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यूपी में गेहूं ख़रीद : 50 फ़ीसदी किसान ही पहुंच पा रहे हैं क्रय केंद्रों तक
कोविड और लॉकडाउन की वजह से उत्तर प्रदेश में गेहूं ख़रीद प्रभावित हुई है। इसके अलावा क्रय केंद्रों पर बारदाने की कमी और साथ ही रजिस्ट्रेशन की जटिल प्रक्रिया ने भी गेहूं ख़रीद को मुश्किल बनाया है। इसके अलावा किसान को न खुले बाज़ार में दाम मिल रहा है न सरकार ने लागत के अनुसार एमएसपी तय की है।
पीयूष शर्मा, सत्यम कुमार
30 May 2021
बिजनौर ज़िले के गेहूं क्रय केंद्र
बिजनौर ज़िले के गेहूं क्रय केंद्र

कोरोना और लॉकडाउन के कारण उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। इसकी सबसे गहरी चोट प्रदेश के किसानों पर पड़ी है। इसका सबसे ताजा उदहारण अभी यूपी में चल रही गेहूं खरीद है। गेहूं खरीद के सरकारी आंकड़ों और ग्राउंड की स्थिति का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि किसान राज्य में अपनी फसल नहीं बेच पा रहा हैं।

ताजा आंकड़ों के मुताबिक गेहूं क्रय केंद्रों पर कुल रजिस्टर्ड किसानों के 50% ही पहुंच पा रहे हैं, और जो पहुंच रहे हैं उनको भारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा हैं, किसानों के प्रति सरकार के उपेक्षा और उदासीनता पूर्ण रवैये के चलते देश का अन्नदाता किसान बैंकों और साहूकारों के चंगुल में घिरता जा रहा है।

किसानों को C2 लागत के अनुसार गेहूं सही दाम नहीं मिल पा रहा

उत्तर प्रदेश का किसान इस वक्त नक़दी की भारी तंगी के दौर से गुजर रहा है। रात-दिन कड़ी मेहनत से काम करने के बावजूद किसान क़र्ज़ के मकड़जाल में फंसता जा रहा है। इस साल अच्छी पैदावार होने के बावजूद किसान अपनी फसल को सही दाम पर नहीं बेच पा रहा है, इस वर्ष राज्य सरकार ने गेहूं का MSP 1,975 रुपये प्रति कुंतल तय किया है जोकि पिछले वर्ष से महज 50 रुपये अधिक है और पिछले साल से वृद्धि बहुत ही मामूली है जो कि 2.6 % है| परन्तु वहीं  दूसरी और किसानों का कहना है कि पिछले साल की तुलना में लागत काफी बढ़ी है क्योंकि बिजली और डीजल, के दामो में काफी बढ़ोतरी हुई है।

राज्य सरकार द्वारा निर्धारित MSP, C2 लागत पर तय नहीं किया गया। वर्तमान MSP फसल की वास्तविक लागत के आधार पर न्यूनतम मूल्य से 365 रुपये प्रति कुंतल कम है, जो यह दर्शाता है कि सरकार किसान से कम मूल्य पर उसकी फसल को खरीद रही है, अब ऐसे में सरकार का किसान की आय दोगुनी करने का वायदा एकदम खोखला नजर आता है, योगी सरकार किसानों की, स्वामीनाथन कमेटी के अनुसार C2 लागत पर MSP निर्धारण की लम्बे समय से की जा रही मांग को दरकिनार कर रही है, जिसके कारण किसान अपनी फसल को घाटे में बेच रहे हैं। योगी सरकार के कार्यकाल में निर्धारित MSP और C2 लागत के अनुसार होने वाले न्यूनतम मूल्य, के अंतर को देखा जाए तब वास्तव में ज्ञात होगा कि भाजपा की डबल इंजन यह सरकार कितनी किसान हितैषी है।

पिछले कुछ सालों में लक्ष्य विहीन ख़रीद 

अभी राज्य में गेहूं की खरीद जारी है, गेहूं की खरीद की सरकारी क्रय केंद्रों पर 1 अप्रैल से 15 जून तक 7 एजेंसियों के 6000 केन्द्रों के माध्यम से गेहूं खरीदना निर्धारित किया है, परन्तु वास्तव में उत्तर प्रदेश खाद्य एवं रसद विभाग के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 5678 क्रय केंद्रों पर ही खरीद चल रही हैं, आपको यहां बताते चले की वर्ष 2020 में क्रय केंद्रों की संख्या 5735 थी और 2019 में यह संख्या वर्तमान वर्ष के क्रय केंद्रों से कहीं अधिक 6797 थी।

