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कोविड-19
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
जब कोविड-19 ने ग्रामीण भारत में रखा कदम 
यदि भारत में कोविड-19 के दो-तिहाई मामले ग्रामीण क्षेत्रों आ रहे हैं, तो यह सिर्फ इसलिए है क्योंकि सरकार यह मानने से इंकार कर रही है कि हालात कितने गंभीर है।
रश्मि सहगल
26 Sep 2020
Translated by महेश कुमार
कोरोना वायरस
Image Courtesy: Arghyam

अब नए आंकड़े इस बात को साबित कर रहे हैं कि कोविड-19 के रोजाना एक लाख में से करीब दो-तिहाई मामले ग्रामीण भारत या ग्रामीण जिलों से आ रहे हैं। नॉवेल कोरोना वायरस अब देश के सभी कोनों में खासकर देश के आंतरिक हिस्सों में पहुँच गया है जहां 65 प्रतिशत आबादी रहती है। कम से कम 714 जिलों में कोविड-19 मामले सक्रिय हैं, जिसका मतलब है कि 95 प्रतिशत आबादी के संक्रमित होने का खतरा है। यहाँ यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि सभी सरकारी अस्पतालों के 65 प्रतिशत बेड शहरी केंद्रों में स्थित हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने पुष्टि की कि अर्ध-शहरी क्षेत्रों से भी अधिक संख्या में मामले सामने आ रहे हैं।

इन परिस्थितियों में, वायरोलॉजिस्ट और महामारी के वैज्ञानिकों का मानना है कि अब महामारी को नियंत्रित करने की कोशिश करना संभव नहीं है। बल्कि, इंडियन पब्लिक हेल्थ एसोसिएशन और इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन के सर्वश्रेष्ठ रणनीतिकार, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि मध्यम और गंभीर रूप से बीमार रोगियों को चिकित्सा देने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए है, ताकि मृत्यु दर पर नज़र रखी जा सके।

लीडिंग वायरोलॉजिस्ट डॉ॰ शाहिद जमील, जो वेलकम ट्रस्ट डीबीटी इंडिया एलायंस के सीईओ भी हैं, कहते हैं, “कोविड-19 मरीजों के संपर्कों को ट्रेस करके बीमारी की रोकथाम करने की कोशिश करना अब असंभव है। हमें कम गंभीर मामलों और गंभीर रूप से बीमार लोगों पर ध्यान केंद्रित करना होगा।”

डॉ॰ जमील कहते हैं कि, “ रोजाना 1,150 लोगों की मृत्यु दर दुनिया में सबसे अधिक है, अगर जुलाई के मध्य से इसका अंदाज़ा लगाया जाए जब हमारी दैनिक मृत्यु दर कुल 540 थी तो यह चिंता की बात है। केवल दो ही महीनों में, हमारी दैनिक मौतें 115 प्रतिशत बढ़ गई हैं, जबकि हमारे दैनिक मामले 230 प्रतिशत बढ़े है। यह एक अत्यंत चिंताजनक स्थिति है।”

इससे भी अधिक खतरनाक बात भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की खराब स्थिति का होना है। सार्वजनिक स्वास्थ्य उपेक्षित रहा है, खासकर पिछले दो दशकों में। जुलाई में, बिहार के जहानाबाद जिले से एक दिल दहला देने वाला वीडियो सामने आया था जिसमें एक माँ अपने तीन साल के बेटे की लाश लिए जाते हुए दिखाई दी थी, जिसकी मृत्यु हो गई थी, क्योंकि उसे राज्य की राजधानी पटना से सिर्फ 48 किमी दूर ले जाने के लिए कोई एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं थी। कोविड-19 ग्रामीण भारत में एक वास्तविकता है लेकिन इससे निपटने के लिए किफायती अस्पताल, चिकित्सा कर्मचारी या एंबुलेंस नदारद हैं?

