NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
पर्यावरण
विज्ञान
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
संयुक्त राष्ट्र के IPCC ने जलवायु परिवर्तन आपदा को टालने के लिए, अब तक के सबसे कड़े कदमों को उठाने का किया आह्वान 
आईपीसीसी की ताजातरीन रिपोर्ट में कहा गया है कि 2025 तक वैश्विक उत्सर्जन अपने चरम पर होगा।
संदीपन तालुकदार
07 Apr 2022
climate
चित्र साभार: एपी 

संयुक्त राष्ट्र की जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) निकाय, जो वैश्विक जलवायु स्थिति का आकलन तैयार करने का काम करता है और जलवायु परिवर्तन को टालने के लिए किये जाने वाले उपायों पर दिशानिर्देश भी तैयार करता है, ने अपनी ताजा-तरीन रिपोर्ट को प्रकाशित किया है। यह छठी जलवायु आकलन रिपोर्ट का अंतिम भाग है, जिसके दो भागों में अन्तर्निहित विज्ञान और मानव सहित पारिस्थितिकी तंत्र पर जलवायु के प्रभावों का आकलन शामिल है, जिन्हें पहले प्रकशित किया जा चुका था।

हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के तीसरे भाग में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभाव को रोकने का अवसर बड़ी तेजी से कम होता जा रहा है। दो दिनों तक चली इस मैराथन वार्ता सत्र में 195 सरकारों की भागीदारी एवं अनुमोदन के साथ, करीब 2,900 पृष्ठों वाली रिपोर्ट में प्राथमिक तौर पर कार्बन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने और ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को कैसे कम किया जाए, पर केंद्रित रखा गया है। इस दस्तावेज को 65 देशों के सैंकड़ों वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार किया गया है।

1988 में अपनी स्थापना के बाद से, आईपीसीसी समय-समय पर इस प्रकार की रिपोर्टों को तैयार करती आई है और इसकी छठी रिपोर्ट ने निष्क्रियता के आसन्न परिणामों के बारे में अब तक की सबसे कड़ी चेतावनियों को जारी किया है। वैज्ञानिकों ने कहा है कि समय आ गया है जिसमें देखना होगा कि क्या विभिन्न राष्ट्रीय सरकारें अपने आधे-अधूरे वादों के बजाय कार्यवाई करेंगी या नहीं।  

येल विश्वविद्यालय, अमेरिका के भूगोलवेत्ता और रिपोर्ट पर एक समन्वयकप्रमुख लेखक करेन सेटो ने कहा, “सभी स्तरों पर अधिकाधिक सरकारों के द्वारा शमन के और ज्यादा प्रयासों को अपनाने के बावजूद, उत्सर्जन में लगातार वृद्धि का क्रम बना हुआ है। हमें अभी भी बहुत कुछ करने की जरूरत है, और हमें इसे जल्द से जल्द करना होगा।”

आईपीसीसी रिपोर्ट के प्रमुख संदेश 

1. मानवता के हाथ से वक्त लगभग फिसल चुका है। जलवायु मॉडल सुझाता है कि कुछ नहीं तो 2025 तक वैश्विक उत्सर्जन अपने चरम पर होगा, लेकिन उसके बाद वैश्विक स्तर पर इसमें भारी गिरावट की जरूरत है, ताकि विश्व के पास बढ़ती गर्मी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए 50% मौका मिल सके।

2015 में पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे। इसमें सुझाया गया था कि जलवायु की तबाही से बचने के लिए तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के स्तर पर स्थिर रखना होगा। यदि केवल इसी लक्ष्य को हासिल करना है तो 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को आधा करना होगा और 2050 की शुरुआत तक इसे शून्य तक पहुंचना होगा। ऐसे अनुमान हैं जो कहते हैं कि यदि मौजूदा प्रवृत्ति जारी रहती है तो पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में लगभग 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने की संभावना है।

2. रिपोर्ट में कुछ शमन प्रयासों के अच्छे प्रभावों का भी जिक्र किया गया है और अक्षय उर्जा ने इस संबंध में ध्यान आकर्षित किया है। पवन टरबाइन, सौर पैनल इत्यादि जैसे अक्षय उर्जा प्रौद्योगिकियों को लगभग समूचे विश्व भर में तेजी से इस्तेमाल में लाया जा रहा है और इसका वैश्विक स्तर पर साफ़-सुथरा प्रभाव पड़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक उर्जा तीव्रता (जो कि अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए जरुरी उर्जा का मापक है) 2010 से 2019 तक वार्षिक रूप में 2% घट गई है, जिसने पिछले दशकों से उलट ट्रेंड को दर्शाया है।

3. जीवाश्म ईधन के इस्तेमाल पर अंकुश लगाना होगा। मॉडल सुझाता है कि मौजूदा एवं भविष्य के  लिए नियोजित जीवाश्म इंधन की परियोजनाओं से उत्सर्जन की मात्रा पहले से ही स्वीकार्य कार्बन बजट को पार कर चुकी है।

4. लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सिर्फ उत्सर्जन पर अंकुश लगाना पर्याप्त नहीं होगा। वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को निकालना होगा। तमाम देश चाहें तो खेतीबाड़ी की पद्धतियों में सुधार लाने के साथ-साथ वनों के विस्तार को अंजाम देने के माध्यम से कार्बन अपटेक को बढ़ा सकते हैं। रिपोर्ट में नवजात प्रौद्योगिकी के बारे में भी पुष्टि की गई है जो पर्यावरण से और औद्योगिक स्रोतों से भी कार्बन को गिरफ्त में लेने में मदद कर सकती हैं।