साथ ही आपको यहां बताते चले कि क्रय केंद्रों की अधिक संख्या होने के बावजूद पिछले दो सालों में योगी सरकार खरीद के लक्ष्य से काफी दूर रही, पिछले दो वर्षों यानी 2019 व 2020 में सरकारी खरीद क्रमश: 37.04 लाख मेट्रिक टन व 35.7 लाख मेट्रिक टन रही जबकि दोनों ही वर्ष खरीद लक्ष्य 55 लाख मेट्रिक टन था, योगी सरकार ने अपने कार्यकाल के केवल एक साल 2018 में अपने खरीद के लक्ष्य को प्राप्त किया था, जिसके लिए भी जानकार कहते है कि उस साल खरीद का लक्ष्य कम तय किया गया था।

परन्तु इस बार रबी क्रय योजना 2021-22 के लिए कोई खरीद लक्ष्य ही नहीं रखा हैं, इस सन्दर्भ में जब हमने सूबे के कृषि मंत्री सूर्यप्रताप शाही से बात की तो उन्होंने बताया कि तय तिथि के अंदर जबतक किसान बेचने के लिए केंद्रों में आएगा तब तक खरीद जारी रहेगी, इस पर भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक कहते हैं कि योगी सरकार ने पिछलों सालों की तरह लक्ष्य को प्राप्त न कर पाने की फजीहत से बचने के लिए इस बार कोई टारगेट रखा ही नहीं और लक्ष्य तय ना करना केवल नाकामी छुपाने का तरीका है, आज तक योगी सरकार द्वारा किसी भी वर्ष सरकारी खरीद कुल उत्पादन का 15% भी नहीं खरीद पायी है, जबकि पंजाब और हरियाणा, यूपी से कही अधिक सरकारी खरीद करते है।

क्या सही में किसान को MSP का लाभ मिल पा रहा है 

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इस MSP का फायदा किसानों को मिल ही नहीं पा रहा है क्योकि कुल उत्पादन में सरकारी खरीद 10 प्रतिशत भी नहीं है और अधिकांश किसान बिना MSP के ही अपनी फसल को बेचने पर मजबूर है, दिल्ली में गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे बिजनौर निवासी किसान सौरभ कहते हैं कि हम दिल्ली में 6 महीने से धरने पर बैठे हुए हैं, जिसमें हमारी प्रमुख मांग है कि MSP का कानून लेकर आओ ताकि सभी किसानों को MSP का फायदा मिल सके, अन्यथा किसान हमेशा औने-पौने दाम पर अपनी फ़सल बेचता रहेगा और हमेशा आर्थिक बोझ में दबा रहेगा। 

किसान केंद्रों पर ही नहीं पहुंच पा रहे 

पूरे राज्य में 28 मई तक कुल 7.71 लाख किसानों से ही गेहूं की खरीद हो पाई है जबकि प्रदेश में 14.82 लाख किसानों ने गेहूं बेचने के लिए पंजीकरण कराने के लिए आवेदन किया था पंजीकृत किसानों के सापेक्ष किसानों की संख्या जिनसे अभी तक गेहूं की खरीद हुई है वह मात्र 52.04 प्रतिशत है।

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उ.प्र. खाद्य एवं रसद विभाग के 2021-22 के गेहूं खरीद के सारांश में जिलेवार दी गयी जानकारी के अनुसार राज्य स्तर और कई जिलों में कुल पंजीकृत करने के लिए किये गए आवेदन के 50 प्रतिशत किसान ही क्रय सेंटरों पर पहुंचे।

