NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
उत्तर प्रदेश : इमरजेंसी के कुछ शहीदों को बहुत दिन बाद याद किया गया
आज जब संविधान के हर पन्ने पर हमला हो रहा है। प्रजातंत्र को बचाने और मजबूत करने वाली संस्थाएं एक बार फिर चरमराने लगी है। प्रसार के माध्यम खामोश नहीं बल्कि सरकार की वाहवाही की चीखें लगाने लगे हैं तो एक बार पलटकर इमरजेंसी और उसके शहीदों को याद करना बहुत आवश्यक हो गया है।
सुभाषिनी अली
11 Feb 2020
Subhashini Ali

संविधान और संसद की मदद लेकर संवैधानिक अधिकारों पर कुठाराघात करना; न्यायालय की मदद से तमाम मानव अधिकारों और बुनियादी अधिकारों यहाँ तक की जीवित रहने के अधिकार तक से समस्त जनता को वंचित कर देना; जेलों मे तमाम विपक्ष के शीर्षस्थ नेताओं को बिना मुक़द्दमा चलाये ठूंस देना; प्रसार के माध्यमों को सरकारी प्रचारक बना देना; जनता के अंदर भय व्याप्त करके उसे गूंगा बना देना। लगता है कि यह सब अभी हाल की ही घटनाएँ हैं। लेकिन यह सब कुछ जून 1975 के बाद हुआ था जब प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने देश पर इमरजेंसी लागू कर दी थी।

उस वक्त डॉ आंबेडकर की चेतावनी को बहुत कम लोगों ने याद किया था। उन्होंने संविधान के पारित होने के तुरंत बाद ही कहा था कि भारत मे जनवाद की बुनियादें बहुत कमजोर हैं।  उसकी जड़ें ज़मीन की ऊपरी सतह तक ही पहुंची हैं। इसका कारण उनके अनुसार यह था कि जिस समाज मे भाईचारा और समानता के प्रति किसी प्रकार का लगाव ही नहीं है वहाँ प्रजातन्त्र के कमजोर प्यादे को बहुत मेहनत और निष्ठा के साथ पालना और पोसना पड़ेगा।
PHOTO-2020-02-11-11-30-45.jpg
उनकी यह बातें कितने पते की थीं इसको 1975 में जिस तरह से याद करने की आवश्यकता थी, वह उस समय देखने को नहीं मिली। और उन्हीं के द्वारा निर्मित संविधान की आत्मा को रौंदते हुए, उसकी की कुछ धाराओं का इस्तेमाल करते हुए इमरजेंसी को समस्त नागरिकों पर लाद दिया गया।

इमरजेंसी के दौरान सरकार द्वारा ढाये गए तमाम अत्याचारों की कहानी अनदेखी और अनसुनी ही रहीं। बड़ी बड़ी घटनाओं को ही संज्ञान में लिया गया। किशोर कुमार के गानों पर आल इंडिया रेडियो की पाबंदी; बड़े नेताओं की गिरफ्तारी, तुर्कमान गेट पर असहाय भीड़ पर बुलडोजर और गोलियों द्वारा किया गया हमला तो छिपाना मुश्किल था लेकिन कस्बों और ग्रामीण इलाकों मे होने वाली तमाम बर्बर हमलों की सुध बड़े पैमाने पर लोगों को नहीं हो पायी;  मारे जाने वालों के नाम भी अज्ञात रहे। जहां यह घटनाएँ घटी, वहाँ के लोगों के लिए भी इनके नाम और उन घटनाओं की याद धूमिल होने लगी।
 
आज जब इमरजेंसी की यादें ताज़ा हो गयी हैं, जब डॉ आंबेडकर की चेतावनी कानों मे गूंजने लगी है; जब संविधान के हर पन्ने पर हमला हो रहा है और प्रजातन्त्र को बचाने और मजबूत करने वाली संस्थाएं एक बार फिर चरमराने लगी है और प्रसार के माध्यम खामोश नहीं बल्कि सरकार की वाहवाही की चीखें लगाने लगे हैं तो एक बार पलटकर इमरजेंसी और उसके शहीदों को याद करना बहुत आवश्यक हो गया है।
PHOTO-2020-02-11-11-30-47.jpg
सुल्तानपुर शहर से पहले निजामपुर का इलाका पड़ता है। यहाँ एक मैदान है जिसे शहीदी मैदान तो कहा जाता है लेकिन यहाँ कौन शहीद हुआ था इसका पता आस-पास रहने वाले 1975 के बाद पैदा होने वाले तमाम लोगों को शायद कुछ दिन पहले ही पता चला होगा।

सुल्तानपुर ज़िला की सीपीआई (एम) की इकाई ने कुछ हफ्ते पहले तय किया कि उस मैदान मे 27 अगस्त 1976 को शहीद हुए लोगों को याद करने, उनके घरवालों और उस हादसे के बाद जेल भेज दिये जाने वालों को सम्मानित करने के लिए उसी मैदान मे बड़ा आयोजन किया जाये। शहीदी मैदान मे उस दिन एकत्रित लोग आस-पास के तमाम गांवों से आए थे। उन गांवों के प्रधानों से संपर्क किया गया, उन गांवों मे पर्चे बांटे गए और आयोजन की तैयारियां इस तरह से की गयी कि इस इलाके मे उसकी अपनी तमाम भूली-बिसरी यादें ताज़ा हो जाएँ।

