NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
उत्तराखंड: वन अधिकारियों के तबादले, कार्बेट प्रकरण और प्रधानमंत्री का ड्रीम प्रोजेक्ट
“.....ये कम से कम 150 करोड़ रुपये का घोटाला है। जब ये सारे जांच और तथ्य ऑन रिकॉर्ड हैं। तो आरोपी व्यक्ति पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। ये दुर्भाग्य की बात है। राजीव भरतरी ने प्रमुख रहते हुए मामले की जांच के आदेश दिए और उनका तबादला कर दिया गया। ऐसा लग रहा है कि जिन्होंने इस मामले की निष्पक्ष जांच चाही, उस पर ही कार्रवाई की गई हो”।
वर्षा सिंह
03 Dec 2021
Uttarakhand
कार्बेट टाइगर रिजर्व का पाखरो रेंज जहां टाइगर सफ़ारी प्रस्तावित है, तस्वीर क्रेडिट कालागढ़ टाइगर रिजर्व डॉट इन

उत्तराखंड वन विभाग में इन दिनों बड़ी हलचल मची हुई है। कार्बेट टाइगर रिजर्व में अवैध रूप से पेड़ों के कटान और उसके बाद वन अधिकारियों के तबादले में हुई विसंगतियां कई सवाल खड़े कर रही हैं। कैंपा फंड के दुरुपयोग का मामला भी सामने आ रहा है। तबादलों को लेकर आईएफएस एसोसिएशन पहली बार मुखर हुआ। एसोसिएशन की आपत्ति के बाद एक हफ्ते के भीतर ही कुछ तबादले निरस्त कर दिए गए।

25 नवंबर को उत्तराखंड वन विभाग के प्रमुख राजीव भरतरी समेत 30 वन अधिकारियों के तबादले किए गए। नियमित तबादलों के साथ ही कार्बेट टाइगर रिजर्व में टाइगर सफ़ारी के नाम पर अवैध रुप से काटे गए पेड़ों के मामले में बड़ी कार्रवाई के तौर पर देखा जा रहा था। लेकिन इन तबादलों में कई असमान्यताएं दिखाई दे रही थीं, जो पूरी प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर रही थीं।

वन विभाग के प्रमुख (हॉफ) राजीव भरतरी को उनका कार्यकाल पूरा होने से पहले ही पद से हटाकर जैव-विविधता बोर्ड अध्यक्ष पद की ज़िम्मेदारी दे दी गई। ये फ़ैसला चौंकाने वाला रहा। सामान्य तौर पर हॉफ का कार्यकाल 2 वर्ष का होता है। लेकिन भरतरी को 11 महीने पर हटा दिया गया। माना गया कि कार्बेट टाइगर रिजर्व (सीटीआर) में पेड़ों के अवैध कटान और अवैध निर्माण मामले में ये कार्रवाई की गई। जबकि सीटीआर के निदेशक अपने पद पर बने हुए हैं। सामान्य प्रक्रिया में कार्बेट में हुई किसी गड़बड़ी पर उसके निदेशक और फिर मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक की ज़िम्मेदारी निर्धारित होती है।

राजीव भरतरी ने कार्बेट प्रकरण की जांच आईएफएस अधिकारी और मैगसेसे अवार्ड विजेता संजीव चतुर्वेदी को सौंपी थी। लेकिन संजीव चतुर्वेदी ने इस मामले में जांच से इंकार कर दिया था। जिसके बाद अन्य अधिकारी वन संरक्षक बीके गांगटे ने भी जांच से इंकार कर दिया। तबादले से एक दिन पहले ही भरतरी ने अपर प्रमुख मुख्य वन संरक्षक प्रशासन कपिल लाल को इस मामले में आरोप पत्र का आलेख उपलब्ध कराने को कहा था।

तबादलों की सूची देखकर ये सवाल भी पूछा जा रहा है कि जिस मामले पर वन विभाग के प्रमुख को हटा दिया गया, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक जेएस सुहाग से ज़िम्मेदारी वापस ले ली गई, लेकिन सीटीआर के निदेशक का तबादला क्यों नहीं हुआ?

