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जब 10 हज़ार पेड़ कट रहे होंगे, चिड़ियों के घोंसले, हाथियों के कॉरिडोर टूट रहे होंगे, आप ख़ामोश रहेंगे?
जौलीग्रांट के पास हुए रविवार के विरोध प्रदर्शन में देहरादून के कई पर्यावरण प्रेमी और संस्थाएं इकट्ठा हुईं और वन चिपको आंदोलन का आग़ाज़ किया गया। प्रदर्शनकारियों ने कहा “ सरकार को ऐसे विनाशकारी प्रोजेक्ट के विषय में दोबारा से विचार करना चाहिए यदि ऐसा नहीं किया गया तो आगे भी ऐसे जन आंदोलन जारी रहेंगे।”
वर्षा सिंह
19 Oct 2020
save thano protest
देहरादून में थानो के जंगल बचाने के लिए युवाओं का चिपको आंदोलन। फोटो : वर्षा सिंह

देहरादून के थानो गांव के दस हज़ार पेड़ बचाने के लिए रविवार को जौलीग्रांट एयरपोर्ट के पास युवाओं ने विरोध मार्च निकला। साल के हरे घने जंगल बचाने के लिए इस बार युवाओं ने चिपको आंदोलन छेड़ने की ठानी है। तय किया है कि यदि सरकार पेड़ों को काटने का अपना फ़ैसला वापस नहीं लेती है तो वे इससे भी बड़े आंदोलन के साथ जमा होंगे।

थानो के जंगल बचाने के लिए ट्विटर पर ट्वीट्स का तूफ़ान खड़ा किया जा रहा है। शनिवार और रविवार को लगातार शाम 5 से 7 बजे तक युवाओं ने अपने-अपने ट्विटर हैंडल पर ‘सेव थानो’ की मुहिम छेड़ी। सरकार को अपना फैसला वापस लेने के लिए सड़क से सोशल मीडिया तक ये युवाओं का मोर्चा है।

jouligrant airport construction site- pic credit AAI.jpg

जौलीग्रांट एयर पोर्ट पर चल रहा निर्माण कार्य। फोटो साभार : AAI

क्या है पूरा मामला

थानो देहरादून में जौलीग्रांट एयरपोर्ट के नज़दीक का हरा-भरा इलाका है। यहां साल के पेड़ के घने जंगल हैं। उत्तराखंड सरकार चाहती है कि देहरादून के जौलीग्रांट एयरपोर्ट का अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार विस्तार किया जाए। केंद्रीय नागरिक उड्डयन सचिव प्रदीप खरोला के साथ इस संबंध में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 10 अक्टूबर 2020 को बैठक की। इस महीने में एयरपोर्ट विस्तार को लेकर शासन स्तर पर तीन अहम बैठकें हो चुकी हैं। जौलीग्रांट एयरपोर्ट पर हवाई जहाजों की नाइट पार्किंग बनाने की भी तैयारी की जा रही है। एयरपोर्ट के विस्तार के लिए ज़मीन की आवश्यकता होगी। इसके लिए प्रदेश सरकार ने सैद्धांतिक फैसला ले लिया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बताया कि एयरपोर्ट विस्तार से जुड़ी जरूरी व्यवस्था की जा रही है। उन्हें उम्मीद है कि इससे राज्य में पर्यटन बढ़ेगा। सीमांत क्षेत्र होने की वजह से सामरिक दृष्टि से भी इस हवाई अड्डे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का होना जरूरी बताया जा रहा है। एयरपोर्ट विस्तार के पहले चरण का तकरीबन 80 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है।

थानो के जंगल 2.jpg

एयरपोर्ट विस्तार के लिए शिवालिक एलिफेंट रिजर्व की 215 एकड़ ज़मीन दी जाएगी

उत्तराखंड वन विभाग ने एयरपोर्ट विस्तार के लिए शिवालिक एलिफेंट रिजर्व की 215 एकड़ ज़मीन देने का फैसला किया है। शिवालिक रिजर्व देश में हाथियों के बड़े रिजर्व में से एक है। जो राजाजी टाइगर रिजर्व के इको सेंसेटिव ज़ोन के दस किलोमीटर के घेरे में में आता है। एयरपोर्ट का विस्तार करीब 9,745 पेड़ों की बलि लेकर होगा। जिसमें 3,405 खैर के वृक्ष, शीशम के 2,135 वृक्ष, सागौन के 185 वृक्ष, गुलमोहर के 120 वृक्ष के साथ 25 अलग पेड़ हैं।

