NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बिहार में क्यों आत्मनिर्भर नहीं हो पा रही भाजपा?
अपना प्रभाव विस्तार करने में माहिर राजनीतिक दल भाजपा आखिर बिहार में क्यों आत्मनिर्भर नहीं हो पा रही? उसकी क्या ऐसी मजबूरी है कि वह बिहार में बार-बार नीतीश और जदयू के पीछे चलने के लिए मजबूर है? एक विश्लेषण-
पुष्यमित्र
10 Jun 2020
Amit shah and Nitish kumar
फाइल फोटो, साभार : indianexpress

रविवार, 7 जून को हुई देश की पहली वर्चुअल रैली में गृह मंत्री और भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ने घोषणा कर दी कि बिहार में अगला विधानसभा चुनाव एनडीए नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही लड़ेगा। उनकी इस घोषणा के साथ प्रदेश के उन भाजपा समर्थकों को एक तरह का झटका लगा जो चाहते थे कि बिहार में भाजपा अकेले चुनाव लड़े और अपनी दम पर सरकार बनाये। अगर ऐसा नहीं भी हो तो कम से कम सीएम कैंडिडेट तो भाजपा का अपना हो। मगर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने 2019 के लोकसभा चुनाव की तरह इस बार भी यह रिस्क लेना मुनासिब नहीं समझा। ऐसे में यह सवाल उठने लगे हैं कि अपना प्रभाव विस्तार करने में माहिर राजनीतिक दल भाजपा आखिर बिहार में क्यों आत्मनिर्भर नहीं हो पा रही? उसकी क्या ऐसी मजबूरी है कि वह बिहार में बार-बार नीतीश और जदयू के पीछे चलने के लिए मजबूर है?

दूसरे राज्यों की तरह बिहार में भी भाजपा के ज़मीनी कार्यकर्ता चाहते हैं कि यहां उनकी अपनी स्वतंत्र सरकार हो। इसके लिए समय-समय पर कुछ भाजपा नेता बयान भी जारी करते रहे हैं। 2019 में सितंबर महीने में भाजपा के फायरब्रांड नेता गिरिराज सिंह ने कह डाला था कि ज़रूरत पड़ी, तो बिहार में भाजपा अकेले चुनाव लड़ेगी। इस साल जनवरी के महीने में भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान ने भी कह दिया कि जनता एक ही चेहरे को देखते, देखते ऊब गयी है। अब लोग भाजपा के किसी पिछड़े नेता को मुख्यमंत्री पद पर देखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि पार्टी के ज्यादातर नेताओं से यह फीडबैक मिल रहा है और उन्होंने इस राय को केंद्रीय नेतृत्व तक पहुंचा दिया है।

हालांकि दोनों मौके पर जदयू की तरफ से कड़ा विरोध किया गया और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को साफ करना पड़ा कि नीतीश के नेतृत्व में एनडीए एकजुट है। अमित शाह के रविवार के बयान के बाद भी भाजपा नेता संजय पासवान ने फोन पर हुई बातचीत में कहा कि मैं अभी भी कहता हूं कि भाजपा बिहार में इतनी मजबूत है कि वह अकेले चुनाव लड़ सकती है। मगर अब चूंकि हमारी पार्टी के बड़े नेता ने कह दिया है, तो फ़ैसला यही है। और कई दफ़ा जनता के व्यापक हितों की वजह से इस तरह के फ़ैसले लेने पड़ते हैं।

दरअसल, आम भाजपा कार्यकर्ता नीतीश के नेतृत्व को मन से स्वीकार नहीं कर पा रहा। क्योंकि नीतीश उनकी कट्टर हिंदुत्व की विचारधारा की राह में एक तरह से बाधक रहते हैं। वे अभी भी मुस्लिम समुदाय के प्रति अपनी सद्भावना का परिचय देते रहते हैं। सोमवार को भी जदयू कार्यकर्ताओं के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग में उन्होंने कहा कि हमने अल्पसंख्यकों के लिए काम किया है, राजद और कांग्रेस तो उन्हें डरा कर वोट लेती रही है। कोरोना संक्रमण के आंकड़ों को जारी करने के दौरान भी नीतीश पर इस बात का दबाव था कि वे मरकज के मरीजों के आंकड़े अलग से जारी करें, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। सीएए-एनआरसी विरोधी प्रोटेस्ट के दौरान उन्होंने भाजपा को लगभग अंधेरे में रखते हुए बिहार विधानसभा में एनआरसी लागू नहीं करने औऱ पुराने फार्मेट में एनपीआर कराने का प्रस्ताव पारित करा लिया।

