NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अपराध
आंदोलन
भारत
राजनीति
पुलिस कार्रवाई में नफ़रत क्यों दिखती है?
दिल्ली पुलिस के जो वीडियो सामने आ रहे हैं, उन्हें देख कर कहा जा सकता है कि वो सिर्फ़ आदेशों का पालन नहीं कर रहे हैं, बल्कि वो उस नफ़रत के तहत भी काम कर रहे हैं जो बचपन से उनके ज़ेहन में घोली गई है!
सत्यम् तिवारी
27 Feb 2020
Delhi Violence

दिल्ली में जो हिंसा हुई है उसमें अब 34 लोगों की मौत होने की ख़बर है, और 300 से अधिक लोग घायल हुए हैं। हिंसा कब शुरू हुई, किसने शुरू की, किस धर्म के लोग ज़्यादा मरे, किस रंग के झंडे ज़्यादा लहराए गए, कौन से नारे ज़्यादा गूँजे; यह तुलना करना अब बे-मानी सा हो गया है। पागल भीड़ की हिंसा के बाद पीड़ित वर्ग सुरक्षा के लिए सुरक्षा बलों से सहारा लेता है। हिंसा के दौरान या हिंसा के बाद गोली खाने वाले, हाथ कटवाने वाले के मन में ये आस होती है कि पुलिस उसकी मदद करेगी। उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने 26 फरवरी को कहा भी कि पुलिस के व्यवहार में पेशेवर रवैये की कमी है।

कोर्ट की सुनवाई के दौरान जब भाजपा नेता कपिल मिश्रा पर एफ़आईआर करने की मांग याचिकाकर्ता के अधिवक्ता की तरफ़ से की गई तो दिल्ली पुलिस ने कहा कि उसने अभी कपिल मिश्रा का वीडियो नहीं देखा है। जज ने कोर्ट में ही वीडियो चलाने को कहा।

"दिल्ली पुलिस ने वीडियो नहीं देखा" सुनने में हास्यास्पद लगने वाली ये बात दरअसल कितनी संवेदनहीन है, इसका अंदाज़ा लगा पाना मुश्किल है। कपिल मिश्रा ने अपने बयान में दिल्ली पुलिस के कमिश्नर के साथ खड़े हो कर उनको अल्टिमेटम दिया था कि अगर वो 3 दिन में जाफराबाद की सड़क खाली नहीं करवाते हैं, तो वो ख़ुद कोई क़दम उठाएंगे। बयान को 3 दिन भी नहीं गुज़रे और पूरे उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा और आगज़नी हो गई। इस पूरे प्रकरण में सवाल उठ रहे हैं कि दिल्ली पुलिस की भूमिका क्या रही, और लोगों को सुरक्षा देने में इतनी देर क्यों हुई।

हिंसा के जैसे वीडियो सामने आ रहे हैं, जिसमें दिल्ली पुलिस हिंसा करने वालों को संरक्षण दे रही है और साथ ही ख़ुद भी लोगों को पीटते हुए कह रही है, "राष्ट्रगान सुना" , "आज़ादी चाहते हो?"

When the protector turns perpetrator, where do we go?!
Shame on @DelhiPolice for disrespecting the value of human life. Is this how the Delhi Police fulfills its Constitutional duty to show respect to our National Anthem?
(Maujpur, 24 Feb)#ShameOnDelhiPolice #DelhiBurning pic.twitter.com/QVaxpfNyp5

— Shaheen Bagh Official (@Shaheenbaghoff1) February 25, 2020

सिर्फ़ उत्तर-पूर्वी दिल्ली की हिंसा की बात करें तो पुलिस के जवानों के सामने गोलियां चली हैं, बम फेंके गए हैं और दिल्ली पुलिस ने क्या किया है? कुछ नहीं।

