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उत्तराखंड: 51 दिनों से धरना दे रही आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की सेवा समाप्त कर रही सरकार
उत्तराखंड की महिला और बाल विकास मंत्री रेखा आर्य ने शुक्रवार को चेतावनी दी कि यदि आंगनबाड़ी महिलाएं काम पर नहीं लौटती तो उनकी सेवाएं समाप्त कर दी जाएं। शनिवार को चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और पौड़ी से कई आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को बर्खास्त कर दिया गया। कई को नोटिस भेजे जा रहे हैं।
वर्षा सिंह
27 Jan 2020
Anganwadi

देहरादून में स्मार्ट सिटी का काम ज़ोरों पर चल रहा है इसलिये सामान्य यातायात बाधित है। यहीं हिंदी भवन के सामने खुले मैदान में स्मार्ट फ़ोन से हाज़िरी लगाने वाली स्मार्ट आंगनबाड़ी कार्यकर्ताएं स्मार्ट सैलरी के लिए धरना दे रही हैं। अब इन्होंने क्रमिक अनशन भी शुरू कर दिया है। तबियत बिगड़ने पर प्रशासन एक को उठा ले जाता है तो दूसरी कार्यकर्ता अनशन का बीडा उठा लेती है।

ठिठुराती सर्दी के बीच धूप इनके लिए उम्मीद की तरह आती है। आज इनके धरना प्रदर्शन का 51वां दिन है। धीरे-धीरे प्रदर्शन के लिए आ रही कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटनी शुरू हो रही है। यहीं दो कार्यकर्ता आमरण अनशन पर बैठी हुई हैं। वे सभी महिला और बाल विकास मंत्री रेखा आर्य के बयानों से हताश हैं और खुद को बर्खास्त किए जाने की खबरों से परेशान हैं।

कई ज़िलों से हटायी जा रहीं आंगनबाड़ी कार्यकर्ताएं

शुक्रवार को राज्य की महिला और बाल विकास मंत्री रेखा आर्य ने चेतावनी दी कि यदि आंगनबाड़ी महिलाएं काम पर नहीं लौटती तो उनकी सेवाएं समाप्त कर दी जाएं। शनिवार को चमोली, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी और पौड़ी से कई आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को बर्खास्त कर दिया गया। कई को नोटिस भेजे जा रहे हैं। रेखा आर्य को आंगनबाड़ियों के हड़ताल के पीछे राजनीति नज़र आती है।

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के आंदोलन से 75 प्रतिशत सेंटर पर कामकाज प्रभावित हो रहा है। 19 जनवरी को पल्स पोलियो अभियान में सहायिकाओं की मदद से बच्चों को पोलियो खुराक पिलायी गई।

आंगनबाड़ी कार्यकर्ता एसोसिएशन की अध्यक्ष रेखा नेगी कहती हैं हमारा काम इतना महत्वपूर्ण है, सरकार की इतनी योजनाओं को चलाने की ज़िम्मेदारी हमारे उपर है, इसके बावजूद मानदेय बढ़ाने की हमारी मांग उन्हें समझ नहीं आती।
आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के धरने का 50वां दिन.jpg
रेखा बताती हैं कि आंगनबाड़ी के ज़िम्मे पूरक पोषण, स्वास्थ्य जांच, टीकाकरण समेत 6 सेवाएं आती हैं। जिसमें से 5 केंद्र की योजनाएं हैं। इन्हीं सेवाओं का मानदेय दिया जाता है। लेकिन इसके अलावा हम पर कई सरकारी योजनाओं की ज़िम्मेदारी डाल दी गई है।

प्रशासन कहता है कि हमें उसका इन्सेटिव देते हैं। लेकिन बीएलओ की ड्यूटी और पल्स पोलियो के लिए इंसेटिव मिलता है और अन्य किसी कार्य के लिए नहीं। यात्रा भत्ता तक नहीं दिया जाता, जिसके दावे किये जाते हैं।

