NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
कोरोना में गांवः संदेह और बेकारी में रामराज्य!
कोरोना के भय और रहस्य से उबरने के लिए अलग-अलग चर्चाएं और उनसे निर्मित संदेह जारी हैं। हालांकि कोरोना काल के आरंभ में ज्यादातर युवाओं की जो चिंता पहले महामारी के भयानक स्वरूप को लेकर थी, वही बाद में बेरोज़गारी पर केंद्रित होती जा रही है।

अरुण कुमार त्रिपाठी
24 Aug 2020
कोरोना में गांवः संदेह और बेकारी में रामराज्य!

अयोध्या से 35 किलोमीटर उत्तर पूर्व स्थित बस्ती जिले का एक गांव। गांव की सड़क हसीनाबाद बाजार तक जाती है। यह एक तिराहा है जिसका नाम वहां कभी बैठने वाली एक तवायफ के नाम पर पड़ा था। बाद में लोगों ने उस नाम से पीछा छुड़ाने की लाख कोशिश की पर वह छुड़ा नहीं पाए। हालांकि लिखने पढ़ने में वह नाम कहीं नहीं है। उसी के इर्द गिर्द बसी हैं दुकानें, खड़ा है एक विद्यालय और ठीक तिराहे पर है पुलिस की चौकी। पड़ोस के पेट्रोल पंप से लेकर यहां तक की तमाम दुकानों और बिजली के खंभों पर राम मंदिर के शिलान्यास में बांटा गया ‘नारंगी’ रंग का जय श्रीराम का भगवा ध्वज लहरा रहा है। इसी परिवेश में सुबह की सूनी सड़क पर युवाओं की एक टोली गले में लाल और गेरुआ गमछा डाले या उसे सिर पर बांधे चली जा रही है। सुबह जब इस सड़क पर ट्रकों और गाड़ियों की भीड़ नहीं होती तो यह टोली वहीं लेट कर व्यायाम करती है और फौज में भरती होने की तैयारी के लिए दौड़ लगाती है।

यह टोली बगल के गांव के दो आंबेडकरवादी किशोरों को मारने गई थी लेकिन कुछ वरिष्ठ लोगों के समझाने पर धमका कर लौट आई। उन आंबेडकरवादी किशोरों ने डॉ. भीमराव आंबेडकर के ग्रंथ `रिडल्स इन हिंदुइज्म’ और रामस्वरूप वर्मा के तुलसीकृत रामचरितमानस पर केंद्रित विमर्श के प्रभाव में फेसबुक पर एक पोस्ट डाल दी थी। पोस्ट में अयोध्या में रामजन्मभूमि की जगह पर बौद्धस्थल होने का दावा था और राम द्वारा सीता को वनवास दिए जाने पर सवाल उठाए गए थे। बाद में पुलिस ने उन आंबेडकरवादी किशोरों को `समझा बुझाकर’ मामले को शांत किया। हालांकि कोरोना काल के आरंभ में ज्यादातर युवाओं की जो चिंता पहले महामारी के भयानक स्वरूप को लेकर थी, वही बाद में बेरोजगारी पर केंद्रित होती जा रही है। वे सोचने लगे हैं कि अगर सेना की भर्ती का समय बढ़ा दिया गया तो उनकी उम्र निकल जाएगी और फिर उनका सेना का करियर नहीं बन पाएगा।

