NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अपराध
उत्पीड़न
कानून
भारत
राजनीति
उत्तर प्रदेश: बेअसर होते सरकार के महिला सुरक्षा अभियान!
इस बार फिर जब हाथरस हादसे की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी, एक अभियान का आगाज किया गया। उसका नाम हैं- मिशन-शक्ति। सरकार ने यह पहले ही कह दिया है कि यह अभियान 180 दिन चलेगा। लेकिन 180 दिन बाद क्या होगा सरकार ने इसका खुलासा नहीं किया है। क्या सारे महिला अपराध खत्म हो जाऐंगे?
नाइश हसन
22 Oct 2020
Yogi Adityanatha
Image courtesy: The Indian Express

सरकार जब भी औरत की बदतर होती स्थिति के बारे में फिक्रमंद दिखी, उस पर अनेकों तरह के दबाव पड़े, तो कार्रवाई के नाम पर कुछ-एक अभियान चलाए गए, छेड़-छाड़ करने वाले लड़कों को पकड़ कर सजा दी गई, प्रेमी जोडों को मुर्गा बनाया गया, उन्हें पार्क से उठा कर बाहर फेंक दिया गया, वेलेन्टाइन डे पर मिलने वाले प्रेमी जोडों को मार-कूट कर डरा-धमका कर खदेड़ा गया, और बस हो गया अभियान का ख़ात्मा।

ऐसे अभियान अनेको बार समय-समय पर देखे जाते रहे हैं। दरअसल औरत के बारे में यह सोच ही बहुत सतही सोच है। महिला अपराध को ख़त्म करने के उनके कमजोर इरादे यही दम तोड़ देते हैं, और मन की बात लबों पर आते देर नही लगती कि लड़कियों को संस्कार सिखाया जाए, उन्हें एक अच्छी संस्कारी महिला बनाया जाए, छूट देने पर वह बिगड़ जाती हैं, प्रेम में असफल होने पर बलात्कार का इल्जाम लगाती हैं, महिलाओं के लिए आइटम, टंच माल, आदि शब्द जनप्रतिनिधियों द्वारा गाहे-बेगाहे सुने जा सकते हैं। ऐसे बयान हाथरस की घटना में भी खुब सुने गए।  

ऑपरेशन मजनू, ऑपरेशन रोमियो, एंटी रोमियो स्क्वाड बनाया जाना, मिशन-शक्ति ऐसे ही अभियान हैं। उत्तर प्रदेश में ऑपरेशन मजनू 2005, 2011, 2015, 2016, में चलाया गया, अभियान की जिम्मेदारी में लगी पुलिस की टीम कोचिंग सेन्टर, माॅल, सिनेमा घरों, स्कूलों, विश्वविद्यालयों, पार्कों के सामने यूॅं तैनात दिखती थी मानो पाकिस्तान बार्डर पर सेना तैनात हो।

ऐसी तस्वीरें व वीडियो सामने आए जब पुलिस तमाम बेगुनाह लड़कों पर लाठियाॅं बरसाती थी। मेरठ, बिजनौर, बुलंदशहर, सहारनपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, वाराणसी आदि शहरों व कस्बों में इसका गम्भीर नकारात्मक असर दिखाई दिया। दहशतज़दा नौजवान लड़के-लडकियाॅं घरों से निकलने में घबराते थे। पुलिस को इस बात से सरोकार नही था कि वह किसे और क्यों मार रही है, उसे तो अभियान पूरा करना था और अपने बाॅस को रोज़ रिजल्ट देना था। जाहिर है इसमें कुछ गुनहगार भी रहे होंगे। लड़कों सहित लड़कियाॅं भी सहम गई थी, यह अभियान  लगभग 30 से 40 दिन चला था।    

2017 में उत्तर प्रदेश सरकार ने ऑपरेशन रोमियो चलाया, एन्टी रोमियो स्क्वाड बनाया गया, पुलिस को फिर जिम्मेदारी दी गई, लड़के पकड़-पकड़ लाए जाने लगे। पुलिस साथ जा रहे लड़की-लड़के को पकड़ उट्ठक-बैठक लगवाती, मारती, मुर्गा बनाती, उन्हें जेल में डालने की धमकी देती। लड़कों को गम्भीर धाराओं में जेल में ड़ाल देने की धमकी देकर उनसे 50 हजार से 3 लाख रुपये तक वसूले गए थे।