26 मई तक पूरे राज्य में ऐसे 39 जिले हैं जिनमें कुल आवेदन किये हुए किसानों में से 50% से भी कम किसान केंद्रों पर पहुंचे है, जिनमे प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र वाराणसी भी शामिल है जिसमें कुल आवेदन में महज 35% किसान ही क्रय केंद्र तक पहुंचे है यानी 65% किसान आवेदन करने के बावजूद अपनी फसल को सरकारी केंद्र पर लेकर नहीं पहुंच पा रहे हैं, और यही हाल सूबे के मुखिया के क्षेत्र गोरखपुर का है जिसमे मात्र 46% किसान ही सेंटर पर पहुंच पाए है, यही स्थिति अन्य जिलों की भी जिसमे मुरादाबाद (45%), प्रयागराज(43%), हरदोई (48%), बिजनौर (44%) प्रमुख जिले हैं। 

किसानों के सेंटर पर कम पहुंचने का सीधा असर कुल खरीद पर पड़ता है, जिसके तहत सरकारी खरीद कम हो जाती है, ऐसे में जब इस साल की खरीद खत्म होने मात्र 15 से 18 शेष रह गए है तब कैसे बाकी बड़ी संख्या में बचे पंजीकृत किसान अपनी फसल के साथ क्रय केंद्रों पर पहुंच पाएंगे।

इस मसले पर उ.प्र. खाद्य एवं रसद विभाग के अपर आयुक्त (विपणन) अरुण कुमार सिंह कहते है कि सेंटर पर जो किसान पहुंचेगा उसी से खरीद सम्भव होगी। हम उनकी बात को ऐसे समझ सकते है कि जो किसान सेंटर पर अपनी फसल लेकर नहीं आएगा तो उसके लिए सरकार कुछ नहीं कर सकती है।

अपर आयुक्त (विपणन) अरुण कुमार सिंह सेंटर पर किसानों के न पहुंचने के कारण बताते हैं कि शुरुआत में पंचायत चुनाव इसका एक मुख्य कारण रहा है और अब जो सेंटर पर आ रहे हैं उनसे खरीद हो रही है। क्रय केंद्रों पर बारदाना, बोरों की पूरी व्यवस्था नहीं होने के सवाल पर वो कहते है कि डिस्ट्रीब्यूशन में समस्या आ रही है, कही बोरे ज्यादा है कही कम हैं और जहाँ बोरे कम हैं वहां पहुचाये जा रहे है, परन्तु जब हमने बोरों लेकर पड़ताल की तो पाया अभी भी बोरो की खरीद को लेकर आदेश जारी किए जा रहे हैं, जो यह दर्शाता है कि पहले से व्यवस्था नहीं की गयी थी, जिसके कारण अभी तौल प्रभावित हो रही हैं।

26 अप्रैल 2021 के एक शासनादेश में सरकार ने खुद माना है कि कोविड-19 बीमारी के कारण पर्याप्त रूप से क्रय केंद्र नहीं खुल पा रहे हैं जिससे किसानों को गेहूं के विक्रय में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

किसानों को केंद्रों बंद मिल रहे 

राज्य के कई जिलों में क्रय केंद्र सुचारु संचालित नहीं होना किसानों के लिए गंभीर समस्या बना हुआ है, आये दिन केंद्र बंद रहते हैं। बिजनौर जिले के हल्दौर कस्बे में स्थित SFC क्रय एजेंसी के गेहूं क्रय केंद्र पर बोरो के अभाव के कारण पिछले दो दिनों से गेहूं की खरीद नहीं हो पा रही है। गेहूं क्रय केन्द्र हल्दौर में सहायक जगदीश बताते है कि इस साल पिछले साल से ज्यादा गेहूं खरीद हुई है लेकिन अभी बारदाना नहीं होने के कारण खरीद बंद है। खरीद शुरू होने के सवाल पर वो कहते है कि कब शुरू होगी यह कहना मुश्किल है। जब बारदाना उपलब्ध तभी खरीद शुरू हो पाएगी| इसके साथ ही बिजनौर के गंज में PCF क्रय एजेंसी के केंद्र पर किसान पिछले दो दिनों से अपने ट्रैक्टर ट्राली में गेहूं लादे खरीद का इंतजार करते मिले, इसी केंद्र पर गेहूं बेचने आए किसानों ने बताया कि अधिकारी बता रहे हैं कि बारदाना नहीं है इसलिए खरीद रुकी हुई है और यहां भी यह जानकारी नहीं मिल सकी की कब तक खरीद की प्रक्रिया शुरू हो पाएगी।

