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अफ़्रीकी देश अपनी मुद्रायें यूरोप से क्यों छपवाते हैं
आज़ादी के दशकों बाद भी कम से कम 40 अफ़्रीकी देश यूके, फ़्रांस और जर्मनी में अपनी मुद्रा छपवाते हैं,यह स्थिति दरअस्ल उनकी आत्मनिर्भरता पर सवाल उठाती है। इस लेख में डीडब्ल्यू ने इसी बात की पड़ताल किया है कि आख़िर वह कौन से कारण हैं,जो उन्हें अपने मुद्रा उत्पादन को आउटसोर्स करने के लिए क्या प्रेरित करते हैं।
शोला लवाल
28 Mar 2022
african money
कुछ ही अफ़्रीकी देश अपने ख़ुद के बैंक नोट छापते हैं

पिछले जुलाई में द जाम्बिया के एक प्रतिनिधिमंडल ने नाइजीरियाई सेंट्रल बैंक का दौरा किया था और पूछा था कि क्या जाम्बियाई दलासी को उसके इस पश्चिम अफ़्रीकी पड़ोसी देश से मंगवाया जा सकता है।

जाम्बिया के सेंट्रल बैंक के गवर्नर बुआ सैडी ने बताया कि देश में राष्ट्रीय मुद्रा की आपूर्ति कम हो गयी है,क्योंकि उसका इस्तेमाल पहले ही हो चुका है।

इस छोटे से पश्चिम अफ़्रीकी देश को पूर्व राष्ट्रपति याह्या जाममेह की हार के बाद अपनी मुद्रा को फिर से नया रंग-रूप देना पड़ा था। जाममेह 1994 से ही जाम्बिया पर हुक़ूमत कर रहा था,उसे 2016 के चुनावों में हार मिली थी,लेकिन वह हार को स्वीकार करने से इन्कार कर रहा था और आख़िरकार उसे बाद में देश से बाहर होने के लिए मजबूर होना पड़ा था।

अपने 22 साल की हुक़ूमत के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन और राजनीतिक विरोधियों की हत्याओं के आरोपी रहे जामदेह की ख़ुद की दस्वीरें इस देश के नोटों पर थीं।

उसके निष्कासन के बाद जाम्बियाई सेंट्रल बैंक ने उन तस्वीरों वाले नोटो को नष्ट करना शुरू कर दिया था।

अब इस दलासी नोटों पर अपनी डोंगी को समुद्र की ओर धक्का देता एक मछुआरा, अपने धान की देखभाल करता हुआ एक किसान, और छितराये हुए रंगीन, स्वदेशी पक्षियों की तस्वीरें हैं।

नक़दी की आउटसोर्सिंग

पूर्व दबंग राष्ट्रपति याह्या जाममेह को हटाये जाने के बाद जाम्बिया के सेंट्रल बैंक ने उसकी तस्वीर वाले दलासी नोटों को नष्ट कर दिया था।

हालांकि, एक समस्या अब भी बनी हुई है और वह यह है कि जाम्बिया अपनी मुद्रा नहीं छापता है। यह इसके लिए यूके की कंपनियों को ऑर्डर देता है, जिसका नतीजा यह होता है कि वहां नक़दी की कमी हो जाया करती है।

और ऐसा नहीं कि जाम्बिया अकेला देश है, जो अपनी मुद्रा दूसरे देश से छपवाता है।

अफ़्रीका के 54 देशों में से दो-तिहाई से ज़्यादा देश अपनी मुद्रा विदेशों और ज्यादातर यूरोप और उत्तरी अमेरिका में छपवाते हैं। हालांकि,ऐसा समय अब आ गया है, जब अफ़्रीकी संघ एक स्वर्णिम,यानी मेड-इन-अफ़्रीका युग की शुरुआत करने की कोशिश कर रहा है, जिसमें अफ़्रीका को अपना उत्पादन बढ़ाना चाहिए और ज़्यादा से ज़्यादा इसका फ़ायदा उठाना चाहिए।

अफ़्रीकी सेंट्रल बैंकों के साथ जिन शीर्ष कंपनियों की भागीदारी है,उनमें ब्रिटिश बैंकनोट प्रिंटिंग की दिग्गज कंपनी डी ला रुए, स्वीडन स्थित क्रेन और जर्मनी की गिसेके + डेवरिएंट कंपनियां शामिल हैं।

यह प्रक्रिया कितनी पारदर्शी है?

