NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
उमर खालिद पर क्यों आग बबूला हो रही है अदालत?
अमरावती के जिस कार्यक्रम में उमर खालिद का भाषण हुआ था, वहां उनका परिचय एक इन्कलाबी और क्रांतिकारी खयालों वाले छात्र नेता के रूप में दिया गया था। उच्च अदालत ने इन दोनों शब्दों (इन्कलाबी और क्रांतिकारी) के इस्तेमाल पर ऐतराज जताया है। अदालत का मानना है कि ये दोनों शब्द आक्रामक होने के साथ ही लोगों को उकसाने वाले हैं।
अनिल जैन
30 Apr 2022
Umar Khalid

जिस अदालत ने महज एक महीने पहले लोगों को गोली मारने के सार्वजनिक आह्वान को और एक समुदाय विशेष के लोगों को बलात्कारी और हत्यारा बताने को भड़काऊ भाषण मानने से इनकार कर दिया था, उसी अदालत ने अब भाषण में 'इंकलाब’ और 'क्रांति’ जैसे शब्दों को आक्रामक और आपत्तिजनक माना है। उसकी निगाह में सार्वजनिक भाषण के दौरान प्रधानमंत्री के संबंध में जुमला और चंगा जैसे शब्द भी अमर्यादित और अपमानजनक हैं। यही अदालत यह भी मानती है कि हिंदुत्ववादी राजनीतिक विचारधारा के खिलाफ कुछ भी बोलने का मतलब हिंदुओं के खिलाफ बोलना है।

जी हां, बात दिल्ली हाई कोर्ट की हो रही है। पिछले महीने 26 मार्च को इस उच्च अदालत दिल्ली में साल 2020 में हुए सांप्रदायिक दंगे के मामले में भड़काऊ और नफरत फैलाने वाले भाषण देने के आरोपी दो भाजपा नेताओं के खिलाफ दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए बेहद अजीबोगरीब दलील दी थी। हाई कोर्ट ने कहा था, ''अगर मुस्कुराते हुए कुछ कहा जाता है तो वह अपराध नहीं है, लेकिन अगर वही बात आक्रामक रूप से गुस्से में कही जाए तो उसे अपराध माना जा सकता है।’’

गौरतलब है कि दिल्ली में साल 2020 में हुए सांप्रदायिक दंगे से पहले केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने एक आम सभा में भाषण देते हुए लोगों से नारा लगवाया था- ''देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को।’’ यह नारा नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वाले को निशाना बना कर लगवाया गया था। उसी दौरान दिल्ली के भाजपा सांसद परवेश वर्मा ने एक अन्य सभा में लोगों से कहा था, ''अगर दिल्ली विधानसभा के चुनाव में भाजपा हार गई तो शाहीन बाग में आंदोलन कर रहे लोग आपकी बहन-बेटियों के साथ बलात्कार करने और उन्हें मारने के लिए आपके घरों में घुस जाएंगे।’’

इन दोनों भाजपा नेताओं के खिलाफ प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज कराने के लिए दायर जनहित याचिका पर हालांकि हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है लेकिन उसने आरोपियों के बचाव में जो दलील दी है, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह क्या फैसला सुनाएगी। निचली अदालत तो पहले ही यह याचिका ठुकरा चुकी है।

बहरहाल ठीक एक महीने बाद अब इसी हाई कोर्ट ने कथित भड़काऊ भाषण के मामले में बिल्कुल अलग रुख अख्तियार किया है। उसने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्र नेता उमर खालिद के फरवरी 2020 में महाराष्ट्र के अमरावती शहर में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिए गए भाषण को बेहद आक्रामक, भड़काऊ और नफरत भरा बताते हुए उसे उसी महीने दिल्ली में हुए दंगों के लिए जिम्मेदार माना है।

अमरावती के जिस कार्यक्रम में उमर खालिद का भाषण हुआ था, वहां उनका परिचय एक इन्कलाबी और क्रांतिकारी खयालों वाले छात्र नेता के रूप में दिया गया था। उच्च अदालत ने इन दोनों शब्दों (इन्कलाबी और क्रांतिकारी) के इस्तेमाल पर ऐतराज जताया है। अदालत का मानना है कि ये दोनों शब्द आक्रामक होने के साथ ही लोगों को उकसाने वाले हैं।