10 फरवरी के दिन वह ऊबड़-खाबड़ शहीदी मैदान उस वक्त खिल उठा जब मंच और मंच के सामने तमाम लोग– महिलाएं, बहुत सारे नौजवान और बुजुर्ग वहाँ एकठ्ठा हो गए। लाल झंडे भी लहरा-लहरकर शहीदों की कुर्बानी को सलाम कर रहे थे। मंच पर सपा विधायक अबरार अहमद सभा के शुरू होने से लेकर खात्मे तक मौजूद थे।

वह 26 अगस्त को भी इसी मैदान मे थे जब जबरदस्ती होने वाली नसबंदी के खिलाफ हजारों लोगों ने विशाल प्रदर्शन किया था। इसके बाद ही लाठी और गोली चली और अबरार भाई का हाथ भी टूट गया।
PHOTO-2020-02-11-11-30-48.jpg 
गोलियों से कितने लोग मारे उनका सही अनुमान नहीं लगाया गया है क्योंकि बहुत सारे लोग घायल हुए थे। इसका पता है कि 10 लोग मैदान मे ही खत्म हो गए। इनमे से शबबीर ग्राम अझई, हरीराम ग्राम बन्केपुर, मो आली ग्राम चका को श्रद्धांजलि देकर उनके परिवारजन को सम्मानित किया गया। जेल जाने वालों मे जव्वाद, शहजाद, अलताफ़, तौहीद, सत्तार, रवि वर्मा, खालील और इस्लामुद्दीन को मंच पर सम्मानित किया गया और जेल जाने वाली एक बहादुर महिला, शमसुनिसा के बेटे को माँ की बहादुरी के लिए भी सम्मानित किया गया।
 
मेरे लिए यह गर्व का विषय था कि मुझे इस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि के रूप मे बुलाया गया।  शहीदों और लाठी-गोली खाने वालों और जेल जाने वालों ने हमे जो प्रेरणा दी है आज की लड़ाई को लड़ने के लिए उसको सराहने का मौका मिला। उस संविधान के बारे मे बताने का मौका मिला जिसे तब भी नष्ट करने का प्रयास किया गया था और आज भी किया जा रहा है।

समानता के सिद्धान्त से तानाशाह कितना डरते हैं और उसे बचाए रखने की कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है, बात को सुनने वालों ने महसूस किया। आज की सरकार मे बैठे लोग खुलकर संविधान का विरोध करने और उसकी जगह मनुस्मृति को लागू करने वाले हैं इस बात से लोगों ने सहमति जतायी।  

सभा के अंत में शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए इस बात की दुहाई दी गयी कि जब हमारे देश के लोग अपने अधिकारों को बचाने के लिए एक साथ अपना खून बहाने के लिए तैयार रहे हैं तो आज भी उन्हे एक दूसरे से अलग करने के षड्यंत्र को कभी सफल नहीं होने दिया जाएगा। 

UttarPradesh
Emergency
Emergency in India 1975
Martyrs remembered
Constitution of India
CPIM
CPIML
subhashini ali
Manu-Smriti
dictatorship
BJP

Related Stories

बदायूं : मुस्लिम युवक के टॉर्चर को लेकर यूपी पुलिस पर फिर उठे सवाल

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • भाषा
    बच्चों की गुमशुदगी के मामले बढ़े, गैर-सरकारी संगठनों ने सतर्कता बढ़ाने की मांग की
    28 May 2022
    राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के हालिया आंकड़ों के मुताबिक, साल 2020 में भारत में 59,262 बच्चे लापता हुए थे, जबकि पिछले वर्षों में खोए 48,972 बच्चों का पता नहीं लगाया जा सका था, जिससे देश…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: मैंने कोई (ऐसा) काम नहीं किया जिससे...
    28 May 2022
    नोटबंदी, जीएसटी, कोविड, लॉकडाउन से लेकर अब तक महंगाई, बेरोज़गारी, सांप्रदायिकता की मार झेल रहे देश के प्रधानमंत्री का दावा है कि उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे सिर झुक जाए...तो इसे ऐसा पढ़ा…
  • सौरभ कुमार
    छत्तीसगढ़ के ज़िला अस्पताल में बेड, स्टाफ और पीने के पानी तक की किल्लत
    28 May 2022
    कांकेर अस्पताल का ओपीडी भारी तादाद में आने वाले मरीजों को संभालने में असमर्थ है, उनमें से अनेक तो बरामदे-गलियारों में ही लेट कर इलाज कराने पर मजबूर होना पड़ता है।
  • सतीश भारतीय
    कड़ी मेहनत से तेंदूपत्ता तोड़ने के बावजूद नहीं मिलता वाजिब दाम!  
    28 May 2022
    मध्यप्रदेश में मजदूर वर्ग का "तेंदूपत्ता" एक मौसमी रोजगार है। जिसमें मजदूर दिन-रात कड़ी मेहनत करके दो वक्त पेट तो भर सकते हैं लेकिन मुनाफ़ा नहीं कमा सकते। क्योंकि सरकार की जिन तेंदुपत्ता रोजगार संबंधी…
  • अजय कुमार, रवि कौशल
    'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग
    28 May 2022
    नई शिक्षा नीति के ख़िलाफ़ देशभर में आंदोलन करने की रणनीति पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में सैकड़ों विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं ने 27 मई को बैठक की।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License