यह शायद हैरान करने वाली बात है कि तक़रीबन सभी अफ़्रीकी देश अपनी मुद्राओं का आयात करते हैं। इस चलन से राष्ट्रीय गौरव और राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी सवाल उठ सकता है।

अंगोला और घाना जैसे अमीर देशों के लिए वास्तविक स्वायत्तता और आर्थिक सामर्थ्य का मुद्दा भी है।

ज़्यादातर देश अपनी मुद्रा की छपाई प्रक्रियाओं को लेकर चुप्पी साधे हुए हैं, हो सकता है कि इसके पीछे सुरक्षा कारण हो। ये प्रिंटिंग कंपनयां तो और भी कम पारदर्शी हैं।

डीडब्ल्यू ने जिन कंपनियों से संपर्क किया, उनमें से किसी ने भी इन अफ़्रीकी देशों की सूची के अनुरोधों का जवाब नहीं दिया, जो कि उनकी मुद्रा को छापते हैं।

लागत की गणना

अफ़्रीकी देशों का अध्ययन करने वाले इलिस ज़ौरी लिखते हैं कि इथियोपिया, लीबिया और अंगोला सहित 14 अफ़्रीकी देश मुद्रा छापने के लिए डे ला रुए को ऑर्डर देते हैं।

कहा जाता है कि जहां साउथ सूडान, तंजानिया और मॉरिटानिया सहित छह या सात अन्य देश जर्मनी में अपनी मुद्रा छपवाते हैं, वहीं ज़्यादातर फ़्रांसीसी भाषी अफ़्रीकी देश फ़्रांस के सेंट्रल बैंक और फ़्रांसीसी प्रिंटिंग कंपनी ओबेरथुर फिडुसीयर से अपनी मुद्रायें छपवाने के लिए जाने जाते हैं।

यह साफ़ नहीं है कि दलासी जैसी अफ़्रीकी मुद्राओं को छपवाने में कितना ख़र्च आता है, हालांकि अमेरिकी डॉलर की क़ीमत 6 से 14 सेंट के बीच है।

इस बात की संभावना है कि 40 से ज़्यादा इन अफ़्रीकी मुद्राओं की छपाई की लागत अच्छी-ख़ासी है।

2018 में घाना के सेंट्रल बैंक के एक अफ़सर ने स्थानीय पत्रकारों से शिकायत की थी कि घाना सेडी के यूके को ऑर्डर देने के लिए बहुत ज़्यादा रक़म ख़र्च करता है।

चूंकि ये देश आमतौर पर अपने लाखों नोटों को कंटेनरों में रखवाने का ऑर्डर देते हैं, इसलिए उन्हें आमतौर पर भारी शिपिंग शुल्क भी देना पड़ता है। जाम्बिया के मामले में अधिकारियों का कहना है कि शिपिंग लागत से इसका बिल 70,000 पाउंड (84,000 यूरो, 92,000 डॉलर) बढ़ जाता है।

ऊंची मांग

हालांकि, अजीब लग सकता है कि विश्लेषकों के मुताबिक़, इस ऊंची लागत के बावजूद इन अफ़्रीकी देशों का अपनी ज़्यादतर मुद्रा को विदेशों में छपवाना आम बात है।

दुनिया भर के कई देश ऐसा करते हैं। मसलन, फ़िनलैंड और डेनमार्क अपने मुद्रा उत्पादन का आउटसोर्स करते हैं,ऐसा ही दुनिया भर के सैकड़ों सेंट्रल बैंक भी करते हैं।

अमेरिका और भारत जैसे कुछ ही देश अपनी मुद्रा ख़ुद ही छापते हैं।

अफ़्रीकन सेंटर फ़ॉर इकोनॉमिक्स रिसर्च के एमएमए अमारा एकरुचे ने डीडब्ल्यू को बताया कि जब किसी देश की मुद्रा की मांग उच्च नहीं हो जाती है और अमेरिकी डॉलर या ब्रिटिश पाउंड की तरह विश्व स्तर पर उस मुद्रा का इस्तेमाल नहीं होता है, तो इस पर पड़ने वाली उच्च लागत की वजह से इसे देश में ही छापने का कोई वित्तीय मतलब रह नहीं जाता है।

मुद्रा छापने वाली मशीनें आमतौर पर एक बार में लाखों नोटों की छपाई करती हैं। द जाम्बिया या सोमालीलैंड जैसे छोटी आबादी वाले देश अगर अपनी ख़ुद की छपाई करते,तो उनके पास ज़रूरत से ज़्यादा पैसे होते।

एकरुचे समझाते हुए कहते हैं,"अगर कोई देश अपने यहां 10 यूरो में एक बैंकनोट छापता है और देखता है कि वह इसे विदेशों में 8 यूरो में छपवा सकता है, तो वे ऐसा करने के लिए ज़्यादा पैसे क्यों ख़र्च करेंगे ? इसका कोई मतलब नहीं होगा।"

लाइबेरिया जैसे कुछ देश तो अपनी मुद्रा को छापने की कोशिश ही नहीं करते, क्योंकि उनके पास प्रिंटिंग प्रेस नहीं है, इस मशीन को लगाना महंगा होता है और इसके लिए विशेष तकनीकी क्षमताओं की भी ज़रूरत होती है।

नाइजीरिया, मोरक्को और केन्या जैसे कुछ ही अफ़्रीकी देशों के पास अपनी मुद्राओं को मुद्रित करने या अपने ख़ुद के सिक्कों को ढालने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, और वे कभी-कभी तो उत्पादन को पूरा करने के लिए आयात का भी सहारा लेते हैं।

किसी और देश से मुद्रा का छपाया जाना सुरक्षित है?