मार-पीट और वसूली के अनेकों वीडियों उस समय सामने आए। लड़कियाॅं जो अपने ब्वायफ्रेंड के साथ दिखती उन लड़कियों से पुलिस ने आपत्तिजनक व अश्लील पूछताछ भी की थी यह महिला सुरक्षा के नाम पर खाकी की दहशत थी। लड़कों-लडकियों का साथ घूमना-फिरना भी मुश्किल हो गया था, यह माॅरल पुलिसिंग प्रदेश पर भारी पड़ी और इसे भी 3 माह के अन्दर ही बन्द कर दिया गया।

जनवादी महिला संगठन लखनऊ ने इस अभियान के खिलाफ डीजीपी से मुलाकात करके इसे तुरन्त वापस लेने की माॅंग की थी। इस एंटी रोमियों अभियान में उस समय प्रदेश भर के 7 लााख 42 हजार से अधिक व्यक्तियों की चेकिंग, 1802 को पकड़ा गया, 538 लड़कों पर मुकदमें दर्ज किए और सरकार का अभियान इस तरह समाप्त हो गया, एक चीज जो नही समाप्त हुई वह थी महिलाओं के खिलाफ अपराध।

इस बार फिर जब हाथरस हादसे की गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दी, एक अभियान का आगाज किया गया। उसका नाम हैं- मिशन-शक्ति। सरकार ने यह पहले ही कह दिया है कि यह अभियान 180 दिन चलेगा। अब तक 101 गुंडों को जिला बदर कर 347 अभियुक्तों की जमानतें खारिज कराई गई है। अपर मुख्य सचिव का कहना है कि महिलाओं व बच्चियों ने अपराध करने वालों के खिलाफ इस अभियान में शिकंजा और कसा जाएगा।

मुख्यमंत्री कहते हैं गांव की बेटी सब की बेटी की परम्परा आगे बढानी है। जो बेटी गांव की नहीं है, अपनी पसन्द से विवाह करती है, अकेले रहना चाहती है, पितृसत्ता द्वारा तैयार परम्परा को मानने से इनकार करती है उसके लिए सरकार का नजरिया क्या है यह भी स्पष्ट किया जाना चाहिए।  

अब तक जितने भी अभियान चले हैं उनकी असलियत किसी से छिपी नहीं है, सभी लगभग 30 से 40 दिन के भीतर समाप्त हो गए, थानों में सीसीटीवी कैमरे, फास्ट ट्रैक कोर्ट में केस ले जाने की बात भी हर अभियान में हुई परन्तु जमीन पर ऐसा होता नज़र नहीं आया। यह बातें भी अभियान के साथ ही खत्म हो गई।

मिशन-शक्ति अभियान के 180 दिन बाद क्या होगा सरकार ने इसका खुलासा नहीं किया है। क्या सारे महिला अपराध खत्म हो जाऐंगे? या मनचली मानसिकता बदल जाएगी? लड़कियों को देखने का समाज व सरकार का नज़रिया बदल जाएगा? यह कहना मुमकिन न होगा। अभी तक की तस्वीर को देखते हुए सवाल उठता है कि क्या प्रदेश में महिलाओं की स्थिति को 30,40 या 180 दिन के किसी अभियान के माध्यम से बदला जा सकता है?

अनुभव तो यही बताते है कि ऐसा कोई साक्ष्य नही है जो यह साबित करता हो कि कठोर नियम, या अभियान चलाकर महिला अपराधों पर नियंत्रण मिला हो। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक पिछले आठ सालों में भारत में बलात्कार की घटनाएं दो गुनी हो गई है। कुल बलात्कार का 12 प्रतिशत केवल उत्तर प्रदेश में हो रहा है, जिनमें 55 प्रतिशत बच्चियों को शिकार बनाया गया है।

