NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
शिक्षा
भारत
राजनीति
मेडिकल छात्रों की फीस को लेकर उत्तराखंड सरकार की अनदेखी
इससे पहले नॉनबॉन्ड वाले छात्रों को सालाना 4 लाख रुपए फीस देनी होती थी। बॉन्ड के तहत प्रवेश लेने वाले छात्रों, जिन्हें पांच साल के लिए दुर्गम इलाकों में अपनी सेवाएं देनी होती थी, की यही फीस मात्र 50,000 रुपए होती थी। लेकिन सरकार ने इस बार बॉन्ड की सुविधा हटा दी है। अब सभी छात्रों की सालाना फीस 4 लाख रुपये ही रहेगी।
सत्यम कुमार
24 Sep 2021
Haldwani medical college students

शिक्षा प्रदान करना राज्य का मुख्य कल्याणकारी कर्तव्य है, जिसके अनुरूप चिकित्सा शिक्षा के लिए सभी राज्यों द्वारा राजकीय मेडिकल कॉलेज की स्थापना की गयी है और यदि भारत के अधिकांश राज्यों के राजकीय मेडिकल कॉलेजों में मेरिट के आधार पर चयनित होने वाले अभ्यर्थियों के लिए निर्धारित शुल्क का तुलनात्मक अध्ययन करें तो यह शुल्क न्यूनतम नौ हजार रुपये से लेकर अधिकतम डेढ़ लाख रुपये वार्षिक तक होता है। लेकिन उत्तराखंड के राजकीय मेडिकल कॉलेजों की फीस अन्य राज्य के राजकीय मेडिकल कॉलेजों की फीस की तुलना में कई गुना अधिक है। यह कहना है, फ़ीस बढ़ोतरी को लेकर लंबे समय से आंदोलन कर रहे राजकीय मेडिकल कॉलेज, उत्तराखंड के छात्रों का।

फ़ीस बढ़ोतरी के विरोध में राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी और राजकीय दून मेडिकल कॉलेज देहरादून में एमबीबीएस के छात्र पिछले करीब 1 महीने से शांति पूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं, अपने प्रदर्शन के दौरान छात्रों ने निदेशक चिकित्सा शिक्षा विभाग उत्तराखंड, सचिव चिकित्सा, स्वास्थय एवं परिवार कल्याण उत्तराखंड सचिवालय और कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी को अपनी मांग को लेकर ज्ञापन भी दिए। छात्रों के विरोध प्रदर्शन को देखते हुए प्रशासन द्वारा 24 सितम्बर को एक कैबिनेट मीटिंग होनी तय है जिसमें छात्रों को सम्भावना है कि बढ़ी फीस को लेकर कोई निर्णय लिया जाएगा। 

आंदोलन का कारण 

उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है। राज्य के पहाड़ी इलाकों (दुर्गम) में डॉक्टरों की भारी कमी को पूर्ण करने के लिए राज्य सरकार द्वारा तीनों राजकीय मेडिकल कॉलेजों में बॉन्ड और नॉनबॉन्ड की सुविधा की गयी थी। यदि छात्र बॉन्ड के तहत प्रवेश लेता है तो उस की फीस 50 हजार रुपये होती थी। लेकिन शर्त यह थी कि बॉन्ड के साथ प्रवेश लेने वाले छात्र को पांच साल के लिए दुर्गम इलाकों में अपनी सेवाएं देनी होती थी। और यदि छात्र नॉनबॉन्ड के तहत प्रवेश लेता है, तो उस को 4 लाख रुपये फीस देनी होती थी और वह अपनी सेवाएं सुगम या दुर्गम कहीं पर भी देने के लिए स्वतंत्र था। 