एकरुचे का कहना है कि अपनी मुद्राओं का उत्पादन करने की कोशिश कर रहे कुछ ख़ास देश उन भ्रष्ट अधिकारियों या हैकरों के शिकार हो सकते हैं, जो उन्हें बनाने या हेरफेर करने का प्रयास कर सकते हैं। ऐसे में कई मामलों में आउटसोर्सिंग ज़्यादा सुरक्षित है।

हालांकि,दूसरे देशों से छपवाने की भी अपनी चुनौतियां हो सकती हैं। स्वीडन से भेजे गये लाइबेरियाई डॉलर के कंटेनर 2018 में ग़ायब हो गये थे, हालांकि बाद में सरकार ने इसका पता लगा लिया था।

इन सबके बीच डी ला रुए जैसी कंपनी सैकड़ों सालों से अपने वजूद में हैं।यह कंपनी दुनिया भर के सेंट्रल बैंकों के लिए बड़े पैमाने पर मुद्राओं का उत्पादन करती है।

उनके पास मुद्रा को लेकर उस पॉलीमर जैसे चीज़ों के साथ नये-नये प्रयोग और सम सामयिक रूप-रंग देने के संसाधन और तजुर्बे,दोनों हैं, जिसे काग़ज़ के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा साफ़, टिकाऊ और सुरक्षित माना जाता है, इसमें प्लास्टिक सामग्री के साथ होने वाली जालसाज़ी से बचाने वाले कहीं ज़्यादा परिष्कृत सुविधाओं को शामिल करने की गुंज़ाइश होती है।

लेकिन,ऐसा भी नहीं है कि आउटसोर्सिंग का कोई नुक़सान नहीं है। कुछ देश ख़ुद को आर्थिक प्रतिबंधों में बंधा हुआ पाते हैं। मसलन, 2011 में संयुक्त राष्ट्र की ओर से दिवंगत नेता, मोअम्मर गद्दाफ़ी पर प्रतिबंध लगाये जाने के बाद यूके ने डी ला रुए से लीबिया के दीनार के ऑर्डर पर रोक लगा दी थी।

अफ़्रीका में ये नोट क्यों नहीं छपते?

अफ़्रीकी देश अफ्रीका के भीतर ही व्यापार को बढ़ावा देने की योजना बना रहे हैं। इस समय इस महाद्वीप के अंदरूनी व्यापार के मुक़ाबले पश्चिमी और पूर्वी देशों के साथ व्यापार कहीं ज़्यादा है।

अफ़्रीका में बैंकनोटों की छपाई से इस महाद्वीप के मुनाफ़े को बढ़ावा मिलेगा और कम से कम सैद्धांतिक रूप से ही सही अफ़्रीकी देश मुद्रा छापने की क्षमताओं से लैस देशों को इसके लिए चुन सकते हैं, क्योंकि कुछ देशों में इसकी क्षमता तो है,लेकिन वे निष्क्रिय पड़े हुए हैं।

लेकिन, व्यवहार में ऐसा नहीं हो पा रहा है। घाना के सेंट्रल बैंक के पूर्व उपाध्यक्ष इमैनुएल असीदु-मांटे कहते हैं, "यह स्थिति इन देशों के बीच आपसी भरोसे की कमी के कारण है।" ऐसा इसलिए है,क्योंकि ये देश कई सालों से विदेशी कंपनियों से छपाई करवा रहे हैं।

इसके अलावे, फ्रैंकोफ़ोन अफ़्रीका,यानी मध्य अफ़्रीकी सीएफ़ए फ़्रैंक और पश्चिम अफ़्रीकी सीएफ़ए फ़्रैंक का इस्तेमाल करने वाले देशों की मुद्राओं का मामला जटिल है,क्योंकि औपनिवेशिक जुड़ाव के चलते ये मुद्रायें यूरो से मज़बूती के साथ जुड़ी हुई हैं और फ़्रांस में इनका उत्पादन किया जाता है।

इसके बावजूद, उम्मीद की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों में इस दिशा में बदलाव होगा। नाइजीरिया के साथ एक संभावित साझेदारी का प्रस्ताव करने वाले जाम्बिया के सेंट्रल बैंक के अधिकारी अपनी मुद्रा की छपाई के ऑर्डर के लिए अंदरूनी स्तर पर देखना शुरू कर सकते हैं। अगर ऐसा बड़े पैमाने पर होता है, तो इससे शिपिंग लागत में भारी कमी आ सकती है।

संपादन: कीथ वाकर

साभार: डीडब्ल्यू

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें

Why Africa Prints Money in Europe

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