'इन्कलाब’ और 'क्रांतिकारी’ जैसे शब्दों की जो व्याख्या उच्च अदालत ने की है, वह अभूतपूर्व होने के साथ ही हैरान करने वाली है। साथ ही इन शब्दों को जिस तरह दिल्ली के दंगों से जोड़ कर देखा है, उस पर तो सिर्फ हंसा ही जा सकता है। अगर अदालत की इस व्याख्या को अंतिम रूप से मान लिया जाए तो कई ऐतिहासिक साहित्यिक कृतियों को जलाना या प्रतिबंधित करना पड़ेगा। यही नहीं, देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को जेल में भी डालना होगा, क्योंकि सार्वजनिक जीवन में खासकर राजनीति गतिविधियों से जुड़ा अमूमन हर व्यक्ति सार्वजनिक तौर इन शब्दों का इस्तेमाल करता ही रहता है, भले ही वह किसी भी विचारधारा का हो।

अदालत की दो सदस्यीय विद्वान न्यायाधीशों की पीठ ने यह भी माना है कि सार्वजनिक विमर्श में प्रधानमंत्री का जिक्र करते समय उनके संबंध में 'जुमला' या 'चंगा' जैसे शब्दों का इस्तेमाल अमर्यादित और अशोभनीय है। इस संदर्भ में अव्वल तो अदालत को यह बताना जरूरी है कि जुमला शब्द उर्दू का है जो हिंदी में पूरी तरह घुलमिल गया है। जुमला का अर्थ होता है- एकवाक्य या शब्दों का समूह। राजनीतिक विमर्श में सबसे पहले प्रधानमंत्री मोदी के संबंध में इसका इस्तेमाल गृह मंत्री अमित शाह ने उस वक्त किया था, जब एक टीवी इंटरव्यू के दौरान उनसे प्रधानमंत्री मोदी के कुछ चुनावी वायदों के बारे में सवाल किया गया था। शाह का कहना था कि चुनावी सभाओं में तो कई तरह के जुमले बोले जाते हैं।

अदालत को यह शब्द किस वजह से अमर्यादित और प्रधानमंत्री की शान में गुस्ताखी लगा, यह हैरानी की बात है। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस शब्द की अदालती व्याख्या सुन कर अमित शाह को भी निश्चित ही हंसी आई होगी।

जहां तक 'चंगा’ शब्द की बात है, यह पंजाबी भाषा शब्द है। इसका अर्थ होता है- अच्छा, बढ़िया, श्रेष्ठ, उत्तम, निरोग, निर्विकार, तंदुरुस्त आदि। यह शब्द हिंदी, उर्दू, मराठी आदि भाषाओं में भी पूरी तरह घुलमिल गया है और खूब इस्तेमाल होता है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी सितंबर 2019 में अमेरिका में आयोजित 'हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में इसका इस्तेमाल करते हुए कहा था, 'भारत में सब चंगा सी’ यानी भारत में सब अच्छा है। अमरावती में उमर खालिद ने भी अपने भाषण में व्यंग्य करते हुए प्रधानमंत्री के इस जुमले को दोहराया था। अत: यहां भी समझा जा सकता है कि अदालत द्वारा जुमला शब्द को अशोभनीय बताए जाने पर प्रधानमंत्री मोदी भी मुस्कुराए बिना नहीं रहे होंगे।

उमर खालिद को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने सितंबर 2020 में यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून) के तहत गिरफ्तार किया था। वे तब से ही जेल में हैं। निचली अदालत उन्हें जमानत देने से इनकार कर चुकी है। निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर ही हाई कोर्ट ने उमर खालिद के भाषण को सुनने के बाद उनके वकील से कहा, ''यह आक्रामक, बेहूदा और लोगों को उकसाने वाला है। जैसे-उमर खालिद ने कहा था कि आपके पूर्वज अंग्रेजों की दलाली कर रहे थे, क्या आपको नहीं लगता कि यह आपत्तिजनक है? इससे ऐसा लगता है कि केवल किसी एक विशेष समुदाय ने ही भारत की आजादी की लड़ाई लड़ी थी।’’ यह टिप्पणी करते हुए हाई कोर्ट ने महात्मा गांधी और शहीद भगत सिंह की दुहाई भी दी और सवाल किया कि क्या गांधी जी और भगत सिंह ने इस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया था?
 