बंद क्रय केंद्र खुलवाने के लिए बीजेपी विधायक का 8 घंटे का धरना 

इसी के विरोध में बलिया जिले के बैरिया क्षेत्र से बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह ने 27 मई, बृहस्पतिवार को क्रय केंद्र कई दिनों से बंद होने के कारण, 8 घंटे केंद्र पर ही धरना दिया। बीजेपी विधायक सुरेंद्र सिंह ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरफ से संचालन आदेश के बाद भी उनके विधानसभा क्षेत्र में गेहूं क्रय केंद्र लगभग चार दिनों से बंद है। सुरेंद्र सिंह ने बताया कि उन्होंने कई बार जिलाधिकारी से कहा, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं है। उन्होंने कहा कि जब तक क्रय केंद्र का संचालन शुरू नहीं होता तब तक वो क्रय केंद्र पर ही बैठे रहेंगे। सिंह ने आरोप लगाया कि अधिकारी और कर्मचारी बीजेपी सरकार को बदनाम कर रहे हैं और ये दुख की बात है कि बीजेपी की सरकार होते हुए भी क्रय केंद्र बंद है। धरने की जानकारी उन्होंने अपने फेसबुक अकाउंट पर भी जारी की है।

क्रय केंद्रों पर तौल बंद होने की समस्या एक-दो नहीं बल्कि राज्य के अधिकांश केन्द्रों की है, इटावा जिले की बरोली खुर्द सेफी के क्रय केंद्र जो कि सहकारी समिति का हैं इसके प्रबंधक रमेश चंद्र यादव का बताते हैं कि उनके केंद्र पर पिछले साल की तुलना में इस साल गेहूं की खरीद कम हुई है, क्रय केंद्र सुबह 9 बजे खुलता है और शाम को 6 बंद होता है। कोरोना काल में भी किसान केंद्र पर पहुच रहे हैं परन्तु पिछले शनिवार से बारदाना नहीं है, केवल 400 से 500 कुंतल गेहूं के लिये ही बारदाना आता है जिसके बाद जल्द ही बारदाने की कमी हो जाती है जिसके खरीद प्रक्रिया रुक जाती है। इसी प्रकार सहकारी संघ के क्रय केंद्र नोरिया हुसैनपुर पीलीभीत के प्रबंधक मोहम्मद यामीन ने बताया कि कोरोना काल के दौरान में भी किसान क्रय केंद्र पहुच रहे है, पेमेंट भी लगभग सात से आठ दिन में हो जाता है सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था परन्तु अब 20 मई से बारदाना न होने के कारण किसानों से गेहूं नहीं खरीदा जा रहा। 

कोविड महामारी के इस दौर में जहां व्यक्ति घर से बाहर नहीं निकलना नहीं चाहते वहीं दूसरी और हमारे अन्नदाता रात में भी अपने गेहूं के साथ खुले आसमान के नीचे सोने को मजबूर हैं। 

योगी सरकार अपने ही फ़ैसलों को लागू नहीं करवा पा रही 

राज्य सरकार ने गेहूं खरीद की नीति निर्धारण के शासनादेश में कहा था कि एक जनपद से सटे अन्य जनपद के किसान, जहाँ समीप में क्रय केंद्र वहां अपना गेहूं बेच सकते है, परन्तु धरातल ऐसा कुछ होता नजर नहीं आता है। इसके साथ ही इस बार राज्य सरकार ने गेहूं खरीदने के लिए राज्य में FPO को शामिल करने का निर्णय लिया, परन्तु 75 जिलों वाले सूबे में सरकार एक भी ऐसा FPO का क्रय केंद्र संचालित नहीं करवा पाई, इस विषय पर उ.प्र. खाद्य एवं रसद विभाग के अपर आयुक्त कहते है कि प्रदेश में FPO की जो पॉलिसी बनी थी, उसके मुताबिक कोई भी FPO उस पात्रता को हासिल नहीं कर पाया और कुछ आने के इच्छुक भी नहीं रहे होंगे, जिसके कारण प्रदेश में कोई भी FPO गेहूं की खरीद नहीं कर रहा हैं यानी क्रय केंद्र स्थापित न होने समस्या जस की तस है, खुद सरकार फैसले लेकर अमल नहीं कर पा रही है और किसानों को फसल बेचने के लिए उनके निकट क्रय केंद्र न हो पाने के कारण वो आढ़तियों को बहुत ही कम दामों पर अपनी फसल बेचने के लिए मजबूर है। FPO के क्रय केंद्र स्थापित न हो पाने पर भाकियू के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक कहते है कि ये FPO के क्रय केंद्र खोलने का फैसला बस कहने लिए था इससे ज्यादा और कुछ नहीं, इतने बड़े राज्य में फैसला लेकर भी सरकार FPO क्रय केंद्र स्थापित न करवा पाना सरकार की नाकामी साबित करता हैं। इसके साथ ही अधिकांश केंद्रों से गेहूं FCI को प्रेषित नही हो पा रहा हैं जिसके कारण भारी मात्रा में गेहूं बारिश से ख़राब हो सकता है, इसके लिए सयुंक्त सचिव ने पत्र लिखकर खेद भी प्रकट किया है और गेहूं को FCI में जल्दी भेजने के निर्देश भी दिए हैं।

