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दिल्ली में कोरोना संकट का ज़िम्मेदार कौन? क्या विफल हो गई है केजरीवाल सरकार!
दिल्ली के अच्छे-बुरे हर हालात के लिए तीन शासन व्यवस्थाएं केंद्र, राज्य और एमसीडी तीनों ज़िम्मेदार हैं। और पार्टी-पॉलिटिक्स से अलग आज की कोरोना त्रासदी के लिए इन तीनों से ही जवाब मांगा जाना चाहिए। और इनमें सबसे पहले जवाबदेही बनती है राज्य की केजरीवाल सरकार की, जो बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था के नाम पर दोबारा दिल्ली की सत्ता में आई।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
13 Jun 2020
दिल्ली में कोरोना संकट का ज़िम्मेदार कौन? क्या विफल हो गई है केजरीवाल सरकार!

दिल्ली: हर दिन कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों के बीच दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था का बुरा हाल है। देश की राजधानी में शुक्रवार को कोरोना वायरस के नए केसेज की संख्‍या ने पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, शुक्रवार को दिल्‍ली में 2,137 लोग पॉजिटिव टेस्‍ट हुए।

इसी के साथ, दिल्‍ली में कोविड-19 के मरीजों की संख्‍या 36,824 हो चुकी है। पिछले 15 दिन के आंकड़े देखें तो दिल्‍ली और चेन्‍नई में मुंबई से दोगुनी रफ्तार से कोरोना के मामले सामने आए हैं। वहीं, दिल्‍ली में अहमदाबाद से तीन गुना तेजी से मरीज बढ़े हैं।

बुरे हैं हालात

सुप्रीम कोर्ट ने भी अस्पतालों में कोविड-19 से संक्रमित मरीजों के इलाज और उनके साथ ही शवों को रखे जाने की घटनाओं का स्वत: संज्ञान लेते हुये इसे दिल दहलाने वाला बताया और शुक्रवार को केन्द्र और विभिन्न राज्य सरकारों से जवाब मांगा। पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, ‘दिल्ली की स्थिति तो बहुत ही भयावह और दयनीय है।’

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने इस स्थिति पर चिंता व्यक्त की और कहा कि अस्पताल न तो शवों को ठीक से रखने की ओर ध्यान दे रहे हैं और न ही मृतकों के बारे में उनके परिवारों को ही सूचित कर रहे हैं जिसका नतीजा यह हो रहा है कि वे अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पा रहे हैं।

अदालत ने दिल्ली सरकार के वकील से कहा कि अस्पतालों में हर जगह बॉडी फैली हुई हैं और लोगों का वहां इलाज चल रहा है। अदालत ने कहा कि बेड खाली हैं लेकिन मरीजों को देखने वाला कोई नहीं है। अदालत ने उन वीडियो का जिक्र किया जिसमें मरीज रो रहे हैं और कोई उन्हें देखने वाला नहीं है।

अदालत ने कहा कि ये सवाल है कि दिल्ली सरकार कोरोना टेस्ट को कम कर रही है। राज्य की ड्यूटी है कि वह टेस्टिंग को बढ़ाए। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार से इस मामले में जवाब दाखिल करने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने एलएनजेपी अस्पताल की स्थिति को गंभीरता से लिया है और उसे भी जवाब दाखिल करने को कहा गया है।

वहीं, दिल्ली में कोरोना वायरस से होने वाली मौत के आंकड़ों को छिपाने का आरोप राज्य की आम आदमी पार्टी की सरकार पर लग रहे हैं। यह आरोप भाजपा शासित दिल्ली के तीनों नगर निगमों की ओर से लगाया जा रहा है।

दिल्ली के तीनों नगर निगमों (एमसीडी) का कहना है कि उनके अधिकार क्षेत्र के तहत आने वाले श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में अब तक कोरोना वायरस से संक्रमित 2098 मृतकों का अंतिम संस्कार किया जा चुका है। नगर निगम ने कहा कि यह संख्या दिल्ली सरकार द्वारा गुरुवार को जारी कोरोना मृतकों की 1,085 की संख्या से लगभग दोगुनी है।