अभी अदालत ने इस मामले में भी अंतिम फैसला नहीं सुनाया है, लेकिन उसने कहा है कि आरोपी का भाषण पहली नजर में स्वीकार करने लायक नहीं है। यानी इस मामले भी अदालत की टिप्पणियों से अनुमान लगाया जा सकता है कि फैसला क्या आएगा।!

दोनों ही मामलों में अदालत का फैसला जो भी आए, मगर सवाल है कि अगर अदालत की निगाह में अनुराग ठाकुर और परवेश वर्मा के भाषण भड़काऊ और नफरत फैलाने वाले नहीं हैं तो फिर उमर खालिद का भाषण कैसे नफरत फैलाने वाला हो सकता है? उमर ने अपने भाषण में न तो किसी को गोली मारने का आह्वान किया था और न ही किसी समुदाय विशेष को बलात्कारी कहा था। उन्होंने तो नागरिकता संशोधन कानून की विसंगति और बदनीयती के संदर्भ में एक विशेष राजनीतिक विचारधारा के समर्थकों की ओर इशारा करते हुए यही कहा था कि ''आपके पूर्वज अंग्रेजों की दलाली कर रहे थे।’’ इसमें किसी को उकसाने वाली या शांति भंग करने वाली बात अदालत ने कैसे महसूस कर ली, यह बड़ा सवाल है।

फिर एक बात यह भी है कि ऐसा कहने वाले उमर खालिद कोई पहले या अकेले व्यक्ति भी नहीं हैं। यह बात तो उनसे पहले भी कई लोग कह चुके हैं और अभी भी कहते हैं और लिखते हैं। आगे भी यह सिलसिला जारी रहेगा। इस मुद्दे पर तो कई किताबें भी आ चुकी है, जिनमें इस बात को विस्तार से और तथ्यों के साथ कहा गया है।

कोई भी व्यक्ति सर्वज्ञ होने का दावा नहीं कर सकता, अदालतों के माननीय न्यायाधीश भी नहीं। अदालत के विवेक पर संदेह किए बगैर इतिहास की पुस्तकों में दर्ज यह तथ्य उसके संज्ञान में लाना बहुत जरूरी है कि जिस समय देश का स्वाधीनता संग्राम 'भारत छोड़ो आंदोलन’ के रूप में अपने तीव्रतम और निर्णायक दौर में था, उस दौरान उस आंदोलन का विरोध करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और हिंदू महासभा पूरी तरह ब्रिटिश हुकूमत की तरफदारी कर रहे थे।

उमर खालिद का बयान ऐतिहासिक तथ्यों की रोशनी में होने के बावजूद यह स्वाभाविक है कि कुछ लोगों को वह अरूचिकर लगे, क्योंकि कुछ सच ऐसे होते हैं जो बेहद कडुवे होते हैं। यह तो हो नहीं सकता कि जिस राजनीतिक जमात ने अपने को आजादी की लड़ाई से अलग रखा, उसे भी अब आजादी के संघर्ष में शामिल रहा मान लिया जाए, सिर्फ इसलिए कि उस जमात के लोग अब सत्ता में हैं और बेहद ताकतवर हैं।

स्वाधीनता आंदोलन से अपनी दूरी और मुसलमानों के प्रति अपने नफरत भरे अभियान को आरएसएस ने कभी नहीं छुपाया। आरएसएस के संस्थापक और पहले सर संघचालक (1925-1940) केशव बलिराम हेडगेवार ने बड़ी ईमानदारी के साथ सचेत तरीक़े से आरएसएस को ऐसी किसी भी राजनीतिक गतिविधि से अलग रखा, जिसके तहत उसे ब्रिटिश हुकूमत के विरोधियों के साथ नत्थी नहीं किया जा सके।