हाथरस की घटना के बाद भी सीतापुर में 22 साल की लड़की की कटी लाश मिली, गोंडा में दलित परिवार की तीन सगी बहनों पर सोते में तेजाब डाल दिया गया, आगरा में एक फौजी की पत्नी को पंचायत में पैर छूकर माफी न माॅंगने पर जिंदा जला दिया गया, लखनऊ में बीजेपी कार्यालय के सामने महिला का आत्मदाह, बाराबंकी में युवती से बलात्कार आदि अनेकों घटनाएं लगातार होती जा रही है।

यह सब कुछ राजसत्ता की असफलता को तो दर्शाता ही है साथ ही बताता है कि सरकार के कठोर संदेश, नियम, तथा अभियान कितने बे-असर है। खौफ पैदा करने से हालात नहीं बदलते। महिलाओं की स्थिति को बेहतर बनाने उन्हें हर तरह से सुरक्षित महसूस कराने के लिए समयबद्व अभियान की नहीं उनके प्रतिनिधित्व को हर स्थान पर बढ़ाने की जरूरत है।

सड़कों पर, संसद में, सरकारी/निजी कार्यालयों में, बाजारों में जितने अधिक सर महिलाओं के होगे महिलाएं उतनी ही सुरक्षित होगी परन्तु दुर्भाग्य यह है कि सम्पूर्ण व्यवस्था औरत को घर की तरफ ढकेलने की ही कोशिश कर रही है। जरूरत है कि हर क्षेत्र में महिला प्रतिनिधित्व को बढ़ाया जाए, उन्हें आगे बढ़ने के लिए हर क्षेत्र में आरक्षण अनिवार्य किया जाए।

वैश्विक स्तर पर जिन देशों ने ऐसा किया वहाॅं महिला अपराधों की स्थिति पर भी नियंत्रण लगाया जा सका। महिलाएं जब हर क्षेत्र में अधिक संख्या में नजर आएंगी तो आमजन की महिलाओं के प्रति बनी धारणा में भी बदलाव आएगा, व्यवस्था में विश्वास आएगा, महिला आरक्षण को 33 प्रतिशत हर क्षेत्र में कोई भी राज्य देने के लिए तैयार नही है, संसद में 33 प्रतिशत आरक्षण बहुुमत की सरकार भी पूरा नहीं कर सकी तो क्या खाली अभियान चलाने से महिलाओं की स्थिति सुधर पाएगी, ऐसी कल्पना करना भी बेमानी है।

सार्वजनिक प्राधिकरणों, कार्यालयों, व न्यायालयों में महिला प्रतिनिधित्व बेहद कम होने का असर यह भी है कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने छेडछाड़ मामले में आरोपी को 30 जुलाई 2020 को जमानत देते हुए शर्त लगाई कि वह पीड़िता से राखी बंधवाए। ऐसी शर्त लगाकर अदालत किस मानसिकता का परिचय दे रही है, पीड़िता के दर्द को महत्वहीन बना रही है।

अदालत का यह फैसला कानून के सिद्वान्त के विरूद्ध है। गुवाहाटी हाई कोर्ट ने कहा कि यदि पत्नी रिवाज के अनुसार सिंदूर लगाने चूड़ी पहनने से इनकार करती है तो माना जाएगा कि उसे शादी अस्वीकार है। मुम्बई हाई कोर्ट ने मार्च 2020 में एक केस में कहा कि यदि विधि-विधान से विवाह नहीं किया जाता तो विवाह प्रमाणपत्र का कोई मतलब नहीं रह जाता।

कोर्ट ने ठाणे के एक शख्स और उसकी गर्लफ्रेंड के चार साल पहले बनवाए गए विवाह प्रमाणपत्र को अमान्य करार दे दिया। कोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई सुबूत नहीं है जो साबित कर सके कि याचिकाकर्ता ने शादी की है, कोर्ट ने कहा कि इसमें पवित्रता और भरोसे का अभाव है। ऐसे अजीबोगरीब फैसलों का प्रभाव भी समाज पर पड़ता है। यह सोच भी पित्रसत्ता को मजबूती देती है।  

