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आंदोलन
भारत
राजनीति
आख़िर जनांदोलनों से इतना डर क्यों...
लखीमपुर खीरी हत्याकांड के विरोध में, उत्तर प्रदेश और केंद्र की सरकार से सवाल करने का दम रखने वाली संघर्षशील ताकतें लगातार सड़कों पर उतर रही हैं तो उनके ख़िलाफ़ संविधान के विरुद्ध जाकर बेहद दमनात्मक कार्रवाईयां हो रही हैं।
सरोजिनी बिष्ट
17 Oct 2021
ald
दशहरा के मौके पर इलाहाबाद में प्रतिरोध स्वरूप सरकार का पुतला दहन

क्या लोकतांत्रिक मूल्यों को ताक पर रखकर जन आंदोलनों को दबाया जा सकता है.... क्या हिटलरशाही के बल पर आंदोलनकारियों के हौसलों को परास्त किया जा सकता है और सबसे अहम सवाल क्या संविधान से सर्वोपरि आज सत्ता हो गई है...... ये वे सवाल हैं जो आज हर उस इंसान की जुबां पर हैं जो किसी न किसी रूप में सामाजिक सरोकारों की लड़ाई लड़ रहा है। तीन अक्टूबर को लखीमपुर खीरी के तिकोनिया में हुई उस वीभत्स घटना को भला कभी भुलाया जा सकेगा और हद इससे आगे यह है कि जब इस घटना के विरोध में, उत्तर प्रदेश और भारत की सरकार से सवाल करने का दम रखने वाली संघर्षशील ताकतें सड़कों पर उतर रही हैं तो उनके ख़िलाफ़ संविधान के विरुद्ध जाकर बेहद दमनात्मक कार्रवाईयां हो रही है।

बलिया के चोरकैंड में भी विरोध स्वरूप पुतला फूंका गया।

जैसा कि हम सब जानते हैं सयुंक्त किसान मोर्चा द्वारा अक्टूबर माह के तय कार्यक्रमों में एक यह भी निश्चित था कि दशहरे वाले दिन या उसके अगले दिन, जैसी जिसको सहूलियत हो,  राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद के तहत प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, योगी और अजय मिश्रा टेनी का पुतला जलाया जाएगा। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी की बर्खास्तगी को लेकर देशभर में किसानों का आंदोलन जारी है और उसी कड़ी में पुतला दहन भी शामिल था। चूंकि यह घटना यूपी की है तो यहां बड़े पैमाने पर जनता की मुखर आवाज बन उभर रही वामपंथी पार्टी भाकपा माले और उसके जन संगठन आखिल भारतीय किसान महासभा (सयुंक्त किसान मोर्चा साथी  संगठन) महिला मोर्चा ऐपवा, इंकलाबी नौजवान सभा ने भी 15-16 अक्टूबर को विभिन्न जिलों में पुतला दहन का कार्यक्रम रखा था। तैयारियां भी कई दिनों से चल रही थीं लेकिन सरकार को यह भला कैसे गवारा हो कि सरेआम उसका पुतला जलाया जाए। 14 तारीख़ से ही माले और उसके जनसंगठनों के नेता और कार्यकर्ताओं को बड़ी संख्या में गिरफ्तार या हाउस अरेस्ट किया जाने लगा। चन्दौली, सीतापुर, जौनपुर, गाजीपुर, रायबरेली, बलिया, सोनभद्र, देवरिया, गोंडा, अयोध्या आदि से ख़बरें आने लगी कि यहां माले और उनके किसान, महिला नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया जा रहा है या घर पर ही पुलिस का पहरा बैठा दिया जा रहा है। और जहां कहीं कोई पुतला दहन करने में सफल भी हुआ तो कार्यक्रम के तुरन्त बाद उन्हें हाउस अरेस्ट कर दिया गया। हालांकि इस दमनात्मक कार्रवाई के बावजूद जहां  जिससे भी जितना हो सका दमन की परवाह किए बगैर कार्यक्रम को सफलतापूर्वक संपन्न किया गया और राष्ट्रीय आह्वान को सफल बनाया गया।

माले राज्य सचिव सुधाकर यादव ने कहा कि योगी सरकार लोकतंत्र की हत्या कर रही है। उन्होंने बताया कि पार्टी के जौनपुर जिला प्रभारी गौरव सिंह को 14 अक्टूबर की रात पुलिस ने उनके घर से उठा लिया। इसके दो दिन पूर्व गौरव ने एक व्हाट्सएप पोस्ट डाला था कि उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का जौनपुर के बक्सा ब्लॉक में कार्यक्रम है और माले उन्हें काला झंडा दिखाकर वापस भेजेगी। गौरतलब है कि लखीमपुर खीरी में किसान हत्याकांड केशव प्रसाद मौर्य के दौरे के दौरान ही हुआ था। कार्यकर्ता उप मुख्यमंत्री को कला झंडा दिखाने की तैयारी कर रहे थे कि उनके नेता को पुलिस ने पूर्व संध्या पर ही गिरफ्तार कर लिया और एक दिन बाद पचास हजार के मुचलके पर रिहा किया गया।  तो वहीं आंदोलनकारियों से इतनी डरी हुई है योगी सरकार कि हाउस अरेस्ट के दौरान जब चंदौली भाकपा (माले) जिला कमेटी सदस्य व सकलडीहा सचिव रमेश राय शौच के लिए गए तो भी पुलिस  उनके पीछे पीछे रही। सुधाकर ने कहा कि हद तो यह है कि सोनभद्र में लकवा के शिकार माले कार्यकर्ता मो. कलीम से भी योगी सरकार को डर था, इसलिए उन्हें भी गिरफ्तार कर राबर्ट्सगंज कोतवाली में बैठा दिया गया। उनके मुताबिक इन पाबंदियों और पहरों के बावजूद तमाम जिलों में मोदी-योगी सरकार के पुतले फूंके गए। उन्होंने कहा कि योगी सरकार की दमनात्मक कार्रवाइयों से माले व जनसंगठनों के कार्यकर्ता डरने वाले नहीं हैं। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी की बर्खास्तगी और गिरफ्तारी जब तक नहीं होती, विरोध कार्यक्रम रुकने के बजाय तेज ही होंगे। कृषि कानूनों की वापसी तक आंदोलन जारी रहेगा।