कहीं राज्य की क्रय एजेंसियों की हालत खस्ता नहीं, भुगतान के लिए लोन की आवश्यकता क्यों ?

पहले भुगतान करने के लिए क्रय एजेंसियों को सरकार से लोन मिलता था, परंतु पिछले साल से यह हुआ कि एजेंसी बैंक से कर्जा लेंगी, जिसके लिए राज्य सरकार शासकीय गारंटी देगी और जो ब्याज लगेगा उसको सरकार एजेंसियों को वापसी कर देगी, योगी सरकार का क्रय एजेंसियों के द्वारा खरीद का भुगतान देने के लिए बैंक से ऋण दिलाने का यह फैसला एक अजीब सा है, कहीं इसका कारण एजेंसियों की आर्थिक हालत तो खस्ता होना तो नहीं हैं , आखिर क्यों सरकार की इतनी बड़ी सस्थाओं को बैंको से लोन लेना पड़ रहा है। केवल इस वर्ष में गेहूं खरीद के लिए तीन एजेंसियों को 3,680 करोड़ के ऋण की शासकीय गारंटी दी गयी है, जिसमे  खाद्य एवं रसद विभाग (विपणन शाखा) ने 880 करोड़, उत्तर प्रदेश सहकारी संघ (PCF) ने 2500 करोड़  तथा उत्तर प्रदेश उपभोक्ता सहकारी संघ (UPSS) 300 करोड़ रुपयों की शासकीय गारंटी दी हैं। लोन की इस धनराशि के ऊपर ब्याज के रूप में बैंकों को करोड़ों रुपयों का भुगतान करना होगा, अब ब्याज की राशि सरकारी क्रय एजेंसी को देना पड़े या राज्य सरकार को, बोझ तो जनता को ही सहना पड़ेगा, इस सन्दर्भ में जब हमने उ.प्र. खाद्य एवं रसद विभाग के अपर आयुक्त (विपणन) अरुण कुमार सिंह से बात तो उन्होंने कहाँ कि यह नीतिगत निर्णय है जिसको वह बताने के लिए सक्षम नहीं है। फिर इस विषय पर हमने उत्तर प्रदेश सहकारी संघ (PCF) के प्रबंध निदेशक से बात करने कि कोशिश की, लेकिन उन्होंने भी इस मसले पर जानकारी देने से मना कर दिया और कहा कि यह विभाग का अंदरूनी मामला है जिसकी जानकारी वह नहीं दे सकते हैं।

किसान नेता धर्मेंद्र मालिक एजेंसियों के लोन लेने की प्रक्रिया को एक साजिश का नाम देते हैं। वे कहते है कि सरकार की ये मंशा है की जो खरीद करने वाली संस्थाए हैं उन पर मोटा कर्जा कर दो, जिससे धीरे-धीरे वो खत्म हो जाए क्योंकि उनके ऊपर एक बड़ा कर्जा हो जायेगा फिर उनको बंद कर दिया जाएगा। अभी केंद्र सरकार जो ये तीन कृषि बिल लेकर आयी है, जिसके तहत सरकार की यही कोशिश है कि कॉर्पोरेट के पास यह सिस्टम कैसे जाए, सरकारी खरीद का बदलना और उसमे खरीद की प्रक्रिया में ऐसी बात शामिल करना इन तीन काले कृषि बिलों का ही इफ़ेक्ट है। कुल मिलाकर राज्य सरकार किसान को खुले बजार में कम दामों पर बेचने को लगातार मजबूर कर रही है।

