NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
शिक्षा
भारत
राजनीति
इस साल और कठिन क्यों हो रही है उच्च शिक्षा की डगर?
केंद्र सरकार का उच्च शिक्षा के निवेश में साल-दर-साल कटौती किए जाने से गरीब परिवारों के बच्चों के लिए परिस्थिति पहले से विकट हुई हैं। इसकी पुष्टि केंद्र के शिक्षा बजट से कर सकते हैं। केंद्र ने वर्ष 2014-15 के दौरान अपने बजट में शिक्षा पर 4.1 प्रतिशत हिस्सा खर्च करने का प्रावधान किया था। फिर, वर्ष 2015-16 में 3.79, वर्ष 2016-17 में 3.66 प्रतिशत, वर्ष 2017-18 में 3.71 प्रतिशत और वर्ष 2018-19 में 3.54 प्रतिशत में केंद्र ने अपने बजट में शिक्षा पर खर्च करने का निर्णय लिया।
शिरीष खरे
16 Sep 2021
इस साल और कठिन क्यों हो रही है उच्च शिक्षा की डगर?
'प्रतीकात्मक फ़ोटो' साभार: सोशल मीडिया

भारत में हर दशक के साथ ही युवाओं के लिए उच्च शिक्षा की डगर कठिन होती गई है। पिछले साल उच्च शिक्षा को लेकर सरकार के नीतिगत दृष्टिकोण में आया परिवर्तन और कुछ वर्षों से इस क्षेत्र के प्रति बरती जा रही उदासीनता नई चुनौतियों की तरफ इशारा कर रही है। दरअसल, किसी क्षेत्र में सुधार तभी संभव है जब हम उसकी असल चुनौतियों की पहचान कर सकें। यदि उच्च शिक्षा प्रणाली की असल चुनौतियों को पहचानना है तो हमें कुछ दशक पीछे जाना होगा।

अस्सी के दशक तक केंद्र सरकार अपनी नीति में अनुदान को प्राथमिकता देती थी। हालांकि, अस्सी के दशक से ही बिना अनुदान की नीति को बढ़ावा दिया जाने लगा था। लेकिन, 2010 का दशक आते-आते स्थिति यह हो गई कि केंद्र सरकार ने उच्च शिक्षा में बिना अनुदान की नीति को स्वीकार कर लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि सार्वजनिक क्षेत्र की उच्च शिक्षा में गुणवत्ता का स्तर खराब होता गया और शिक्षा का बाजारीकरण साफ तौर पर सामने आया। इसका परिणाम यह हुआ कि सामान्य परिवारों के लिए शिक्षा साल-दर-साल मंहगी होती चली गई। असल में उच्च शिक्षा का निजीकरण और व्यापारीकरण ही इस क्षेत्र का सबसे बड़ा संकट है और पिछले साल नई शिक्षा नीति आने के साथ ही जिस तरह उसमें निजीकरण को खुलकर समर्थन किया गया है, उससे अब यह संकट और अधिक बढ़ेगा।

निजी विश्वविद्यालय की स्थापना को बढ़ावा

उच्च शिक्षा की मौजूदा स्थिति को समझने के लिए फिर से पीछे जाएं तो वर्ष 2004 में 'निजी विश्वविद्यालय विधेयक व अध्यादेश' आने के बाद बड़ी तादाद में निजी विश्वविद्यालय की स्थापना को बढ़ावा मिला था। अब हालत यह है कि वर्ष 2018-19 में केंद्र के उच्च शिक्षा विभाग के अखिल भारतीय उच्च शिक्षा सर्वेक्षण के अनुसार देश भर में 385 निजी विश्वविद्यालय हैं।

दूसरी तरफ, केंद्र सरकार का उच्च शिक्षा के निवेश में साल-दर-साल कटौती किए जाने से गरीब परिवारों के बच्चों के लिए परिस्थिति पहले से विकट हुई हैं। इसकी पुष्टि केंद्र द्वारा शिक्षा के लिए दिए जाने वाले बजट का आंकलन करने से होता है। केंद्र ने वर्ष 2014-15 के दौरान अपने बजट में शिक्षा पर 4.1 प्रतिशत हिस्सा खर्च करने का प्रावधान किया था।

