NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कोविड-19
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अर्थव्यवस्था
वर्ल्ड फूड प्रोग्राम को मिले नोबेल शांति पुरस्कार का क्या अर्थ है?
भूख को शांत करने का मतलब है दुनिया के कई देशों के बीच शांति को स्थापित करना और कई तरह के आपसी संघर्षों को रोक देना। अगर यह होना संभव हुआ है तो इसमें वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की बहुत बड़ी अहमियत है।
अजय कुमार
12 Oct 2020
वर्ल्ड फूड प्रोग्राम
Image courtesy : WFP

मेरे साथी ने कहा कि देखिए अबकी बार का नोबेल का शांति पुरस्कार मिल भी गया और किसी तरह का हो हल्ला भी नहीं हुआ। शांति के पुरस्कार को इतना भी कवरेज नहीं मिला जितना नोबेल से जुड़े विज्ञान और साहित्य के पुरस्कार को मिला। जानते हैं इसकी वजह क्या है? इसकी वजह यह है की अबकी बार शांति का नोबेल जिसे मिला है, वह कोई शख्स नहीं है जिसकी मौजूदगी ही कई तरह की सुर्खियां लेकर चलती है। अबकी बार का नोबेल एक वैश्विक कार्यक्रम को मिला है। और वैश्विक स्तर पर आपसी सहयोग के द्वारा चलाई जाने वाले कार्यक्रमों की ब्रांड वैल्यू इतनी नहीं होती है कि वह लोगों की बातचीत का हिस्सा बने। अपने साथी की बात बहुत  वाजिब लगी।

पुरस्कारों के संदर्भ में एक बात पहले गांठ बांधकर चलनी चाहिए। किसी भी तरह के पुरस्कार के पीछे एक खास राजनीति और रणनीति भी चलती है। इस लिहाज से अगर पुरस्कार वैश्विक स्तर का हो तब तो घनघोर  किस्म की कूटनीति छिपी होती है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इसकी वजह से पुरस्कारों की अहमियत कम हो जाती है। यह हमारे दुनिया की एक हकीकत है। और इस हकीकत के अंदर ही पुरस्कारों को स्वीकारना चाहिए, देखना चाहिए, अपनाना चाहिए। एक लाइन में कहने का मतलब इतना ही है कि दुनिया की अपनी गति है, उस गति को देखकर सीखना जरूर चाहिए लेकिन बहुत अधिक प्रभावित भी नहीं होना चाहिए।

नोबेल कमिटी ने साल 2020 का नोबेल शांति पुरस्कार वर्ल्ड फूड प्रोग्राम को देने को ऐलान किया है। वजह यह कि इस कार्यक्रम ने विश्व भर में भूख से निपटने के लिए बड़ी अहम भूमिका अदा की है। भूख को शांत करने का मतलब है दुनिया के कई देशों के बीच शांति को स्थापित करना और कई तरह के आपसी संघर्षों को रोक देना। अगर यह होना संभव हुआ है तो इसमें वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की बहुत बड़ी अहमियत है। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम पूरी दुनिया में भूख से लड़ने के लिए काम कर रही सबसे बड़ी मानवीय संस्था है। पिछले साल यानी कि साल 2019 में भूख से सबसे अधिक लड़ रहे तकरीबन 88 देशों में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने मदद पहुंचाई। साल 2015 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल करके योजना बनाई गई थी। इस योजना में एक गोल यह भी था की पूरी दुनिया से भुखमरी का खात्मा किया जाए। इस भुखमरी से लड़ने के लिए वर्ल्ड फूड प्रोग्राम सबसे पहली पंक्ति में खड़े होकर मौजूदा वक्त में काम कर रहा है।

पिछले कुछ सालों से दुनिया के कई इलाके लड़ाई के मैदान बन चुके हैं। लोग या तो हथियारों के दम पर लड़ते हुए जिंदगी जीते हैं या भूख के कगार पर रहते हुए दम तोड़ देते हैं। यमन, रिपब्लिक ऑफ कांगो, नाइजीरिया, दक्षिणी सूडान से लड़ाई और भुखमरी की खबरें पूरे साल भर आती रहती हैं। इनके साथ इस बार पूरी दुनिया ने करोना वायरस जैसी वैश्विक महामारी का भी सामना किया। इस वजह से कई सालों के बाद पिछले साल तकरीबन 13.5 करोड़ लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच गए।