जामिया-जेएनयू-एएमयू

जामिया में दिसम्बर के महीने में सीएए का विरोध करने वाले छात्र-छात्राओं पर पुलिस कार्रवाई के वीडियो हाल ही में 17 फरवरी को सामने आए थे। इन वीडियो में पुलिस के उन सभी दावों का झूठ सामने आ गया था जिसमें पुलिस ने कहा था कि उसने जामिया के अंदर कोई तोड़-फोड़ नहीं की है।

जामिया हिंसा के दौरान दिल्ली पुलिस ने लोगों के घरों में घुस कर उन्हें मारा था।

जामिया के छात्रों ने अपने बयान में कहा था कि पुलिस उन्हें "जय श्री राम" बोलने के लिए कह रही थी।

इसी तरह अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिसम्बर में हुई हिंसा के वीडियो में देखा गया था कि पुलिस ने "जय श्री राम" के नारे लगाए थे।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के हॉस्टल में हुई हिंसा के दौरान भी दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सवाल उठाए गए थे।

उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा पर न्यूज़क्लिक के पत्रकार रवि कौशल ने लिखा है, "दंगाई फल लूट कर लाते और पुलिस और अर्ध सैनिक बलों को खिलाने लगे। यहाँ पता चला कम्प्लिसिटी क्या होती है. फिर कुछ पुलिस वालों के पास गया तो पता चला सांप्रदायिकता इनमें कितनी गहरी उतर चुकी है। एक पुलिस वाला कहता कि अगर ये दंगाई न होते तो सामने वाले दंगाई उन्हें मार देते।"

दिल्ली पुलिस पर सीधा आरोप है कि उसने जामिया-एएमयू और उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसक कार्रवाई की है। वह कार्रवाई मुसलमानों के ख़िलाफ़ हुई है, और दिल्ली पुलिस ने एक पुलिस अधिकारी की तरह नहीं, बल्कि एक हिन्दू नौजवान की तरह उन पर हमला किया है। इसकी वजह क्या है? क्या यह सिर्फ़ आदेश पालन करने का मसला है या यह सिर्फ़ गुंडों को बचाने का मामला है? अगर पुलिस हिंसा की तस्वीरों को देखा जाए तो ऐसा नहीं लगता है।

Role of Delhi Police in #DelhiViolence should be investigated.

These videos raises questions on integrity of Delhi Police.#DelhiViolence pic.twitter.com/tWSahZfocE

— Siddharth Setia (@ethicalsid) February 26, 2020

पुलिस में शामिल जवान एक सिपाही, हवलदार होने से पहले एक आम नागरिक हैं। वो उसी परिपेक्ष्य से निकले हैं जिससे एक आम हिन्दू निकला है। मुसलमान छात्रों/प्रदर्शनकारियों को "आज़ादी चाहिए तुझे? कह कर मार देने के लिए किसी आदेश की ज़रूरत नहीं है।

देश में इस समय एक मुस्लिम विरोधी भावना ज़ोरशोर से चल रही है। लेकिन यह भावना, यह नफ़रत कोई नई नहीं है। ऐसा नहीं है कि बीजेपी सरकार के दौरान हुई हिंसा से ही आम हिन्दुस्तानी के मन में मुस्लिम विरोधी भावना पैदा हुई है, बल्कि एक आम परिवार में यह नफ़रत हमेशा से घोली जाती रही है।

हुआ सिर्फ़ यह है कि पिछले 6 साल में इस नफ़रत को बल मिल गया है, और इस नफ़रत के नाम पर हिंसा कर देना "नॉर्मल" हो गया है।

दिल्ली पुलिस की हिंसा में शायद यही संदेश दिखता है कि देश में आज मुसलमानों को मारना सबसे आम बात है।

Delhi Violence
CAA
NRC
communal violence
hindu-muslim
delhi police
Amit Shah
Communal riots

Related Stories

दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल

क्या पुलिस लापरवाही की भेंट चढ़ गई दलित हरियाणवी सिंगर?