फिर, वर्ष 2015-16 में 3.79, वर्ष 2016-17 में 3.66 प्रतिशत, वर्ष 2017-18 में 3.71 प्रतिशत और वर्ष 2018-19 में 3.54 प्रतिशत में केंद्र ने अपने बजट में शिक्षा पर खर्च करने का निर्णय लिया। जाहिर है कि पिछले पांच वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने शिक्षा पर किए जाने वाले निवेश को बढ़ाने की बजाय इसमें लगातार कटौती की है। इसलिए, उच्च शिक्षा में दूसरी सबसे बड़ी चुनौती बुनियादी सुविधाओं का अभाव और गुणवत्ता में आई कमी है। यही वजह है कि सार्वजनिक उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अध्यापकों के लिए बड़ी संख्या में पद खाली हैं।

सार्वजनिक शिक्षा के ढहते ढांचे

इसके अलावा, अगले वर्ष उच्च शिक्षा के नजरिए से विश्वविद्यालय में संबद्ध महाविद्यालय का बढ़ता बोझ, पाठ्यक्रमों में बदलाव की मांग और ड्रापऑउट विद्यार्थियों की बढ़ती संख्या असली चुनौतियां हैं जिनका संबंध भी कहीं-न-कहीं सार्वजनिक शिक्षा के ढहते ढांचे और निजीकरण से ही है। वहीं, उच्च शिक्षा में अध्यापकों के रिक्त पद से जुड़े आंकड़े खुद अपनी हकीकत बता रहे हैं।

इस समय नए केंद्रीय विश्वविद्यालयों में 50 प्रतिशत रिक्त पद है. इसी तरह, आईटीटी में 35 प्रतिशत और राज्यों के विश्वविद्यालयों तथा इनसे संबद्ध कॉलेजों में 40 प्रतिशत तक रिक्त पद हैं। यह स्थिति तब है जब कई आयोग और समितियों ने समय-समय पर उच्च शिक्षा में 100 प्रतिशत रिक्त पदों को भरने की सिफारिशें की हैं। यहां तक कि इस मामले में उच्च और सर्वोच्च न्यायालय भी हस्तक्षेप कर चुके हैं। इसके बावजूद पिछले एक दशक से शासन स्तर पर रिक्त पदों की नियुक्तियों को लेकर लगातार अनदेखी बरती जा रही है। इसका बुरा असर उच्च शिक्षा और शिक्षण की गुणवत्ता पर पड़ा है।

वहीं, भारत में अनुसंधान और नवाचार में भी निवेश घटता जा रहा है। वर्ष 2008 में कुल बजट का 00.84 प्रतिशत राशि अनुसंधान और निवेश में खर्च किया गया था। लेकिन, इस क्षेत्र में खर्च की जाने वाली राशि पिछले बजट में घटते हुए 00.69 प्रतिशत पर आ चुकी है। यही वजह है कि देश में शोधकर्ताओं की संख्या भी लगातार घटती जा रही है।

पाठ्यक्रम और सामाजिक व्यवहार के बीच तालमेल नहीं

यदि हम विश्वविद्यालयों द्वारा तैयार किए गए पाठ्यक्रम की बात करें तो इसमें और सामाजिक व्यवहार के बीच भी कोई तालमेल नहीं दिखता है। दरअसल, उच्च शिक्षा की अध्ययन सामग्री उपयोगी और मानवीय आवश्यकताओं पर आधारित कौशल विकास को बढ़ावा देने वाली होनी चाहिए। इसी प्रकार, उच्च शिक्षा से ड्रापआउट होने वाले विद्यार्थियों को रोकना और सकल नामांकन अनुपात बढ़ाना भी इस क्षेत्र की एक बड़ी चुनौती है।

भारत की उच्च शिक्षा में 18 से 23 वर्ष की आयु-वर्ग के अंतर्गत सकल नामांकन अनुपात महज 26.3 प्रतिशत है, जो कि अन्य विकसित और कई विकासशील देशों की तुलना में बहुत कम है। इससे स्पष्ट होता है कि आज भी देश के करीब 74 प्रतिशत युवा उच्च शिक्षा से बाहर हो जाते हैं। इससे जाहिर होता है कि सभी वर्गों के विद्यार्थियों को समान अवसर देना और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना आज भी दूर का सपना है।

बता दें कि भारत जब स्वतंत्र हुआ था तब 20 विश्वविद्यालय और 500 कॉलेज थे। वर्तमान में 900 से अधिक विश्वविद्यालय और करीब 40 हजार कॉलेज हैं। संख्या की दृष्टि से उच्च शिक्षा में विकास होता दिखता है, लेकिन गुणवत्ता के मानकों पर यह दुनिया के अनेक देशों के मुकाबले पीछे है। ताजा क्यूएस वर्ल्ड रैंकिंग में पहले सौ के भीतर भारत का एक भी उच्च शिक्षा संस्थान का न होना इस बात पुष्टि करता है। इसके बाद 100 से 200वीं रैंकिंग में हमारे देश के महज तीन और 200 से 500वीं रैंकिंग में महज पांच उच्च शिक्षा संस्थानों का होना पूरी कहानी बयान कर देता है।