करोना वायरस के दौरान भूखमरी की संभावना सबसे बड़ी दुश्मन के तौर पर खड़ी है। इससे लड़ने के लिए वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने बहुत ही जबरदस्त काम किया है।

वर्ल्ड हेल्थ प्रोग्राम का कहना है कि जब तक कोरोना का वैक्सीन नहीं आ जाता तब तक कोरोना की वजह से दुनिया को छीना झपटी, लूटपाट और अराजकता से बचाने के लिए सबसे बड़ा वैक्सीन यह है कि भुखमरी की स्थिति पैदा ना होने दी जाए।

भूख और हथियारों की लड़ाई के बीच एक लिंक होता है। यह दोनों मिलकर एक बहुत बुरे चक्र की संभावना पैदा करते हैं। अगर भूख है तो संघर्ष और युद्ध भी निश्चित है और अगर युद्ध है और लड़ाई है तो इसकी अंतिम मंजिल न हार होती है न जीत बल्कि भुखमरी होती है। इसलिए अगर दुनिया को भुखमरी से बचाना है तो ऐसे प्रोग्राम की जरूरत अब पहले से कहीं ज्यादा है। ऐसे प्रोग्राम में पैसा देना जरूरी है। अगर दुनिया के बीच आपसी सहयोग नहीं होगा और ऐसे प्रोग्राम द्वारा पैसे के निवेदन को नहीं स्वीकारा जाएगा तो भुखमरी से लड़ना बहुत अधिक मुश्किल हो जाएगा।

नोबेल कमेटी का कहना है कि दुनिया में शांति और समृद्धि स्थापित करने के लिए वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने भूखमरी से लड़ने का रास्ता चुना है और यह रास्ता काबिले तारीफ है। दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और एशिया  जैसे महा देशों में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने बड़ी शानदार भूमिका निभाई। संयुक्त राष्ट्र संघ के देशों की आपसी मदद से शांति स्थापित करने की राह में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

यह सारी बातें नोबेल कमेटी द्वारा वर्ल्ड फूड प्रोग्राम को नोबेल पुरस्कार दिए जाने के दौरान कही गई हैं। अब बात करते हैं वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के पहचान से जुड़े तथ्यों पर।

वर्ल्ड फूड प्रोग्राम संयुक्त राष्ट्र (यूनाइटेड नेशंस) के फूड प्रोग्राम से जुड़ा एक संगठन है। यह जरूरतमंदों को खाना खिलाता है और खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देता है। इस संगठन को 1961 में बनाया गया था।

यह प्रयोग के तौर पर स्थापित किया हुआ प्रोग्राम था जिसका मकसद था कि संयुक्त राष्ट्र तंत्र के सिस्टम का इस्तेमाल कर दुनिया के जरूरतमंद लोगों तक भोजन पहुंचाया जाए। भुखमरी को दूर करने का काम किया जाए।

लेकिन अब यह संगठन भुखमरी से लड़ने के लिए और खाद्य सुरक्षा के लिहाज से काम करने वाले संगठनों के बीच दुनिया का सबसे बड़ा संगठन बन चुका है।

साल 1962 में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम के स्थापना के 1 साल बाद ही ईरान की धरती को भयंकर भूकंप का सामना करना पड़ा। इसी विपत्ति में मदद करने से वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की मदद करने की विरासत की शुरुआत हुई। साल 1983 में इथोपिया में 100 साल में सबसे बड़ा सूखा पड़ा। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने तकरीबन 20 लाख लोगों तक अपनी मदद पहुंचाई। अफ्रीका का देश लड़ाई हो से जूझता हुआ देश है। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम साल 1989 से लड़ाई के बीच अपनी मदद पहुंचाने का काम करते आ रहा है। साल 2004 में हिंद महासागर की कोख में भयंकर सुनामी और जबरदस्त भूकंप के झटके पैदा हुए। आसपास का इलाका तहस-नहस हो गया। इस विनाश लीला में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने रिलीफ ऑपरेशन मैं बहुत अधिक मदद की।

मध्य एशिया का इलाका पिछले कई सालों से संघर्ष में जी रहा इलाका बन चुका है। सीरिया में सबसे अधिक बर्बादी हुई है। साल 2011 में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम ने यहां अपनी मदद पहुंचाई। साल 2019 तक आते-आते इसका जाल इतना फैल चुका है कि इस संगठन ने पिछले साल तकरीबन 88 देशों में तकरीबन 10 करोड लोगों की मदद की।

