NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अगर हिमालय न होता तो फिर क्या होता...
आज हिमालय दिवस 9 सितंबर पर विशेष : यूरेशिया टेक्टॉनिक प्लेट खिसकने से विशाल समुद्र टेथिस से हिमालय की उत्पत्ति हुई और भारत का वो भूगोल बना जिसमें आज एक अरब 33 करोड़ लोग रहते हैं।
मनमीत
09 Sep 2020
अगर हिमालय न होता तो फिर क्या होता...

अगर हिमालय न होता तो भारत कैसा होता? जवाब सीधा है कि उत्तराखंड, हिमाचल, कश्मीर और पश्चिम उत्तर प्रदेश शीत रेगिस्तान होते। पंजाब और पूर्वी उत्तर प्रदेश में हरित क्रांति न होती और मध्य भारत में इतनी गर्मी होती कि वहां पर रहने लायक कुछ भी न होता। 

यूरेशिया टेक्टॉनिक प्लेट खिसकने से विशाल समुद्र टेथिस से हिमालय की उत्पत्ति हुई और भारत का वो भूगोल बना जिसमें आज एक अरब 33 करोड़ लोग रहते हैं।  इस विशाल टेथिस समुद्र का प्रतिनिधित्व अब केवल लेह से 125 किलोमीटर दूरी पर स्थित पेंगोंग झील करती है। जो तीस प्रतिशत भारत क्षेत्र में है और बाकी का सत्तर फीसद चीन में। लाखों सालों की प्रक्रिया से जब हिमालय का निर्माण हुआ तो उससे तीन प्राकृतिक और भौगोलिक परिघटनायें हुई। जिससे भारत रहने योग्य बना। ये तीन परिघटनायें थीं-

1. मानसून बंगाल की खाड़ी से उत्पन्न होता है और साउथ वेस्ट होते हुये हिमालय से टकराता है। बादल हिमालय से टकराकर लौटते हैं और जिससे उत्तरी भारत समेत राजस्थान तक जमकर बारिश होती है। इससे उत्तरी भारत से लेकर मध्य और पश्चिम भारत को नई आक्सीजन मिलती है। जीवन खुशहाल रहता है।  इस बारिश से तमाम नदियां, जल धारायें, जंगल और भूजल रिचार्ज होते हैं। अगर हिमालय नहीं होता तो ये मानसून के बादल सीधे पश्चिमी चीन होते हुये मंगोलिया से रूस के साइबेरिया में दाखिल हो जाता। मतलब, भारत में जो जून 21 या 22 तारीख को मानसून आता है और सितंबर आखिरी तक रहता है। वो केवल भारत के ऊपर से गुजरते वक्त कुछ बारिश करता और आगे निकल जाता। जिससे मध्य भारत का भूजल रिचार्ज नहीं होता और हिमालय की नदियों में पानी कम रहता। मसलन, जिन इलाकों में नहरों के जरिये खरीफ की फसलें होती हैं। वहां कुछ नहीं होता। 

2. हर साल जनवरी और फरवरी माह में उत्तरी ध्रुव से साइबेरिया होते हुये बर्फीली हवायें मंगोलिया पहुंचती हैं और वहां से चीन के शिंझियांग और तिब्बत होते हुये भारत में दाखिल होती। जिससे साइबेरिया, मंगोलिया और चीन के शिनझिंगया, गिनगाई, गानसू और तिब्बत की तरह हिमाचल, उत्तराखंड, कश्मीर और पश्चिमी उत्तर प्रदेश शीत मरूस्थल होते। लेकिन हिमालय होते हुये ये चीन से लौट जाती है। जिस कारण चीन का गोबी मरूस्थल का निर्माण हुआ और आज वो पर्यावरण के हिसाब से शून्य है। 

3. मानसून के अलावा पश्चमी, मध्य और उत्तर भारत में बारिश का एक मुख्य जरिया भू-मध्य सागर से उठने वाले पिश्चमी विक्षोभ का है। जो हर साल अपने साथ यूरोप के नीचे से भू-मध्य सागर से वाष्पीकरण कर बादल विकसित करता है और फिर ये बादल पाकिस्तान से होते हुये हिमालय से टकराते हैं। जिससे जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर को छोड़ (पोस्ट मानसून) भारत में बारिश होती है और हिमालय और इससे लगते कैचमेंट एरिया में बर्फबारी होती है। ग्लेशियर बनते हैं और फिर 12 महीने गंगा, यमुना, ब्रहमापुत्र सरीखी बड़ी नदियों में पानी रहता है। तापमान गर्मी से ठंडा हो जाता है। 

