NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
प्रशांत भूषण को जेल क्यों नहीं जाना चाहिए था?
सजा के तौर पर प्रशांत भूषण के जुर्माना अदा करने को लेकर जो लोग सवाल उठा रहे हैं, उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि प्रशांत भूषण का लक्ष्य सुप्रीम कोर्ट का मान-मर्दन करना नहीं रहा है।
अनिल जैन
03 Sep 2020
प्रशांत भूषण
Image courtesy: National Chronicle

कई लोगों को शिकायत है कि प्रशांत भूषण ने एक रुपया जुर्माना क्यों भरा और तीन महीने के लिए जेल क्यों नहीं चले गए? सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर यह सवाल उठाने वालों में बड़ी तादाद उन लोगों की है, जिनकी जमात के सर्वाधिक लोग आपातकाल के दौरान माफीनामा देकर जेल से छूटे थे या जेल जाने से बचे थे।

हैरानी की बात है कि ऐसा ही सवाल करने वालों में कुछ लोग प्रशांत भूषण के शुभचिंतक और प्रशंसक भी हैं, जो यह मान रहे हैं कि प्रशांत भूषण जेल जाने से डर गए, इसलिए एक रुपया जुर्माने की प्रतीकात्मक सजा स्वीकार कर उन्होंने अपना दोष स्वीकार कर लिया। प्रशांत भूषण पर कटाक्ष करने वालों में वे पत्रकार भी पीछे नहीं रहे, जो आमतौर पर अपने गैर पेशागत कार्यों को लेकर सत्ता के गलियारों में विचरण करते पाए जाते हैं।

कुछ लोगों ने प्रशांत भूषण को ड्रामेबाज और धोखेबाज कहते हुए उन्हें 'दूसरा अण्णा हजारे’ करार दिया है तो किसी ने उन्हें 'अरबन नक्सल’ का खिताब अता किया है और किसी ने उन्हें 'प्रोपेगेंडा मास्टर’ बताया है। इस सिलसिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'अनन्य भक्त’ अनुपम खेर भी पीछे नहीं रहे। बंबइया फिल्मों के इस 'चरित्र’ अभिनेता ने किसी शोहदे के अंदाज में ट्वीटर पर लिखा, ''एक रुपया दाम है बंदे का! और वह भी उसने अपने वकील से लिया! जय हो!!’’

अवमानना के मामले में प्रशांत भूषण को सजा सुनाए जाने से पहले भारत सरकार के अटार्नी जनरल ने अदालत से अनुरोध किया था कि प्रशांत भूषण की वरिष्ठता और उनके विशिष्ट न्यायिक योगदान को देखते हुए उन्हें किसी तरह की सजा न देते हुए सिर्फ चेतावनी देकर मामले को समाप्त कर दिया जाए। हालांकि अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वे यह अनुरोध सरकार की तरफ से नहीं, बल्कि निजी हैसियत से कर रहे हैं। इसके बावजूद कुछ लोग उनकी इस सदाशयता में भी प्रशांत भूषण और सरकार की साठगांठ सूंघ रहे हैं।

कुल मिलाकर इन सभी लोगों को इस बात को अफसोस है कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को सीधे-सीधे जेल की सजा क्यों नहीं सुनाई। चूंकि ये तमाम लोग मोटे तौर पर तीन श्रेणी के हैं- मूर्ख, धूर्त और नादान, लिहाजा उनसे यह अपेक्षा की जा सकती कि वे इस बात को समझ सकेंगे कि सजा कुबूल करने का मतलब अपराध कुबूल करना नहीं होता है।

दरअसल सजा तो सजा ही होती है, चाहे वह छोटी या बडी। एक रुपये का सांकेतिक जुर्माना लगाकर सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण पर कोई दया नहीं दिखाई है, बल्कि सजा दी है और प्रशांत भूषण ने उस सजा को कुबूल कर सुप्रीम कोर्ट का सम्मान किया है, जो कि हर व्यक्ति को करना ही चाहिए। इस सजा को स्वीकार न करना सुप्रीम कोर्ट की अवमानना की उस लक्ष्मण रेखा को लांघना होता जो प्रशांत भूषण ने अपने लिए निर्धारित की थी।

सजा के तौर पर प्रशांत भूषण के जुर्माना अदा करने को लेकर जो लोग सवाल उठा रहे हैं, उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि प्रशांत भूषण का लक्ष्य सुप्रीम कोर्ट का मान-मर्दन करना नहीं रहा है। उनकी यह लड़ाई न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार के खिलाफ तथा उसकी कार्यशैली में सुधार के लिए हैं। इस लड़ाई को वे न्यायपालिका के सम्मान और उसके प्रति अपनी आस्था को अक्षुण्ण रखते हुए साहस के साथ लड़ रहे हैं, इसके लिए वे अभिनंदनीय हैं।