वर्ष 2019 के सत्र से सरकार द्वारा राज्य के दो राजकीय मेडिकल कॉलेज क्रमशः राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी और राजकीय दून मेडिकल कॉलेज देहरादून से बॉन्ड की सुविधा हटा दी गयी है। इस के पीछे यह तर्क दिया गया है कि केवल वर्ष 2018 के विद्यार्थियों से ही राज्य के सभी दुर्गम इलाकों में डॉक्टरों की कमी पूरी हो जायेगी। सरकार द्वारा बॉन्ड की सुविधा तो हटा दी गयी, लेकिन फीस का पुनः निर्धारण नहीं किया गया। सभी छात्रों की फीस 4 लाख रुपये ही रही, जबकि नॉन बॉन्ड के लिए 4 लाख रुपये फीस इस लिए रखी गयी थी ताकि छात्र राजकीय मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस कर के अपनी सेवाएं दुर्गम इलाकों में दें।

राजकीय मेडिकल कॉलेजों के छात्रों का कहना है कि अधिकांश छात्र मध्यम वर्ग व निम्न मध्यम वर्ग के परिवारों से आते हैं जिन्होंने नीट की परीक्षा पास कर मेरिट के आधार पर स्टेट कोटा या ऑल इंडिया कोटा के अंतर्गत चयन के उपरांत उत्तराखंड के राजकीय मेडिकल कॉलेजों में काउंसलिंग के माध्यम से कॉलेजों में बॉन्ड सिस्टम को देखते हुए प्रवेश लिया। इस को चुकाने में उनके अभिभावक समर्थ हैं, लेकिन राज्य सरकार द्वारा काउंसलिंग से पहले 26 जून 2019 को बॉन्ड सिस्टम को समाप्त कर दिया और एमबीबीएस की वार्षिक फीस 4 लाख रुपये वार्षिक की घोषणा कर दी गयी। जब इस समय छात्रों के द्वारा काउंसिलिंग में प्रतिभाग किया जा रहा था, इस समय छात्रों के पास यहाँ प्रवेश लेने के अतिरिक्त दूसरा कोई विकल्प नहीं था। आगे छात्र कहते हैं कि यदि समय रहते उनको फीस वृद्धि की जानकारी मिलती तो छात्र अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार ही कोई निर्णय लेते। इस सब के अतरिक्त अधिकांश छात्र राज्य के दूरस्थ स्थानों से हैं, रियायती फीस हटाने के कारण बहुत से अभिभावकों को बैंक से ऋण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है। अभिभावकों को भी उन की क्षमता के अनुसार सात से आठ लाख रुपये का लोन मिल पाता है, जबकि वर्तमान स्थिति के हिसाब कोर्स की फीस लगभग अठारह लाख रुपये से भी अधिक है। 

इसे भी पढ़ें: उत्तराखंड: पहाड़ के गांवों तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने के लिए हमें क्या करना होगा

इतनी ज्यादा फीस को लेकर उत्तराखंड सरकार में मंत्री गणेश जोशी ने  मुख्यमंत्री और उच्च शिक्षा मंत्री को पत्र  लिख करा बताया है कि 4.26 लाख रूपये फीस बहुत अधिक है जिसके चलते कुछः विधार्थियों को अपनी फीस तक छोड़नी पड़ी हैं और उन्होंने मुख्यमंत्री से मांग भी की है कि फीस को कम  किया जाए। 

कॉलेज प्रशासन का बर्ताव 

कॉलेज प्रशासन ने अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए 2019 बैच के कुछ छात्रों को हॉस्टल से निष्कासित करने के आदेश भी दे दिए। कॉलेज प्रशासन ने छात्रों पर कॉलेज की छवि खराब की, बिना अनुमति धरना देने, सुरक्षा कर्मियों से अभद्रता करने और जूनियर छात्रों पर दबाव बनाने जैसे आरोप लगाये हैं। लेकिन छात्रों का कहना है कि यह सब हमारी आवाज को दबाने के लिए किया जा रहा है। यह हमारा स्वयं का निर्णय है। “यदि निष्कासित करना है तो सभी को कीजिये”, यह कहते हुए छात्रों ने धरना शुरू किया। मामले को तूल पकड़ता देख कॉलेज प्रशासन ने निष्कासन रद्द करने का आश्वासन छात्रों के अभिभावकों को दिया।

