NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पश्चिम बंगाल की राजनीतिक पार्टियों की बिहार के चुनाव पर नज़र 
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि बिहार में जद(यू)-भाजपा गठबंधन को किसी भी किस्म का झटका पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए जोखिम पैदा कर देगा, जिससे अन्य राजनीतिक दलों के लिए चीजें आसान हो जाएंगी।
रबींद्रनाथ सिन्हा
07 Nov 2020
Translated by महेश कुमार
 चुनाव

कोलकाता: पश्चिम बंगाल के राजनीतिक दल, जहां अगले साल गर्मियों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, वर्तमान में बिहार के चुनाव पर नज़रें गड़ाए बैठें हैं क्योंकि वे अपने राजनीतिक कार्यक्रमों को आगे बढ़ा रहे हैं और चुनावी लड़ाई की प्रारंभिक तैयारियों में लगे हुए हैं।

न्यूज़क्लिक ने राज्य के कई राजनीतिक नेताओं से संपर्क किया, जिन्होंने पड़ोसी राज्य में अपनी गहरी दिलचस्पी होने के दो अलग-अलग कारण बताए। पहला, इस बात की उत्सुकता कि  विधानसभा चुनावों का परिणाम क्या होगा। दूसरा, राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व में विपक्षी महागठबंधन (महागठबंधन) द्वारा अपनाया गया सीट समायोजन का फॉर्मूला।

सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सरकार के वरिष्ठ मंत्री सुब्रत मुखर्जी का विचार है कि बिहार के नतीजों के बारे में राज्य के राजनीतिक दलों की जिज्ञासा काफी स्वाभाविक है। मुखर्जी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि चुनाव प्रचार के दौरान तेजस्वी यादव और महागठबंधन को जिस तरह का समर्थन और सहानुभूति मिली है, वह वास्तव में अभूतपूर्व है। “10 नवंबर को जो परिणाम आएंगे उसे एक बार भूल जाओ। यह स्पष्ट है कि भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में हिस्सेदार होने के बावजूद, राज्य सरकार की लोकप्रियता सबसे निचले स्तर पर है। और इसके चलते विपक्ष का दम-खम बढ़ा है, “उन्होंने कहा।

अनुभवी राजनेता ने कहा, "अगर बिहार में बीजेपी का प्रदर्शन खराब होता है, तो इसकी आंच नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता पर भी पड़ेगी और पार्टी, विशाल संसाधनों की मदद से राज्य में पहली बार सत्ता हासिल हासिल करने की मंशा में अटक जाएगी। इसमें कोई संदेह नही है कि; तब हमारा काम अपेक्षाकृत आसान हो जाएगा।"

भारतीय सांख्यिकी संस्थान के प्रोफेसर सुभमॉय मैत्रा जिनकी बिहार पर गहरी नज़र हैं, और जो एक गंभीर राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं। मैत्रा का आकलन है कि भाजपा राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने और भगवा एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए केंद्र की सत्ता को प्राथमिकता देती है। “राज्यों में सत्ता उसके बायोडाटा को मजबूत बनाती है। पश्चिम बंगाल में उनकी गहरी दिलचस्पी है क्योंकि वह यहां सरकार बनाने में सक्षम नहीं है। इसके अलावा, संघ परिवार ने पिछले 10 वर्षों में पश्चिम बंगाल में अच्छी-ख़ासी बढ़त दर्ज़ की है; इस बढ़त के लिए ज़्यादातर काम आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) ने किया है, ”उन्होंने कहा।

हालांकि, मैत्रा के अनुसार, बिहार में जनता दल (यूनाइटेड)-भारतीय जनता पार्टी गठबंधन को किसी भी तरह का झटका पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए जोखिम होगा। ऐसी स्थिति में, उनके लिए 2024 का लोकसभा चुनाव ऊंची प्राथमिकता का होगा। इसलिए वे विधानसभा चुनावों में अपनी संख्या जितनी संभव हो बढ़ाने की कोशिश करेंगे, लेकिन फिर शायद कम बहुमत के साथ, सरकार टीएमसी बना ले।  