थानो क्षेत्र के पास जौलीग्रांट को जाती सड़क.jpg

थानो गांव की ओर से एयरपोर्ट को जाती सड़क

सचिव नागरिक उड्डयन दिलीप जावलकर न्यूज़क्लिक को बताते हैं “जौलीग्रांट के विस्तार का फैसला पहले ही लिया जा चुका है। कितनी संख्या में पेड़ कट किया जाना है, इसकी मुझे ठीक-ठीक जानकारी नहीं है। इसके लिए वन भूमि हस्तांतरण का प्रस्ताव चल रहा है। एयरपोर्ट पर रनवे का कार्य अभी चल रहा है। अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिहाज से एयरपोर्ट को तैयार करने के लिए रनवे की ज़मीन का 3000 मीटर से अधिक का होना जरूरी है। अभी ये 2000 मीटर के आसपास है। तो उसके लिए अतिरिक्त ज़मीन ली जा रही है।”

एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने 24 सितंबर को अपने ट्विटर हैंडल पर जानकारी दी थी कि अथॉरिटी की ओर से 353 करोड़ रुपये का विस्तारीकरण का कार्य चल रहा है। जिसमें टर्मिनल बिल्डिंग, कार पार्किंग, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, रेन वाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर जैसे कार्य किए जाने हैं।

एयरपोर्ट विस्तारीकरण से रनवे की लंबाई बढ़ जाएगी। जिससे यहां से एयरबस की उड़ानें संभव हो सकेंगी। रनवे पर एक समय में अपेक्षाकृत अधिक यात्री आ सकेंगे।

एयरपोर्ट विस्तार के लिए केंद्रीय वन्य जीव बोर्ड को भूमि वन भूमि हस्तांतरण का प्रस्ताव भेजा गया है। केंद्रीय बोर्ड इसकी मंजूरी देता है तो दस हज़ार पेड़ काटे जाएंगे।

इसके बदले में सरकार ने तीन गुना पौध रोपण की बात कही है। हालांकि बमुश्किल दस प्रतिशत पौधरोपण ही सफल होता है। उनके घने वृक्षों में तब्दील होने में कई साल लगते हैं। खैर के वृक्ष 35-40 वर्ष में पूरा आकार लेते हैं। जिस जंगल को काटे जाने की बात हो रही है, उसमें कई वृक्ष 200 वर्ष से भी अधिक उम्र के हैं।

 ऑनलाइन पेटिशन

देहरादून की डेन्टिस्ट आंचल शर्मा ने “सेव थानो” के नाम से चेंज डॉट ऑर्ग संस्था पर याचिका दाखिल की है। 18 हज़ार से अधिक लोग इस याचिका पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। आंचल न्यूज़क्लिक से कहती हैं “ऑल वेदर रोड के लिए पूरे के पूरे पहाड़ काटे गए। अब एयरपोर्ट के लिए एक बड़ा जंगल काटने की तैयारी कर रहे हैं। आज 215 एकड़ उजाड़ने की बात है, कल वो 315 एकड़ भी हो सकता है। इस पेटिशन का मकसद है कि और भी लोग आवाज उठाएं। मैंने खुद उन जंगलों में मोर को घूमते देखा है। चिड़ियों को देखा है और वो इनवायरमेंटल असेसमेंट में कहते हैं कि यहां किसी ऐनिमल का हैबिटेट नहीं है। मैं बचपन से देहरादून में रहती हूं। मैंने यहां का मौसम बदलते देखा है। पहले हम सितंबर में स्वेटर पहना करते थे अब अक्टूबर में भी टीशर्ट में घूम रहे हैं। पेड़ों को काटने जैसी वजहों से ही हमारा मौसम बदल गया है।”

आंचल ने अपनी पेटिशन में बताया है कि देहरादून जौलीग्रांट एयरपोर्ट पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक हरिद्वार बाईपास से आता है और दूसरा थानो जंगल से। थानो का जंगल राजाजी नेशनल पार्क का हिस्सा है। जहां हाथी, हिरन, गुलदार, भालू, कई प्रजातियों की चिड़ियां रहती हैं। देहरादून के बाहर बसा ये एकमात्र जंगल है जो एक तरह से इस शहर के फेफड़े की तरह काम करता है। दस हज़ार पेड़ों में से करीब 2500 साल के पेड़ अंग्रेजों के ज़माने के हैं। इस समय देहरादून प्रदूषण के मामले में दिल्ली से कहीं कम नहीं है।

