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भारत, विश्व स्वास्थ्य सभा और महामारी की राजनीति
कथित वुहान वायरस पर 'बड़े स्तर के सबूत' पेश करना पॉम्पेय पर निर्भर करता है। आख़िर जयशंकर को उनकी मदद करने की क्या ज़रूरत पड़ी थी? यह एक ग़ैर ज़रूरी और चापलूसी भरा प्रदर्शन दिखता है, जो भारत जैसे देश को शोभा नहीं देता।
एम.के. भद्रकुमार
20 May 2020
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18 और 19 मई को विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA) की आभासी बैठक हुई। बैठक से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रही कोरोना महामारी की राजनीति केंद्र में आ गई है। बता दें विश्व स्वास्थ्य सभा 194 सदस्य देशों वाले विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की निर्णायक परिषद है।

बैठक ट्रंप और गृह सचिव माइक पॉम्पेय के कोरोना वायरस की पैदाइश से जुड़े सनसनीखेज दावे की पृष्ठभूमि में हुई है। हाल के हफ़्तों में किए गए इन अमेरिकी दावों में कहा गया कि कोविड-19 के ''वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वॉयरोलॉजी'' से पैदाईश के ''वृहद सबूत'' मौजूद हैं।

WHO इसका परीक्षण करने को तैयार है। संगठन ने सदस्य देशों के एक ''ड्रॉफ़्ट मोशन'' के जवाब में एक ''समग्र परीक्षण'' करने का प्रस्ताव दिया है। इस ड्रॉफ्ट मोशन को अफ्रीकी समूह के 54 सदस्यों देशों का समर्थन हासिल था। WHA में पेश किए गए कॉन्फ्रेंस पेपर को 27 यूरोपियन यूनियन के सदस्य देशों का भी समर्थन था, इसमें न तो चीन का जिक्र हुआ, न वुहान की बात की गई।

बैठक में ना तो ट्रंप या पॉम्पेय में से किसी ने हिस्सा नहीं लिया। उन्होंने अमेरिकी स्वास्थ्य सचिव एलेक्स अज़ार को भेजा। अज़ार ने WHO पर जमकर भड़ास निकाली और संगठन को कोरोना वायरस के ''हाथ से निकलने के लिए'' ज़िम्मेदार बताया। चीन का नाम लिए बिना उन्होंने अपने आरोपों में कहा,''एक सदस्य देश ने दुनिया की बहुत बड़ी कीमत पर पारदर्शी प्रावधानों का मजाक बनाया है।''

इस बीच व्हॉइट हॉउस से ट्रंप ने WHO को दिया जाने वाला अनुदान न रोकने के संकेत दिए हैं। इससे पहले ट्रंप ने WHO को जमकर कोसा था और संगठन पर चीन के नियंत्रण में होने का आरोप लगाया था। ट्रंप ने कहा था कि WHO संक्रमण के शुरूआती दौर में लापरवाह रहा।

शुक्रवार रात फॉक्स न्यूज़ पर ट्रंप के करीबी टकर कार्लसन ने बड़ी ख़बर बताते हुए कहा कि अमेरिका WHO के लिए अनुदान जारी कर सकता है। कार्लसन ने उस दौरान एक मसौदा पत्र भी लहराया और कहा, ''WHO की 'कमियों' के बावजूद ट्रंप इस 'महामारी के दौर' में संगठन को अपनी क्षमता का पूरा इस्तेमाल करते हुए देखना चाहते हैं। इसलिए उन्होंने WHO के साथ काम करने की मंशा बनाई है और चीन के बराबर योगदान देने का फ़ैसला किया है।''

एक दिन बाद शनिवार को फॉक्स बिज़नेस के लू डॉब्स को किए ट्वीट में ट्रंप ने कहा,''लू, जिन बातों पर ध्यान दिया जा रहा है, यह उनमें से एक है। हम सालों से जितना पैसा देते आए हैं, अब हम उसका 10 फ़ीसदी देंगे, यह रकम हमसे बहुत कम पैसा देते आए चीन के बराबर होगी। अभी आखिरी फ़ैसला नहीं हुआ है। फिलहाल हर अनुदान को रोक दिया गया है। शुक्रिया!''