हालांकि "सुवेंदु कारक" को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है, लेकिन उन्होंने उन रिपोर्टों का जिक्र किया जिनमें कहा गया है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के परिवहन मंत्री सुवेंदु अधिकारी, जो मेदिनीपुर के राजनीतिक रूप से प्रभावशाली परिवार से हैं, और जिस क्षेत्र में 33 सीट हैं, वे पार्टी से असंतुष्ट हैं। अगर सुवेंदु टीएमसी छोड़ देते हैं, तो यह ममता के लिए एक बड़ा झटका होगा, मैत्रा ने न्यूज़क्लिक को बताया।

राज्य के राजनीतिक दलों की बिहार के चुनाव अभियानों और विधानसभा चुनावों के नतीजों के बारे में उत्सुकता के बीच पश्चिम बंगाल में 21 अक्टूबर को एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना  देखने को मिली जिसमें गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (GJM) के विमल गुरुंग, 16 अगस्त, 2017 को अचानक कोलकाता में नज़र आए और एक अप्रत्याशित राजनीतिक संदेश के साथ कि-12 साल बाद भाजपा का साथ छोड़ गोरखा जनमुक्ति मोर्चा टीएमसी को तीसरी बार सत्ता जिताने में ममता बनर्जी का समर्थन करेगा। 

गुटों में बटे जीजेएम के लिए, गुरुंग का कोलकाता में उभरना एक पूर्वानुमानित नुकसान है- बिनय तमांग और अनित थापा के नेतृत्व वाले टीएमसी समर्थक गुट ने जीजेएम संस्थापक की उपेक्षा करते हुए कहा कि वह "वह अब हमारे आंदोलन का हिस्सा नहीं है"। [गुरुंग को आखिरी बार पहाड़ियों में गिंग चाय बागान में 2017  के स्वतन्त्रता दिवस समारोह में देखा गया था]।

पिछले कुछ वर्षों में बदले रुझान और रणनीति के बाद, जीजेएम संस्थापक की विश्वसनीयता अब बहुत कम रह गई है। उसके खिलाफ आतंकवाद विरोधी कानूनों के तहत कई प्राथमिकी और आरोप लंबित पड़े हैं। राज्य के अधिकारियों ने उनके बैंक खाते भी सील किए हुए हैं। उनके अचानक बनर्जी के सामने आ जाने और उन्हे समर्थन देने की प्रतिज्ञा ने इस संदेह को जन्म दिया है कि क्या उनका तात्कालिक उद्देश्य बैंक खातों को खोलना है। जैसा कि हो सकता है कि उनका ताज़ा रुख दार्जिलिंग और उसके आसपास के क्षेत्रों में राजनीतिक महत्व का हो। यह देखना दिलचस्प होगा कि ममता बनर्जी उत्तर बंगाल में टीएमसी की खराब होती स्थिति को कैसे सुधारती हैं। 

बीजेपी, जिसने पश्चिम बंगाल पर अपनी निगाहें गड़ाई हुई हैं, भी अभी अपने भीतर की गुटबाजी को सुलझाने और पिछड़े वर्गों को लुभाने में व्यस्त है। नई चर्चा यह है कि पार्टी गर्मियों में होने वाले विधानसभा चुनावों में 294 सीटों में से 200 सीटों पर नजर गड़ाए हुए है।

जैसा कि अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने कुछ कार्यक्रम प्रदेश कांग्रेस कमेटियों (पीसीसी) को सौंपे हैं, जिसमें  नए राज्य पीसीसी प्रमुख अधीर चौधरी को अभी भी जिला संगठनों का पुनर्गठन करना है। इसलिए, कोई भी 'सार्थक' वाम मोर्चा-कांग्रेस गठबंधन वार्ता दीवाली के बाद ही शुरू होगी। वाम मोर्चा घटक, इस बीच, अपनी व्यक्तिगत और संयुक्त कार्य योजनाओं के साथ आगे बढ़ रहे हैं।

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी या सीपीआई (एम) पश्चिम बंगाल के सचिव सुरज्या कांत मिश्रा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि राजनीतिक कार्यक्रमों के अलावा, उनकी पार्टी कोविंड के बाद हुए लॉकडाउन के दौरान कोविड-19 पीड़ितों और कामगारों की पीड़ा को कम करने के लिए तीन महीने पहले से खोए संसधानों को मुहैया कराने का काम कर रही थी।

