NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अंतरराष्ट्रीय
फिलिस्तीन
हम फ़िलिस्तीन के साथ खड़े हैं
ऐजाज़ अहमद, अरुंधति रॉय, गीता हरिहरन, मोहम्मद यूसुफ़ तारिगामी, नसीरुद्दीन शाह, नयनतारा सहगल, प्रभात पटनायक, रत्ना पाठक शाह, सुभाषिनी अली, सुधन्वा देशपांडे और विजय प्रसाद
17 May 2021
हम फ़िलिस्तीन के साथ खड़े हैं
Image courtesy : The Daily Vox

1948 से इज़राइल ने फ़िलिस्तीनियों को उनकी ज़मीन से उखाड़ फेंकने और फ़िलिस्तीनी मातृभूमि की संभावना को मिटा डालने की कोशिश की है। तथ्यों की बुनियाद पर सीरियाई अकादमिक कॉन्सटेंटाइन ज़ुरयाक ने उस साल माना अल-नकबा (तबाही का मतलब) नाम से एक किताब प्रकाशित की थी। यह 'तबाही' फ़िलिस्तीनियों का उनके घरों से निष्कासन था,जो तब से इज़रायल के अंदर फ़िलिस्तीनियों को लेकर अपनायी जा रही रंगभेद की नीति से लेकर पूर्वी यरुशलम,गाज़ा और वेस्ट बैंक में रहने वाले फिलिस्तीनियों पर हो रहे हमले, और निर्वासन में चले गये फ़िलिस्तीनियों की वापसी से इनकार करने की स्थिति तक फैली हुई है। अप्रैल 2021 के आख़िर में ह्यूमन राइट्स वॉच (न्यूयॉर्क) ने एक स्पष्ट शीर्षक वाली एक अहम रिपोर्ट प्रकाशित की।यह शीर्षक था-ए थ्रेशोल्ड क्रॉस्ड: इज़रायल ऑथरिटीज़ एंड द क्राइम्स ऑफ़ अपार्थीड एंड पर्सेक्यूशन।

मई की शुरुआत में इज़राइल ने शेख़ जर्राह (यरूशलेम) में रह रहे फ़िलिस्तीनी परिवारों को उनके घरों से अवैध रूप से बेदखल करने का प्रयास किया। लेबनानी उपन्यासकार,एलियास खुरी के शब्दों में यह निष्कासन 'निरंतर नकबा' का हिस्सा है। ये परिवार यरूशलेम के इसी हिस्से में बस गये थे,जब उन्हें इजराइलियों ने उनके घरों से निकाल दिया था, और अब उन्हें एक बार फिर यहां से भी निकाला जाना था।

इन परिवारों और उनके पड़ोसियों ने यहां से हिलने से इनकार कर दिया। उन्हें विरोध करने का हक़ इसलिए है, क्योंकि उनकी ज़मीन संयुक्त राष्ट्र की तरफ़ से अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्र (OPT) के रूप में नामित भूमि का वह हिस्सा है,जिस पर कब्ज़ा करने वाला,यानी इज़राइल इसका प्रबंधन करता है,लेकिन उसे रद्दोबदल का कोई हक़ हासिल नहीं है। जब फ़िलिस्तीनियों ने इसका विरोध किया,तो उन्हें यहां रहने वाले यहूदीवादियों और उन इज़राइली सीमा पुलिस की तरफ़ से अख़्यितार की जाने वाली बेरहम हिंसा का सामना करना पड़ा,जिन्होंने फ़िलिस्तीनियों को अपमानित करने की नीति के तहत अल-अक्सा मस्जिद में प्रवेश किया। गाज़ा,जो ख़ुद अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्र (OPT) का हिस्सा है, वहां के फ़िलिस्तीनियों ने चेतावनी दी थी कि अगर इज़रायल और यहूदीवादियों ने इन ज़ुल्म-ओ-सितम को नहीं रोका, तो उन्हें रॉकेटों की बौछार का सामना करना पड़ेगा;चूंकि हमलों का कोई अंत नहीं दिख रहा था, इसलिए गाज़ा के फ़िलिस्तीनियों ने इज़रायल पर रॉकेट दाग  दिये। रॉकेटों ने उस क्रूरता की शुरुआत या उसे तय नहीं किया था,जो उसके बाद हुई। रॉकेट एक प्रतिरोध - अंतर्राष्ट्रीय क़ानून से समर्थित- एक अवैध कब्ज़े के हिस्से के रूप में दागा गया था।

इज़राइल ने इसकी प्रतिक्रिया में बेहद ताक़त के साथ जवाबी कार्रवाई की-बच्चों को मार डाला,नागरिक ठिकानों पर हमले किये और एक मीडिया भवन पर बमबारी की। 2006 से दुनिया के सबसे बड़े कंसन्ट्रेशन कैंपों में से एक गाज़ा की लगातार बमबारी ने इजरायल के अधिकृत फ़िलिस्तीनी क्षेत्र (OPT) के प्रबंधन को परिभाषित कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र इसलिए ख़ामोश है,क्योंकि अमेरिकी सरकार ने संघर्ष विराम प्रस्ताव की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। कोई भी अरब देश,फ़िलीस्तीनियों की हिफ़ाज़त के लिए अपने सैन्य बल का इस्तेमाल करने को तैयार नहीं है;मसलन,मिस्र की वायु सेना के लिए गाज़ा के ऊपर 'नो-फ़्लाई ज़ोन' मुहैया कराना बहुत ही आसान होगा। जॉर्डन और लेबनान में रह रहे निर्वासित फ़िलीस्तीनियों ने उन फाटकों पर चढ़ाई की,जो उन्हें उनकी मातृभूमि से अलग करते हैं, उन्होंने लगाये गये बाड़ों पर धक्के दिये,अपने घर जाने के लिए बेताब दिखे।