हेडगेवार ने महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह आंदोलन की निंदा करते हुए कहा था- ''आज जेल जाने को देशभक्ति का लक्षण माना जा रहा है।...जब तक इस तरह की क्षणभंगुर भावनाओं के बदले समर्पण के सकारात्मक और स्थाई भाव के साथ अविराम प्रयत्न नहीं होते, तब तक राष्ट्र की मुक्ति असंभव है।’’ कांग्रेस के नमक सत्याग्रह और ब्रिटिश सरकार के बढ़ते हुए दमन के संदर्भ मे आरएसएस कार्यकर्ताओं को उन्होंने निर्देश दिया था, ''इस वर्तमान आंदोलन के कारण किसी भी सूरत में आरएसएस को ख़तरे में नही डालना है’’।

1940 में हेडगेवार की मृत्यु के बाद आरएसएस के प्रमुख भाष्यकार और दूसरे सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ने भी स्वाधीनता आंदोलन के प्रति अपनी नफरत को नहीं छुपाया।

हिन्दू महासभा ने तो सिर्फ 'भारत छोड़ो’ आन्दोलन से ही अपने आपको अलग नहीं रखा था, बल्कि उसके नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने एक पत्र लिख कर ब्रिटिश हुकूमत से कहा था कि कांग्रेस की अगुआई में चलने वाले इस आन्दोलन को सख्ती से कुचला जाना चाहिए। मुखर्जी उस दौरान बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ साझा सरकार में वित्त मंत्री थे। उस सरकार के प्रधानमंत्री मुस्लिम लीग के नेता एके फजलुल हक थे। वही फजलुल हक, जिन्होंने 23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग के लाहौर सम्मेलन में भारत के विभाजन और पाकिस्तान के निर्माण का प्रस्ताव पेश किया था।

यह भी ऐतिहासिक और शर्मनाक हकीकत है कि जिस समय नेताजी सुभाष चंद्र बोस सैन्य संघर्ष के जरिए ब्रिटिश हुकूमत को भारत से उखाड़ फेंकने की रणनीति बुन रहे थे, ठीक उसी समय हिंदू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन को हर तरह की मदद दिए जाने के पक्ष में थे। वे सुभाष बाबू की आजाद हिंद फौज के बजाय ब्रिटिश सेना में भारतीय युवकों की भर्ती का अभियान चला रहे थे। यहां यह भी याद रखा जाना चाहिए कि इससे पहले सावरकर माफीनामा देकर इस शर्त पर जेल से छूट चुके थे कि वे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ किसी भी तरह की गतिविधि में शामिल नहीं होंगे और हमेशा उसके प्रति वफादार बने रहेंगे। इस शर्त पर उनकी न सिर्फ जेल से रिहाई हुई थी बल्कि उन्हें 60 रुपए प्रतिमाह पेंशन भी अंग्रेज हुकूमत से प्राप्त होने लगी थी।

यह तथ्य भी इतिहास की पुस्तकों में दर्ज है कि जब आज़ाद हिन्द फ़ौज जापान की मदद से अंग्रेजी फ़ौज को हराते हुए पूर्वोत्तर में दाखिल हुई तो उसे रोकने के लिए अंग्रेजों ने अपनी उसी सैन्य टुकड़ी को आगे किया था, जिसके गठन में सावरकर ने अहम भूमिका निभाई थी।

उपरोक्त तथ्यों की रोशनी में देखा जाए तो उमर खालिद के उस बयान में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है, जिस पर अदालत ने आगबबूला होते हुए सख्त टिप्पणियां की हैं। यह तो नहीं कहा जा सकता कि अदालत ने उमर खालिद के बयान को सांप्रदायिक नजरिए से देखा है, लेकिन अदालत से यह अपेक्षा तो की ही जा सकती है कि वह ऐतिहासिक तथ्यों की रोशनी में उमर के बयान की विवेचना करे।

ये दो मामले तो बानगी है। हाल के दिनों में और भी कई मामलों में अदालतों के फैसलों और टिप्पणियों ने हमारी न्याय व्यवस्था के चाल, चरित्र और चेहरे में आ रहे चिंताजनक बदलाव का संकेत दिया हैं। यह बदलाव रुकना चाहिए, अन्यथा सब तरफ से हताश-निराश लोगों का न्याय व्यवस्था पर से भरोसा उठ जाएगा, जो कि उनकी उम्मीदों का अब एकमात्र और आखिरी सहारा है।

Umar khalid
Sharjeel Imam
Delhi HC
Supreme Court
Delhi Violence
Sedition Law
Bail Delay

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License