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उत्तराखंड : “लॉकडाउन है तो क्या हुआ, अभिभावकों को फीस तो भरनी ही पड़ेगी”
राज्य सरकार ने लॉकडाउन के दौरान मार्च में जारी अपने आदेश को बदल दिया है और स्कूलों को हर महीने फीस लेने की अनुमति दे दी है। अब इसी की आड़ में बहुत से निजी स्कूलों ने अभिभावकों पर मनमाना दबाव बनाना शुरू कर दिया है।
वर्षा सिंह
27 Apr 2020
उत्तराखंड

उत्तराखंड के निजी स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के अभिवावकों को कोरोना संकट में अऩ्य मुश्किलों के साथ स्कूल फीस भरने की चिंता भी सताने लगी है। राज्य सरकार ने लॉकडाउन के दौरान मार्च में जारी अपने आदेश को बदल दिया है और स्कूलों को हर महीने फीस लेने की अनुमति दे दी है। बच्चों के बेहतर भविष्य की उम्मीद में अपनी जेब से बढ़कर फीस देने वाले अभिभावक परेशान हैं कि अभी तो राशन का संकट नहीं निबटा, स्कूलों की फीस कैसे भरेंगे।

सरकार ने बदला फ़ैसला, फीस लेने की दी अनुमति

25 मार्च का अपना फैसला पलटते हुए 22 अप्रैल को शिक्षा विभाग के सचिव आर. मीनाक्षी सुंदरम ने शासनादेश जारी किया। जिसमें कहा गया कि राज्य के सभी स्कूलों में स्थिति सामान्य होने तक और विद्यालयों के खुलने तक फीस लेने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई गई थी। लेकिन बहुत से निजी शिक्षण संस्थान छात्र-छात्राओं से फीस न मिलने पर शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों को वेतन देने में असमर्थता जता रहे हैं। जिससे शिक्षकों और कर्मचारियों के आगे आर्थिक समस्या खड़ी हो गई है। इसलिए सभी विद्यालयों में ऐसे अभिवावकों से फीस ली जा सकती है जो स्वेच्छा से फीस जमा करना चाहते हैं। ये भी कहा गया कि फीस सिर्फ एक महीने की ही ली जाएगी, कोई एडवांस फीस नहीं लेनी है, न ही फीस में बढ़ोतरी करनी है। यदि किसी छात्र-छात्रा के अभिवावक फीस जमा करने की स्थिति में नहीं हैं तो स्थिति सामान्य होने तक उन्हें फीस जमा करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

स्कूल फीस लेने संबंधित शासनादेश_1.jpeg

फीस के मुद्दे पर नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका

निजी स्कूलों के दबाव में ये शासनादेश आने के बाद देहरादून के विद्यालयों ने फीस की मांग शुरू कर दी। बल्कि कुछ स्कूलों ने तो फीस बढ़ोतरी का संदेश भी अभिवावकों को व्हाट्सएप कर दिया। नेशनल एसोसिएशन फॉर पैरेंट्स एंड स्टूडेंट्स राइट्स संस्था के अध्यक्ष आरिफ़ ख़ान कहते हैं कि निजी स्कूलों ने न सिर्फ अभिभावकों को फीस जमा करने के लिए मैसेज करने शुरू कर दिए, बल्कि ट्रांसपोर्ट चार्ज, बिल्डिंग फंड, अदर ड्यूज, एक्टिविटी चार्ज, कम्प्यूटर चार्ज, लाइब्रेरी चार्ज भी मांगे गए। साथ ही अभिभावकों को अपनी बंधी-बंधाई किताबों की दुकानों पर जाने को कहा गया और कुछ स्कूलों ने तो स्कूल से आकर भी किताबें ले जाने के मैसेज कर डाले। उनकी संस्था को शिकायत मिली कि इस लॉकडाउन के बीच बहुत से स्कूलों ने फीस भी बढ़ा दी। संस्था ने नैनीताल हाईकोर्ट में ऑनलाइन जनहित याचिका भी डाली है। जिसमें कहा गया है कि जो लॉकडाउन खुलने तक स्कूल फीस न लें। जो सरकारी कर्मचारी हैं उनसे सिर्फ मासिक ट्यूशन फीस ली जाए।

