NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
नज़रिया
स्वास्थ्य
भारत
पहाड़ों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी, कैसे तीसरी लहर का मुकाबला करेगा उत्तराखंड?
उत्तराखंड के लोगों के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए मात्र 17% सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और 41% बाल रोग विशेषज्ञ उपलब्ध हैं। महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर राज्य की स्थिति और अधिक बिगड़ी हुई है। राज्य में मात्र 36 प्रतिशत स्त्रीरोग विशेषज्ञ मौजूद हैं। इनमें भी ज्यादातर मैदानी ज़िलों में हैं।
वर्षा सिंह
01 Sep 2021
Women
पौड़ी जिले की महिलाऐं (फोटो-वर्षा सिंह)

उत्तराखंड के सभी 13 ज़िलों में 493 विशेषज्ञ डॉक्टर काम कर रहे हैं, जबकि 654 पद खाली हैं। यानी मात्र 43 % विशेषज्ञ डॉक्टर ही राज्य में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। आरटीआई के ज़रिये मिली जानकारी में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने ये जानकारी दी। ये आरटीआई देहरादून की एसडीसी फाउंडेशन ने दाखिल की थी।

कोविड-19 की तीसरी लहर का खतरा पूरी दुनिया पर मंडरा रहा है। कोरोना वायरस के अपेक्षाकृत अधिक संक्रमणशील डेल्टा प्लस वेरिएंट के मरीज़ उत्तराखंड में भी मिल चुके हैं। कोविड की दूसरी लहर में, राज्य में गांव के गांव बीमार पड़े और स्वास्थ्य सुविधाएं न होने की कीमत लोगों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। इस महामारी की तीसरी लहर से बचाव के लिए लोगों को डॉक्टर्स चाहिए। स्वास्थ्य कार्यकर्ता चाहिए। यह भी कहा जा रहा है कि कोविड की तीसरी लहर का खतरा बच्चों पर अधिक होगा।

Doctors

इस लिहाज से देखें तो उत्तराखंड के लोगों के स्वास्थ्य की निगरानी के लिए मात्र 17% सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और 41% बाल रोग विशेषज्ञ उपलब्ध हैं। महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर राज्य की स्थिति और अधिक बिगड़ी हुई है। राज्य में मात्र 36 प्रतिशत स्त्रीरोग विशेषज्ञ मौजूद हैं। इनमें भी ज्यादातर मैदानी ज़िलों में हैं।

doctors

एसडीसी फाउंडेशन के अनूप नौटियाल के मुताबिक पर्वतीय क्षेत्रों में महिलाओं की स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच पहले ही मुश्किल है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाएं से वे दरकिनार कर दी गई हैं। राज्य में फॉरेन्सिक एक्सपर्ट के 25 पद स्वीकृत हैं और मात्र एक कार्यरत है। त्वचा रोग विशेषज्ञ के 32 स्वीकृत विशेषज्ञ में से मात्र 4 कार्यरत हैं। 

doctor

बच्चों के स्वास्थ्य के मामले में राज्य के पहाड़ी जिलों में स्थिति बेहद नाजुक है। पिथौरागढ़ (8 में से 2), पौड़ी (22 में से 5), अल्मोड़ा (18 में से 4), चमोली (8 में से 1), टिहरी (14 में से 1) बालरोग विशेषज्ञ काम कर रहे हैं। इसी तरह बागेश्वर में 5 में से एक स्त्री रोग विशेषज्ञ उपलब्ध हैं। पौड़ी में 22 में 4, टिहरी में 15 में से 2 और चमोली में 9 में से 1 स्त्री रोग विशेषज्ञ मौजूद हैं। 

हरिद्वार, चमोली, नैनीताल और चंपावत में कोई सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ नहीं है। जबकि पौड़ी में 14 स्वीकृत पदों पर मात्र एक विशेषज्ञ मौजूद है।