छात्रों की मांग

छात्रों ने एमबीबीएस कोर्स की वार्षिक फीस चार लाख रुपये से घटाकर एक लाख रुपये वार्षिक करने की मांग करते हुए कहा कि राजकीय मेडिकल कॉलेजों में दी जाने वाली शिक्षा गैर व्यावसायिक और गैर लाभकारी होती है। इसलिए राजकीय शिक्षण संस्थानों को राजस्व अर्जित करने का संसाधन नहीं बनाया जा सकता है, क्योंकि शिक्षा प्रदान करना राज्य का मौलिक कर्त्तव्य है। 

फ़ीस बढ़ोतरी के विरोध में अभिभावकों का कहना है कि मात्र 10 दिन पहले हमें  फीस में बढ़ोतरी के बारे में पता चला। प्रदर्शन में शामिल एक छात्र के अभिभावक ने बताया, “एक मध्यम वर्ग के परिवार के लिए इतने कम समय में साढ़े चार लाख रुपये का इंतज़ाम करना बहुत ही मुश्किल होता है, लेकिन फिर भी कुछ कर के हम लोगों ने प्रथम वर्ष के लिए फीस जमा कराई है।  लेकिन अभी फिर वही समस्या है, लोन कराने के लिए बैंको में जाते हैं तो वहा भी बहुत दिक्क़ते आ रही हैं। ऐसे में हम अभिभावक क्या करें? आज हमारे बच्चों का भविष्य अंधकार में है! इसलिए हम लोगों ने यह तय किया है कि यह लड़ाई केवल कुछ छात्रों की नहीं है, बल्कि उत्तराखंड के प्रत्येक निवासी की है। इस आंदोलन में हम लोग पूर्ण रूप से अपने बच्चों के साथ हैं।”

स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (SFI) के उत्तराखंड राज्य अध्यक्ष नितिन मलेठा का कहना है कि छात्रों को हॉस्टल से निष्कासित करना एक कायरतापूर्ण कार्य है, जो कॉलेज प्रबंधन द्वारा छात्रों को डराने के लिए लिया गया है। प्रबंधन छात्रों को मूर्ख समझता है, इसलिए उनके प्रदर्शन करने के मौलिक अधिकार को दबाने की कोशिश कर रहा है। प्रशासन का यह रवैया संविधान विरोधी, शिक्षा विरोधी एवं स्वाधीनता विरोधी है। सस्ती-रोजगारपरक शिक्षा के लिए संघर्ष कर रहे छात्रों के मौलिक अधिकारों का हनन एसएफआई सहन नहीं करेगी। उन्होंने आगे कहा कि उनका संगठन स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया, हल्द्वानी और देहरादून के सरकारी मेडिकल कॉलेजों के छात्रों की इस मुहिम में उनके साथ तब तक खड़ा रहेगा जब तक छात्रों की सारी मांगें नहीं मां ली जाती हैं। 

मलेठा आगे कहते हैं, “हमें पूर्ण विश्वास है कि अगर छात्र निरंतर पढ़ो और संघर्ष करो की परिपाटी पर अगर आगे बढ़ते रहेंगे, तो यह आंदोलन आने वाले दिनों में जल्द ही जरूर सफल होगा।”

इसे भी पढ़ें: उत्तराखंड मेडिकल कॉलेज: बढ़ती फ़ीस, पिसते बच्चे 

बुधवार को मेडिकल कॉलेज प्रशासन की अभिभावकों के साथ बैठक हुई जिसमें  यह सहमति बनी है कि कैबिनेट मीटिंग होने तक धरना-प्रदर्शन नहीं किया जायेगा और निष्कासित किये गई छात्रों को जल्द वापिस ले लिया जाएगा । अब यह देखना होगा कि 24 सितंबर को होने वाली बैठक में सरकार छात्रों के हितों के लिए क्या निर्णय लेती हैं । 

लेखक देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं , व्यक्त विचार निजी हैं।

UTTARAKHAND
Medical students
MBBS
student protest
SFI
uttrakhand government
Pushkar Singh Dhami
BJP

Related Stories

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

आशा कार्यकर्ताओं को मिला 'ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड’  लेकिन उचित वेतन कब मिलेगा?