अभिवावकों को फीस हर हाल में देनी होगी

प्रिंसिपल प्रोग्रेसिव स्कूल एसोसिएशन के तहत राज्य के 117 स्कूल आते हैं। एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम कश्यप कहते हैं कि हमने फीस नहीं बढ़ायी है, लेकिन अभिभावकों को पुरानी फीस हर हाल में देनी ही होगी। स्कूल सिर्फ ट्यूशन फीस क्यों नहीं लेते? इस सवाल पर प्रेम कश्यप कहते हैं कि बिल्डिंग की देखरेख, लाइब्रेरी समेत सभी खर्च स्कूल फीस का ही हिस्सा हैं। सालाना शुल्क अभिभावक बाद में जमा कर सकते हैं लेकिन वो भी जमा करना ही होगा। उनके मुताबिक स्कूल यदि फीस नहीं लेंगे तो शिक्षक, कर्मचारियों का भुगतान कैसे करेंगे। प्रेम कश्यप कहते हैं कि लोगों ने खुद ही मान लिया कि जब स्कूल बंद है तो फीस नहीं देनी पड़ेगी। उनके मुताबिक यदि लॉकडाउन के चलते कोई फीस देने की स्थिति में नहीं है तो वो प्रधानाचार्य से बात कर सकता है और स्कूल खुलने पर पीछे के तीन महीनों की फीस अगले तीन महीनों में दे सकता है।

सिर्फ़ ट्यूशन फीस ही लें स्कूल

मोबाइल पर तीन-तीन घंटे ऑनलाइन पढ़ाई से परेशान अभिवावक कहते हैं कि स्कूल यदि ट्यूशन फीस भी लेते तो ठीक था। मोबाइल पर चल रही पढ़ाई ने पहले ही मुश्किल कर रखी है। हम बच्चों को फोन से दूर रखने की मशक्कत करते थे। अब बच्चे तीन-तीन घंटे फोन पर ऑनलाइन कक्षाओं से जूझ रहे हैं। फिर उसके बाद माता-पिता को ही पढ़ाना होता है। ऐसे में स्कूलों के पूरी फीस लेने की बात सही नहीं लगती। एक अभिभावक ने बताया कि उनके स्कूल ने लॉकडाउन से पहले ही फीस बढ़ा दी थी और वे बढ़ी हुई फीस का भुगतान कर चुके हैं, ऐसे में स्कूल क्या पैसे लौटाएंगे?

बंद फैक्ट्रियां अपने कर्मचारियों को वेतन देंगी तो स्कूल क्यों नहीं

वहीं एक अन्य अभिभावक कहते हैं कि जब फैक्ट्रियां बंद हैं और वे अपने कर्मचारियों को वेतन दे रहे हैं। व्यापारिक संस्थानों को कर्मचारियों का वेतन न काटने के आदेश दिए गए हैं। होटल समेत अन्य संस्थाओं को कर्मचारियों की छंटनी न करने और वेतन न काटने को कहा गया है तो स्कूल क्या इससे अलग हैं। जो लोग किरायेदारों से किराया नहीं ले रहे और अपने कर्मचारियों को वेतन दे रहे हैं, पहले से मुश्किल उठा रहे ऐसे मां-बाप पर क्या स्कूल फीस भारी नहीं पड़ेगी। क्या फैक्ट्रियों और अन्य वाणिज्यिक संस्थानों की तरह महंगी फीस वसूलने वाले स्कूल अपने कर्मचारियों का दो महीने का खर्च नहीं उठा सकते।

वेबसाइट पर बैलेंस शीट अपलोड करें निजी स्कूल

भाजपा के नेता कुंवर जपेंद्र सिंह कहते हैं कि स्कूलों की ओर से चल रही ऑनलाइन पढ़ाई के लिए अभी न तो बच्चे न ट्रेंड हैं, न ही शिक्षक। इसके आधार पर स्कूल फीस नहीं वसूल सकते। उन्होंने कहा कि फीस अधिनियिम के तहत उत्तराखंड सरकार फीस से जुड़े फैसले लेने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है। फिर जब प्रधानमंत्री तक अपील कर रहे हैं कि आप सभी स्कूलों से फीस माफी सुनिश्चित कराएं, ऐसे में सरकार स्कूलों को फीस लेने की छूट देती है तो ये सही नहीं है। वह कहते हैं कि राज्य के 15 लाख के करीब अभिभावक इससे प्रभावित होंगे और करीब 60 प्रतिशत मध्यम वर्ग से आते हैं।

जपेंद्र सिंह कहते हैं कि यदि स्कूल शिक्षकों और कर्मचारियों के वेतन दे पाने में असमर्थता जताते हैं तो उनके बैलेंस शीट की जांच होनी चाहिए। उनका आईटीआर चेक होना चाहिए। सभी स्कूलों को अपनी वेबसाइट पर फीस वसूली और जमा-खर्च का हिसाब अपलोड करना चाहिए। ताकि पारदर्शिता बनी रहे। उनके मुताबिक करोड़ों रुपये कमाने वाले स्कूल आज शिक्षकों-कर्मचारियों के वेतन का रोना रो रहे हैं। वह कहते हैं कि राजस्थान, हिमाचल और उत्तर प्रदेश में भी मनमानी फीस पर अंकुश लगाने की कोशिश की जा रही है। उत्तराखंड में भी इसकी जरूरत है।

फिलहाल तो उत्तराखंड में अभिभावकों को फीस जमा करनी ही होगी, नहीं तो स्कूल अपने शिक्षकों और कर्मचारियों को वेतन का भुगतान नहीं करेंगे। 

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