वाम मोर्चे द्वारा दी जा रही मदद में 'श्रमजीवी कैंटीन' की स्थापना और हेल्पलाइन और मास्क, सैनिटाइटर इत्यादि का वितरण शामिल है। "सहायता देने के लिए, हम उन लोगों की पहचान कर रहे हैं जो सरकारी सुविधाओं का उपयोग करने में असमर्थ हैं और जहाँ सरकारी मशीनरी कुप्रबंधन के कारण पूरी तरह से विफल हो रही है। मिश्रा ने कहा कि हम युवाओं और छात्रों सहित बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने में सफल रहे हैं।

दिलचस्प बात यह है कि जब न्यूज़क्लिक ने वामपंथी पार्टियों के चेयरमैन बिमान बोस से पूछा कि क्या सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ़ इंडिया (कम्युनिस्ट) विधानसभा चुनाव में भागीदार होने की संभावना है, तो उन्होंने कहा कि एसयूसीआई ने वाम मोर्चे को बताया है कि उनकी “पार्टी सांप्रदायिकता विरोधी- साम्राज्यवाद-विरोधी ताकतों से हाथ मिलाएगी- इसका मतलब वह दक्षिणपंथ से कोई सरोकार नहेन्न रखेगी।”

बोस और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद प्रदीप भट्टाचार्य के लिए, तेजश्वी द्वारा चुनावी लड़ाई में महागठबंधन को प्रासंगिक बनाने के अलावा, गठबंधन द्वारा अपनाया गया सीट समायोजन सूत्र ध्यान में रखने लायक है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) को एक सहयोगी दल के रूप में शामिल करना एक बड़ा कारण है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चे का साझीदार नहीं है, हालांकि यह पार्टी 16 वामदलों के बड़े मंच और सहयोगी संगठनों द्वारा किए गए कार्यक्रमों में शामिल है। यह मंच, केंद्र सरकार की नीतियों के खिलाफ और किसानों, श्रमिकों और समाज के कमजोर वर्गों के समक्ष उत्पन्न संकट के विरोध में केंद्रीय ट्रेड यूनियनों द्वारा 26 नवंबर को एक दिवसीय हड़ताल के आह्वान का सक्रिय रूप से समर्थन कर रहा है।

काफी समय से, ‘इच्छुक स्रोतों’ से सुझाव आ रहे हैं कि बिहार में विपक्ष का उदाहरण लेते हुए, सीपीआई (एम-एल) को वाम-कांग्रेस मंच का भागीदार बना लेना चाहिए। इस संभावना के बारे में पूछे जाने पर, बोस ने न्यूज़क्लिक को बताया कि: “निश्चित रूप से इस पर चर्चा की गुंजाइश है। मैं इससे इनकार नहीं कर सकता। अभी तक सीपीआई (एम-एल) की ओर से कोई सुझाव नहीं आया है। लेकिन ये चीजें राजनीति में विकसित होती हैं। हमें इस पर सबसे पहले वाम मोर्चे में चर्चा करनी होगी; फिर कांग्रेस के साथ बात होगी।”

कांग्रेस के भट्टाचार्य ने बड़ी उत्सुकता के साथ कहा कि, "मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि हमें सीपीआई (एम-एल) को स्वीकार कर लेना चाहिए। इससे मंच को व्यापक बनाने में मदद मिलेगी और आम लोगों में मंच के प्रति विश्वास पैदा होगा। यदि यह पड़ोसी राज्य में संभव है, तो पश्चिम बंगाल में क्यों नहीं? ” उन्होने सवाल दागा।

सीपीआई (एम-एल) के पश्चिम बंगाल राज्य समिति के सचिव पार्थ घोष ने बताया लोकसभा और विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी वाम मोर्चा से स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ती रही है। 2019 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा की 18 सीटें इसलिए मिली थी क्योंकि वाम मोर्चा के 23 प्रतिशत वोट भगवा पार्टी को चले गए थे।