ऐसे में आम भाजपाई बिहार की सरकार को पूरी तरह अपनी सरकार नहीं मानते और समय-समय पर विभिन्न मुद्दों पर नीतीश कुमार की खिंचाई भी करते रहते हैं। मगर भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व 2017 में जदयू के साथ बिहार में सरकार बनाने के बाद से लगातार नीतीश के पीछे खड़ा नज़र आता है और उनकी हर शर्त की स्वीकार कर लेता है। 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू को उसी भाजपा के बराबर सीटें देनी पड़ीं, हालांकि उनकी राजनीतिक शक्ति उतनी मजबूत नहीं थी। उसी वक्त भाजपा ने जदयू नेता हरिवंश को राज्यसभा का उपाध्यक्ष पद दे दिया। और इस चुनाव में भी वह नीतीश के नेतृत्व पर मुहर लगा चुका है।

2017 के बारे से लगातार राजनीतिक रूप से कमजोर हो रहे नीतीश कुमार को भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इतना भाव क्यों देता है, यह बात बिहार का आम भाजपा समर्थक समझ नहीं पा रहा। मगर वरिष्ठ पत्रकार और पूर्व संपादक राजेंद्र तिवारी कहते हैं कि लंबे समय तक प्रयास करने के बावजूद भाजपा राज्य के पिछड़े वर्ग में खास कर अति पिछड़ा समुदाय के बीच अपनी पकड़ मजबूत नहीं कर पायी है। इसी वजह से वह बिहार में नीतीश कुमार पर आश्रित है। बिहार में खास तौर पर अति पिछड़ा वर्ग के बीच नीतीश कुमार की अच्छी पैठ है और उनकी आबादी भी अधिक है। चूंकि बिहार में सामाजिक आंदोलनों की लंबी परंपरा रही है और खास कर लालू प्रसाद यादव के समय में राज्य के पिछड़े और दलितों ने मिल कर कई सामाजिक बंधनों को तोड़ा है तो वे उस परंपरा को आज भी फोलो करते हैं। जबकि बिहार में भाजपा के जो कट्टर हिंदुत्व वाली छवि के नेता हैं, चाहे गिरिराज सिंह हो या अश्विनी चौबे वे सवर्ण समाज से आते हैं। इसलिए वे पिछड़ों और दलितों के बीच उस तरह कट्टर हिंदुत्व की भावना मजबूत नहीं कर पाये हैं, जैसा उत्तर प्रदेश में किया गया।

राजेंद्र तिवारी जी की बातें इसलिए भी महत्वपूर्ण मालूम होती है, क्योंकि 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद भाजपा को लगा था कि वह बिहार में अकेले या कुछ छोटी पार्टियों के साथ सरकार बना सकती है। मगर 2015 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ जिस तरह राज्य के सभी पिछड़े और दलित एकजुट हो गये और उसे तीसरे नंबर पर ढकेल दिया, उसने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के आत्मविश्वास को डगमगा दिया है। 2017 में भले ही नीतीश कुमार राजद से रिश्ता तोड़कर भाजपा के साथ आ गये, मगर वे समय-समय पर भाजपा को अपना महत्व बताते रहते हैं। भाजपा भी 2015 की हार से अब तक उबर नहीं पायी है। इसलिए वह बार-बार नीतीश की शर्तें और उनका नेतृत्व स्वीकार कर लेती है।

हालांकि भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व में आत्मविश्वास की कमी की यही एकमात्र वजह नहीं है। सच तो यह है कि भाजपा इतने सालों में बिहार में कोई ऐसा नेता तैयार नहीं कर पायी है जो नीतीश का विकल्प साबित हो सके। वरिष्ठ पत्रकार विकास कुमार झा कहते हैं, जिस तरह बिहार में कांग्रेस को राजद की पिछलग्गू बने रहना पड़ा, लगता है भाजपा की भी यही नियति है। उसके पास कोई ऐसा चमत्कारिक नेता नहीं है, जिसे वह नीतीश के मुकाबले में उतार सके और कम से कम यह कह सके कि अब आप हट जाइये, यह हमारा सीएम कैंडिडेट होगा। जाहिर है, ऐसे में उसे बोगी बनकर बिहार में नीतीश कुमार को एनडीए का इंजन मानना पड़ रहा है। राजेंद्र तिवारी तो कहते हैं, 2025 में भी बिहार में भाजपा अपने दम पर चुनाव लड़ पायेगी, इसकी संभावना कम ही लगती है।