जो लोग प्रशांत भूषण के प्रशंसक और समर्थक होते हुए भी यह मानते हैं कि उन्हें तो जेल ही जाना चाहिए था, ऐसे लोगों को यह बात भी समझना चाहिए कि प्रशांत भूषण कोई राजनेता या आंदोलनकारी नहीं हैं। वे सामाजिक सरोकारों वाले एक पेशेवर वकील हैं और उनका कार्यक्षेत्र अदालत है, न कि आंदोलन का मैदान या जेल। वे अपनी पेशागत प्राथमिकताओं और अपने सामाजिक सरोकारों को बखूबी समझते हैं। आज जब न्यायपालिका की साख और विश्वसनीयता पर संदेह और सवालों का धुआं मंडरा रहा है, तब प्रशांत भूषण और उनके जैसे अन्य वकीलों की सुप्रीम कोर्ट में उपस्थिति बेहद जरूरी हो गई है।

प्रशांत भूषण के लिए जुर्माने की सजा स्वीकार न कर दूसरा विकल्प चुनना इसलिए भी उचित नहीं होता, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन नागरिकता संशोधन कानून, अनुच्छेद 370, पीएम केयर्स, लॉकडाउन में सरकारी उदासीनता और कुप्रबंधन के चलते प्रवासी मजदूर के समक्ष आई दुश्वारियां, चुनावी बांड आदि महत्वपूर्ण मामलों में वे खुद ही वकील हैं।

ऐसे में उनका जुर्माना न भर कर जेल चले जाना और वकालत करने से वंचित हो जाना सरकार के लिए बेहद राहतकारी ही होता। इसलिए सरकार भी यही चाहती थी कि प्रशांत भूषण जेल चले जाएं और वकालत करने से वंचित हो जाएं। लेकिन प्रशांत भूषण ने सरकार की यह इच्छा पूरी नहीं की।

हां, अगर प्रशांत भूषण को सजा सुनाए जाने का आदेश सिर्फ इतने तक ही सीमित रहता कि या तो वे एक रुपये का जुर्माना अदा करें या तीन महीने के लिए जेल की सजा भुगते, तो निश्चित ही वे जेल जाने को ही प्राथमिकता देते। सजा सुनाए जाने से पहले खुद प्रशांत भूषण ने कहा था, 'मैं जेल जाने के लिए मानसिक रूप से तैयार हूं। वे मुझे ज्यादा से ज्यादा छह महीने के लिए जेल भेज देंगे। सुप्रीम कोर्ट में मेरे प्रैक्टिस करने पर साल-दो साल के लिए प्रतिबंध लगा देंगे। मेरा ट्विटर अकाउंट सस्पेंड कर देंगे। मैं अगर जेल गया तो देखूंगा कि वहां लोग किस हालत में रहते हैं। मैं वहां किताबें पढूंगा और न्यायपालिका के बारे में किताब भी लिखूंगा।’
 
सजा सुनाए जाने के बाद भी प्रशांत भूषण ने कहा, 'अगर सुप्रीम कोर्ट ने इसके अलावा कोई और भी सजा दी होती तो वह उन्हें मान्य होती, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सभी को मान्य होता है और होना भी चाहिए। अदालत ने सजा के तौर पर मुझ पर जो जुर्माना लगाया, मैं उसे अदा करुंगा, लेकिन मैं अपने को दोषी करार दिए जाने और सजा सुनाए जाने के फैसले को चुनौती देने के अपने अधिकार का इस्तेमाल भी करूंगा।’
 
प्रशांत भूषण के इन दोनों बयानों से जाहिर है कि अगर कोर्ट ने कोई विकल्प दिए बगैर उन्हें सीधे जेल जाने की सजा सुनाई होती तो वह सजा भी उन्हें कुबूल करना होती और वे करते भी। माफी मांगने से इंकार करते हुए उन्होंने कहा ही था कि अदालत जो भी सजा देगी, वह उन्हें स्वीकार होगी।