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ॰ के॰ श्रीनाथ रेड्डी ने कहा कि दक्षिणी भारत के राज्यों में मामलों में तेजी को इस तथ्य से समझाया जा सकता है कि ग्रामीण-शहरी आबादी अधिक विभाजित नहीं है। “लोग ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच आ-जा रहे हैं, मुख्यतः काम के कारण, और वे वायरस को अपने साथ ले जाते हैं। मैं कहूंगा कि व्यापक रूप से स्थानीय स्तर पर संक्रमण हो रहा है,”।

“अब बात हाथ से निकाल गई है और इसे रोकना संभव नहीं है। संक्रमण अधिक जटिल है क्योंकि इसकी गति हर राज्य में अलग है,” उक्त बातें डॉ॰ विक्रम पटेल, जो हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में ग्लोबल हेल्थ एंड सोशल मेडिसिन विभाग में ग्लोबल हेल्थ के प्रोफेसर हैं।

तीन राज्य, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार मौजूदा स्थिति के बड़े उदाहरण हैं। ओडिशा में 60 प्रतिशत  से अधिक नए मामले ग्रामीण इलाकों से आए हैं। अप्रैल के अंत तक, संक्रमण काफी हद तक शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित था, लेकिन प्रवासी श्रमिकों के वापस लौटने के बाद यह स्थिति बदल गई है। 

प्रवासियों के बड़ी संख्या में वापस आने के बाद पश्चिम बंगाल को भी मामलों में बढ़ोतरी का समान करना पड़ा। बिहार, भी, कोविड-19 संक्रमण और गंभीर बाढ़ से दोहरी मार झेल रहा है।

महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में भी बीमारी का व्यापक संक्रमण दिखाई दे रहा है: नगरपालिका के क्षेत्रों में 17,423 मौतें हुई हैं, और ग्रामीण इलाकों में 5,371 से अधिक मौतें हुई हैं।

आंध्र प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे में सुधार लाने के प्रयास जारी हैं, जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और अर्ध-शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी और सीएचसी) कोविड-देखभाल केंद्र की संख्या दोगुना हो रहे हैं। तेलंगाना में बीमारी सभी ग्रामीण जिलों में जंगली आग की तरह फैल गई है, जबकि मध्य प्रदेश में, अधिकारियों का अनुमान है, संक्रमण के पदचिह्न सभी 52 जिलों में महसूस किए जा सकते हैं।

असम में, एक महीने पहले 41 प्रतिशत दर्ज मामले ग्रामीण क्षेत्रों में थे, लेकिन अब यह बढ़कर 70 प्रतिशत हो गए है। पंजाब में 2.94 प्रतिशत की मृत्यु दर है, जिससे राज्य सरकार को चिंता हो गई है और इसलिए सरकार अब ग्रामीण क्षेत्रों में ध्यान देने की पहल शुरू की है। अब स्वास्थ्य प्रणाली ग्रामीण निवासियों को बड़ी संख्या में आकर जांच कराने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रही है।

डॉ॰ पटेल को लगता है कि संक्रमण तब तक फैलता रहेगा जब तक कि भारत हर्ड इंयुमिटी हासिल नहीं कर लेता है, हालांकि अभी भी कोरोनावायरस के व्यवहार की पूरी निश्चितता के साथ भविष्यवाणी करना संभव नहीं है। गांवों में इसका मुकाबला करने के लिए मिश्रित रणनीतियों का होना जरूरी है, जैसे कि सभी उपलब्ध सुविधाओं की क्षमता बढ़ाना, यहां तक कि रेलवे कोचों में आइसोलेशन वार्ड स्थापित करना। “सरकार ने पहले रेलवे के डिब्बों का उपयोग करने की योजना बनाई थी, लेकिन गर्मियों के महीनों में वे बहुत गर्म हो जाते हैं। अगर इनका नवीनीकरण किया जाता है, तो इन डिब्बों का उपयोग वर्तमान मौसम में किया जा सकता है, ”डॉ॰ जमील कहते हैं। उनका कहना है कि चूंकि अधिकांश भारतीय सेल फोन रखते हैं, इसलिए रोगियों के साथ टेली-मेडिसिन संवाद करना भी एक प्रभावी तरीका हो सकता है।
डॉ॰ रेड्डी तुरंत नागरिक-नेतृत्व वाले स्वयंसेवक समूहों के निर्माण करने का समर्थन करते हैं, जो बुनियादी प्रशिक्षण दिए जाने के बाद, रोकथाम की रणनीतियों को लागू करने में मदद कर सकते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-19 की बढ़ती संख्या के मामले में सरकार द्वारा पिछले छह महीनों से भेजे जा रहे मिश्रित संदेशों गलतफहमी के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है। उदाहरण के लिए, यह कई बार कहा गया है कि भारत की मृत्यु दर कम है और ठीक होने की दर ऊंची है, लेकिन यह आधा सच हैं। यह भी तर्क दिया जा सकता है कि पूरे दक्षिण एशिया में मृत्यु दर कम है: श्रीलंका में मृत्यु दर 0.6 मिलियन है, बांग्लादेश में प्रति मिलियन 29, पाकिस्तान में 29 प्रति मिलियन और नेपाल में मृत्यु दर 13 प्रति मिलियन है।