भुगतान में देरी

राज्य के कृषि मंत्री के ट्वीट के अनुसार प्रदेश में गेहूं खरीद करने के बाद किसानों के 1,622.15 करोड़ रूपये बकाया हैं, जबकि नियम है कि फ़सल खरीदने के 72 घंटो के अंदर भुगतान हो जाना चाहिए पर इसके विपरीत किसान को भुगतान मिलने में हफ़्तों लग जा रहे हैं। हमने ग्राउंड पर जब बिजनौर के गंज में एक क्रय केंद्र पर 15 दिन पहले अपना गेहूं बेच चुके किसान से बात की तो उनका कहना था कि अभी तक उनका पेमेंट नहीं आया है। ऐसे में अब नकदी की भारी समस्या का सामना किसानों को करना पड़ रहा है। इस समय किसानों को नकदी की अधिक आवश्कता होती है क्योंकि उनको गन्ने की बुआई के लिये डीजल और खाद की आवश्कता होती है, कोविड के कारण पहले से बेहाल किसानों को समय पर उन का हक़ न मिलपाने के कारण उन की हालत और भी खराब हो गयी है। 

पेमेंट का भुगतान देर से होने पर अपर आयुक्त अरुण कुमार सिंह कहते हैं कि पेमेंट का भुगतान PFMS के माध्यम से हो रहा है, PFMS में कुछ देरी हो रही हैं लेकिन पेमेंट लगातार हो रहा है। उन्होंने बताया कि PFMS में आजकल वर्क लोड ज्यादा है क्योंकि किसान सम्मान निधि का भुगतान भी हो रहा है, कभी-कभी टेक्निकल रीज़न से भी विलम्ब होता है। भुगतान में देरी का कारण चाहे कोई भी रहे है जिसको परेशानी का सामना करना पड़ता है वह एक मात्र, उस फसल का मालिक किसान है। 

गेहूं के खरीद के मसले पर वर्तमान विधायक और उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू कहते है कि राज्य में गेहूं की खरीद ना के बराबर हो रही है, उन्नाव, बाराबंकी, लखीमपुर, सीतापुर, कुशीनगर, गोरखपुर जैसे कई जिलों के उदाहरण हैं जहाँ के क्रय केंद्रों पर किसान अपना गेहूं लेकर जा रहा है लेकिन उसके गेहूं की खरीद नहीं हो पा रही हैं, खाद्य रसद विभाग की 11 एजेंसियां है जिसमें से केवल 7 का ही क्रय संचालित है, और किसान MSP से भी कम पर बेचने को मजबूर है, 1975 रुपये सरकार ने तय किये है पर किसान बाजार में अपने गेहूं को मात्र 1100-1200 रुपयों में बेचने को मजबूर हैं और जो दलाल है बिचौलिया हैं वो क्रय केंद्र पर ही कम दामों पर खरीद रहे हैं, सरकार पूरी तरह से किसानों के साथ धोखा कर रही है और जो लक्ष्य दिखाया जा रहा है कि हम इतना गेहूं खरीद लिए हैं ये सिर्फ आंकड़े है, हेडिंग, ब्रांडिग हैं इसके अलावा इसमें और कोई सच्चाई नहीं हैं, सरकार केवल आंकड़े देती हैं और बस आंकड़ों की बाजीगरी हैं। जमीनी हकीकत उससे कोसों दूर है। सरकार जब लोन की गारंटी दे रही है तो यह जान रही है कि एजेंसियों की हालत सही नहीं है, यह जानते हुए भी सरकार की जिम्मेदारी, जवाबदेही कहीं दिखाई नहीं दे रही है।