रॉकेट की बौछार से इस ख़ौफ़नाक़ इज़राइली बमबारी की व्याख्या को शुरू करना असल में इस कहानी के पूरे संदर्भ को ग़ायब करना  होगा और फ़िलीस्तीनियों को उनकी गरिमा और विरोध करने के उनके अधिकार से मुंह चुराना होगा। हम फ़िलीस्तीनियों के साथ खड़े हैं,उनकी मातृभूमि के अधिकार,उनके घर लौटने के अधिकार और कब्ज़े का विरोध करने के उनके हक़ के साथ खड़े हैं। फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इस भयानक हिंसा को लेकर हमारी प्रतिक्रिया संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव 1514 (1960) के उस भाव में निहित है,जिसमें कहा गया है, 'मुक्ति की प्रक्रिया अचल और अटल है और...गंभीर संकटों से बचने के लिए उपनिवेशवाद और उससे जुड़े अलगाव और भेदभाव के सभी तौर-तरीक़ों को ख़त्म किया जाना चाहिए।

(इसे लिखने वालों में लेखक,शिक्षक,राजनेता और अभिनेता हैं।)

Palestine
Israel Occupied Palestine
Zionism
Palestinian resistance
Ethnic Cleansing
Nakba

Related Stories

फ़िनलैंड-स्वीडन का नेटो भर्ती का सपना हुआ फेल, फ़िलिस्तीनी पत्रकार शीरीन की शहादत के मायने

न नकबा कभी ख़त्म हुआ, न फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध

अल-जज़ीरा की वरिष्ठ पत्रकार शिरीन अबु अकलेह की क़ब्ज़े वाले फ़िलिस्तीन में इज़रायली सुरक्षाबलों ने हत्या की

फ़िलिस्तीन पर इज़राइली हिंसा और यूक्रेन-रूस में ख़ूनी जंग कब तक

इज़रायली सुरक्षाबलों ने अल-अक़्सा परिसर में प्रार्थना कर रहे लोगों पर किया हमला, 150 से ज़्यादा घायल

लैंड डे पर फ़िलिस्तीनियों ने रिफ़्यूजियों के वापसी के अधिकार के संघर्ष को तेज़ किया

शता ओदेह की गिरफ़्तारी फ़िलिस्तीनी नागरिक समाज पर इस्राइली हमले का प्रतीक बन गया है

एमा वॉटसन को बदनाम करने का कैंपेन

141 दिनों की भूख हड़ताल के बाद हिशाम अबू हव्वाश की रिहाई के लिए इज़रायली अधिकारी तैयार

इज़राइल, फ़लस्तीन के बीच नए सिरे से हिंसा भड़कने की आशंका : संयुक्त राष्ट्र दूत


बाकी खबरें

  • विकास भदौरिया
    एक्सप्लेनर: क्या है संविधान का अनुच्छेद 142, उसके दायरे और सीमाएं, जिसके तहत पेरारिवलन रिहा हुआ
    20 May 2022
    “प्राकृतिक न्याय सभी कानून से ऊपर है, और सर्वोच्च न्यायालय भी कानून से ऊपर रहना चाहिये ताकि उसे कोई भी आदेश पारित करने का पूरा अधिकार हो जिसे वह न्यायसंगत मानता है।”
  • रवि शंकर दुबे
    27 महीने बाद जेल से बाहर आए आज़म खान अब किसके साथ?
    20 May 2022
    सपा के वरिष्ठ नेता आज़म खान अंतरिम ज़मानत मिलने पर जेल से रिहा हो गए हैं। अब देखना होगा कि उनकी राजनीतिक पारी किस ओर बढ़ती है।
  • डी डब्ल्यू स्टाफ़
    क्या श्रीलंका जैसे आर्थिक संकट की तरफ़ बढ़ रहा है बांग्लादेश?
    20 May 2022
    श्रीलंका की तरह बांग्लादेश ने भी बेहद ख़र्चीली योजनाओं को पूरा करने के लिए बड़े स्तर पर विदेशी क़र्ज़ लिए हैं, जिनसे मुनाफ़ा ना के बराबर है। विशेषज्ञों का कहना है कि श्रीलंका में जारी आर्थिक उथल-पुथल…
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: पर उपदेस कुसल बहुतेरे...
    20 May 2022
    आज देश के सामने सबसे बड़ी समस्याएं महंगाई और बेरोज़गारी है। और सत्तारूढ़ दल भाजपा और उसके पितृ संगठन आरएसएस पर सबसे ज़्यादा गैर ज़रूरी और सांप्रदायिक मुद्दों को हवा देने का आरोप है, लेकिन…
  • राज वाल्मीकि
    मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?
    20 May 2022
    अभी 11 से 17 मई 2022 तक का सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का “हमें मारना बंद करो” #StopKillingUs का दिल्ली कैंपेन संपन्न हुआ। अब ये कैंपेन 18 मई से उत्तराखंड में शुरू हो गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License