ऐपवा प्रदेश अध्यक्ष कृष्णा अधिकारी ने बताया कि कुछ जिलों से किसान नेताओं के साथ ऐपवा नेताओं की भी गिरफ्तारी और हाउस अरेस्टिंग की ख़बरें आई हैं। उन्होंने कहा कि देश और प्रदेश में किसान आंदोलन के बढ़ते तेवर से योगी सरकार डर गई है और इसी वजह से नेताओं को नजरबन्द कर रही हैं लेकिन मुख्यमंत्री के तानाशाही रवैये से प्रदेश की जनता डरने वाले नही है बल्कि  यह सरकार जितना किसानों की आवाज को दबाने का प्रयास करेगी किसान आंदोलन उतनी तेजी से आगे बढ़ेगा।  उन्होंने  कहा कि लखीमपुर किसान नरसंहार के हत्यारो को कड़ी सजा की गारंटी और केंद्रीय गृहराज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी की बर्खास्तगी नहीं होती  तब तक आंदोलन जारी रहेगा।

चंदोली में ऐपवा नेता की हाउस अरेस्टिंग।

ऐपवा प्रदेश सचिव कुसुम वर्मा ने कहा कि किसान आंदोलन को संगठित करने में महिलाओं की नेतृत्वकारी भूमिका है। महिलाएं अब घरों में चुपचाप नहीं बैठ रही है बल्कि सड़कों पर निकलकर  किसान आंदोलन को मजबूत कर रही है। ब्राह्मणवादी मनुवादी महिला विरोधी भाजपा सरकार को महिलाओं के यह तेवर बर्दाश्त नही हो रहे इसलिए महिला नेताओ को उनके घरों में नजरबन्द कर रही है। कुसुम वर्मा ने कहा कि विधान सभा चुनाव नजदीक है प्रदेश में लोकतंत्र की हत्या करके और जनता का दमन करके भाजपा चुनाव नही जीत सकेगी बल्कि किसान आंदोलन ही आगामी विधान सभा चुनाव के लिए  उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की ताबूत की अंतिम कील साबित होगा। इधर लखनऊ से भी ख़बर आई कि एक कार्यक्रम के दौरान सोशलिस्ट किसान सभा के संदीप पांडे, अमित मौर्या, मुनीम कुमार, रिहाई मंच के राजीव यादव, आदिल खान, युवा भारत से संतोष परिवर्तक, वीरेन्द्र कुमार गुप्ता को हिरासत में ले लिया गया।
सभी को गिरफ्तार कर इको गार्डन में हिरासत में रखा गया था। जहां पर संयुक्त किसान मोर्चा के नेता-कार्यकर्ता मुलाकात के लिए लगातार पहुंचते रहे।

घटना बड़ी हो और सीधे उसका ताल्लुक सरकार से हो तो प्रतिरोध का आक्रोश में बदलना लाज़िम है। पर सवाल तो लौटकर फिर उसी धुरी पर आ जाता है कि क्या इससे पहले कभी सरकारों का विरोध नहीं हुआ, या इससे पहले कभी पुतले नहीं फूंके गए, सब हुआ और आगे भी होता रहेगा क्योंकि लोकतंत्र की यही तो खूबसूरती है कि जब सत्ता बेलगाम हो जाए और जनविरोधी फैसले लेने लगे तो जनता की अदालत में उसे आना ही पड़ता है। इसमें दो राय नहीं कि जन आंदोलनों को कुचलने के लिए उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार किसी भी हद तक जा सकती है। आंदोलनकारियों पर फर्जी मुकदमें लादना, प्रदर्शनों, जुलूसों पर पाबन्दी लगा देना, जब चाहे धारा 144 लागू कर देना आदि का सिलसिला उत्तर प्रदेश में पिछले साढ़े चार सालों से बदस्तूर जारी है पर कहते हैं न दमन जितना करोगे..... हौसलों की बुलंदी उतनी ही परवान चढ़ेगी। तो इस मौके पर हमें जनकवि बल्ली सिंह चीमा जी की वह धारदार कविता स्वतः ही याद आ जाती है जब वे कहते हैं-

जनता के हौसलों की सड़कों पर धार देख।

सब-कुछ बदल रहा है चश्मा उतार देख।

जलसे-जुलूस नाटक, हर शै पे बन्दिशें,

करते हैं और क्या-क्या भारत के ज़ार देख।

तू ने दमन किया तो हम और बढ़ गए,

पहले से आ गया है हम में निखार देख।

हैं बेलचों, हथौड़ों के हौंसले बुलन्द,

ये देख दु्श्मनों को चढ़ता बुखार देख।

तेरी निजी सेनाएँ रोकेंगी क्या इन्हें,

सौ मर गए तो आए लड़ने हज़ार देख।

सच बोलना मना है गाँधी के देश में,

फिर भी करे हिमाक़त ये ख़ाकसार देख।

(लखनऊ स्थित लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

LakhimpurKheri
UP Protest against Lakhimpur incident
Peoples Movements
kisan andolan

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