केजरीवाल पर विफल होने का आरोप

कोविड-19 से निपटने के संबंध में दिल्ली सरकार पर उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी का जिक्र करते हुए भाजपा ने शुक्रवार को कहा कि राष्ट्रीय राजधानी की सच्चाई बाहर आ गई है, दिल्ली में स्वास्थ्य व्यवस्था बुरी तरह चरमरा गई है और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ‘विफल’ हो गए हैं।

वहीं, कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि पिछले तीन महीनों से केंद्र और दिल्ली सरकारों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है। हर तरफ अराजकता का माहौल है। उन्होंने कहा कि दिल्ली के 38 में से 33 हॉस्पिटल कोरोना मरीजों को भर्ती नहीं कर रहे हैं। हम सरकार से मांग करते हैं हॉस्पिटल में 70 फीसदी बेड कोरोना मरीजों के लिए रिजर्व किया जाए। सरकार टेस्टिंग प्रक्रिया को और तेज करें और मरीजों के आंकड़े को कम करने के लिए टेस्ट को रोका न जाए।

वहीं, दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अनिल चौधरी ने कहा कि स्थिति दिल्ली सरकार के हाथ से निकल गई है। सीएम अरविंद केजरीवाल सिर्फ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं और आंकड़े बता रहे हैं। एलजी ने दो दिन पहले सर्वदलीय बैठक बुलाई, जिसमें आम आदमी पार्टी की ओर से कोई नहीं आया।

क्या है तैयारी?

दिल्ली में बुरे होते हालात के मद्देनजर अब उप राज्यपाल अनिल बैजल ने भी मोर्चा संभाल लिया है। उन्होंने जिला प्रशासन और पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि कंटेनमेंट जोन को लेकर जो गाइडलाइंस तैयार की गई हैं, उनको सख्ती से लागू किया जाए।

उपराज्यपाल ने शुक्रवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कंटेनमेंट जोन के प्रबंधन रणनीति पर चर्चा की। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी इसमें शामिल थे। उपराज्यपाल ने एक बार फिर दोहराया कि अस्पतालों को एलईडी बोर्ड पर बेड की उपलब्धता, चार्जेज के बारे में स्पष्ट तौर पर जानकारी देनी होगी।

दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) ने शुक्रवार को कहा कि कोविड-19 स्थिति से निपटने के लिये बिस्तरों की संख्या और मेडिकल संसाधन बढ़ाना शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने यह सुनिश्चित किए जाने पर बल दिया कि संक्रमण के मामलों के बढ़ने के साथ शहर की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमराए ना।

शुक्रवार को ही एक बयान में दिल्‍ली के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री सत्‍येंद्र जैन ने कहा कि 'बेड्स और वेंटिलेटर्स बढ़ाए जाएंगे।' उन्‍होंने केंद्र सरकार से भी मदद मांगी है। दिल्‍ली सरकार का प्‍लान स्‍टेडियम, बैंक्‍वेंट, कम्‍युनिटी हॉल्‍स और धर्मस्‍थलों को टेम्‍प्रेरी अस्‍पताल के तौर पर इस्‍तेमाल करने का है।

कोरोना मरीजों के उपचार के दौरान दिल्ली के लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल पर लापरवाही के कई आरोप लगे हैं। इन आरोपों पर सफाई देते हुए दिल्ली सरकार ने शुक्रवार को कहा है कि अस्पताल में 2100 से ज्यादा कोरोना मरीज स्वस्थ्य हो चुके हैं। यह अस्पताल दिल्ली में कोविड-19 का सबसे बड़ा अस्पताल है। मरीजों के इलाज के लिए वर्तमान में इस अस्पताल में 2 हजार बेड्स कोविड समर्पित किए गए हैं।

पर्याप्त तैयारी नहीं  

वैसे आपको याद दिला दें कि कोरोना वायरस की चपेट में बुरी तरह आ चुकी दिल्ली की भविष्य की तस्वीर और भयानक होनेवाली है। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के मुताबिक, दिल्ली में 31 जुलाई तक साढ़े पांच लाख केस हो सकते हैं। गत मंगलवार को सिसोदिया ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार मानती है फिलहाल दिल्ली में कम्यूनिटी स्प्रेड नहीं हो रहा है। जबकि दिल्ली सरकार को लगता है कि ऐसा शुरू हो चुका है।