ऑनलाइन शिक्षण का लाभ किन्हें

भारत की नई शिक्षा नीति उच्च शिक्षा संस्थानों के पुनर्गठन और एकत्रीकरण की सिफारिश करती है। इसके मुताबिक यदि किसी शिक्षा संस्थान में विद्यार्थियों की संख्या कम है तो उसका किसी अन्य शिक्षा संस्थान में विलय कर दिया जाएगा। ऐसा हुआ तो आशंका यह है कि देश के दूरदराज के क्षेत्रों में उच्च शिक्षा के प्रसार और प्रोत्साहन का कार्य रुक जाएगा तथा इससे कई ग्रामीण, पहाड़ी और जनजातीय अंचल के शिक्षा संस्थान बंद हो जाएंगे। कोरोना वैश्विक महामारी के दौरान इन क्षेत्रों के विद्यार्थियों की पढ़ाई पहले ही बुरी तरह प्रभावित हुई है।

ऐसे में ऑनलाइन शिक्षण का लाभ उन विद्यार्थियों को ही मिला है जो सर्वसम्पन्न और टेक्नोफ्रेंडली हैं। इससे उच्च शिक्षा से जुड़ी बुनियादी संरचना की कमजोरियां सतह पर आई हैं। वहीं, यह भी नई चुनौती है कि कोरोना-काल में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों का एक बड़ा वर्ग पढ़ाई से छूट गया है।

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सुधार से पहले इस बात को समझने की आवश्यकता है कि इसे लाभ का धंधा नहीं बनाया जा सकता है। उच्च शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को एक अच्छा नागरिक बनाना होना चाहिए जो विकास के साथ ही सामाजिक न्याय के लिए अच्छी तरह से अपना योगदान दे सके। इसलिए, शिक्षा के व्यवसायीकरण और निजीकरण को बढ़ावा देने वाली नीति पर आगे बढ़ने की बजाय सार्वजनिक क्षेत्र को प्राथमिकता देने वाली योजनाओं की आवश्यकता है।

यही वजह है कि कोठारी आयोग ने सार्वजनिक शिक्षा के क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद का छह प्रतिशत खर्च करने की सिफारिश की थी। लेकिन, आज सरकार के स्तर पर इस सिफारिश को लागू करने की प्रवृति नहीं दिख रही है।

असल में इस साल यदि भारतीय उच्च शिक्षा प्रणाली की चुनौतियों का सामना करना है तो सबसे पहले इन्हें पहचानना आवश्यक है। इसके अनुरूप यदि नीति निर्धारक अपनी इच्छाशक्ति दिखाते हैं और भविष्य में सभी के लिए समान रुप से नि:शुल्क, अनिवार्य तथा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के अवसर जुटाते हैं तो ही आमूलचूल परिवर्तन की संभावना बनेगी। 

Higher education
EDUCATION BUDGET
Education System In India
Online Education
Indian government
Narendra modi
MINISTRY OF EDUCATION
privatization
education policy
new education policy

Related Stories

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

बच्चे नहीं, शिक्षकों का मूल्यांकन करें तो पता चलेगा शिक्षा का स्तर

'KG से लेकर PG तक फ़्री पढ़ाई' : विद्यार्थियों और शिक्षा से जुड़े कार्यकर्ताओं की सभा में उठी मांग

पूर्वोत्तर के 40% से अधिक छात्रों को महामारी के दौरान पढ़ाई के लिए गैजेट उपलब्ध नहीं रहा

डीयूः नियमित प्राचार्य न होने की स्थिति में भर्ती पर रोक; स्टाफ, शिक्षकों में नाराज़गी

शिक्षा को बचाने की लड़ाई हमारी युवापीढ़ी और लोकतंत्र को बचाने की लड़ाई का ज़रूरी मोर्चा

ओडिशा: अयोग्य शिक्षकों द्वारा प्रशिक्षित होंगे शिक्षक

स्कूलों की तरह ही न हो जाए सरकारी विश्वविद्यालयों का हश्र, यही डर है !- सतीश देशपांडे

नई शिक्षा नीति से सधेगा काॅरपोरेट हित


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License