NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कृषि
मज़दूर-किसान
भारत
राजनीति
अन्नदाताओं के हितों की रक्षा क्यों ज़रूरी है?
सरकार द्वारा पारित नए कानून भारतीय कृषि और इससे जुड़े करोड़ों लोगों को प्रभावित कर रहे हैं। ऐसे में सिर्फ नेताओं के आश्वासन से काम नहीं चलने वाला है। किसानों का कहना है कि हम कैसे मान लें कि बड़े व्यापारी, आढ़तियों की तरह व्यवहार नहीं करेंगे या फिर किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलता रहेगा?
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
26 Sep 2020
अन्नदाताओं के हितों की रक्षा क्यों ज़रूरी है?
Image courtesy: Deccan Herald

कृषि क्षेत्र से करोड़ों लोग जीवनयापन करते हैं। साथ ही कृषि क्षेत्र में आज स्थिति ठीक नहीं है और किसान संकट में हैं। इन दो बातों से कोई भी इंकार नहीं कर सकता है। ऐसे में इस क्षेत्र में बदलाव के लिए 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के वादे के साथ दोबारा सत्ता पर काबिज हुई मोदी सरकार ने हाल ही में संपन्न मानसून सत्र में संसद ने कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सुविधा) विधेयक-2020 और कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन समझौता और कृषि सेवा पर करार विधेयक-2020 को मंजूरी दिलवाई है।

अब इन विधेयकों के खिलाफ देश भर में किसान सड़कों पर हैं। उनका कहना है कि कृषि विधेयक लाकर केंद्र सरकार ने किसानों के साथ छल किया है और उनके शोषण का नया रास्ता खोल दिया है। इस विधेयक का लाभ किसानों को नहीं, बल्कि पूंजीपतियों व उद्योगपतियों को मिलेगा। इसके उलट सरकार का कहना है कि इन विधेयकों से किसानों का ही फायदा होगा।

फिलहाल जब इन विधेयकों को लेकर देश भर में किसान सड़क पर हैं तो एक नजर इन पर डाल ली जाय।

सबसे पहले किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020। इस बिल की सबसे बड़ी खामी यह है कि ये 'वन कंट्री, टू मार्केट्स’ दृष्टिकोण के जरिए एपीएमसी सिस्टम को धीरे-धीरे खत्म करने के लिए बनाया गया है।

सरकार जोर देकर कह रही है कि एपीएमसी प्रणाली अभी भी बनी रहेगी और यह बिल बिना व्यापार कर और अन्य करों के केवल एक अतिरिक्त 'व्यापार क्षेत्र’ का निर्माण कर रही है। लेकिन, जब दो अलग और समानांतर मार्केटिंग सिस्टम बनाए जाते हैं, एक विनियमन और करों के साथ, और एक बिना उसके तो यह स्पष्ट है कि निजी खिलाड़ी, एजेंट और व्यापारी बाद के सिस्टम का चयन करेंगे, जो समय के साथ-साथ एपीएमसी को निरर्थक बना देगा।

यह अपने आप में, एपीएमसी की धीमी मौत को जन्म देगा। आज तक, एपीएमसी के अस्तित्व के बावजूद, एपीएमसी के भीतर केवल 36 प्रतिशत उत्पादन का कारोबार होता था। देश भर में मंडियों की भारी कमी है।

इससे सहमत हुआ जा सकता है कि इन एपीएमसी की कई समस्याएं है, लेकिन इन्हें सुधारा जाना चाहिए था। एपीएमसी मॉडल ने पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में किसानों के लिए अच्छा काम किया है। यह मौजूदा कमियों में सुधार के साथ विभिन्न फसलों के लिए देश भर में दोहराया जा सकता था, जहां किसानों को गारंटी के साथ एमएसपी प्रदान किया जाता।

किसानों का कहना है कि कम से कम एपीएमसी में, हम किसान विभिन्न प्रकार के शोषण के खिलाफ संगठित करके अपना बचाव कर सकते थे। यह अनियमित व्यापार क्षेत्रों के मामले में नहीं होगा। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि एमएसपी से ऊपर की कीमतों का भुगतान इन अनियमित बाजारों में किया जाएगा।

बिहार के मौजूदा उदाहरण को देखते हुए, जहां 2006 में एपीएमसी को बहुत धूमधाम के साथ हटाया गया था, एक दशक बाद, हम देखते हैं कि किसानों को एमएसपी की तुलना में बहुत कम दाम मिले हैं! इसलिए, हम मांग करते हैं कि पारिश्रमिक की कीमत का अधिकार हमारी गारंटी है और पूर्ण अनियमित बाजारों को अनुमति नहीं मिले।