उधार लेकर पूरी होती हैं राज्य सरकार की योजनाएं

टिहरी गढ़वाल के चंबा ब्लॉक के कुड़ियाल गांव की तिलमा पिछले 50 दिनों से घर बार छोड़कर इस प्रदर्शन में शामिल हैं कि शायद इससे वे अपने परिवार का बेहतर जीवन-यापन कर पाने में सक्षम हो सकेंगी। उन पर अपनी मां और एक बेटे की जिम्मेदारी है। वे परिवार की अकेली कमाऊ सदस्य हैं।

तिलमा बताती हैं कि हमें हर महीने टेक होम राशन देना होता है। वे उदाहरण देती हैं कि तीन महीने का टेक होम राशन उन्होंने गांव के लाला से उधार लेकर दिया। प्रशासन से उसके पैसे नहीं मिले और लाला हर समय पैसों की मांग लेकर आ धमकता। जब उनके खाते में पैसे आए तो अगले तीन महीने के आए। ये कह दिया गया कि पिछले तीन महीने का तुम खुद एडजस्ट कर लो। ऐसा कैसे संभव है। जबकि हमसे हिसाब में 75 पैसे की गड़बड़ी हो जाए तो हमारी बेइज्जती की जाती है।

सात घंटे काम करते हैं, न्यूनतम मज़दूरी की मांग करते हैं

देहरादून के कालसी ब्लॉक से आई उर्मिला पंवार कहती हैं कि हमें मिलने वाले साढ़े सात हजार राज्य सरकार को बहुत लगते हैं, जबकि हम न्यूनतम मज़दूरी 18 हजार रुपए दिए जाने की मांग कर रहे हैं। वह पैसों का हिसाब बताती हैं कि महीने में कम से कम तीन मीटिंग होती, जहां आने-जाने का डेढ-डेढ़ सौ लगता है। सात घंटे से कहीं ज्यादा समय देना पड़ता है। रात आठ बजे फोन कर देंगे कि अभी ये रिपोर्ट बना कर दो, व्हाटसएप पर। चाहे आप उस समय किसी शादी में हों, कहीं बाहर हों कुछ भी। सरकार की योजनाओं से जुड़े फॉर्म खरीदने हो, फोटो स्टेट कराने हो या कार्यक्रम में चाय-पानी का इंतज़ाम तक हमें अपनी जेब से करना पड़ता है। ऐसे में साढ़े सात हजार रुपए में हमारी रोजी-रोटी बमुश्किल चल पाती है।

पुष्पा सजान टिहरी से ब्लॉक अध्यक्ष हैं। वे मंत्री रेखा आर्य से कहना चाहती हैं कि या तो उन्हें 18 हजार रुपये मानदेय दिया जाए या हटा दिया जाए। वह उग्र आंदोलन की चेतावनी देती हैं।

मंत्री रेखा आर्य को आंगनबाड़ियों के कार्य के घंटे तक नहीं पता!

देहरादून के पर्वतीय क्षेत्र चकराता ब्लॉक से आयी उमा पंवार कहती हैं कि इतने दिनों में सरकार का कोई नुमाइंदा हमसे मिलने तक आया। हमारी मंत्री यह तक नहीं जानती कि हम कितने घंटे काम करते हैं। वह कहती हैं कि तुम्हारा तीन घंटे का काम है, यदि ऐसा हो तो आप शासनादेश जारी कीजिए कि हम सिर्फ तीन घंटे काम करें, फिर हम इस मानदेय में काम करने को तैयार नहीं। फिर हमारे पर अतिरिक्त कार्य करने का समय तो होगा। ताकि हम अपनी आमदनी बढ़ा सकें।

घरबार छोड़ 50 दिनों से दे रही धरना

कालसी ब्लॉक से आई दीपा पंवार कहती हैं कि पहाड़ी क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियां ही दुरूह हैं। हमारा घर छूट रहा है। घरवाले पूछते हैं कि हड़ताल से कब लौट रहे हो। नौलापार ब्लॉक की सरोजिनी कहती हैं कि सर्वेक्षण जैसे कार्यों के लिए हम जंगलों का रास्ता तय करते हैं। कई बार जंगली जानवर का शिकार होने से बचते हैं। वह बताती हैं कि 19 जनवरी को पोलियो ड्यूटी पर गई लड़की बर्फ से फिसली और सीधी खाई में जा कर गिरी।
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बच्चों को गढ़वाल में छोड़कर आयी गुड्डी देवी कहती हैं कि वे हमसे रोज़ पूछते हैं कि कब वापस आ रही हो। आप हमें लिखित में दो कि महज तीन घंटे काम करना है, हम हड़ताल खत्म कर देंगे। नहीं तो न्यूनतम मज़दूरी दो।