जब यही सवाल हमने राजद के राज्यसभा सदस्य मनोज कुमार झा से पूछा तो उन्होंने कहा कि बिहार में भाजपा आत्मनिर्भर क्यों नहीं हो पा रही या एक हाइपोथेटिकल सवाल है। सच तो यह है कि बिहार में भाजपा और जदयू में फर्क ही क्या है? शुरुआत में जदयू ने भाजपा से समझौता इस आधार पर किया था कि भाजपा अपने विभाजनकारी मुद्दे जैसे, धारा 370 को हटाना, तीन तलाक का विरोध और राम मंदिर का निर्माण आदि से दूर रहेगी। इसी वजह से जब नरेंद्र मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया तो नीतीश कुमार ने भाजपा के रिश्ता तोड़ लिया। मगर अब नीतीश कुमार ने इन तीनों मुद्दों पर भाजपा के साथ खड़े हैं। यहां तक कि कोरोना के वक्त में जब प्रवासी मजदूर दर-दर की ठोकरें खा रहे थे तो भी प्रतीकात्मक तौर से ही सही उन्होंने कोई स्टैंड नहीं लिया। इसलिए हमारे हिसाब से तो नीतीश अब बिहार में भाजपा की बी-टीम ही हैं। उनका कोई अपना अस्तित्व नहीं है।

यह पूछने पर कि इसके बावजूद भाजपा उन्हें क्यों बर्दाश्त कर रही है, वे कहते हैं, यह तो बस वक्त की बात है। जब निगलना होगा, भाजपा उन्हें निगल ही जायेगी।

(लेखक वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Bihar
bihar election
BJP
Amit Shah
NDA
Nitish Kumar

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 


बाकी खबरें

  • ambedkar
    न्यूज़क्लिक टीम
    जनतंत्र पर हिन्दुत्व का बुल्डोजर और अंबेडकर की भविष्यवाणी
    13 Apr 2022
    देश में संसद है, संविधान है, न्यायालय और मीडिया है। लेकिन लोगों पर सत्ता का बुल्डोजर बेधड़क चल रहा है। हिन्दुत्व की राजनीति और सत्ता ने राष्ट्र और संविधान के समक्ष अभूतपूर्व संकट पैदा कर दिया है।…
  • THAKRE
    रवि शंकर दुबे
    अब राज ठाकरे के जरिये ‘लाउडस्पीकर’ की राजनीति
    13 Apr 2022
    महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे ने महाराष्ट्र सरकार को अल्टीमेटम दिया है कि अगर ईद से पहले लाउडस्पीकर नहीं हटे तो तेज़ आवाज़ में हनुमान चालीसा बजाएंगे।
  • inflation
    अजय कुमार
    महंगाई 17 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर, लगातार तीसरे महीने पार हुई RBI की ऊपरी सीमा
    13 Apr 2022
    सरकारी आंकड़े बता रहे हैं कि खुदरा महंगाई दर पिछले 17 महीने के सबसे उच्च स्तर पर पहुंच चुकी है। पिछले तीन महीने से महंगाई की दर लगातार 6 फीसदी से ऊपर रही है। मार्च महीने में बढ़कर 6.95 प्रतिशत पर…
  • akhilesh
    न्यूज़क्लिक टीम
    आज़म खान-शिवपाल का साथ छोड़ना! क्या उबर पाएंगे अखिलेश यादव?
    13 Apr 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के आज के एपिसोड में अभिसार शर्मा बात करेंगे अखिलेश यादव के सामने आने वाली गंभीर राजनीतिक चुनौती एवं भाजपा कर्नाटक के मंत्री, के एस ईश्वरप्पा की जिनपर एक कांट्रेक्टर की…
  • स्मार्ट सिटी मिशनः प्रोजेक्ट कैटेगरी में चयनित 34 शहरों में बिहार के एक भी शहर नहीं
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    स्मार्ट सिटी मिशनः प्रोजेक्ट कैटेगरी में चयनित 34 शहरों में बिहार के एक भी शहर नहीं
    13 Apr 2022
    पिछले दो साल के दौरान प्रोजेक्ट कैटेगरी में चयनित हुए 34 शहरों में राज्य की राजधानी पटना के साथ-साथ राज्य के अन्य तीन शहर भागलपुर, मुज़फ़्फ़रपुर और बिहारशरीफ़ का नाम नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License