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भारत
राजनीति
उत्तर प्रदेशः छोटी छोटी पार्टियों की बड़ी बेचैनी
ध्यान से देखा जाए तो यह होड़ उत्तर प्रदेश की विभिन्न जातियों की सामाजिक-राजनीतिक हलचल है। यह छोटी जातियों का राजनीतिकरण है जो हिंदुत्व और समाजवाद के बड़े बड़े आख्यानों के बीच अपने लिए सम्मान और सत्ता की तलाश करने निकल पड़ी हैं।
अरुण कुमार त्रिपाठी
05 Nov 2021
akhilesh
भाजपा नीत सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके एसबीएसपी अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर अब सपा के साथ हैं। (फाइल फोटो) 

उत्तर प्रदेश में छोटी पार्टियों के सहारे बड़े सपने देखे जा रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी में अपने साथ छोटी छोटी पार्टियों को जोड़ने की होड़ मची हुई है। निश्चित तौर पर इस होड़ के पीछे 2022 का चुनाव जीतने की चाहत है लेकिन मामला उससे भी कहीं आगे का है। क्या यह महज चुनावी समीकरण को मजबूत करने की प्रक्रिया है या इसके भीतर किसी तरह की गहरी सामाजिक आर्थिक बेचैनी काम कर रही है? वह बेचैनी जो जातियों की सत्ता में हिस्सेदारी से आगे सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय की ओर जाती है।

समाजवादी पार्टी ने जिन छोटे दलों से गठबंधन किया है उनमें महान दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, आदिम समाज पार्टी, प्रगतिशील मानव समाज पार्टी, राष्ट्रीय जलवंशीय क्रांति दल, राष्ट्रीय जनसंभावना पार्टी,  सर्वजन समता पार्टी, अभय समाज पार्टी, अखंड जलवंशीय सेना प्रमुख हैं। इनके अलावा सपा ने राष्ट्रीय लोकदल से भी एक तालमेल बनाया है जिसे औपचारिक रूप दिया जाना है। अगर 22 नवंबर को समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन पर शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी से गठबंधन हो गया तो समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव को निजी तौर पर शक्ति मिलेगी। इससे परिवार का विवाद उछाल कर समाजवादी पार्टी और उसके नेतृत्व को परेशान और बदनाम करने का सिलसिला भी थमेगा। उम्मीद है कि सपा का एनसीपी से भी गठबंधन होगा और अगर तृणमूल कांग्रेस जिसका प्रदेश में कोई आधार नहीं है चुनाव में उतरी तो वह भी सपा को सहयोग करेगी। हालांकि रालोद के अध्यक्ष जयंत चौधरी की प्रियंका गांधी से हुई मुलाकात के बाद और भी अटकलें लगाई जा रही हैं।

दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी ने दस छोटे दलों के साथ गठबंधन किया है। उनमें अपना दल और प्रगतिशील पार्टी और निषाद पार्टी के अलावा भारतीय सुहेल देव जनता पार्टी, शोषित समाज पार्टी, भारतीय मानव समाज पार्टी, मुशहर आंदोलन मंच, मानव हित पार्टी, पृथ्वीराज जनशक्ति पार्टी, भारतीय समता समाज पार्टी शामिल हैं। रामधनी विंद ने हिस्सेदारी मोर्चा बनाया है जिसमें अपना दल और प्रगतिशील पार्टी को छोड़कर उपर्युक्त सातों पार्टियां शामिल हैं।

ध्यान से देखा जाए तो यह होड़ उत्तर प्रदेश की विभिन्न जातियों की सामाजिक-राजनीतिक हलचल है। यह छोटी जातियों का राजनीतिकरण है जो हिंदुत्व और समाजवाद के बड़े बड़े आख्यानों के बीच अपने लिए सम्मान और सत्ता की तलाश करने निकल पड़ी हैं। इन जातियों की संख्या और प्रभाव को लेकर तरह तरह के दावे किए जा रहे हैं। एक तरफ वे छोटी पार्टियां विभिन्न जातियों की संख्या का दावा अपना प्रभाव करने के लिए कर रही हैं तो दूसरी ओर विश्लेषक अपने ढंग से आकलन कर रहे हैं। लेकिन किसी भी पिछड़ी जाति की कोई भी संख्या बताने से पहले यह कह देना जरूरी है कि 1931 के बाद देश में कोई भी जातीय जनगणना नहीं हुई है। इसलिए अन्य पिछड़ा वर्ग की श्रेणी में शामिल विभिन्न जातियों की संख्या का अनुमान तो विवादित है ही अनुसूचित जाति की श्रेणी में आने वाली विभिन्न जातियों की सही संख्या का पता लगाना भी कठिन है।