दूसरा आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) बिल 2020 है। इस बिल की सबसे बड़ी खामी यह है कि ये निजी खिलाड़ियों और कृषि व्यवसाय कंपनियों को जमाखोरी और बाजार में हेरफेर की अनुमति देगा। सरकार का दावा है कि इस बिल से फसल कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे में निवेश बढ़ेगा और किसानों की आय में सुधार होगा। पर इस बिल के पहले भी किसानों पर स्टॉकहोल्डिंग के लिए कोई प्रतिबंध नहीं था।

खाद्यन्नों के जमाखोरी और सट्टेबाजी को रोकने के लिए सिर्फ निजी संस्थाओं पर सीमाएं और नियंत्रण था। किसानों का कहना है कि हमारे नाम पर यह बिल अडानी और रिलायंस जैसी कृषि व्यवसायी कंपनियों को कम कीमत पर हमारी सारी उपज खरीदने, या इससे भी बदतर, दूसरे देशों से आयात करने और बड़ी मात्रा में स्वतंत्र रूप से जमा करने में मदद करेगा क्योंकि भंडारण की कोई सीमा नहीं होगी।

वे आसानी से बाजारों में हेरफेर कर सकते हैं और ऐसे बड़े भंडारण के साथ बड़ा मुनाफा कमा सकते हैं, जिनके बारे में सरकार को कोई जानकारी भी नहीं होगी। देश भर में गरीबों को खाद्य कीमतों में इस तरह के जमाखोरी, सट्टेबाजी और उतार-चढ़ाव के कारण सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ेगा। सरकार स्पष्ट रूप से बड़े निजी खिलाड़ियों/व्यापारियों के हितों की रक्षा कर रही है और वही सबसे अधिक लाभान्वित होंगे।

तीसरा किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक समझौता, 2020 है। भारत के अधिकांश किसान छोटे और सीमांत जोत वाले हैं जिनमें से कई अनपढ़ हैं। भारत में किसानों के साथ अनुबंध खेती की व्यवस्था ज्यादातर अलिखित है और इसलिए अमल में नहीं लिया जा सकता है। जब वे लिखे जाते हैं, तब भी हमेशा किसान समझ नहीं पाते हैं कि उन समझौतों में क्या लिखा है।

एक बड़ी कंपनी की तुलना में व्यक्तिगत किसान अभी भी कमजोर हैं। इस तरह के अनुबंध, अक्सर बाजार उन्मुख वस्तुओं की ओर केंद्रित होते हैं जिन्हें गहन खेती की आवश्यकता होती है, साथ ही साथ पारिस्थितिकी से समझौता करते हैं। साक्ष्य से पता चलता है कि “प्रायोजक" कई छोटे और सीमांत किसानों के साथ सौदा पसंद नहीं करते हैं और केवल मध्यम और बड़े किसानों के साथ काम करने में रुचि रखते हैं।

जब ऐसे खिलाड़ी अनुबंध को पूरा नहीं करते हैं, तो किसानों के पास उन्हें विवाद में घसीटने की कोई क्षमता नहीं है, खासकर जब ज्यादातर अनुबंध अलिखित और अप्राप्य हैं। यह बिल पूरे अनुबंध को स्वैच्छिक बनाता है, यह भी अनिवार्य नहीं है कि लिखित और औपचारिक समझौते किए जाएं!

विधेयक का किसानों को सशक्त बनाने से कोई लेना-देना नहीं है, यह केवल उन्हें और कमजोर करेगा। इस बिल में एक तथाकथित “प्रोडक्शन एग्रीमेंट" प्रत्यक्ष कॉर्पोरेट खेती की अनुमति देने के लिए एक प्रॉक्सी मार्ग है, जो किसानों को अपने स्वयं के खेतों में मजदूर बना देता है। जो सटीक मानकों को पूरा करने के लिए किसानों पर बिना किसी न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के बिना कठोर मांग करता है। यह खण्ड कॉरपोरेट्स की सुरक्षा के लिए तीसरे पक्ष के प्रवर्तन के लिए अनुमति देगा।

ऐसे में यह कहा जा सकता है कि सरकार द्वारा पारित नये कानून भारतीय कृषि और इससे जुड़े करोड़ों लोगों को नष्ट कर देंगे। यह कदम संपूर्ण कृषि क्षेत्र को बड़े कृषि व्यावसायिकों को सौंपने की सुविधा प्रदान करेगा।