दिल्ली : पांच महीने से वेतन व पेंशन न मिलने से आर्थिक तंगी से जूझ रहे शिक्षकों ने किया प्रदर्शन

आईपीओ लॉन्च के विरोध में एलआईसी कर्मचारियों ने की हड़ताल

जहाँगीरपुरी हिंसा : "हिंदुस्तान के भाईचारे पर बुलडोज़र" के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

दिल्ली: सांप्रदायिक और बुलडोजर राजनीति के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन

आंगनवाड़ी महिलाकर्मियों ने क्यों कर रखा है आप और भाजपा की "नाक में दम”?

NEP भारत में सार्वजनिक शिक्षा को नष्ट करने के लिए भाजपा का बुलडोजर: वृंदा करात

‘जेएनयू छात्रों पर हिंसा बर्दाश्त नहीं, पुलिस फ़ौरन कार्रवाई करे’ बोले DU, AUD के छात्र


बाकी खबरें

  • aaj ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    धर्म के नाम पर काशी-मथुरा का शुद्ध सियासी-प्रपंच और कानून का कोण
    19 May 2022
    ज्ञानवापी विवाद के बाद मथुरा को भी गरमाने की कोशिश शुरू हो गयी है. क्या यह धर्म भावना है? क्या यह धार्मिक मांग है या शुद्ध राजनीतिक अभियान है? सन् 1991 के धर्मस्थल विशेष प्रोविजन कानून के रहते क्या…
  • hemant soren
    अनिल अंशुमन
    झारखंड: भाजपा काल में हुए भवन निर्माण घोटालों की ‘न्यायिक जांच’ कराएगी हेमंत सोरेन सरकार
    18 May 2022
    एक ओर, राज्यपाल द्वारा हेमंत सोरेन सरकार के कई अहम फैसलों पर मुहर नहीं लगाई गई है, वहीं दूसरी ओर, हेमंत सोरेन सरकार ने पिछली भाजपा सरकार में हुए कथित भ्रष्टाचार-घोटाला मामलों की न्यायिक जांच के आदेश…
  • सोनिया यादव
    असम में बाढ़ का कहर जारी, नियति बनती आपदा की क्या है वजह?
    18 May 2022
    असम में हर साल बाढ़ के कारण भारी तबाही होती है। प्रशासन बाढ़ की रोकथाम के लिए मौजूद सरकारी योजनाओं को समय पर लागू तक नहीं कर पाता, जिससे आम जन को ख़ासी दिक़्क़तों का सामना करना पड़ता है।
  • mundka
    न्यूज़क्लिक टीम
    मुंडका अग्निकांड : क्या मज़दूरों की जान की कोई क़ीमत नहीं?
    18 May 2022
    मुंडका, अनाज मंडी, करोल बाग़ और दिल्ली के तमाम इलाकों में बनी ग़ैरकानूनी फ़ैक्टरियों में काम कर रहे मज़दूर एक दिन अचानक लगी आग का शिकार हो जाते हैं और उनकी जान चली जाती है। न्यूज़क्लिक के इस वीडियो में…
  • inflation
    न्यूज़क्लिक टीम
    जब 'ज्ञानवापी' पर हो चर्चा, तब महंगाई की किसको परवाह?
    18 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में अभिसार शर्मा सवाल उठा रहे हैं कि क्या सरकार के पास महंगाई रोकने का कोई ज़रिया नहीं है जो देश को धार्मिक बटवारे की तरफ धकेला जा रहा है?
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License