यह बेहद अफसोस की बात है कि 'प्रशांत भूषण ने जुर्माना भरना क्यों कुबूल किया’ और 'जेल जाना क्यों कुबूल नहीं किया’, जैसी बेमतलब की बहस करने वाले लोग सुप्रीम कोर्ट के फैसले के गुण-दोषों पर चर्चा ही नहीं कर रहे हैं, जो कि करना बेहद जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को सजा सुनाते हुए अपने विस्तृत आदेश में कई बातें कही है, जो उन्हें सुनाई गई सजा से मेल नहीं खाती हैं। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अगर प्रशांत भूषण एक रुपये का जुर्माना अदा नहीं करते हैं तो उन्हें तीन महीने के लिए जेल जाना होगा और वे तीन साल तक वकालत नहीं कर सकेंगे।

अदालत का यह आदेश संविधान और कानून से कतई मेल नहीं खाता और साथ ही सजा सुनाने वाले जजों के न्यायिक विवेक पर भी सवाल खड़े करता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 67 के मुताबिक अगर जुर्माने की रकम 50 रुपये से कम है तो जुर्माना अदा न करने पर दी जाने वाली जेल की सजा दो महीने से ज्यादा नहीं हो सकती, जबकि प्रशांत भूषण के लिए अदालत ने एक रुपया जुर्माना अदा न करने की स्थिति में तीन महीने की सजा तय की है।

जहां तक तीन साल तक के लिए वकालत प्रतिबंधित करने का सवाल है, इस मामले सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ बहुचर्चित विनयचंद्र मिश्र के केस में यह स्थापित कर चुकी है कि न्यायालय की अवमानना के दोषी वकील को सजा देते समय उसका वकालत का लाइसेंस निलंबित करने का आदेश देने के लिए न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 142 और अनुच्छेद 129 में प्रदत्त अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सकता। यह अधिकार सिर्फ बार काउंसिल ऑफ इंडिया को ही है। संविधान पीठ ने यह व्यवस्था 17 अप्रैल, 1998 को दी थी।

प्रशांत भूषण के मामले में स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने सजा देने के मामले में कानून और संविधान की अनदेखी करते हुए आदेश जारी किया है।

अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान प्रशांत भूषण के वकील राजीव धवन ने जनवरी, 2018 को सुप्रीम कोर्ट के चार जजों द्वारा की गई उस प्रेस कांफ्रेन्स का हवाला भी दिया था, जिसमें उन जजों ने तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्र पर स्थापित व्यवस्था को तोड़ने-मरोड़ने का आरोप लगाते हुए देश को बताया था कि सर्वोच्च अदालत में सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है। चारों जजों ने आगाह किया था कि अगर यही स्थिति जारी रही तो देश में लोकतंत्र जीवित नहीं बचेगा।

धवन का कहना था कि अगर प्रशांत भूषण का ट्वीट करना गलत है तो क्या उन चार जजों का प्रेस कांफ्रेन्स करना भी गलत माना जाएगा? कोर्ट ने अपने फैसले में राजीव धवन की इस दलील का जिक्र करते हुए कहा कि चार जजों ने जो प्रेस कांफ्रेन्स की थी, वह उन्हें नहीं करनी चाहिए थी। सवाल है कि जब सुप्रीम कोर्ट यह मानता है कि उन चार जजों का प्रेस कांफ्रेन्स करना गलत था, तो क्या ऐसे में उन चारों पर अवमानना का मुकदमा नहीं चलना चाहिए?

बहरहाल, देश के तमाम जाने-माने न्यायविदों, पूर्व न्यायाधीशों तथा पूर्व और वर्तमान अटार्नी जनरल की अपील को दरकिनार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बेमतलब के मुद्दे को अपनी नाक का सवाल बनाते हुए प्रशांत भूषण पर अवमानना मुकदमा चलाया, उन्हें दोषी ठहराया और सजा सुनाकर अपने अहम को भले ही तुष्ट कर लिया हो, मगर इस पूरे मामले से उसकी अपनी साख में जरा भी बढ़ोतरी नहीं हुई।

यह पहला मौका था जब देश के असंख्य लोगों ने सोशल मीडिया के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट और उसके जजों को लेकर तीखी टिप्पणियां कीं और मीम व कार्टून बनाए। इन लोगों ने प्रशांत भूषण के साथ अपनी एकजुटता जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट को चुनौती देने के अंदाज में कहा था कि हम पर भी अवमानना का मुकदमा चलाया जाए। यह अप्रिय और अभूतपूर्व स्थिति थी जो साफ तौर पर सुप्रीम कोर्ट के रवैये के चलते निर्मित हुई थी। सवाल है कि क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे सभी लोगों के खिलाफ भी अवमानना का मामला चलाएगा?