रजिस्ट्रेशन से लेकर खरीदने तक की जटिल प्रक्रिया 

राज्य सरकार किसानों के रजिस्ट्रेशन के माध्यम से गेहूं खरीदती है जो की अपने आप में एक जटिल प्रक्रिया है क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में संचार और इंटरनेट की सुविधाएं बहुत ही कम हैं जिसके लिए उन्हें कॉमन सर्विस सेंटर जाना पड़ता जहाँ पर भी अक्सर इंटरनेट आदि काम नहीं कर रहे होते हैं, जिसके कारण बड़ी संख्या में किसान रजिस्ट्रेशन कराने की प्रक्रिया से रह जाते है और केवल इसी वजह मात्र से अपनी फ़सल नहीं बेच पाते हैं, इस विषय पर जानकार कहते है कि ऐसा कोई नियम नहीं होना चाहिए, बल्कि सभी किसानों को तय MSP पर बेचने का मौका दिया जाना चाहिए। रजिस्ट्रेशन के लिए किसान को खतौनी की भी आवयश्कता होती जिसके लिए उसे दूर तहसील जाना पड़ता है। लेकिन जब कोरोना के कारण सब बंद है तब किसान कैसे पूरी प्रक्रिया कर पायेगा, इस विषय पर धर्मेंद्र मालिक कहते है कि ये सुनने में तो अच्छा लगता है लेकिन अभी ये किसान की समझ से बाहर है वो कैसे कंप्यूटर पर रजिस्ट्रेशन करवाएं, वास्तव में यदि इस खरीद की प्रक्रिया को सरल बनाया जाए तो उत्पादन के सापेक्ष और कहीं अधिक खरीद होगी, इसके साथ ही वो सुझाव देते है कि सरकार के पास सब चीजे हैं तो होना ऐसा चाहिए कि एसडीएम अपने स्तर पर वेरिफाई करवा ले और किसान को रजिस्ट्रशन की जटिलता से दूर करके उसकी फसल की खरीद लें।

यूपी आल इंडिया किसान सभा (AIKS) के सचिव मुकुट का कहना है कि योगी सरकार की मंशा किसानों से गेहूं खरीदने की नहीं है, सरकार केवल दिखावा कर रही है कि वह कोरोना की इस घड़ी में सभी किसानों से गेहूं खरीद करेगी क्योंकि यदि सरकार को सच में किसानों का गेहूं खरीदना होता तो क्रय केन्द्रों में बार-बार बारदाने की कमी नहीं होती और न ही रजिस्ट्रेशन जटिल प्रक्रिया से वह छोटे किसानों को डराती है, किसान रजिस्ट्रेशन की इस लम्बी प्रक्रिया से बचने के लिये बिचौलियों को अपना गेहूं सस्ते दामो पर ही बेच देते हैं। 

किसान सभा से ही जुड़े बुलन्दशहर निवासी किसान नेता सुरेंद्र सिंह किसानों से खरीद न हो पाने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहते है कि स्वामीनाथन की रिपोर्ट के अनुसार MSP तय किया होता तो आज किसानों को लगभग 2300 रुपये प्रति कुन्तल दाम मिल रहा होता। साथ ही वो कहते है कि किसान आन्दोलन में बार-बार यही मांग हो रही है कि MSP पर कानून बने क्योंकि यदि MSP पर कानून होता तो कोई भी MSP से नीचे गेहूं नहीं खरीद पता और किसान को भी अपनी फसल का सही दाम मिल पता, और किसान की आर्थिक हालत कुछ बेहतर होती। 

योगी सरकार को किसानों की मांगों को ध्यान में रखते हुए स्वामीनाथन कमेटी के अनुसार C2 लागत के आधार पर MSP निर्धारित करना चाहिए और यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि खुले बाजार में भी किसानों से निर्धारित न्यूनतम मूल्य पर ही खरीद हो, और इसके साथ ही राज्य सरकार को विभिन्न एजेंसियों के क्रय केंद्रों की संख्या बढ़ानी चाहिए ताकि किसान बिचौलियों को कौड़ियों के भाव अपनी फ़सल बेचने को मजबूर न होना पड़े और खरीद के लिए अनिवार्य क्रय पंजीयन की प्रक्रिया से मुक्त किया जाए क्योकि पंजीयन के कारण काफी किसान अपनी फसल नहीं बेच पाते है। अगर सरकार ऐसा नहीं करती है तो किसानों को इस ख़ासा खामियाजा भुगतना पड़ेगा जिसका सीधा परिणाम राज्य की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। 

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