उदाहरण के लिए राजभर समुदाय दावा करता है कि उत्तर प्रदेश में उनकी आबादी 4 प्रतिशत है। पूर्वांचल में उसकी आबादी 18 से 20 प्रतिशत है और वह सौ सीटों पर असर डाल सकता है। इसी तरह महान दल के नेता केशव देव मौर्य दावा करते हैं कि उनकी पार्टी जिन समुदायों में अपना प्रभाव रखती है उनकी आबादी छह प्रतिशत है। वे मानते हैं कि उनके साथ शाक्य, मौर्य, कुशवाहा, सैनी, कंबोज, भगत, महतो, मुरांव, भुजबल, गहलोत बिरादरी के लोग हैं। वे अपने को सम्राट अशोक का वंशज बताते हैं। केशव देव मौर्य पहले बसपा में थे लेकिन वहां से निकल कर उन्होंने 2008 में महान दल का गठन किया।

केडी मौर्य का कहना है कि समाज के लिए लड़ो, लड़ नहीं सकते तो लिखो और लिख नहीं सकते तो बोलो, बोल नहीं सकते तो साथ दो। वे समाजवादी पार्टी के पक्ष में प्रदेश भर में रैलियां कर चुके हैं और जाति जनगणना की मांग उठा रहे हैं। उधर मल्लाह, कश्यप, केवट, धीवर, निषाद, विंद, गोरही जातियों का दावा है कि उनकी आबादी 18 प्रतिशत है। इसलिए उन्हें 16 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए। इसी बिना पर संजय निषाद ने भारतीय जनता पार्टी से गठबंधन किया है और इसी बिना पर राष्ट्रीय जलवंशीय क्रांति दल, अखंड जलवंशीय सेना और जलवंशीय मोर्चा का गठन हुआ है। इनमें से कुछ संगठन और पार्टियां समाजवादी पार्टी के साथ हैं। विशेषकर अजय कश्यप, ज्ञानेंद्र निषाद और उमेद कश्यप ने इस तरह का दावा किया है।

जातियों की इसी राजनीतिक हलचल का परिणाम है राजभरों की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का समाजवादी पार्टी के साथ आना और उसके जवाब में भाजपा द्वारा भारतीय सुहेलदेव जनता पार्टी खड़ा कर देना। अगर पहले भाजपा नीत सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके ओमप्रकाश राजभर ने सपा का दामन थाम कर भाजपा को चुनौती देना शुरू कर दिया है तो भाजपा के साथ जुड़ चुके भीम राजभर उन्हें जवाब दे रहे हैं।

इस तरह 2022 में सत्ता की प्रमुख दावेदार भाजपा और सपा दोनों पार्टियों ने छोटे दलों की जो खींचतान शुरू की है वह वास्तव में हिंदू बनाम हिंदू की पारंपरिक लड़ाई है। एक ओर भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार इन तमाम छोटे दलों के माध्यम से हिंदू समाज की छोटी जातियों पर डोरे डालकर उनके भीतर अल्पसंख्यक विरोधी भावना भर रही है तो दूसरी ओर समाजवादी पार्टी उन जातियों को हिंदुत्व के दायरे से निकालकर जाति जनगणना और सामाजिक आर्थिक न्याय के एजेंडा पर लाकर उदार बनाने की कोशिश कर रही है यानी एक ओर कट्टर हिंदू बनाए जा रहे हैं तो दूसरी ओर उदार। संघ परिवार तमाम छोटी जातियों के बीच तेजी से काम कर रहा है। राजभर जाति के बीच उसका काम इसी का परिचायक है। संघ परिवार आज के श्रावस्ती जिले में 11वीं सदी में हुए राजभर राजा सुहेलदेव को प्रतीक बनाकर हिंदू मुस्लिम विवाद को गरमाता रहता है। सुहेलदेव ने सैयद सलार मसूद नामक सिपहसालार को मार गिराया था। सलार मसूद की मजार पर मेला लगता है और दूसरी ओर उसी दिन सुलेहदेव की जयंती मनाई जाती है। इसी ध्रुवीकरण के कारण पहले ओम प्रकाश राजभर भारतीय जनता पार्टी के साथ थे। अब वे सपा के साथ आ गए हैं और दावा कर रहे हैं कि जिस तरह बंगाल में `खेला होबे’ हुआ उसी तरह उत्तर प्रदेश में `खदेड़ा होबे’ होगा। यहां भाजपा को खदेड़ा जाएगा।