देश की सर्वोच्च अदालत के लिए इससे बड़ी अपमानजनक स्थिति और क्या हो सकती है कि जिस दिन यह मामला सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति अरुण मिश्र की अगुवाई वाली पीठ को सौंपा गया था, उसी दिन आमतौर पर यह मान लिया था कि इस मामले में फैसला प्रशांत भूषण के खिलाफ आएगा। ऐसा इसलिए माना गया था, क्योंकि पहले दो-तीन अन्य मामलों में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति अरुण मिश्र और प्रशांत भूषण के बीच तीखे टकराव की स्थिति पैदा हो चुकी थी।
 
सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण को सजा सुनाते हुए 82 पृष्ठों का विस्तृत आदेश जारी किया है। कानूनी भाषा में लिखे गए ऐसे आदेशों का अदालतों के लिए, वकीलों के लिए और कानून के छात्रों के लिए ही महत्व होता है, आम जनता के लिए तो ऐसे आदेश से ज्यादा वह संदेश मायने रखता है जो इस पूरे मामले से निकला है। वह संदेश कोर्ट के आदेश से कहीं ज्यादा प्रभावी और सार्थक है। संदेश यह है कि न्यायपालिका में आस्था और उसके सम्मान को अक्षुण्ण रखते हुए भी उसमें व्याप्त बुराइयों के खिलाफ लड़ा जा सकता है। प्रशांत भूषण और उनके वकील राजीव धवन ने यह करके दिखाया है। प्रशांत भूषण ने कहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट मजबूत और स्वतंत्र होता है तो देश का हर नागरिक जीतता है, देश जीतता है लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट कमजोर होता है तो यह हर नागरिक की हार है।

कहने की आवश्यकता नहीं कि अनुपम खेर और उनके जैसे तमाम कूढ़मगज और सत्ता के दलालों की जमात प्रशांत भूषण मामले से निकले संदेश के मर्म को नहीं समझ सकती। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो संदेश को समझते हुए भी बेमतलब के सवाल और कुतर्क उछाल कर इस संदेश को आम लोगों तक न पहुंचने देने की साजिश में जाने-अनजाने भागीदार बन रहे हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

prashant bhushan
Supreme Court
Contempt of Court

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?


बाकी खबरें

  • left
    अनिल अंशुमन
    झारखंड-बिहार : महंगाई के ख़िलाफ़ सभी वाम दलों ने शुरू किया अभियान
    01 Jun 2022
    बढ़ती महंगाई के ख़िलाफ़ वामपंथी दलों ने दोनों राज्यों में अपना विरोध सप्ताह अभियान शुरू कर दिया है।
  • Changes
    रवि शंकर दुबे
    ध्यान देने वाली बात: 1 जून से आपकी जेब पर अतिरिक्त ख़र्च
    01 Jun 2022
    वाहनों के बीमा समेत कई चीज़ों में बदलाव से एक बार फिर महंगाई की मार पड़ी है। इसके अलावा ग़रीबों के राशन समेत कई चीज़ों में बड़ा बदलाव किया गया है।
  • Denmark
    पीपल्स डिस्पैच
    डेनमार्क: प्रगतिशील ताकतों का आगामी यूरोपीय संघ के सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने पर जनमत संग्रह में ‘न’ के पक्ष में वोट का आह्वान
    01 Jun 2022
    वर्तमान में जारी रूस-यूक्रेन युद्ध की पृष्ठभूमि में, यूरोपीय संघ के समर्थक वर्गों के द्वारा डेनमार्क का सैन्य गठबंधन से बाहर बने रहने की नीति को समाप्त करने और देश को ईयू की रक्षा संरचनाओं और सैन्य…
  • सत्यम् तिवारी
    अलीगढ़ : कॉलेज में नमाज़ पढ़ने वाले शिक्षक को 1 महीने की छुट्टी पर भेजा, प्रिंसिपल ने कहा, "ऐसी गतिविधि बर्दाश्त नहीं"
    01 Jun 2022
    अलीगढ़ के श्री वार्ष्णेय कॉलेज के एस आर ख़ालिद का कॉलेज के पार्क में नमाज़ पढ़ने का वीडियो वायरल होने के बाद एबीवीपी ने उन पर मुकदमा दर्ज कर जेल भेजने की मांग की थी। कॉलेज की जांच कमेटी गुरुवार तक अपनी…
  • भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    भारत में तंबाकू से जुड़ी बीमारियों से हर साल 1.3 मिलियन लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    मुंह का कैंसर दुनिया भर में सबसे आम ग़ैर-संचारी रोगों में से एक है। भारत में पुरूषों में सबसे ज़्यादा सामान्य कैंसर मुंह का कैंसर है जो मुख्य रूप से धुआं रहित तंबाकू के इस्तेमाल से होता है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License