एक अन्य अस्पष्ट संदेश का उदाहरण स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का वह बयान है कि  भारत के 3.6 प्रतिशत मरीजों को ही "केवल" ऑक्सीजन की जरूरत है, "केवल" 2.1 प्रतिशत मरीजों को गहन देखभाल की और केवल 0.3 प्रतिशत को वेंटीलेटर की जरूरत है। ये प्रतिशत छोटे दिखाई दे सकते हैं, लेकिन भारत में रोगियों की वास्तविक संख्या बड़ी है- दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी है- इसलिए ऑक्सीजन सहायता, आईसीयू और वेंटिलेटर की आवश्यकता वास्तव में बड़े पैमाने पर है।

जबकि इन दावों को ध्यान में नहीं रखा गया है कि भारत में बड़ी संख्या में ऐसे मामले हैं जिनका पता ही नहीं है की वे संक्रमित हैं: एक अनुमान के अनुसार  410 से 650 मिलियन यानि 41 करोड़ से 65 करोड़ के बीच लोग संक्रमित होने की संभावना हैं, जिसकी  पुष्टि डॉ॰ जमील ने हाल ही में एक साक्षात्कार में की थी। मई और जून के बीच किए गए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के सीरोलॉजिकल सर्वे का सुझाव था कि हर पाए गए मामले पर 82 से 130 गैर-पाए मामलों होने की संभावना थी। इस प्रकार, भारत के वर्तमान 50 लाख दर्ज मामलों का तात्पर्य 410 से 650 मिलियन यानि 41 करोड़ से 65 करोड़ अनिर्धारित मामलों से है।

सरकार के मिश्रित संदेश का परिणाम यह है कि जब शुरू में हर दिन 1,000 नए मामले आ आ रहे थे, तो जनता बेहद सतर्क थी और घर में रहती थी। लेकिन अब, जब हर दिन 1 लाख नए मामलों आ रहे ऐन तो सावधानी हट गई है और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि इससे स्थिति बिगड़ रही है।जिस गति से वायरस फैल रहा है, भारत, संयुक्त राज्य अमरीका से भी आगे निकलने की पूरी तैयारी में है क्योंकि वर्तमान में लगभग 93,000 दैनिक मामले आ रहे हैं, जबकि संयुक्त राज्य अमेरिका में हर दिन सिर्फ 39,000 मामले मिल रहे है।

डॉ॰ जमील ने हालिया इंटरव्यू में कहा था कि 7 अगस्त को भारत की कोविड-19 की संख्या 20 लाख थी जो  23 अगस्त तक को 30 लाख और 5 सितंबर को 40 लाख और 16 सितंबर को 50 लाख को पार कर गई थी।

स्वतंत्र कोविड-19 ट्रैकर भी स्वास्थ्य मंत्रालय की तुलना में थोड़ी अधिक मृत्यु दर की रिपोर्ट कर रहे हैं। Worldometers.info के अनुसार, भारत में 5,818,570 पुष्ट मामले और 92,317 कोविड-19 की मौतें हुई हैं।

अतीत में भी महामारियां हुई हैं, और इन्होने भी काफी हद तक गरीबों को ही प्रभावित किया था जिन्हें मीडिया का अतीत में बहुत कम ध्यान मिला था। जैसा कि डॉ॰ पटेल कहते हैं, "इस बार सिर्फ अंतर इस बात का है कि वायरस अमीर और गरीब दोनों को मार रहा है। यह महामारी सरकार की पोल खोलने में भी हमारी मदद करती है कि हमारी स्वास्थ्य प्रणाली कितनी बुरी हालत में है। यह स्वास्थ्य प्रणाली को सँवारने की जरूरत के मामले में सरकार के लिए एक बड़ी चेतावनी है।”

सरकार जितनी जल्दी बेहतरी के कदम उठाएगी, स्थिति उतनी ही बेहतर होगी। अन्यथा, यह सिर्फ वायरस ही नहीं, बल्कि आधुनिक युग में महामारी का अभद्र आक्रमण भारत में हमेशा के लिए तबाही का निशान छोड़ देगा।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं और व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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