5. धनी देशों को निम्न-आय वाले देशों को आर्थिक सहायता प्रदान किये जाने की आवश्यकता है, ताकि जीवाश्म इंधन-आधारित अर्थव्यवस्था से एक हरित अर्थव्यवस्था में संक्रमण को सुगम और बेहतर बनाया जा सके, ताकि सभी इससे लाभान्वित हो सकें। इसके साथ ही महत्वपूर्ण रूप से, जो देश ग्रीनहाउस गैसों का सबसे कम उत्पादन कर रहे हैं वे ही देश जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हैं। संयुक्त राष्ट्र के जलवायु ढांचे के भीतर सबसे कम विकसित देशों और छोटे द्वीप विकाशील देशों में से 88 देश सामूहिक रूप से 1% से भी कम कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं।

रिपोर्ट के प्रमुख लेखक एवं जर्मन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल एंड सिक्यूरिटी अफेयर्स, बर्लिन के समाज विज्ञानी ओलिवर गेडेन ने कहा, “मेरी समझ में हम राजनीतिक रूप से ऐसी स्थिति के करीब पहुँच गए हैं जहाँ हमें गंभीरतापूर्वक यह सवाल करना होगा कि हम इस आधिक्य से कैसे निपटने जा रहे हैं। हालाँकि अभी भी तकनीकी दृष्टि से देखने पर तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रख पाना संभव लग रहा है, लेकिन इसके लिए जैसी कार्यवाइयों की दरकार है उन्हें अभूतपूर्व होना चाहिए।”

अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस मूल आलेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें:- 

UN Climate Panel Calls for Extreme Steps to Avert Climate Change Disaster

IPCC
IPCC report
IPCC 6th Assessment Report
climate change
global warming
Climate Mitigation

Related Stories

गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा

मज़दूर वर्ग को सनस्ट्रोक से बचाएं

लू का कहर: विशेषज्ञों ने कहा झुलसाती गर्मी से निबटने की योजनाओं पर अमल करे सरकार

जलवायु परिवर्तन : हम मुनाफ़े के लिए ज़िंदगी कुर्बान कर रहे हैं

लगातार गर्म होते ग्रह में, हथियारों पर पैसा ख़र्च किया जा रहा है: 18वाँ न्यूज़लेटर  (2022)

अंकुश के बावजूद ओजोन-नष्ट करने वाले हाइड्रो क्लोरोफ्लोरोकार्बन की वायुमंडल में वृद्धि

‘जलवायु परिवर्तन’ के चलते दुनियाभर में बढ़ रही प्रचंड गर्मी, भारत में भी बढ़ेगा तापमान

दुनिया भर की: गर्मी व सूखे से मचेगा हाहाकार

जलविद्युत बांध जलवायु संकट का हल नहीं होने के 10 कारण 

आईपीसीसी: 2030 तक दुनिया को उत्सर्जन को कम करना होगा


बाकी खबरें

  • Low Budget Allocations Severely Unjust to Children
    भरत डोगरा
    कम बजट आवंटन बच्चों के साथ घोर अन्याय
    28 Jan 2022
    भारत युवाओं को उनके दाय से वंचित करने का जोखिम नहीं उठा सकता, खासकर जब कोरोना महामारी उनके परिवारों की आर्थिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा बनी हुई है। वित्तीय वर्ष 2022 के लिए प्रस्तावित बजट में…
  • Rajeev Nigam
    न्यूज़क्लिक टीम
    व्यंग्य हमेशा रहा है और रहेगा
    28 Jan 2022
    हास्य और व्यंग्य हमेशा से ज़रूरी रहा है। राजनीति के ऊपर व्यंग्य हमेशा कसा गया है। लेकिन आज के नेताओं में सहने की ताकत कम हो गयी है। राजीव निगम से इस खास मुलाकात में सुनिए इन्हीं सब मुद्दों पर बात ।
  • bjp
    भाषा
    भाजपा ने 2019-20 में 4,847 करोड़ रुपये मूल्य की संपत्ति घोषित की : एडीआर
    28 Jan 2022
    द एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने 2019-20 में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों की संपत्ति और देनदारियों के अपने विश्लेषण के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है, जिसमें भाजपा की संपत्ति सबसे…
  • RRB-NTPC
    रवि शंकर दुबे
    जानें: RRB-NTPC के खिलाफ क्यों प्रदर्शन कर रहे हैं छात्र? क्या है पूरा मामला?
    28 Jan 2022
    एक ओर पूरा देश गणतंत्र दिवस के पर्व में डूबा हुआ था, तो दूसरी ओर देश का भविष्य सड़कों पर पुलिस की लाठियां खा रहा था। आखिर क्यों छात्रों को सड़क पर उतरने के लिए होना पड़ा मजबूर, क्या है RRB-NTPC के…
  • RRB NTPC
    एम.ओबैद
    बिहार आरआरबी-एनटीपीसी छात्र आंदोलनः महागठबंधन माले नेता ने कहा- ये सरकार लोकतंत्र विरोधी है
    28 Jan 2022
    "सरकार चाहती ही है कि देश में रोजगार समाप्त हो। पीएम मोदी और उनके मंत्री और पूर्ववर्ती रेल मंत्री पहले कहते रहे हैं कि देश में निजीकरण ज़रुरी है और रोज़गार तो पकौड़ा तलना है। बीजेपी की पकौड़ा तलने की…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License