हिमाचल प्रदेश के ऊना में 'धर्म संसद', यति नरसिंहानंद सहित हरिद्वार धर्म संसद के मुख्य आरोपी शामिल 

दुर्भाग्य! रामनवमी और रमज़ान भी सियासत की ज़द में आ गए

ग़ाज़ीपुर; मस्जिद पर भगवा झंडा लहराने का मामला: एक नाबालिग गिरफ़्तार, मुस्लिम समाज में डर

दिल्ली गैंगरेप: निर्भया कांड के 9 साल बाद भी नहीं बदली राजधानी में महिला सुरक्षा की तस्वीर

दिल्ली: सिविल डिफेंस वालंटियर की निर्मम हत्या शासन-प्रशासन के दावों की पोल खोलती है!

न्यायपालिका को बेख़ौफ़ सत्ता पर नज़र रखनी होगी

दिल्ली बच्ची दुष्कर्म और हत्या मामला: चारों आरोपी तीन दिन के पुलिस रिमांड पर

दिल्ली बलात्कार कांड: जनसंगठनों का कई जगह आक्रोश प्रदर्शन; पीड़ित परिवार से मिले केजरीवाल, राहुल और वाम दल के नेता


बाकी खबरें

  • कैथरीन स्काएर, तारक गुईज़ानी, सौम्या मारजाउक
    अब ट्यूनीशिया के लोकतंत्र को कौन बचाएगा?
    30 Apr 2022
    ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति धीरे-धीरे एक तख़्तापलट को अंजाम दे रहे हैं। कड़े संघर्ष के बाद हासिल किए गए लोकतांत्रिक अधिकारों को वे धीरे-धीरे ध्वस्त कर रहे हैं। अब जब ट्यूनीशिया की अर्थव्यवस्था खस्ता…
  • international news
    न्यूज़क्लिक टीम
    रूस-यूक्रैन संघर्षः जंग ही चाहते हैं जंगखोर और श्रीलंका में विरोध हुआ धारदार
    29 Apr 2022
    पड़ताल दुनिया भर की में वरिष्ठ पत्रकार ने पड़ोसी देश श्रीलंका को डुबोने वाली ताकतों-नीतियों के साथ-साथ दोषी सत्ता के खिलाफ छिड़े आंदोलन पर न्यूज़ क्लिक के प्रधान संपादक प्रबीर पुरकायस्थ से चर्चा की।…
  • NEP
    न्यूज़क्लिक टीम
    नई शिक्षा नीति बनाने वालों को शिक्षा की समझ नहीं - अनिता रामपाल
    29 Apr 2022
    नई शिक्षा नीति के अंतर्गत उच्च शिक्षा में कार्यक्रमों का स्वरूप अब स्पष्ट हो चला है. ये साफ़ पता चल रहा है कि शिक्षा में ये बदलाव गरीब छात्रों के लिए हानिकारक है चाहे वो एक समान प्रवेश परीक्षा हो या…
  • abhisar sharma
    न्यूज़क्लिक टीम
    अगर सरकार की नीयत हो तो दंगे रोके जा सकते हैं !
    29 Apr 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस अंक में अभिसार बात कर रहे हैं कि अगर सरकार चाहे तो सांप्रदायिक तनाव को दूर कर एक बेहतर देश का निर्माण किया जा सकता है।
  • दीपक प्रकाश
    कॉमन एंट्रेंस टेस्ट से जितने लाभ नहीं, उतनी उसमें ख़ामियाँ हैं  
    29 Apr 2022
    यूजीसी कॉमन एंट्रेंस टेस्ट पर लगातार जोर दे रहा है, हालाँकि किसी भी हितधारक ने इसकी मांग नहीं की है। इस परीक्षा का मुख्य ज़ोर एनईपी 2020 की महत्ता को कमजोर करता है, रटंत-विद्या को बढ़ावा देता है और…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License