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भारत
राजनीति
हरियाणा चुनाव में बीजेपी के पिछड़ने का कारण क्या है?
हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 75 पार का नारा दिया था लेकिन बेरोजगारी दर, आटो इंडस्ड्री में मंदी, न्यू मोटर व्हीकल एक्ट और स्थानीय मुद्दों पर ध्यान नहीं देने की वजह से वह बहुमत से भी दूर हो गई है। इसमें जाट फैक्टर ने भी एक बड़ा रोल अदा किया।
अमित सिंह
24 Oct 2019
manohar lal khattar
Image courtesy: Dainik Bhaskar

हरियाणा विधानसभा चुनाव के अब तक प्राप्त रुझानों में सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला है और यहां किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलता नहीं दिखाई दे रहा है। हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से 75 सीट जीतने का लक्ष्य तय करने वाली भाजपा सामान्य बहुमत से भी दूर है।

जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) विधानसभा चुनाव में पहली बार उतरी है और लगभग 10 सीटों पर आगे है। जेेजेपी को पूरे परिदृश्य में किंगमेकर के तौर पर देखा जा रहा है जो सरकार बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है।

भाजपा के सात मंत्री, विधानसभा अध्यक्ष और राज्य पार्टी प्रमुख अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वियों से पीछे चल रहे हैं। विधानसभा अध्यक्ष कवंर पाल, राज्य भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला पीछे चल रहे हैं। विधानसभा सीटों के रूझान में पार्टी को पूर्ण बहुमत मिलता नहीं देख प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला ने पद से इस्तीफा दे दिया है।

हरियाणा में त्रिशंकु विधानसभा की तस्वीर बनने के आसार के बीच प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष कुमारी शैलजा ने बृहस्पतिवार को दावा किया कि राज्य की जनता ने भाजपा को नकार दिया है और सत्तारूढ़ पार्टी की नैतिक हार हुई है। उन्होंने यह उम्मीद भी जताई कि हरियाणा में कांग्रेस अगली सरकार का गठन करेगी।

जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला ने कहा, ‘यह दिखाता है कि खट्टर सरकार के विरोध में लहर है।’ बीजेपी के ‘अभियान 75’ पर चुटकी लेते हुए चौटाला ने कहा कि भाजपा 75 सीटें जीतने के अपने लक्ष्य से बहुत पीछे रह जाएगी। उन्होंने कहा, ‘हरियाणा के लोग बदलाव चाहते हैं।’

निसंदेह विपक्षी नेताओं के इस बयान में सच्चाई दिखती है। भाजपा का हरियाणा में आक्रामक चुनाव प्रचार देखने वाला कोई भी जानकार यह बता सकता है कि इतना पैसा, संसाधन और मेहनत और विपक्ष के बिखराव के बाद भी अगर पार्टी हार रही है तो इसका साफ मतलब है कि जनता बीजेपी सरकार से नाखुश थी। अभी कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने राज्य में जिस तरह की भारी जीत दर्ज की थी उससे यह उम्मीद और बढ़ गई थी। लेकिन उसे पिछली विधानसभा चुनाव से भी कम सीटें मिल रही हैं।

अगर हम इसके कारणों की पड़ताल करें तो सबसे पहला कारण उसके चुनाव अभियान में ही छिपा है। हरियाणा विधानसभा चुनाव प्रचार में पार्टी ने अपने पिछले कामकाज को मुद्दा नहीं बनाया था। चुनाव अभियान में स्थानीय समस्याओं और मुद्दों को भी तवज्जो नहीं दिया गया था।

इसके बजाय पार्टी ने राष्ट्रीय मुद्दों जैसे अनुच्छेद 370, तीन तलाक और राष्ट्रवाद को अपना एजेंडा बना लिया था। उसके नेता से लेकर कार्यकर्ता स्थानीय समस्याओं की बात करने पर मोदी की लोकप्रियता की बात करने लगते थे। जनता को यह बात पसंद नहीं आ रही थी। चुनाव में बीजेपी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। आपको याद रखना होगा कि विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दों मतों को प्रभावित करते हैं।

दूसरा सबसे बड़ा कारण रोजगार की समस्या थी। विपक्ष ने इसे चुनाव में मुद्दा बनाया था। पूरे देश में जब बेरोजगारी दर आठ प्रतिशत के करीब थी तो हरियाणा में अप्रत्याशित रूप से यह 28 प्रतिशत के आसपास है। रोजगार सृजन में खट्टर सरकार नाकाम रही है। चुनावी सीजन में हरियाणा में घूमने के दौरान बहुत सारे युवा रोजगार की समस्या पर बात करते नजर आए। चुनाव में पहले डी ग्रुप की नौकरी की एक परीक्षा में जिस तरह की कुव्यवस्था हुई थी उससे युवाओं ने भारी नाराजगी थी। अपने पूरे कार्यकाल में बीजेपी युवाओं को एड्रेस करने में नाकाम रही।

पूरे देश में आटो इंडस्ट्री में मंदी आई हुई है, लेकिन हरियाणा में इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। हरियाणा में गुड़गांव, हिसार, फरीदाबाद, मानेसर, बल्लभगढ़ आदि आटो हब कहलाते है। चुनाव से पहले यहां रहने वाले ज्यादातर मजदूर बेरोजगार थे या नौकरी जाने को लेकर भयभीत थे। आटो सेक्टर के मजदूरों के लिए बीजेपी सरकार ने कुछ खास नहीं किया। सरकार ने मजदूरों को अकेले छोड़ दिया था। चुनाव के दौरान ज्यादातर मजदूर नेताओं का यही कहना था कि मजदूरों की नौकरी जाती रही और सरकार लगभग चुप रही। वह उनके साथ खड़ी नहीं थी।

इसके अलावा नए मोटर व्हीकल एक्ट को भी लेकर हरियाणा सरकार के प्रति वोटरों में गुस्सा था। तमाम बीजेपी शासित राज्यों में द्वारा इस कानून में ढील देने के बावजूद भी खट्टर सरकार ने इस कानून में बदलाव नहीं किया। उन्होंने सिर्फ दो महीने की जागरूकता की बात कही। वहीं विपक्षी पार्टियों ने इसे लेकर मुहिम छेड़ रखी थी। कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा और जेजेपी के दुष्यंत चौटाला दोनों ने साफ साफ इसमें बदलाव की बात कही थी। पूरे हरियाणा में इस कानून को लेकर लोगों में गुस्सा देखा जा सकता था।

अंत में बीजेपी को जाटों की नाराजगी का भी सामना करना पड़ा। करीब 30 फीसदी आबादी वाली यह जाति पिछले कई दशकों से हरियाणा में राजनीति की दिशा तय कर रही थी। जाट आंदोलन को लेकर बीजेपी ने जिस तरह का रुख अपनाया था उससे जाटों में बीजेपी को लेकर साफ नाराजगी देखी जा सकती थी। हालांकि बीजेपी की रणनीति जाट बनाम बाकी सारी जातियों को एकजुट करने की थी लेकिन उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिली।

हालांकि इसके उलट बीजेपी को कांग्रेस और इनेलो में फूट का जबरदस्त फायदा मिला है। अगर ये पार्टियां अपने आंतरिक कलह से उबर कर चुनाव में हिस्सा लेती तो बीजेपी की सीट में और कमी आ जाती। 

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