कार्बेट प्रकरण में पेड़ों के अवैध कटान के आरोप कालागढ़ रेंज में तैनात डीएफओ किशन चंद पर हैं। नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी (एनटीसीए) ने भी अपनी जांच में डीएफओ की भूमिका संदिग्ध पाई थी। एनटीसीए ने अपनी रिपोर्ट में डीएफओ पर सरकारी दस्तावेज में जालसाजी के आरोप भी लगाए। डीएफओ के खिलाफ जांच की मांग को लेकर स्थानीय पर्यटन कारोबारी भी विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं। किशन चंद को प्रशासनिक आधार पर विभाग प्रमुख कार्यालय से सम्बद्ध किया गया है।

लेकिन ख़बर ये है कि किशन चंद तबादला आदेश आने के बाद भी पुराने पद पर काम कर रहे हैं। किशन चंद की जगह जिनका तबादला किया गया है, उन्होंने भी अभी तक चार्ज लेने की कोशिश नहीं की। ऐसा कैसे संभव है? ये जांच का विषय है। नाम न छापने की शर्त पर एक वरिष्ठ वन अधिकारी ने ये जानकारी दी। कार्बेट प्रकरण को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने वाले वकील गौरव बंसल भी इसकी पुष्टि करते हैं।

1 दिसंबर को शासन ने कुछ वन अधिकारियों के तबादले निरस्त किए।

25 नवंबर को तबादले के आदेश में वन अधिकारी एके गुप्ता को शिवालिक सर्किल का कंजर्वेटर ऑफ फॉरेस्ट बनाया गया। शिवालिक सर्किल सबसे ज्यादा संवेदनशील वन क्षेत्र है। देहरादून और हरिद्वार के वन इसके अंदर आते हैं। एके गुप्ता पर डीएफओ रहते हुए चंपावत में हज़ारों पेड़ अवैध रूप से काटे जाने का आरोप था। इसकी जांच अभी जारी है। इस मामले की जांच आईएफएस संजीव चतुर्वेदी ने की थी और करीब 200 पेज की रिपोर्ट वन विभाग को सौंपी दी। जांच के दायरे में घिरे अधिकारी को शिवालिक सर्किल जैसे संवेदनशील क्षेत्र की जिम्मेदारी देने पर सवाल उठे। 1 दिसंबर 2021 को जिन 6 वन अधिकारियों के तबादले रोके गए, उनमें एके गुप्ता भी शामिल हैं। नए आदेश में उन्हें देहरादून में भूमि सर्वेक्षण निदेशालय में वन संरक्षक के पद पर तैनाती दी गई है।

1 दिसंबर को जारी आदेश में कैडर को दरकिनार कर पोस्टिंग देने वाले आदेश को आंशिक तौर पर दुरुस्त किया गया है। आईएफएस कैडर की पोस्ट पर नॉन कैडर या प्रमोटेड को ज़िम्मेदारी नहीं दी जाती, जब तक कि उन्हें आईएफएस का कैडर न मिल गया हो। वन विभाग में परंपरा ये है कि युवा अधिकारियों की तैनाती फील्ड में की जाती है। ताकि अपने कार्यकाल की शुरुआत में वे फील्ड की जानकारी ले सकें।

 25 नवंबर को किए गए तबादलों में वरिष्ठता क्रम की अनदेखी पर भी आईएफएस एसोसिएशन ने सवाल उठाए थे। जिसके बाद शासन ने 6 अधिकारियों के तबादलों में संशोधन किया।

 “आरोपी पर एक्शन नहीं, जांच बिठाने वाले पर कार्रवाई”

अधिवक्ता गौरव बंसल इन तबादलों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं “ये जो कुछ भी हो रहा है बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। एनटीसीए और फिर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की कमेटी ने कार्बेट प्रकरण की जांच की। दोनों ही टीमों ने माना कि कालागढ़ के डीएफओ अवैध कटान के मामले में ज़िम्मेदार हैं। उन पर सरकारी दस्तावेजों में भी हेरफेर के आरोप हैं। इसके साथ-साथ इस मामले में बड़ी वित्तीय हेरफेर भी हुई है। ये कम से कम 150 करोड़ रुपये का घोटाला है। जब ये सारे जांच और तथ्य ऑन रिकॉर्ड हैं। तो आरोपी व्यक्ति पर कोई एक्शन नहीं लिया गया। ये दुर्भाग्य की बात है। राजीव भरतरी ने प्रमुख रहते हुए मामले की जांच के आदेश दिए और उनका तबादला कर दिया गया। ऐसा लग रहा है कि जिन्होंने इस मामले की निष्पक्ष जांच चाही, उस पर ही कार्रवाई की गई हो”।

कैंपा फंड की जांच हो

कार्बेट में जो अवैध निर्माण कराए जा रहे थे, उसका फंड कहां से आया?  नाम न छापने की शर्त पर वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं “कैंपा फंड (कॉमपनसेटरी एफॉरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी) में कई अनियमितताएं रही हैं। इस वित्त वर्ष में कैंपा में 700 करोड़ रुपए आए। इसमें से 500 करोड़ रुपए अगले 4 महीने में खर्च होने हैं। कैंपा का पैसा जिस तरह खर्च हो रहा है, उसके प्रॉसिजर पर सवाल है। कैंपा में क्या हो रहा है, उस पर कोई कुछ नहीं कह रहा। कार्बेट में जो निर्माण चल रहा था, उसका बड़ा हिस्सा कैंपा और कुछ कार्बेट फाउंडेशन से खर्च किया जा रहा था। लेकिन पैसा सही प्रॉसिजर से नहीं आया”।

पीएम के ड्रीम प्रोजेक्ट के नाम पर कार्बेट में क्या हुआ?