इस बीच कोरोना के भय और रहस्य से उबरने के लिए अलग- अलग चर्चाएं और उनसे निर्मित संदेह जारी हैं। यह वही संदेह है जो आरंभ में तब्लीगी जमात के आधार पर बनाया गया था। बगल के एक मुस्लिम बहुल गांव पर लोगों का शक बना हुआ है। उस गांव के 12 लोगों को मेडिकल और पुलिस प्रशासन का स्टाफ कोरोना के शक में ले गया था। वे लोग 14 दिन तक क्वारंटीन भी रहे। लेकिन सारे लोगों का टेस्ट निगेटिव निकला और वे वापस आ गए। उनमें से कुछ लोगों का मानना है गांव के प्रधान ने उन्हें फर्जी से तरीके से फंसाने के लिए यह कदम उठाया। वे लोग प्रधान निजामुद्दीन (बदला हुआ नाम) से बहुत नाराज थे। अन्य समुदाय के लोग आरोप लगाते हैं कि उस गांव के लोग अब भी मास्क नहीं पहनते और इस बीमारी के अस्तित्व से ही इनकार करते हैं। हालांकि प्रकट रूप से कोई कुछ भी कहने को तैयार नहीं है लेकिन शुरू में बहुसंख्यक समाज के लोगों ने अल्पसंख्यकों को दुकानों से सामान देने से इनकार  किया था। जबकि मुंबई में भंगार (कबाड़) का काम करने वाले और आजकल बेकार बैठे जान मोहम्मद कहते हैं कि साहब जो महामारी पूरी दुनिया में फैली है। जिससे ईसाई, मुस्लिम और दूसरे सभी देश पीड़ित हैं ऐसे में उसके होने से कोई कैसे इनकार कर सकता है।

कोरोना महामारी के संदेह में बहुसंख्यक समाज के एक परिवार के दस लोगों को क्वारंटीन किया गया। आशा कार्यकर्ताओं ने आकर गांव में छानबीन की तो एक परिवार के दो लोग पाजिटिव निकले। उन्हें बस्ती के कैली अस्पताल भेजा गया। जबकि आठ लोगों को संदेह में भानपुर के क्वारंटीन केंद्र भेजा गया। उन्हें वहां खाने पीने की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। यह तो कहिए कि पड़ोस में कोई परिचित निकल आए जो उन्हें घर का खाना पहुंचा देते थे वरना उन्हें उपवास ही करना पड़ता। अब पूरा परिवार कोरोना निगेटिव का प्रमाण पत्र लेकर आ गया है और कुछ ज्यादा आत्मविश्वास से घूमने टहलने और अपना काम करने में लग गया है। लेकिन बहुसंख्यक समाज के लोग भी इस बीमारी के होने पर शक जता रहे हैं। उनका मानना है कि अस्पताल वाले अभी अच्छी कमाई कर रहे हैं। जब वैक्सीन बन जाएगी तब उनकी कमाई और बढ़ेगी। इस दौरान दवा कंपनियों की भी चांदी है। ऐसे भी लोग हैं जो बिना मास्क लगाए और किसी प्रकार की दूरी की परवाह न करते हुए यह कहते रहते हैं कि उन्हें कोरोना नहीं होगा। जब ऐसी कोई बीमारी ही नहीं है तो डरना क्या। यानी बीमारी पर संदेह जताने वालों में  अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक दोनों समाज के लोग हैं। डर से उबरने के इस मनोविज्ञान को समझे बिना इसे सांप्रदायिक रूप देने वालों की सक्रियता दोनों ओर है।

गांव के प्रधान परशुराम सिंह कहते हैं कि उन्होंने इन छह महीनों में प्रशासन के सहयोग से बाहर से आने वालों की खबर रखना, उन्हें जरूरत पड़ने पर क्वारंटीन कराना, एंबुलेंस बुलाना, गांव में सफाई करवाने से लेकर दवाई छिड़काने तक का सारा काम किया है। लोगों को राशन बंटवाने का काम भी किया है। इसलिए उनकी ग्राम सभा में महामारी के इक्का दुक्का मामलों के अलावा कहीं कुछ ज्यादा दिक्कत नहीं आई है। न ही स्थानीय स्तर पर रहने वालों के साथ और न ही बाहर से आने वालों में। लेकिन ज्यादा बारिश और बाढ़ के कारण गांवों में आने जाने की दिक्कतें बढ़ी हैं। मनरेगा वगैरह के काम भी कम हुए हैं। फिर वह काम हर स्तर के युवाओं के लिए नहीं हैं। न ही उनसे सभी का खर्च चल सकता है। गांव में बेरोजगार युवक न सिर्फ आर्थिक रूप से परिवार और देश पर बोझ हैं, बल्कि सामाजिक समस्याएं भी खड़ी कर रहे हैं।

