लिए लाभदायक हैं। 

जबकि रुसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के अतिरंजित दावे, कि यूक्रेन में नाजीवाद का खतरा बढ़ रहा है, जिसका इस्तेमाल वे यूक्रेन पर अपने अवैध आक्रमण को सही ठहराने के लिए कर रहे हैं, सच नहीं हैं। लेकिन साथ ही धुर-दक्षिणपंथी अर्धसैनिक तत्वों और उनके द्वारा विदेशी लड़ाकों की भर्ती यूक्रेन को व्याप्त है की जांच करने की जरूरत है। यह कहीं से भी अकल्पनीय नहीं है कि यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा लोकतंत्र की सोच रखने वाले यूक्रेनी ताकतों को हथियार और वित्तपोषण किया जाता है तो चाहे भले ही यह मदद यूक्रेन में मौजूद ज्ञात धुर-दक्षिण आतंकी मिलिशिया के लिए निर्देशित न हो, इसके बावजूद इसमें से काफी कुछ उनके पास चला जाने वाला है।

यह एक खतरा बना हुआ है कि धुर-दक्षिणपंथी चरमपंथी अपनी पैठ को मजबूत कर सकते हैं, और यह सिर्फ यूक्रेन तक ही सीमित नहीं रहने जा रही है। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे जिबिग्नेव ब्रेजेंस्की ने 1998 में एल ‘ओबीएस के साथ दिए अपने एक इन्टरव्यू में, जिसे पहले ला नौवेल ऑब्जर्ववेटुर के नाम से जाना जाता था, कहा था कि 1979 में, अमेरिका ने “जानबूझकर इस संभावना में वृद्धि की” कि यूएसएसआर अफगानिस्तान पर आक्रमण करे, इस उम्मीद में कि पूर्व सोवियत संघ को “अपने वियतनाम युद्ध” के हाल पर ला खड़ा कर दिया जाये। इसी प्रकार, फरवरी 1922 में पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने एमएसएनबीसी को बताया था कि उन्हें उम्मीद है कि संयुक्त राज्य अमेरिका यूक्रेन में रूस के साथ कुछ वैसा करेगा जैसा उसने अफगानिस्तान में रूस के साथ किया था।

नाटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग ने कहा है कि यह युद्ध “संभवतः लंबे समय तक जारी रहे, कई महीनों तक, यहाँ तक कि वर्षों तक भी चल सकता है” जिसे यूरोप के राजनीतिक नेताओं के बीच में एक खतरे की घंटी के तौर पर लेना चाहिए था। रूस के दूसरा वियतनाम-शैली के दूसरे युद्ध के परिणाम यूक्रेन और यूरोप दोनों के लिए विनाशकारी साबित हो सकते हैं। रूस, जो कि यूरोप का हिस्सा है, यूरोप के लिए तब तक खतरा नहीं बन सकता है जब तक कि यूरोप एक विशाल अमेरिकी सैन्य अड्डा नहीं बन जाता है। इसलिए, नाटो का विस्तार ही असल में यूरोप के सामने वास्तविक खतरा है।

अंतर्राष्ट्रीय संधि सदस्यता के लिए दोहरे मानदंड 

अमेरिकी रणनीतिक विकल्पों के लिए मात्र एक ध्वनि बोर्ड के तौर पर खुद को सीमित कर यूरोपीय संघ, सार्वभौमिक मूल्यों (और यूरोपीय मूल्यों, लेकिन उस कारण से कम सार्वभौमिक नहीं) की वैध अभिव्यक्ति के तौर पर यूक्रेन के नाटो में शामिल होने के अधिकार की वकालत कर रहा है। इसी दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका ने यूक्रेन के साथ एकीकरण की पहल को तेज कर दिया है, जैसा कि नवंबर 2021 में यूएस-यूक्रेन चार्टर ऑन स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप में देखा गया था। किसी को भी इस बात पर आश्चर्य हो सकता है कि क्या यूरोप का नेतृत्व इस बात से अवगत है कि नाटो जैसे सैन्य समझौते में शामिल होने के यूक्रेन के अधिकार संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा मान्यता देते वक्त अन्य देशों को मान्यता दिए जाने से इंकार किया जा रहा है। 

भले ही यूरोपीय नेता इस बात से भलीभांति परिचित हैं कि अमेरिका अन्य देशों को इस अधिकार से वंचित कर रहा है, फिर भी इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ने जा रहा है, यह देखते हुए कि वे खुद को सैन्यवादी सन्निपात वाली स्थिति में पाते हैं। इस प्रकार, उदाहरण के लिए, जब प्रशांत महासागर में एक छोटे से सोलोमन द्वीप समूह ने 2021 में चीन के साथ एक प्रारंभिक सुरक्षा समझौते को मंजूरी दी, तो अमेरिका ने  फौरन खतरे की घंटी बजाते हुए प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा प्रतिस्पर्धा की तीव्रता को रोकने के लिए वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारियों को भेजकर अपनी प्रतिक्रिया दी थी।   