कुल मिलाकर हिमालय का हमारे जीवन में बड़ा योगदान है। इसलिये इसे थर्ड पोल या तीसरा ध्रुव भी कहते हैं। एक प्रमाणिक तथ्य ये भी है कि हिमालय की अगर पूरी बर्फ भी पिघल जाये तो भी हिमालय से निकलने वाली कोई भी नदी नहीं सूखेगी। इसके पीछे मौसम विज्ञान केंद्र का शोध है। असल में, हिमालय के ग्लेशियर नदियों को 12 महीने  पानी नही देते। मसलन, नवंबर, दिसंबर, जनवरी, फरवरी और मार्च में ग्लेश्यिर पूरी तरह से फ्रीज होते हैं। तापमान -20 डिग्री तक हो जाता है। तो ऐसे में फिर गंगा, यमुना, सिंधु, सतलुज, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों में पानी कहां से आता है? मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह बताते हैं कि ये पानी मानसून में विभिन्न जंगलों में स्टोर हुये पानी के जरिये नदियों तक पहुंचता है। उसी तरह से जैसे मध्य भारत में नर्मदा और गोदावरी में 12 महीने पानी रहता है और इन दोनों नदियों में  ग्लेशियर से पानी बिल्कुल भी नहीं आता। मैंने उनसे पूछा कि फिर अगर हिमालय की पूरी बर्फ पिघल जाये तो  क्या होगा? वो बताते हैं फिर होगा ये कि हिमालय क्षेत्र में जबरदस्त गर्मी पड़ेगी और यहां रहना मुश्किल होगा। इसलिये हिमालय को सही संरक्षण की जरूरत है। सबसे पहले इसे पॉलीथिन से बचाना होगा। क्योंकि ये ही एक ऐसा प्रदूषण है, जो हिमालय के लिये दीमक है।  इसके लिये जागरूक ही सबसे महत्पवूर्ण जरिया है। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

इसे भी पढ़ें : नेशनल ग्लेशियोलॉजी सेंटर  प्रोजेक्ट को बंद किए जाने के क्या नुकसान हैं?

 

 


बाकी खबरें

  • covid
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में आज फिर कोरोना के मामलों में क़रीब 27 फीसदी की बढ़ोतरी
    25 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,124 नए मामले सामने आए हैं। वहीं देश की राजधानी दिल्ली में एक दिन के भीतर कोरोना के मामले में 56 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
  • weat
    नंटू बनर्जी
    भारत में गेहूं की बढ़ती क़ीमतों से किसे फ़ायदा?
    25 May 2022
    अनुभव को देखते हुए, केंद्र का निर्यात प्रतिबंध अस्थायी हो सकता है। हाल के महीनों में भारत से निर्यात रिकॉर्ड तोड़ रहा है।
  • bulldozer
    ब्रह्म प्रकाश
    हिंदुत्व सपाट है और बुलडोज़र इसका प्रतीक है
    25 May 2022
    लेखक एक बुलडोज़र के प्रतीक में अर्थों की तलाश इसलिए करते हैं, क्योंकि ये बुलडोज़र अपने रास्ते में पड़ने वाले सभी चीज़ों को ध्वस्त करने के लिए भारत की सड़कों पर उतारे जा रहे हैं।
  • rp
    अजय कुमार
    कोरोना में जब दुनिया दर्द से कराह रही थी, तब अरबपतियों ने जमकर कमाई की
    25 May 2022
    वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम की वार्षिक बैठक में ऑक्सफैम इंटरनेशनल ने " प्रोफिटिंग फ्रॉम पेन" नाम से रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में उन ब्यौरे का जिक्र है कि जहां कोरोना महामारी के दौरान लोग दर्द से कराह रहे…
  • प्रभात पटनायक
    एक ‘अंतर्राष्ट्रीय’ मध्यवर्ग के उदय की प्रवृत्ति
    25 May 2022
    एक खास क्षेत्र जिसमें ‘मध्य वर्ग’ और मेहनतकशों के बीच की खाई को अभिव्यक्ति मिली है, वह है तीसरी दुनिया के देशों में मीडिया का रुख। बेशक, बड़े पूंजीपतियों के स्वामित्व में तथा उनके द्वारा नियंत्रित…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License