ट्रंप का हालिया कदम WHO को सजा देने के लिए नहीं है, बल्कि अमेरिका को चीन के बराबर खड़ा करने के लिए है। लेकिन अब शी जिनपिंग ने कोरोना महामारी के बीच अनुदान बढ़ाकर दो बिलियन डॉलर कर दिया है। ट्रंप अब फंस चुके हैं।

चीन का डर दिखाकर ट्रंप कोरोना महामारी के कुप्रबंधन से अमेरिकी जनता का ध्यान हटाना चाहते हैं। ध्यान रहे अमेरिका में मृत लोगों की संख्या एक लाख पार कर चुकी है। लेकिन अब तक ट्रंप ने WHO पर लगाए सनसनीखेज आरोपों के बारे मे रत्ती भर भी सबूत नहीं दिया है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा लगातार आलोचना से विश्व में अमेरिका की स्थिति को धक्का लगा है।

WHO ने सोमवार को 110 देशों की उस अपील को मंजूरी दी है, जिसमें वैश्विक कोरोनावायरस प्रतिक्रिया का परीक्षण करने को कहा गया था। चीन ने सभी को अजूबे में डालते हुए ऐसी किसी भी जांच का समर्थन किया है। अमेरिका द्वारा WHO में ताइवान का 'ऑब्ज़र्वर स्टेट' का दर्जा उठाकर एक और विवादास्पद मुद्दा ढकेला गया। लेकिन इसे भी कोई तवज़्ज़ो नहीं मिली।

WHA के कॉन्फ्रेंस पेपर में कहा गया, ''वैज्ञानिक कोशिशों और समन्वय कार्यक्रमों के ज़रिए होने वाली जांच से वायरस के 'जूनोटिक' स्त्रोत् और इसके इंसानी आबादी में पहुंचने के बारे में भी पता लग जाएगा।'' इसमें ना तो चीन और ना ही वुहान का नाम लिया गया।

साफ है कि चीन ने कूटनीतिक आक्रामकता अपनाई। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने WHA को संबोधित करने का आमंत्रण स्वीकार किया और एक ऐतिहासिक भाषण दिया। जिनपिंग ने कोरोना वायरस के खिलाफ़ वैश्विक लड़ाई को तेज करने के कई तरीके बताए, इनमें अंतरराष्ट्रीय मदद देने की बात भी थी।

जिनपिंग ने अहम घोषणा करते हुए कहा,''चीन कोरोना महामारी से निपटने और प्रभावित देशों, ख़ासकर विकासशील देशों को आर्थिक और सामाजिक विकास में मदद करने के लिए अगले दो साल में दो बिलियन डॉलर की मदद करेगा।'' अब जिनपिंग ने अपनी बंदूक ट्रंप की तरफ मोड़ दी है। ट्रंप पर जिनपिंग के स्तर की पेशकश का दबाव है।

जिनपिंग ने एक और नाटकीय घोषणा में कहा,''चीन में जब कोरोना वायरस की वैक्सीन तैयार हो जाएगी, तो उसे एक वैश्विक उत्पाद बनाया जाएगा। विकासशील देशों में वैक्सीन की उपलब्धता और इसके सही दामों पर उपलब्ध होने के लिए यह चीन का योगदान होगा।'' इससे ट्रंप फंस गए हैं। उन्होंने अंदाजा लगाया था कि अमेरिका में बने वैक्सीन को दूसरे देशों में बढ़े-चढ़े दामों पर बेचकर बहुत पैसा बनाया जा सकता है, बिलकुल वैसे ही, जैसा पश्चिमी फॉर्मा कंपनियां करती आई हैं।

जिनपिंग ने कहा कि सबसे ज़्यादा प्रभावित देशों, जहां कर्ज़ चुकाने का भी सबसे ज़्यादा तनाव है, चीन उनकी मदद करेगा। ताकि वे अपनी मुश्किलों से ऊबर सकें। जिनपिंग ने G20 देशों द्वारा गरीब़ देशों को कर्ज़ चुकाने से फिलहाल छूट देने के लिए चीन के तैयार होने की बात भी कही है।

WHO के सेक्रेटरी जनरल टेड्रॉस एधानम (इथोपिया के पूर्व स्वास्थ्य और विदेश मंत्री) ने अपनी बात पर कायम रहते हुए सही किया। ट्रंप को झटका देते हुए बैठक में फ्रांस जैसे यूरोपियन देशों ने भी WHO का समर्थन किया। एक अफ्रीकी नेता के सामने झुकना ट्रंप को निश्चित ही पसंद नहीं आएगा।

जेनेवा से मिले संकेतों में वैश्विक स्तर पर चीन का बढ़ता कद दिखता है। इस पूरी घटना से वैश्विक मामलों में अमेरिका का कम होता प्रभाव भी झलकता है।

भारत को भी यह बात ध्यान में रखनी चाहिए। WHA की बैठक में शाम के वक़्त विदेशमंत्री एस जयशंकर को इस दूषित मामले में पॉम्पेय और अमेरिका की इज्ज़त बचाने के लिए नहीं भागना था। कथित वुहान वायरस पर 'बड़े स्तर के सबूत' पेश करना पॉम्पेय पर निर्भर करता है। आख़िर जयशंकर को उनकी मदद करने की क्या ज़रूरत पड़ी थी? इससे ग़ैर ज़रूरी चापलूसी भरा प्रदर्शन दिखता है, जो भारत जैसे देश को शोभा नहीं देता।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

India, WHA and the Politics of Pandemic

 

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WHO
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