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भारत
राजनीति
आवश्यक वस्तु अधिनियम में हुआ संशोधन क्यों खतरनाक है?
आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 में किसानों को लाभान्वित करने के लिए कुछ भी नहीं है। इसके उलट इसका प्रतिकूल प्रभाव उनपर ज्यादा होगा जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है।
मनीष कुमार
07 Dec 2020
आवश्यक वस्तु अधिनियम

प्रधानमंत्री द्वारा लॉकडाउन की अचानक घोषणा के बाद कृषि, खाद्य एवं अन्य जरूरी के सामान की आपूर्ति श्रंखला बुरी तरह प्रभावित हो गयी जहाँ एक ओर जमाखोरों ने इस आपदा का इस्तेमाल अत्यधिक लाभ कमाने के अवसर के तौर पे किया वही दूसरी ओर उपभोक्ता महंगी कीमत देने के लिए मजबूर हुए।

27 मार्च, 2020 को, गुरुग्राम के जिला प्रशासन ने सेक्टर-29 में एक स्टोर से 25,000 किलोग्राम चावल और 23,000 किलोग्राम चीनी जब्त किया। उस जगह पर एक थोक व्यापारी, चावल और चीनी की बिक्री बहुत ही ज्यादा कीमत पर कर रहा था। ये महज एक उदारहण है, ऐसे समाचार के एक श्रृंखला को बहुतायत में देख सकता है, जिसमे एसेंशियल कमोडिटीज अधिनियम- 1955 का इस्तेमाल अवैध जमाखोरी के रोकथाम में किया गया है और ऐसे सभी मामलों में जमाखोर, जरूरत के सामान को उसके वास्तविक कीमत या अधिकतम खुदरा मूल्य से ज्यादा पर बेच रहा होता है।

इस अधिनियम में संशोधन-2020 के बाद कृषि उपज के संबंध में अवैध जमाखोरी बिल्कुल कानूनी बन गया है। अगर यह संशोधन मार्च के महीने में होता तो गुरुग्राम जिला प्रशासन की जमाखोरी और उसके परिणामी मुद्रास्फीति को रोकने में कोई भूमिका नहीं होती। संशोधन-2020 ने आवश्यक खाद्य उत्पादों की मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए सरकार का काम बिलकुल मुश्किल कर दिया है।

खाद्य पदार्थों की जमाखोरी अवैध क्यों होनी चाहिए?

जमाखोरी, लाभ-चाहने वालों के बीच एक सबसे प्रचलित प्रवृत्ति है, जो आपूर्ति पर अधिकतम नियंत्रण चाहते हैं, ऐसा करने से वे अधिकतम लाभ का हिस्सा लेकर मूल्य-निर्धारक बन जाते हैं। भारत एक उच्च आर्थिक असमानता वाला देश है, और दिन-ब-दिन ये असमानता और बढ़ रही है, ऐसे में, 'लाभ-आधारित मुद्रास्फीति', देश में अमीर और गरीब के बीच की खाई को चौड़ा करने के लिए बहुत काफी है।

एक ओर, गंभीर आर्थिक मंदी और श्रम कानूनों में बदलाव के साथ नागरिकों की एक विशाल संख्या आय में गिरावट झेल रही है, और वहीं दूसरी ओर कानूनी जमाखोरी के कारण आर्थिक असमानता के साथ साथ उपभोग की असमता भी बढ़ने के लिए बाध्य है। आम तौर पर सरकारों के पास मुद्रा-स्फीति पे नियंत्रण करने के लिए मांग या आपूर्ति पर करवाई का माध्यम होता है; जिसमे से घटते हुए आय के वक़्त मांग से ज्यादा आपूर्ति का रास्ता कारगर होता है।संशोधन-2020 ने सरकारों की आपूर्ति के ऊपर नियंत्रण को कमजोर कर दिया है।

संशोधन-2020 के अनुसार खाद्य पदार्थों की कीमत वृद्धि के मामले में सरकार के नियंत्रण के लिए कौन से दायरे हैं?

संशोधित एसेंशियल कमोडिटीज विधयक की धारा 3, उपधारा 1 ए, में प्रावधान है कि सरकार द्वारा नियंत्रण केवल असाधारण परिस्थितियों, युद्ध, अकाल, असाधारण मूल्य वृद्धि और गंभीर प्राकृतिक आपदा, के समय में ही संभव है। यहाँ, ‘युद्ध’ व ‘अकाल’ तुलनात्मक रूप से स्पष्ट शब्द हैं और प्राकृतिक आपदा को सरकार द्वारा अधिसूचित किया जा सकता है, लेकिन, मूल्य वृद्धि को विशेष रूप से उसी उप-खंड के बिंदु (बी) के तहत परिभाषित किया गया है।

संशोधन-2020 के अनुसार बागवानी उपज (horticultural) के मामले में 100 प्रतिशत खुदरा मुद्रास्फीति और non-perishable कृषि उत्पादों के लिए 50 प्रतिशत की अनुमति है। सरकार की ओर से इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि क्यों सबसे आवश्यक खाद्य सामानों के लिए इतने ज्यादा मुद्रास्फीति को अनुमति दी गयी है। जबकि ये सर्वज्ञात है कि खाद्य मुद्रास्फीति, संशोधन-2020 द्वारा तय की गयी सीमा से बहुत कम दर पर भी संकट पैदा कर सकती है।