सच्चाई काफी देर बाद आती है 

सूचना युद्ध हमेशा चुनिंदा सत्य, अर्ध-सत्य, और खुल्लमखुल्ला झूठ (जिन्हें झूठ के झंडे कहा जाता है) के मिश्रण पर आधारित होता है, जिसे इसे बढ़ावा देने वालों की सैन्य कार्यवाहियों को न्यायोचित ठहराने के उद्येश्य से आयोजित किया जाता है। मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अब रुसी और अमेरिकी/यूक्रेनी दोनों ही पक्षों की तरफ से सूचना युद्ध चलाया जा रहा है, भले ही, इस जानकारी का उपभोग करने वाले दुनिया भर के लोगों पर जिस स्तर पर सेंसरशिप लगाई गई है उसे देखते हुए, हम अभी भी रूस में क्या चल रहा है के बारे में काफी कम जानते हैं। आज नहीं तो कल सच्चाई सामने आ जाने वाली है, लेकिन त्रासदी की बात यह है कि तब तक काफी देर हो चुकी होगी। नई सदी की इस कठिन शुरुआत में, हमारे पास एक लाभ की स्थिति है यह है कि: दुनिया ने अपनी मासूमियत खो दी है।

उदाहरण के लिए, विकिलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे को सच्चाई का पता लगाने की प्रक्रिया में मदद करने के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। उन लोगों के लिए जिन्होंने अपने लिए सोचना नहीं छोड़ा है, मैं उन्हें हन्ना अरेंडट की 1972 की पुस्तक क्राइसिस ऑफ़ द रिपब्लिक में “लाइंग इन पॉलिटिक्स” शीर्षक वाले अध्याय को पढ़ने की सलाह दूंगा। पेंटागन पेपर्स पर इस शानदार  प्रतिबिंब डालने के साथ अरेंडट वियतनाम युद्ध (के साथ-साथ कई युद्ध अपराधों और कई झूठों) पर संपूर्ण आंकड़े प्रदान करते हैं, जो उस युद्ध के लिए जिम्मेदार मुख्य किरदारों में से एक राबर्ट मैकनमारा की पहल पर इकट्ठा किये गए थे, जिन्होंने उस अवधि के दौरान दो राष्ट्रपतियों के तहत रक्षा सचिव के बतौर भी काम किया था।

चुप्पी 

जब कभी अफ्रीका या पश्चिमी एशिया में सशस्त्र संघर्ष छिड़ता है, तो यूरोप के नेता सबसे पहले शत्रुता भाव को खत्म करने का आह्वान करते हैं और शांति वार्ता की तत्काल आवश्यकता की घोषणा करने लगते हैं। फिर ऐसा क्यों है कि जब यूरोप में एक युद्ध घटित होता है, तो निरंतर युद्ध के नगाड़े बजाए जाने लगते हैं, और एक भी नेता उन्हें चुप कराने और शांति की आवाज सुनने के लिए नहीं कहता है? 

बोअवेंतुरा डे सौसा संतोस पुर्तगाल में कोइम्ब्रा विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के एमेरिटस प्रोफेसर हैं। आपकी सबसे हालिया किताब डीकोलोनाइज़िंग द यूनिवर्सिटी: द चैलेंज ऑफ़ डीप कॉग्निटिव जस्टिस है। 

इस लेख को ग्लोबट्रोटर द्वारा पब्लिश किया गया था

अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस आलेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: 

Why Won’t Europe Call for an End to This War?

Europe
Europe politics
Ukraine War
Russia Ukraine
Ukraine news

Related Stories

और फिर अचानक कोई साम्राज्य नहीं बचा था

विश्व खाद्य संकट: कारण, इसके नतीजे और समाधान

महंगाई की मार मजदूरी कर पेट भरने वालों पर सबसे ज्यादा 

क्या मोदी सरकार गेहूं संकट से निपट सकती है?

यूक्रेन युद्ध में पूंजीवाद की भूमिका

ईंधन की क़ीमतों में बढ़ोतरी से ग़रीबों पर बोझ न डालें, अमीरों पर लगाएं टैक्स

यूरोप धीरे धीरे एक और विश्व युद्ध की तरफ बढ़ रहा है

क्या यूक्रेन मामले में CSTO की एंट्री कराएगा रूस? क्या हैं संभावनाएँ?

जब तक भारत समावेशी रास्ता नहीं अपनाएगा तब तक आर्थिक रिकवरी एक मिथक बनी रहेगी

पुतिन को ‘दुष्ट' ठहराने के पश्चिमी दुराग्रह से किसी का भला नहीं होगा


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License