यह किसानों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को समाप्त करने, सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पूरी तरह से नष्ट करने, बेईमान व्यापारियों को बढ़ावा देने और खाद्य पदार्थों को जमा करने के लिए विशाल निगमों (कार्पोरेशनों) को बढ़ावा देगा। जिससे बाजार में कृत्रिम रूप से भोजन की कमी पैदा होगी और अनियमित कीमतें बढ़ेंगी।

इन कानूनों से भारत की खाद्य संप्रभुता और सुरक्षा को गंभीर खतरा है। किसानों को अपनी उपज की कीमत तय करने की आजादी की जरूरत है न कि अपनी उपज को बड़े कॉर्पोरेट्स को बेचने की आजादी चाहिए।

Farm bills 2020
Farmer Bill
Anti Farmer Bills
New Agricultural bills
agricultural crises
farmer crises
BJP
modi sarkar
Narendra modi

Related Stories

किसानों और सत्ता-प्रतिष्ठान के बीच जंग जारी है

ब्लैक राइस की खेती से तबाह चंदौली के किसानों के ज़ख़्म पर बार-बार क्यों नमक छिड़क रहे मोदी?

आख़िर किसानों की जायज़ मांगों के आगे झुकी शिवराज सरकार

किसान-आंदोलन के पुनर्जीवन की तैयारियां तेज़

ग्राउंड रिपोर्टः डीज़ल-पेट्रोल की महंगी डोज से मुश्किल में पूर्वांचल के किसानों की ज़िंदगी

बिहार: कोल्ड स्टोरेज के अभाव में कम कीमत पर फसल बेचने को मजबूर आलू किसान

सावधान: यूं ही नहीं जारी की है अनिल घनवट ने 'कृषि सुधार' के लिए 'सुप्रीम कमेटी' की रिपोर्ट 

ग़ौरतलब: किसानों को आंदोलन और परिवर्तनकामी राजनीति दोनों को ही साधना होगा

यूपी चुनाव: पूर्वी क्षेत्र में विकल्पों की तलाश में दलित

उप्र चुनाव: उर्वरकों की कमी, एमएसपी पर 'खोखला' वादा घटा सकता है भाजपा का जनाधार


बाकी खबरें

  • भाषा
    कांग्रेस की ‘‘महंगाई मैराथन’’ : विजेताओं को पेट्रोल, सोयाबीन तेल और नींबू दिए गए
    30 Apr 2022
    “दौड़ के विजेताओं को ये अनूठे पुरस्कार इसलिए दिए गए ताकि कमरतोड़ महंगाई को लेकर जनता की पीड़ा सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं तक पहुंच सके”।
  • भाषा
    मप्र : बोर्ड परीक्षा में असफल होने के बाद दो छात्राओं ने ख़ुदकुशी की
    30 Apr 2022
    मध्य प्रदेश माध्यमिक शिक्षा मंडल की कक्षा 12वीं की बोर्ड परीक्षा का परिणाम शुक्रवार को घोषित किया गया था।
  • भाषा
    पटियाला में मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं निलंबित रहीं, तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का तबादला
    30 Apr 2022
    पटियाला में काली माता मंदिर के बाहर शुक्रवार को दो समूहों के बीच झड़प के दौरान एक-दूसरे पर पथराव किया गया और स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए पुलिस को हवा में गोलियां चलानी पड़ी।
  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    बर्बादी बेहाली मे भी दंगा दमन का हथकंडा!
    30 Apr 2022
    महंगाई, बेरोजगारी और सामाजिक विभाजन जैसे मसले अपने मुल्क की स्थायी समस्या हो गये हैं. ऐसे गहन संकट में अयोध्या जैसी नगरी को दंगा-फसाद में झोकने की साजिश खतरे का बड़ा संकेत है. बहुसंख्यक समुदाय के ऐसे…
  • राजा मुज़फ़्फ़र भट
    जम्मू-कश्मीर: बढ़ रहे हैं जबरन भूमि अधिग्रहण के मामले, नहीं मिल रहा उचित मुआवज़ा
    30 Apr 2022
    जम्मू कश्मीर में आम लोग नौकरशाहों के रहमोकरम पर जी रहे हैं। ग्राम स्तर तक के पंचायत प्रतिनिधियों से लेकर जिला विकास परिषद सदस्य अपने अधिकारों का निर्वहन कर पाने में असमर्थ हैं क्योंकि उन्हें…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License