वर्ष 1975 में 175 रुपये भी बहुत थे, अब साढ़े सात हजार में घर नहीं चलता

वर्ष 1985 से आंगनबाड़ी का कार्य कर रही बुजुर्ग महिला बताती हैं तब 175 (100 रुपये आंगनबाड़ी के और 75 प्रौढ शिक्षा) रुपये मिलते थे। आज इतने वर्षों बाद महज साढ़े सात हजार। यहीं एक अन्य बुजुर्ग महिला हैं जो वर्ष 1975 से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के तौर पर कार्य कर रही हैं। कहती हैं कि तब 175 रुपये में गुजारा हो जाता था। महंगाई इतनी नहीं थी। लेकिन आज साढ़े सात हज़ार में घर नहीं चलता।

यहां बैठी हर महिला अपने हिस्से की मुश्किलें बताना चाहती हैं। इन पर परिवार चलाने की पूरी जिम्मेदारी है। महिला बाल विकास मंत्री रेखा आर्य के बयान से वे विचलित हैं और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के रवैये से गुस्सा। खाली हाथ अपने घरों को लौटना नहीं चाहती।  

आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की सेवाएं की जा रही समाप्त

राज्य की महिला सशक्तिकरण विभाग की निदेशक झरना कामठान कहती हैं जिला कार्यक्रम अधिकारी को ये अधिकार दिया गया है कि वे आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को रखें या हटाएं। इन्हें प्रतिदिन के हिसाब से वेतन मिलता है। लंबे समय से हड़ताल पर होने की वजह आंगनबाड़ी केंद्रों का कामकाज प्रभावित हो रहा है।

सरकार की बहुत सारी योजनाएं प्रभावित हो रही हैं। इसलिए रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, चमोली, पौड़ी से कुछ-कुछ आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को हटाया गया है। काम पर वापस न लौटने समेत कुछ अन्य मामलों को लेकर ये कार्रवाई की गई है।

मानदेय बढ़ाने को तैयार नहीं सरकार

झरना कामठान बताती हैं कि मानदेय को छोड़कर इनकी अन्य मांगें पूरी कर दी गईं हैं। उत्तराखंड में आंगनबाड़ियों को पहले ही अन्य यूपी-हिमाचल समेत राज्यों की तुलना में अधिक मानदेय मिलता है, इसलिए उनकी ये मांग पूरी नहीं की जा सकेगी। उनके मुताबिक आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का रोजाना 4-5 घंटे काम निर्धारित है। हालांकि अतिरिक्त कार्यों के लिए उन्हें कुछ समय देना पड़ सकता है। जबकि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताएं कहती हैं कि वे उन्हें सात घंटे रोज काम करने ही होते हैं इसके अलावा किसी भी समय उनसे कामकाज की रिपोर्ट तलब कर ली जाती है। उनका कोई समय निर्धारित ही नहीं है।

झरना कहती हैं कि आंगनबाड़ी केंद्र बंद चल रहे हैं, हमारे पास उन्हें हटाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। वे जानकारी देती हैं कि कार्यकर्ताओं को तीन महीने का वेतन एक साथ देते हैं, इसे भी हर माह देने की कोशिश की जा रही है। आंगनबाड़ियों की शिकायत है कि इन्हें उधार लेकर टेक होम राशन बांटना पड़ता है, महिला सशक्तिकरण विभाग की निदेशक मानती हैं कि बजट देर से जारी होने की वजह से उधार लेना पड़ता है लेकिन बाद में भुगतान कर दिया जाता है। उनकी कोशिश है कि इन मुश्किलों का हल निकाला जा सके।  

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