सिसोदिया ने कहा कि इतने मामलों को देखने के लिए हमें 80,000 बेड की जरूरत पड़ेगी। जाहिर है इसी अनुपात में वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सिलेंडर वाले बेड की भी जरूरत पड़ेगी। गौरतलब है कि दिल्ली के आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के मुताबिक राज्य में कुल 57,709 बेड हैं। इसमें दिल्ली सरकार, केंद्र सरकार, दिल्ली नगर निगम, निजी अस्पतालों में उपलब्ध बेडों की संख्या शामिल है।

दिल्ली सरकार के कोरोना ऐप के मुताबिक राजधानी में इस समय कुल 9,422 कोविड-19 बेड हैं, जिसमें से दो तिहाई के करीब भरे हुए हैं। राज्य में कुल 572 कोविड-19 वेंटिलेटर हैं। महत्वपूर्ण बात ये भी है कि जितने लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया जाएगा, उसमें से 20 फीसदी लोगों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में राज्य सरकार की मौजूदा व्यवस्था ही इस हिसाब से पर्याप्त नहीं है।

अभी 9,422 बेड के 20 फीसदी के अनुपात में करीब 1885 वेंटिलेटर्स होने चाहिए लेकिन इस समय सिर्फ 572 वेंटिलेटर्स ही हैं। इसके अलावा दिल्ली के छह कोविड-19 अस्पतालों में से दो में कोई वेंटिलेटर नहीं है। कोरोना बेड्स के मामले में एलएनजेपी सबसे बड़ा अस्पताल है, लेकिन यहां पर सिर्फ तीन फीसदी ही वेंटिलेटर बेड्स हैं।

अब जब स्टेडियम, होटल, बैंक्वेट हॉल जैसी जगहों को कोरोना अस्पताल में तब्दील करने की योजना सरकार बना रही है तब यहां पर मैनपावर जैसे कि डॉक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को तैनात करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। क्योंकि इनकी संख्या भी सीमित है और बड़ी संख्या में डॉक्टर समेत दूसरे स्वास्थ्यकर्मी संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं।

कोरोना कैपिटल बनने की ओर अग्रसर दिल्ली

दिल्ली में जिस तेजी से मामले बढ़ रहे हैं उससे हालात के और बदतर होने की आशंका है। गुरुवार को एक सुनवाई के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय की एक पीठ ने कहा था कि कोविड-19 मामलों में बढ़ोतरी को देखते हुए शहर ‘कोरोना राजधानी’ बनने की दिशा में बढ़ रहा है।

ऐसे में अदालत में राष्ट्रीय राजधानी में फिर से लॉकडाउन करने के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवायी करने से इनकार कर दिया है। इन याचिकाओं में आप सरकार को यह निर्देश देने का आग्रह किया गया था कि वह कोविड-19 मामलों में बढ़ोतरी के मद्देनजर राष्ट्रीय राजधानी में लॉकडाउन लागू करने पर विचार करे।

फिलहाल बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं और मोहल्ला क्लीनिक के नाम पर सत्ता में वापस आई केजरीवाल सरकार के सारे दावों की पोल अब खुलने लगी है। आम आदमी पार्टी का ये भी कहना है कि दिल्ली देश का एकमात्र राज्य है जहां कुल बजट का 12 से 13 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं पर ख़र्च किया जाता है लेकिन आज दिल्ली की स्थिति ऐसी हो गई है कि वहां की सरकार कोरोना के लक्षण आने पर लोगों का टेस्ट करने की जगह उन्हें घर में रहने की सलाह दे रही है। सोशल मीडिया में ऐसे कई पोस्ट तैरते मिल जाएंगे, जिसमें लोग दिल्ली सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं।

अब पिछले तीन महीने के दौरान दिल्ली सरकार द्वारा की गई तैयारियों पर भी सवाल उठने लगा है। वैसे प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए प्रदेश के हालात की जानकारी देने वाले केजरीवाल अब हताश दिखने लगे हैं। कोरोना से लड़ाई में उनकी हालत हार के कगार पर पहुंच चुके सिपाही की हो चुकी है। कही न कही उनकी सरकार बुरी तरह से विफल हो गई है।

जारी...

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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