स्त्रियों की छवि किस प्रकार बनाई जाती है, इसका भी मानसिकता के निर्माण में बडा हाथ है। स्कूल में बच्चा आज भी पढ़ता है मम्मी की रोटी गोल, पापा का पैसा गोल। ऐसे चित्र भी खूब है जहाॅं भाई स्कूल जाता है बहन माॅं का हाथ बंटाती है। यूनेस्कों की एक रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं और लड़कियों को स्कूली किताबों में कम प्रतिनिधित्व दिया गया है या अगर शामिल भी किया गया है तो उन्हें पारंपरिक भूमिकाओं में ही दर्शाया गया है। महिलाओं को कम प्रतिष्ठित पेशों में दिखाया जाता है और वह भी दब्बू लोगों की तरह। पुरुषों को डाक्टर के रूप में जबकि महिलाओं को नर्सों के रूप में दिखाया जाता है।

उत्तर प्रदेश में साक्षरता और बेटियों को आगे बढ़ाने के तमाम अभियानों के बावजूद भी बाल विवाह के मामले नहीं थम रहे है। कोरोना काल में भी ऐसे मामले सामने आते रहे। क्राई संस्था की रिपोर्ट बताती है कि अप्रैल से अगस्त तक 36 बाल विवाह के केस सामने आए। पित्रसत्ता द्वारा जारी औरत को काबू में रखने के फरमान आज भी जारी है, दूसरी तरफ शार्ट कट सोच बदलने के अभियान भी चल रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश होने के बावजूद फास्ट ट्रैक कोर्ट के लिए राज्यों में पुख्ता इंतेजाम नही हुए, महिला-पुरुष बराबरी की संविधान की अवधारणा पूरी नही हुई है। जहाॅं बरेली की साक्षी दूसरी जाति में प्रेम विवाह कर लेने पर संघर्ष और भय में जीती है, वही अनेकों लड़कियाॅं लव जेहाद के नाम पर मार दी जाती है, च्वाइस मैरिज के खिलाफ पूरा समाज सड़कों पर निकल आता है, शनी शिगनापुर मंदिर में महिलाओं के लिए दरवाजे लाख कोशिशों के बाद भी बंद है, सरकार उसे आस्था बताती है।

हालात बदतर है और प्रयास बद से बदतर। नवरात्रि में कन्या को भोग लगाया जाएगा और बाद में कन्या को ही भोग बना दिया जाएगा। दलित लड़की को सवर्ण अपने शमशान घाट पर जलाने नहीं देते, दलित दूल्हे की बारात भी घोडी पर नही निकलने दी जाती। ऐसे माहौल में डरा-धमका कर, अभियान चलाकर नही महिला प्रतिनिधित्व बढ़ाकर अनिवार्य आरक्षण देकर ही हालात को बदला जा सकता है जिसका कोई और शार्टकट नही हो सकता। 

(लेखिका रिसर्च स्कॉलर व सामाजिक कार्यकर्ता हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

UttarPradesh
Yogi Adityanath
CRIMES IN UP
women safety
Hathras Rape case
Hathras
Mission Shakti
UP police

Related Stories

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

चंदौली पहुंचे अखिलेश, बोले- निशा यादव का क़त्ल करने वाले ख़ाकी वालों पर कब चलेगा बुलडोज़र?

यूपी : महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती हिंसा के विरोध में एकजुट हुए महिला संगठन

2023 विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र तेज़ हुए सांप्रदायिक हमले, लाउडस्पीकर विवाद पर दिल्ली सरकार ने किए हाथ खड़े

चंदौली: कोतवाल पर युवती का क़त्ल कर सुसाइड केस बनाने का आरोप

प्रयागराज में फिर एक ही परिवार के पांच लोगों की नृशंस हत्या, दो साल की बच्ची को भी मौत के घाट उतारा

प्रयागराज: घर में सोते समय माता-पिता के साथ तीन बेटियों की निर्मम हत्या!

उत्तर प्रदेश: योगी के "रामराज्य" में पुलिस पर थाने में दलित औरतों और बच्चियों को निर्वस्त्र कर पीटेने का आरोप

कौन हैं ओवैसी पर गोली चलाने वाले दोनों युवक?, भाजपा के कई नेताओं संग तस्वीर वायरल


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License