पर्यावरणीय प्रभाव आकलन की रिपोर्ट की एक तस्वीर.jpg

ईआईए रिपोर्ट में भी स्पष्ट है कि थानो जंगल इको सेंसेटिव ज़ोन है

पर्यावरणीय आकलन

जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार के लिए दी जाने वाली ज़मीन का पर्यावरणीय आकलन किया गया। इसमें बताया गया है कि इस जंगल के आसपास हाथी, गुलदार, चीतल, सांभर, जंगली भालू, बंदर, लंगूर जैसे जानवरों का वास स्थल है।

ये भी कहा गया है कि ये जगह वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 के तहत इको सेंसेटिव ज़ोन के दस किलोमीटर के दायरे में आती है। इसलिए इसे भी इको सेंसेटिव ज़ोन की तरह ही ट्रीट किया जाना चाहिए।

पर्यावरणीय आकलन में कहा गया है कि चिह्नित जगह राजाजी नेशनल पार्क के 10 किलोमीटर के दायरे में आने के साथ शिवालिक एलिफेंट रिजर्व का हिस्सा है। एलिफेंट कॉरिडोर यहां से तीन किलोमीटर के रेडियस में है। यहां खासतौर पर हाथी समेत अन्य वन्यजीवों की आवाजाही होती है। इसलिए एयरपोर्ट का विस्तारीकरण मानव-वन्यजीव संघर्ष को बढ़ावा दे सकता है।

सड़क से लगे थानो के जंगल (1).jpg

“ये तो हम एलीट डेवलपमेंट कर रहे हैं”

वन्यजीव पक्षी विशेषज्ञ संजय सोढी कहते हैं “ थानो का जंगल जैव-विविधता के लिहाज से बेहद समृद्ध है। वहां स्प्रिंग बर्ड फेस्टिवल भी आयोजित किया जा चुका है। चिड़ियों और तितली की मौजूदगी यहां खूब देखी जाती है। अगर इस जगह को उजड़ने से बचाया जा सकता है तो निश्चित तौर पर इसका प्रयास करना चाहिए। वैकल्पिक मार्ग बनाना चाहिए। देहरादून शहर के बाहर हमारे पास जंगल का जितना भी क्षेत्र है उसमें बहुत सारी जैव विविधता है। हमें उसे विकसित करना चाहिए। बर्ड वाचिंग, बटरफ्लाई वाचिंग, लोकल होमस्टे करना चाहिए। जिससे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार बढ़े। ये तो हम एलीट का डेवलपमेंट कर रहे हैं। हम सिर्फ बड़े प्रोजेक्ट की चिंता कर रहे हैं। जितने बड़े प्रोजेक्ट हों उतना अच्छा है। लोगों को लगता है कि बिग इज़ ब्यूटीफुल। हम इसका सपोर्ट नहीं करते।

पेड़ों के कटने के मामले की स्थानीय लोगों को नहीं ख़बर

पेड़ों के कटने की सूचना पर एक बड़ा विरोध प्रदर्शन हो चुका है। लेकिन थानो के आसपास के गांव के स्थानीय लोग इससे अंजान हैं। थानो गांव की प्रधान बबीता तिवारी के पति चंद्रप्रकाश तिवारी हज़ारों पेड़ों के काटने की घटना से अंजान हैं। वह कहते हैं “हमें नहीं पता कि यहां पेड़ काटे जाने हैं। हम ये बात पता करेंगे”।

दस हज़ार पेड़ काटने के फैसले का विरोध.jpeg

देहरादून में चिपको आंदोलन

देहरादून की संस्था सिटिजन फॉर ग्रीन दून के हिमांशु अरोड़ा का कहना है “हम इस मामले को कोर्ट में ले जाने का भी विचार कर रहे हैं। रविवार को हमने प्रतीकात्मक चिपको आंदोलन किया। पेड़ों को रक्षा सूत्र बांधा। ये बताने के लिए कि असलियत में पेड़ काटे गए तो चिपको आंदोलन शुरू हो सकता है।”