इस मामले में उस वक्त को याद किया जा सकता है जब, वर्तमान सत्ताधारी पार्टी विपक्ष में थी और, बिलकुल उचित कारणों से, 10-15 प्रतिशत की वार्षिक महंगाई दर पर भी जम कर विरोध करती थी। विभिन्न उत्पादों के मुद्रास्फीति के आंकड़ों (तालिका 1) से पता चलता है कि अगर अतीत में संशोधन-2020 लागू होता तो बहुत अधिक मूल्य वृद्धि पर भी प्रशासन को जमाखोरी पर लगाम लगाने की इजाज़त नहीं होती। हालांकि, कुछ अपवाद ऐसे हैं जिसमे महंगाई की दर संशोधन-2020 के सीमा से ज्यादा है और केवल उसी मामलों में उपर्युक्त बिंदु लागू होता।

संशोधन-2020, आगे कहता है, “provided that such order for regulating stock limit shall not apply to a processor or value chain participant of any agricultural produce if the stock limit of such person does not exceed the overall ceiling of installed capacity of processing, or the demand for export in case of an exporter”।

यहां तीन महत्वपूर्ण शर्तें हैं, जो सरकार के दायरे को और भी कम करती हैं; 1, वैल्यू चैन प्रतिभागी, 2. स्थापित (इन्सटाल्ड) क्षमता और 3, निर्यात की मांग। प्रत्येक प्रोसेसिंग इकाई विभिन्न नियमों के अनुसार 'स्थापित क्षमता' की घोषणा करती है, लेकिन चुनौती कहीं और है; यह प्रति घंटे या प्रति दिन या प्रति माह के संदर्भ में मापा जाता है। चूंकि यह समय के संदर्भ में मापा जाता है, इसीलिए एक प्रोसेसिंग इकाई, जो खाद्य पदार्थों की जमाखोरी कर रहा हो, आसानी से कह सकता है कि उक्त स्टॉक स्थापित क्षमता के एक वर्ष या उससे भी अधिक समय के अनुसार है।

इसी तरह, निर्यात की मांग को, बहुत हुआ तो कोई अनुमानित कर सकता है, लेकिन सरकार किसी विशेष निर्यातक (exporter) के लिए निर्यात की मांग का अनुमान कैसे लगा सकती है, जो खाद्य उत्पादों की जमाखोरी कर रहा हो? आखिरी में, चूंकि ‘वैल्यू चैन’ प्रतिभागियों में खेती से लेकर उपभोग से पहले तक सभी शामिल हैं, इसलिए, ये कहना कि वैल्यू चैन के प्रतिभागी पर कभी भी कोई सीमा नहीं लागु होगी, का सीधा मतलब ये है कि प्रत्येक संभावित जमाखोर को संशोधन-2020 जमाखोरी करने की अनुमति देता है।

इस संशोधन से किसे लाभ होगा?

संशोधन-2020 में लिखा है, “"value chain participant", in relation to any agricultural product, means and includes a set of participants, from production of any agricultural produce in the field to final consumption”।

क्यूंकि संशोधन-2020, ‘वैल्यू चैन’ प्रतिभागी के लिए किसी भी प्रकार का ‘स्टॉक-सीमा’ नहीं होना तय करता है, अतः ये जानना जरूरी हो जाता कि कौन से वैल्यू चैन प्रतिभागी इसका फायदा ले सकते हैं। वैल्यू चैन में भाग लेने वाले आबादी के संदर्भ में, खेती का सबसे बड़ा हिस्सा है। भारत में, लगभग 86 प्रतिशत कृषक-परिवार छोटे और सीमांत भूमिधारक हैं।

इस विषय में पर्याप्त अध्ययन हैं, जो यह साबित करते हैं कि विभिन्न सामाजिक-आर्थिक मजबूरियों के तहत, छोटे और सीमांत किसानों को अपनी फसल कटाई के तुरंत बाद बेचना होता है। यही कारण है कि उपर्युक्त छूट से कृषक खंड का सबसे बड़ा हिस्सा लाभान्वित नहीं हो सकता है क्यूंकि फसल के कटाई के बाद उसको जमा करके रखना उनके लिए असंभव है।

फसल भंडारण के लिए कई सुविधाओं की आवश्यकता होती है और इसलिए, फसल को जमा करने की क्षमता सीधे पूंजी के स्वामित्व के हिसाब से होता है। इसीलिए खेती के बाद, बाकी के वैल्यू चैन के हिस्से के पास जमा करने की क्षमता उसकी आर्थिक स्थिति के आकार पर निर्भर है।

यह भी उल्लेखनीय है कि भारतीय आबादी का अधिकांश हिस्सा निचले आर्थिक स्तर पर है। राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति के मसौदे (draft of the national land reform policy) के अनुसार, देश में 31 प्रतिशत भूमिहीन परिवार हैं, कुल परिवारों में से 90 प्रतिशत के पास 0 से 2 हेक्टेयर के बीच भूमि है, और केवल पांच प्रतिशत परिवारों के पास 3 हेक्टेयर से अधिक भूमि है।

स्पष्ट रूप से, संशोधन-2020 पूंजीपतियों के लिए हर स्थितियों में असीमित जमाखोरी का प्रावधान करती है। संशोधित कानून में सरकारी निरीक्षण या कार्यान्वयन के जो कुछ भी प्रावधान किये हैं उसके विरोधात्मक प्रावधानों से सरकारी विनियमन को नगण्य कर दिया है। संशोधन-2020 के पास किसानों को लाभान्वित करने के लिए कुछ भी नहीं है और इससे कही आगे बढ़ कर, इसका प्रतिकूल प्रभाव उनपर ज्यादा होगा जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है, जिसमे अधिकांश भारतीय परिवार शामिल है।

(लेखक जर्मनी के केसेल विश्वविद्यालय में पोस्टडॉक्टरल फेलो हैं।) 

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