“हमारा आकलन यह है। बिहार के फार्मूले को अपनाने के बारे में, हम जमीनी हकीकत को ध्यान में रखते हुए सोचते हैं कि क्या भाजपा-विरोधी, टीएमसी विरोधी संबंध बनाना संभव है। यदि हम भी गठबंधन में हैं, तो वाम दलों के भीतर ज्यादा मजबूती आएगी। घोष ने यह भी कहा कि हमें कांग्रेस की 'दादागिरी' को स्वीकार नहीं करना चाहिए।'

उन्होंने दावा किया कि सीपीआई (एम-एल) उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना, बांकुरा, नादिया, हुगली, हावड़ा, जलपाईगुड़ी, मुर्शिदाबाद और मालदा जिलों में काफी सक्रिय है।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिेए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

West Bengal Political Parties Keenly Await Bihar Poll Outcome

West Bengal Assembly Elections 2021
Assembly Elections 2021
Bihar Elections
assembly polls
Left Front in West Bengal
CPIM
Congress
BJP in West Bengal
TMC government
Opposition in West Bengal
Gorkhaland Janmukti Morcha

Related Stories

हार्दिक पटेल भाजपा में शामिल, कहा प्रधानमंत्री का छोटा सिपाही बनकर काम करूंगा

राज्यसभा सांसद बनने के लिए मीडिया टाइकून बन रहे हैं मोहरा!

ED के निशाने पर सोनिया-राहुल, राज्यसभा चुनावों से ऐन पहले क्यों!

ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया

त्रिपुरा: सीपीआई(एम) उपचुनाव की तैयारियों में लगी, भाजपा को विश्वास सीएम बदलने से नहीं होगा नुकसान

राज्यसभा चुनाव: टिकट बंटवारे में दिग्गजों की ‘तपस्या’ ज़ाया, क़रीबियों पर विश्वास

मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया

केरल उप-चुनाव: एलडीएफ़ की नज़र 100वीं सीट पर, यूडीएफ़ के लिए चुनौती 

कांग्रेस के चिंतन शिविर का क्या असर रहा? 3 मुख्य नेताओं ने छोड़ा पार्टी का साथ

‘आप’ के मंत्री को बर्ख़ास्त करने से पंजाब में मचा हड़कंप


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ः 60 दिनों से हड़ताल कर रहे 15 हज़ार मनरेगा कर्मी इस्तीफ़ा देने को तैयार
    03 Jun 2022
    मनरेगा महासंघ के बैनर तले क़रीब 15 हज़ार मनरेगा कर्मी पिछले 60 दिनों से हड़ताल कर रहे हैं फिर भी सरकार उनकी मांग को सुन नहीं रही है।
  • ऋचा चिंतन
    वृद्धावस्था पेंशन: राशि में ठहराव की स्थिति एवं लैंगिक आधार पर भेद
    03 Jun 2022
    2007 से केंद्र सरकार की ओर से बुजुर्गों को प्रतिदिन के हिसाब से मात्र 7 रूपये से लेकर 16 रूपये दिए जा रहे हैं।
  • भाषा
    मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने चंपावत उपचुनाव में दर्ज की रिकार्ड जीत
    03 Jun 2022
    चंपावत जिला निर्वाचन कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार, मुख्यमंत्री को 13 चक्रों में हुई मतगणना में कुल 57,268 मत मिले और उनके खिलाफ चुनाव लड़ने वाल़ कांग्रेस समेत सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो…
  • अखिलेश अखिल
    मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 
    03 Jun 2022
    बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित जनगणना के एलान के बाद अब भाजपा भले बैकफुट पर दिख रही हो, लेकिन नीतीश का ये एलान उसकी कमंडल राजनीति पर लगाम का डर भी दर्शा रही है।
  • लाल बहादुर सिंह
    गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया
    03 Jun 2022
    मोदी सरकार पिछले 8 साल से भारतीय राज और समाज में जिन बड़े और ख़तरनाक बदलावों के रास्ते पर चल रही है, उसके आईने में ही NEP-2020 की बड़ी बड़ी घोषणाओं के पीछे छुपे सच को decode किया जाना चाहिए।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License