हिमांशु कहते हैं कि आप दिल्ली की तर्ज पर देहरादून में निर्माण कार्य नहीं कर सकते। “15 प्रतिशत परिचालन खर्च, रनिंग-फ्यूल जैसे खर्च बचाने के लिए एयरपोर्ट का विस्तार किया जा रहा है। मैदानी क्षेत्र के विकास का मॉडल यहां नहीं चल सकता। पहाड़ों में लोग छुट्टियां बिताने आते हैं। फिर लोग यहां क्यों आएंगे। पहाड़ से कितने यात्री सिंगापुर की इंटरनेशनल उड़ान भरते हैं।”

जौलीग्रांट के पास हुए रविवार के विरोध प्रदर्शन में देहरादून के कई पर्यावरण प्रेमी और संस्थाएं इकट्ठा हुईं और वन चिपको आंदोलन का आग़ाज़ किया गया। प्रदर्शनकारियों ने कहा “ सरकार को ऐसे विनाशकारी प्रोजेक्ट के विषय में दोबारा से विचार करना चाहिए यदि ऐसा नहीं किया गया तो आगे भी ऐसे जन आंदोलन जारी रहेंगे”।

ऐतिहासिक चिपको आंदोलन की छांव में

व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए पेड़ों पर अंधाधुंध कुल्हाड़ियां चल रहीं हैं। इसी के ख़िलाफ़ वर्ष 1974 में उत्तराखंड में ऐतिहासिक चिपको आंदोलन हुआ। उस समय उत्तरकाशी के रैंणी गांव में करीब ढाई हज़ार पेड़ों को काटने से रोकने के लिए सुंदरलाल बहुगुणा की अगुवाई में गौरा देवी के साथ बड़ी संख्या में महिलाएं इकट्ठा हो गई थीं। ठेकेदार और उसके साथ आए लोगों को उन्होंने पेड़ों तक पहुंचने नहीं दिया। वे पेड़ों से चिपक गई और आह्वान किया कि कुल्हाड़ियां पहले हम पर चलेंगी फिर पेड़ों पर। चिपको की लहर इतनी तेज़ उठी थी कि तत्कालीन केंद्र सरकार ने अगले 15 सालों के लिए हिमालयी क्षेत्र में पेड़ों के काटने पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी एक हज़ार मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित वनों के कटान पर रोक लगा दी। देहरादून के युवा उसी ऐतिहासिक चिपको आंदोलन की छांव में अपने जंगल को बचाने के लिए एकजुट हो रहे हैं।

देहरादून में चिपको आंदोलन (1).jpeg

आरे आंदोलनकारी भी आए साथ

देहरादून के युवाओं के इस आंदोलन को सोशल मीडिया पर विदेशों से भी समर्थन मिल रहा है। मुंबई में आरे मेट्रो प्रोजेक्ट रोकने वाले संघर्षशील लोगों ने भी एकजुटता दिखाई है। आरे के जंगल भी मुंबई के फेफड़े माने जाते हैं, जिससे इस महानगर को ताज़ी हवा मिलती है। लेकिन पिछले वर्ष बीजेपी की फडणवीस सरकार ने इन जंगलों के बीचों बीच मुंबई मेट्रो कार शेड बनाने का फैसला लिया गया। तकरीबन 2700 पेड़ इस कार शेड के लिए काटे जाने थे। 800 पेड़ काट भी दिए गए। तब आरे के लोगों ने आधी रात को पेड़ कटने का विरोध किया। मामला कोर्ट में भी गया। लोगों के विरोध के बाद जंगल में इस प्रोजेक्ट को रोकना पड़ा। अब गठबंधन की उद्धव सरकार ने खुले स्थान पर कार शेड बनाने का फैसला लिया है ताकि पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे।

आरे मामले में भी सरकार का तर्क था कि ये जंगल नहीं है। उत्तराखंड में डीम्ड जंगल की परिभाषा बदलने के पीछे भी ऐसी ही वजह काम करती रही हैं। ताकि कम घनत्व वाले जंगल को आप काट कर निर्माण कार्य कर सकें और उसे “विकास” कहें। ऑल वेदर रोड पहले ही उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर बेतरतीब-अवैज्ञानिक तोड़-फोड़ मचा चुका है। देहरादून के युवाओं ने ये बता दिया है कि वे अपने पेड़ों को ऐसे निर्माण कार्यों के लिए किसी सूरत में कटने नहीं देंगे।

(वर्षा सिंह देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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