पहाड़ के अस्पताल खाली, देहरादून के भरे

पहाड़ी और मैदानी ज़िलों में स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मौजूदगी में भारी अंतर है। ज्यादातर विशेषज्ञ डॉक्टर मैदानी ज़िलों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। उदाहरण के तौर पर पर्वतीय जिले चंपावत में नेत्र रोग विशेषज्ञ के 3 पद खाली हैं। जबकि देहरादून में 6 पदों की तुलना में 11 आई सर्जन अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

देहरादून में पैथॉलजिस्ट, ऑर्थो सर्जन, आई सर्जन, रेडियोलॉजिस्ट और बाल रोग विशेषज्ञ स्वीकृत पदों की तुलना में कहीं अधिक हैं। जबकि पहाड़ के मरीजों को अपने ज़िले में डॉक्टर नहीं मिलता और उन्हें इलाज के लिए देहरादून-हल्द्वानी भटकना पड़ता है। 

doctor

मानसिक स्वास्थ्य का कैसे रखेंगे ख्याल?

उत्तराखंड में मनोचिकित्सक की सख्त कमी है। राज्य में कुल 28 स्वीकृत पद हैं। जिस पर सिर्फ 4 मनो चिकित्सक कार्यरत हैं। उसमें से भी तीन अकेले देहरादून में है और एक नैनीताल में। राज्य के 11 ज़िलों में कोई मनो चिकित्सक उपलब्ध नहीं है।

लोगों की मानसिक सेहत की सही देखभाल की जरूरत आज पूरी दुनिया महसूस कर रही है। कोरोना महामारी और उसके चलते लगे लॉकडाउन ने लोगों की मानसिक सेहत को प्रभावित किया है। यह भी माना गया कि इच्छाशक्ति और मानसिक मज़बूती से हम कोरोना वायरस का मुकाबला कर सकते हैं जबकि इससे डर का असर हमारे इम्यून सिस्टम को कमज़ोर बनाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कोविड-19 के समय में हम अनिश्चितता या अज्ञात का सामना कर रहे हैं। इसलिए लोगों में स्वाभाविक तौर पर डर, चिंता और तनाव बना हुआ है। हमें अपनी दिनचर्या में महत्वपूर्ण परिवर्तन करने पड़े हैं। घर से काम करने, अस्थायी बेरोजगारी, बच्चों की होम-स्कूलिंग और परिवार के अन्य सदस्यों, दोस्तों और सहकर्मियों के साथ शारीरिक संपर्क की कमी से नई स्थितियां पैदा हुई हैं। ऐसे में ये महत्वपूर्ण है कि हम अपने शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखें।

कैसे जीतेंगे कोरोना से जंग

इससे पहले न्यूज़क्लिक, उत्तराखंड में स्वास्थ्य सेवाओं की पड़ताल से जुड़ी श्रृंखला प्रकाशित कर चुका है। पौड़ी के ग्रामीणों ने बताया कि एक सफ़ाई कर्मचारी चिकित्सक की भूमिका निभा रहा है। राज्य में फिजिशियन के पदों पर डेन्टिस्ट की भर्तियां की गई हैं। अस्पतालों में स्त्री रोग विशेषज्ञ न मिलने पर गर्भवती महिलाओं को चमोली-उत्तरकाशी से देहरादून और चंपावत-बागेश्वर जैसे दुर्गम ज़िलों से हल्द्वानी आना पड़ता है। या फिर गुलदार के हमले में घायल ग्रामीणों को उनके अपने ज़िले में जरूरी इलाज नहीं मिल पाता।

कोविड की दूसरी लहर के दौरान इस वर्ष अप्रैल-मई में पहाड़ पर स्वास्थ्य सुविधाओं का कमज़ोर ढांचा सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया। उस समय उत्तराखंड सरकार ने एक वर्ष के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर स्वास्थ्य कर्मियों की भर्तियां कीं। लेकिन स्वास्थ्य विशेषज्ञों, फिजिशियन, एएनएम, नर्स, पैरा-मेडिकल स्टाफ की भारी कमी है। बिना स्वास्थ्य कर्मियों के क्या हम कोविड जैसी महामारी का मुकाबला कर सकेंगे?