सवाल यह है कि जातियों के हिंदूकरण का अभियान जितना भव्य और तीव्र है क्या समाजवादी पार्टी उतना बड़ा सामाजिक न्याय अभियान खड़ा कर पाने में सक्षम है? क्या अयोध्या में 12 लाख दीए जलाने और रोशनी का शो करने वाली पार्टी तमाम छोटी जातियों को अपने आकर्षण से दूर जाने देगी? निश्चित तौर पर बड़े बड़े विज्ञापन देकर और कैश ट्रांसफर और राशन बांटकर भाजपा सरकार ने लोगों को भ्रमित करने के लिए बड़ा मायाजाल रचा है। एक ओर वे विभिन्न जातियों पर मुस्लिमों के अत्याचार की कहानियां सुना रहे हैं और दूसरी ओर उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी का प्रलोभन दे रहे हैं।

इसके जवाब में सपा के पास अपने पिछले शासन के काम और अखिलेश की विनम्र संवाद शैली एक बड़ी पूंजी है। उसके साथ मुलायम सिंह यादव के संघर्षशील नेतृत्व की विरासत भी है। भाजपा उस विरासत को कारसेवकों पर कार्रवाई की याद दिलाकर दागदार करने में लगी है। वह राम के इर्दगिर्द महाआख्यान रच कर लोगों को सम्मोहित करने का प्रयास कर रही है।

लेकिन इस बीच तमाम छोटी जातियों को यह एहसास हो गया है कि भाजपा और संघ परिवार न तो हिंदू समाज में बराबरी की लड़ाई लड़ रही है और न ही वह जनता को आर्थिक न्याय और राजनीतिक स्वतंत्रता देने की हिमायती है। वह छोटी जातियों का इस्तेमाल अपने वैचारिक और राजनीतिक मकसद के लिए करती है। उन्होंने नोटबंदी के दौरान भाजपा नेतृत्व का चरित्र देखा है। उन्होंने कोरोना जैसी महामारी के दौरान सरकार का दमनकारी बर्ताव देखा है और महंगाई की मार झेली है। उन्हें इस बात से भी झटका लगा है कि पिछड़ों औऱ दलितों को सम्मान देने की बात करने वाली पार्टी जाति जनगणना करने से दूर भाग रही है।

प्रदेश की तमाम छोटी जातियों ने महसूस किया है कि भारतीय जनता पार्टी का हिंदुत्व वास्तव में बड़ी जातियों की सत्ता में वापसी है। उसका एजेंडा ब्राह्मणवाद का एजेंडा ही है। जहां पंडा, पुरोहित और उन्हीं धर्म ग्रंथों का बोलबाला है जो समाज में जातिगत भेदभाव पैदा करते हैं और लोगों को ऊंच नीच का दर्जा देते हैं। इसलिए वे जातियां एक ऐसे नेतृत्व और दल की तलाश में भी हैं जहां एक सामाजिक क्रांति की गुंजाइश हो और जातिगत भेदभाव खत्म हो। इनमें से कुछ पार्टियां (जातियां) पहले बहुजन समाज पार्टी के साथ थीं कि वह आंबेडकरवादी दर्शन के साथ एक सामाजिक क्रांति करेगी। चूंकि अब बसपा यथास्थितिवादी पार्टी हो गई है तो वे समाजवादी पार्टी की ओर मुड़ी हैं। समाजवादी पार्टी एक ओर डॉ. राम मनोहर लोहिया के दर्शन के लिए अपनी प्रतिबद्धता दर्शाती है तो दूसरी ओर डॉ. आंबेडकर के दर्शन प्रति भी सम्मान दिखाती है।

इसलिए उत्तर प्रदेश में अगर संघ परिवार भाजपा की छतरी के नीचे तमाम छोटे दलों को लाकर हिंदुत्व की प्रतिक्रांति करने में लगी है तो दूसरी ओर कई छोटी पार्टियां समाजवादी पार्टी की छतरी के नीचे जुटकर उसे चुनौती देते हुए एक सामाजिक क्रांति की कामना कर रही हैं। उन्हें उम्मीद है कि समाजवादी पार्टी इस सपने को पूरा करेगी। इसलिए समाजवादी पार्टी की बड़ी जिम्मेदारी बन जाती है कि वह छोटी जातियों के गठबंधन को सिर्फ सत्ता का समीकरण न समझे। वह इस एकजुटता को एक बड़ी जिम्मेदारी के रूप में ले और प्रदेश में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने का संकल्प ले। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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