कार्बेट टाइगर रिजर्व के बफ़र ज़ोन पाखरो में टाइगर सफारी के लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय से 163 पेड़ों के काटने की अनुमति मिली थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में डिस्कवरी चैनल के मैन वर्सेस वाइल्ड शो की शूटिंग के दौरान यहां टाइगर सफ़ारी बनाने की घोषणा की थी। इसके लिए 106 हेक्टेअर ज़मीन चिन्हित की गई।

सितंबर 2021 में एनटीसीए की टीम यहां दौरे के लिए आई और पाया कि प्रोजेक्ट के लिए चिन्हित पेड़ों की जगह कई गुना अधिक पेड़ काटे गए। एनटीसीए के आरोप थे कि संरक्षित क्षेत्र से तकरीबन 10,000 पेड़ काटे गए। इसके अलावा सड़क समेत अवैध निर्माण भी किए गए।

 अधिवक्ता और एक्टिविस्ट गौरव बंसल ने अगस्त में एनटीसीए में याचिका दी थी कि कार्बेट में सफ़ारी के नाम पर 10 हज़ार पेड़ काटे गए हैं। ये क्षेत्र कालागढ़ रेंज में आता है। जिसके डीएफओ किशनचंद रहे।

हालांकि टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक अधिकारी जानते थे कि इस प्रोजेक्ट के लिए 10 से 12 हजार पेड़ काटने पड़ेंगे।

ये मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। 26 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी गठित कर उत्तराखंड वन विभाग से इस पूरे मामले की जांच रिपोर्ट मांगी।

कार्बेट प्रकरण की जांच अभी जारी है।

इस रिपोर्ट के लिए संवाददाता ने कार्बेट के निदेशक राहुल और कैंपा के सीईओ जेएस सुहाग से भी प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की। कई बार रिंग जाने के बावजूद फ़ोन नहीं उठा।

देहरादून से स्वतंत्र पत्रकार वर्षा सिंह

UTTARAKHAND
Uttarakhand forest
Uttarakhand Forest Department
Corbett Tiger Reserve
Narendra modi
Modi government
BJP

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति


बाकी खबरें

  • hisab kitab
    न्यूज़क्लिक टीम
    लोगों की बदहाली को दबाने का हथियार मंदिर-मस्जिद मुद्दा
    20 May 2022
    एक तरफ भारत की बहुसंख्यक आबादी बेरोजगारी, महंगाई , पढाई, दवाई और जीवन के बुनियादी जरूरतों से हर रोज जूझ रही है और तभी अचनाक मंदिर मस्जिद का मसला सामने आकर खड़ा हो जाता है। जैसे कि ज्ञानवापी मस्जिद से…
  • अजय सिंह
    ‘धार्मिक भावनाएं’: असहमति की आवाज़ को दबाने का औज़ार
    20 May 2022
    मौजूदा निज़ामशाही में असहमति और विरोध के लिए जगह लगातार कम, और कम, होती जा रही है। ‘धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना’—यह ऐसा हथियार बन गया है, जिससे कभी भी किसी पर भी वार किया जा सकता है।
  • India ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेता
    20 May 2022
    India Ki Baat के दूसरे एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, भाषा सिंह और अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेताओं की। एक तरफ ज्ञानवापी के नाम…
  • gyanvapi
    न्यूज़क्लिक टीम
    पूजा स्थल कानून होने के बावजूद भी ज्ञानवापी विवाद कैसे?
    20 May 2022
    अचानक मंदिर - मस्जिद विवाद कैसे पैदा हो जाता है? ज्ञानवापी विवाद क्या है?पक्षकारों की मांग क्या है? कानून से लेकर अदालत का इस पर रुख क्या है? पूजा स्थल कानून क्या है? इस कानून के अपवाद क्या है?…
  • भाषा
    उच्चतम न्यायालय ने ज्ञानवापी दिवानी वाद वाराणसी जिला न्यायालय को स्थानांतरित किया
    20 May 2022
    सर्वोच्च न्यायालय ने जिला न्यायाधीश को सीपीसी के आदेश 7 के नियम 11 के तहत, मस्जिद समिति द्वारा दायर आवेदन पर पहले फैसला करने का निर्देश दिया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License