शिक्षा व्यवस्था की तबाही का वर्णन करते हुए एक कालेज के प्रबंधक दयाशंकर सिंह (बदला हुआ नाम) कहते हैं कि आजकल विद्यालय चलाना बहुत कठिन है। इसीलिए तो राजस्थान में एक कालेज प्रबंधक ने आत्महत्या कर ली। जो विद्यालय सरकारी अनुदान पर नहीं हैं वहां के प्रबंधक कालेज के शिक्षकों को तनख्वाह नहीं दे पा रहे हैं। क्योंकि फीस नहीं आ रही है। दसवीं और बारहवीं की कक्षाओं की तो 85 प्रतिशत फीस आई है लेकिन नौवीं और ग्यारहवीं की 50 प्रतिशत, जूनियर कक्षाओं  की 10 प्रतिशत तो प्राथमिक स्तर की 8 प्रतिशत ही मिल पाई है। कालेज का सात लाख रुपए महीने का खर्च है। यह पूरा नहीं हो पा रहा है। बसों की किस्तें नहीं जा पा रही हैं। समस्या शिक्षा के प्रबंधन के साथ शिक्षण की भी है। 15 प्रतिशत विद्यार्थियों के पास न तो मोबाइल है और न ही कम्प्यूटर। नेटवर्क अलग तंग करता है। कुछ शिक्षक तो पुलिया पर जाकर रात के 12 बजे वीडियो बनाते हैं। ताकि नेटवर्क भी रहे और शांति भी।

पाठ्य पुस्तक और कापी वगैरह सिर्फ दस प्रतिशत लोग खरीद रहे हैं। बाकी लोग या तो आनलाइन कक्षाओं पर निर्भर हैं या फिर अरुचि और हताशा के शिकार हैं। बड़ा भाई छोटे भाई को मोबाइल नहीं देता क्योंकि उसमें उसके कुछ निजी डाटा होते हैं। चूंकि बड़े भाई के डाटा गोपनीय होते हैं इसलिए वह छोटे भाई को मोबाइल देकर अपनी पोल नहीं खोलना चाहता या उसे बर्बाद नहीं करना चाहता। मनोरंजन और मनोविज्ञान की इस खींचतान में शिक्षा नुकसान उठा रही है।

बेकारी और तबाही की मार अगर शहर की नौकरियों पर है तो गांव की खेती पर भी है। अतिवृष्टि और बाढ़ से सीवान के सीवान डूब गए हैं। धान जो बिठाए गए वे सड़ गए। पानी इतना भरा है कि लगता नहीं कि नीची जमीन वाले खेतों में रबी की फसल भी बोई जा सकेगी। उन खेतों से पानी नवंबर दिसंबर तक शायद ही हटे। अगर पानी हट भी गया तो नमी पर्याप्त रहने वाली है। यानी खरीफ की फसल तो गई ही रबी की भी उम्मीद नहीं है। ऐसे में लोगों के पास सरकार से कभी कभार मिलने वाले दो हजार रुपए पर निगाह लगाए रहने की लाचारी है। वे जरूर थोड़े निश्चिंत हैं तो किसी तरह सरकारी नौकरी में किसी तरह लग गए थे। चाहे सफाई कर्मचारी ही बन गए थे। कम से कम कुछ तो मिल जाता है।

ज्यादातर युवा बेरोजगारी के चक्रव्यूह से निकलने को बेचैन हैं। लेकिन उन्हें कोई रास्ता सूझ नहीं रहा है। उनसे पूछो कि विधायक के पास क्यों नहीं जाते तो उनका कहना है कि कौन एक किलो दाल लेने जाए। इस महानगरों में रोजगार बंद होने के बाद कई युवक गांव में सिमट गए हैं। लेकिन वे बैठे नहीं हैं। उन्होंने अपनी पचास हजार से एक लाख रुपए महीने तक की नौकरियां जाने की परवाह न करते हुए गांव में ही उपभोक्ता वस्तुओं की सप्लाई का काम शुरू कर दिया है। ऐसे ही कुछ युवाओं ने रवि पांडे के साथ पतंजलि, नेचर और वाह नीर का पानी, जर्मीलेक्स के सामान और सब्जी की आपूर्ति का कारोबार चालू किया है। वे रात में तीन बजे ही जग जाते हैं और सुबह तक तमाम दुकानों पर सामान पहुंचा देते हैं। वे पानी, सेनेटाइजर, टायलट क्लीनर, चायपत्ती, सब्जी और दूसरे आइटम पहुंचाते हैं और इस काम में फैजाबाद, गोंडा और बस्ती को मिलाकर कुल दो दर्जन युवकों को जोड़ रखा है। उन्होंने महीने भर पहले यह काम बड़े उत्साह से शुरू किया था और इसमें लगभग दो लाख रुपए की पूंजी लगा दी थी। लेकिन पहले महीने में ही उन्हें 45,000 रुपए का घाटा उठाना पड़ा है। वे जानते हैं कि जब लोगों के पास कमाई ही नहीं है तो सामान कौन खरीदेगा।