वर्ल्ड फूड प्रोग्राम का कहना है कि साल के किसी भी दिन मदद पहुंचाने के लिए इसके पास 5608 ट्रक, 30 समुद्री जहाज, 100 हवाई जहाज हमेशा मौजूद रहते हैं।

वर्ल्ड फूड प्रोग्राम का सबसे अहम काम आपातकालीन समय में राहत पहुंचाना, पुनर्वास करना और विकास के कामों में मदद करना है। World food program का तकरीबन दो तिहाई काम उन इलाकों में होता है जहां लड़ाइयां लड़ी जा रही होती हैं। वजह यह है कि यहां पर अल्प पोषण और कुपोषण की संभावना दुनिया के किसी भी दूसरे इलाके से 3 गुने से अधिक होती है।

वर्ल्ड फूड प्रोग्राम को दुनिया के देश अपनी इच्छा अनुसार यानी स्वैच्छिक तौर पर ध्यान देते हैं। साल 2019 में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम को दुनिया के देशों के द्वारा तकरीबन 8 बिलियन डॉलर पैसा मिला। वर्ल्ड फूड प्रोग्राम का कहना है कि उसने इस पैसे से तकरीबन 4.2 मिलियन मीट्रिक टन अनाज जरूरतमंदों तक पहुंचाया। इस संगठन में तकरीबन 17000 स्टाफ काम करते हैं। जिनमें से 90 फ़ीसदी स्टाफ उन इलाकों में काम करते हैं जहां पर वर्ल्ड फूड प्रोग्राम द्वारा मदद पहुंचाई जा रही होती है

कोरोना वायरस की वजह से दुनिया की भूखमरी की मौजूदा परेशानियों में तकरीबन 70 फ़ीसदी का इजाफा होने वाला है। ऐसे में वर्ल्ड फूड प्रोग्राम जैसे संगठन की अहमियत और अधिक बढ़ जाती है।

भारत में यह संस्था भारत सरकार की मदद से पब्लिक डिसटीब्यूशन सिस्टम द्वारा बांटी जा रही राशन के कामों में मदद कर रही है। राशन बांटने के काम में धांधली को रोकने के लिए ऑटोमेटिक ग्रेन दिसपेंस सिस्टम का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसमें भी वर्ल्ड फूड प्रोग्राम की मदद ली जा रही है।

अब अंत में यह समझने वाली बात है कि वर्ल्ड फूड प्रोग्राम कोई व्यक्ति का नाम नहीं है बल्कि एक संगठन है। वह भी कोई ऐसा संगठन नहीं है जो किसी या तीन चार देशों के आपसी सहयोग के द्वारा मिलकर बना हो और इन्हीं के द्वारा चलाया जा रहा हो। बल्कि यह एक ऐसा संगठन है जो संयुक्त राष्ट्र संघ का हिस्सा है और जिसकी बुनावट में दुनिया के सभी देशो का सहयोग शामिल है। इसलिए अगर वर्ल्ड फूड प्रोग्राम जैसे संगठन को नोबेल पीस प्राइज से नवाजा गया है तो इसमें पूरी दुनिया को इस बात के लिए भी सराहा गया है कि उन्होंने मिलकर एक ऐसा संगठन बनाया है जो विश्व में भुखमरी से लड़ने के लिए काम कर रहा है।

Nobel Peace Prize
World Food Program
United nations
Global Hunger
Global Poverty Reduction
Hunger Crisis
poverty
malnutrition
COVID-19
World Food Program United Nations

Related Stories

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 84 दिन बाद 4 हज़ार से ज़्यादा नए मामले दर्ज 

कोरोना अपडेट: देश में कोरोना के मामलों में 35 फ़ीसदी की बढ़ोतरी, 24 घंटों में दर्ज हुए 3,712 मामले 

कोरोना अपडेट: देश में नए मामलों में करीब 16 फ़ीसदी की गिरावट

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,706 नए मामले, 25 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 2,685 नए मामले दर्ज

कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

महामारी में लोग झेल रहे थे दर्द, बंपर कमाई करती रहीं- फार्मा, ऑयल और टेक्नोलोजी की कंपनियां


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License