कोविड के चलते राज्य में आधिकारिक तौर पर दर्ज 2300 बच्चे पर अनाथ हुए। जिनके माता या पिता, या फिर दोनों की मृत्यु हुई है। इन बच्चों को वात्सल्य योजना से जोड़ा गया। 21 वर्ष की उम्र तक इनके खाते में 3-3 हज़ार रुपये की सहायता राशि दी जाएगी। लेकिन इन बच्चों को वात्सल्य योजना से ज्यादा बेहतर स्वास्थ्य योजना की जरूरत है। 

(वर्षा सिंह देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

 

health care facilities
health sector in India
Uttrakhand
uttrakhand government

Related Stories

कोविड-19 महामारी स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में दुनिया का नज़रिया नहीं बदल पाई

कोरोना महामारी अनुभव: प्राइवेट अस्पताल की मुनाफ़ाखोरी पर अंकुश कब?

बजट 2022: क्या मिला चुनावी राज्यों को, क्यों खुश नहीं हैं आम जन

केंद्र ने आयुष-64 के वितरण के लिए आरएसएस से जुड़े संगठन सेवा भारती को नोडल एजेंसी बनाया

बदलाव: अस्पतालों को चालू करवाने के लिए बिहार के युवा चला रहे अभियान

हमारा समाज मंदिर के लिए आंदोलन करता है लेकिन अस्पताल के लिए क्यों नहीं? 

यूपी में जन स्वास्थ्य अधिकार की बात करना भी हुआ गुनाह, लखनऊ में तीन एक्टिविस्ट से मारपीट, पुलिस ने भी उन्हीं पर की कार्रवाई!

उत्तराखंड: पहाड़ के गांवों तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने के लिए हमें क्या करना होगा

दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाएं और संरचनाएं: 2013 से कितना आगे बढ़े हम

धरनास्थलों पर किसानों की वापसी, उत्तराखंड में कोविड सुनामी जैसे हालात और अन्य ख़बरें


बाकी खबरें

  • up elections
    न्यूज़क्लिक टीम
    यूपी में न Modi magic न Yogi magic
    06 Mar 2022
    Point of View के इस एपिसोड में पत्रकार Neelu Vyas ने experts से यूपी में छठे चरण के मतदान के बाद की चुनावी स्थिति का जायज़ा लिया। जनता किसके साथ है? प्रदेश में जनता ने किन मुद्दों को ध्यान में रखते…
  • poetry
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'टीवी में भी हम जीते हैं, दुश्मन हारा...'
    06 Mar 2022
    पाकिस्तान के पेशावर में मस्जिद पर हमला, यूक्रेन में भारतीय छात्र की मौत को ध्यान में रखते हुए पढ़िये अजमल सिद्दीक़ी की यह नज़्म...
  • yogi-akhilesh
    प्रेम कुमार
    कम मतदान बीजेपी को नुक़सान : छत्तीसगढ़, झारखण्ड या राजस्थान- कैसे होंगे यूपी के नतीजे?
    06 Mar 2022
    बीते कई चुनावों में बीजेपी को इस प्रवृत्ति का सामना करना पड़ा है कि मतदान प्रतिशत घटते ही वह सत्ता से बाहर हो जाती है या फिर उसके लिए सत्ता से बाहर होने का खतरा पैदा हो जाता है।
  • modi
    डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: धन भाग हमारे जो हमें ऐसे सरकार-जी मिले
    06 Mar 2022
    हालांकि सरकार-जी का देश को मिलना देश का सौभाग्य है पर सरकार-जी का दुर्भाग्य है कि उन्हें यह कैसा देश मिला है। देश है कि सरकार-जी के सामने मुसीबत पर मुसीबत पैदा करता रहता है।
  • 7th phase
    रवि शंकर दुबे
    यूपी चुनाव आख़िरी चरण : ग़ायब हुईं सड़क, बिजली-पानी की बातें, अब डमरू बजाकर मांगे जा रहे वोट
    06 Mar 2022
    उत्तर प्रदेश में अब सिर्फ़ आख़िरी दौर के चुनाव होने हैं, जिसमें 9 ज़िलों की 54 सीटों पर मतदान होगा। इसमें नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी समेत अखिलेश का गढ़ आज़मगढ़ भी शामिल है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License