इस बीच उत्तर प्रदेश में रामराज्य का आख्यान लहरा रहा है। झंडे फहरा रहे हैं। मोदी जी और योगी जी का बखान चल रहा है। हालांकि यह कहने वाले भी हैं कि विधानसभा में तो भाजपा को वापस नहीं आने देंगे, भले ही लोकसभा में मोदी जी को फिर ले आएं।

 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

 

Coronavirus
yogi aditynath
Village
ayodhya
unemployment
RURAL Unemployment
ramrajya
Village in Corona

Related Stories

जनादेश-2022: रोटी बनाम स्वाधीनता या रोटी और स्वाधीनता

हम भारत के लोग: समृद्धि ने बांटा मगर संकट ने किया एक

हम भारत के लोगों की असली चुनौती आज़ादी के आंदोलन के सपने को बचाने की है

हम भारत के लोग : इंडिया@75 और देश का बदलता माहौल

हम भारत के लोग : हम कहां-से-कहां पहुंच गये हैं

संविधान पर संकट: भारतीयकरण या ब्राह्मणीकरण

हम भारत के लोग:  एक नई विचार श्रृंखला

कैसे भाजपा की डबल इंजन सरकार में बार-बार छले गए नौजवान!

बेरोज़गारी से जूझ रहे भारत को गांधी के रोज़गार से जुड़े विचार पढ़ने चाहिए!

महंगाई और बेरोज़गारी के बीच अर्थव्यवस्था में उछाल का दावा सरकार का एक और पाखंड है


बाकी खबरें

  • language
    न्यूज़क्लिक टीम
    बहुभाषी भारत में केवल एक राष्ट्र भाषा नहीं हो सकती
    05 May 2022
    क्या हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देना चाहिए? भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष से लेकर अब तक हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की जद्दोजहद कैसी रही है? अगर हिंदी राष्ट्रभाषा के तौर पर नहीं बनेगी तो अंग्रेजी का…
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    "राजनीतिक रोटी" सेकने के लिए लाउडस्पीकर को बनाया जा रहा मुद्दा?
    05 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में अभिसार सवाल उठा रहे हैं कि देश में बढ़ते साम्प्रदायिकता से आखिर फ़ायदा किसका हो रहा है।
  • चमन लाल
    भगत सिंह पर लिखी नई पुस्तक औपनिवेशिक भारत में बर्तानवी कानून के शासन को झूठा करार देती है 
    05 May 2022
    द एग्ज़िक्युशन ऑफ़ भगत सिंह: लीगल हेरेसीज़ ऑफ़ द राज में महान स्वतंत्रता सेनानी के झूठे मुकदमे का पर्दाफ़ाश किया गया है। 
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    गर्भपात प्रतिबंध पर सुप्रीम कोर्ट के लीक हुए ड्राफ़्ट से अमेरिका में आया भूचाल
    05 May 2022
    राष्ट्रपति जो बाइडेन ने कहा कि अगर गर्भपात पर प्रतिबंध लगाने वाला फ़ैसला आता है, तो एक ही जेंडर में शादी करने जैसे दूसरे अधिकार भी ख़तरे में पड़ सकते हैं।
  • संदीपन तालुकदार
    अंकुश के बावजूद ओजोन-नष्ट करने वाले हाइड्रो क्लोरोफ्लोरोकार्बन की वायुमंडल में वृद्धि
    05 May 2022
    हाल के एक आकलन में कहा गया है कि 2017 और 2021 की अवधि के बीच हर साल एचसीएफसी-141बी का उत्सर्जन बढ़ा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License