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भारत
राजनीति
महाराष्ट्र में हुए इस सियासी ड्रामे को 'लोकतंत्र से विश्वासघात' क्यों कहा जाना चाहिए?
महाराष्ट्र में एक नाटकीय घटनाक्रम में मुख्यमंत्री के तौर पर फड़णवीस की वापसी हो गई है और अजित पवार उपमुख्यमंत्री बने हैं। सियासत को करीब से देखने वालों के लिए इसमें कुछ भी चौंकाने वाला नहीं है लेकिन क्या वाकई ऐसी घटनाओं से हमारा लोकतंत्र मजबूत हो रहा है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
23 Nov 2019
maharastra politics
Image courtesy: Taasir Urdu Daily

'मुझे मत देखो यूं उजाले में लाकर, सियासत हूं मैं, कपड़े नहीं पहनती। इसे कहते हैं: जनादेश से विश्वासघात, लोकतंत्र की सुपारी।' कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ये ट्वीट शनिवार सुबह तब किया जब एनसीपी नेता अजित पवार के सहयोग से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के तौर पर बीजेपी के देवेंद्र फड़णवीस की शनिवार को वापसी हो गयी। वहीं, अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली।

सियासत के जानकारों को इसमें कुछ भी नया नहीं लग रहा है। वो आपको राजनीति में ऐसे दर्जनों उदाहरण देकर समझा देंगे कि जो हो रहा है वह सब पहले कई बार हो चुका है। लेकिन इसके बावजूद हमें यह सवाल पूछना है कि क्या हम सिर्फ इस बात के लिए एक और बार इसे सही मान लें क्योंकि यह पहले हो चुका है?

मेरे ख्याल से जब भी लोकतंत्र से विश्वासघात किया जाए उस हर बार सवाल पूछे जाने की जरूरत है। तो सवाल ये है कि राष्ट्रपति शासन कब और ऐसे क्यों हटा? रातोंरात कब दावा पेश किया गया? कब विधायकों की सूची पेश की गयी? कब विधायक राज्यपाल के समक्ष पेश हुए? चोरों की तरह शपथ क्यों दिलाई? क्या इस पूरे मामले में सत्ता का दुरुपयोग नहीं किया गया? क्या राज्यपाल ने सभी काम नैतिकता के दायरे में किया? क्या विपक्ष के नेताओं को ईडी और सीबीआई का डर नहीं दिखाया गया?

महाराष्ट्र की सियासत में नए घटनाक्रम के बाद ऐसे तमाम सवाल उठ रहे हैं। सत्तारूढ़ पार्टी होने के नाते बीजेपी को इन सवालों का जवाब देना चाहिए। वैसे भी लोकतंत्र में किसी राष्ट्रीय पार्टी के सिर्फ सरकार बनाने और चुनाव लड़ने की मशीनरी में बदल जाने की कहानी पहले से ही दुखद है। लेकिन बीजेपी जिस तरह से राज्य दर राज्य सरकार बनाने के लिए अनैतिक हथकंडे अजमा रही है यह हमारे लोकतंत्र के लिए एक और काला अध्याय ही साबित होगा। जब भी लोकतंत्र का इतिहास लिखा जाएगा तब इन घटनाओं को बहुत गर्व से नहीं, बल्कि घृणित तरीके से याद किया जाएगा।

खुद देवेंद्र फड़णवीस के लिए भी कि इस बार राजभवन में तड़के हुए शपथ ग्रहण समारोह के बारे में लोगों को आभास भी नहीं हुआ और कुछ लोगों ने इसे ‘गुप्त’ घटना बताया। तो वहीं इससे पहले फड़णवीस के 2014 में शपथ ग्रहण समारोह में वानखेड़े स्टेडियम में हजारों लोग मौजूद थे।

अजित पवार की सियासत

'उसी को जीने का हक़ है इस ज़माने में, जो इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए', वसीम बरेलवी का यह शेर एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार पर बिल्कुल फिट हो रहा है। शुक्रवार रात तक वो एनसीपी, कांग्रेस और शिवसेना के साथ गठबंधन बनाते हुए दिख रहे थे लेकिन शनिवार सुबह वह उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके थे।

वैसे भी महाराष्ट्र के इस सियासी ड्रामें में कई मिथक टूटे, कई दोस्त बिछड़े तो कई नई दोस्ती की आधारशिला भी रखी गई। बीजेपी और शिवसेना की तीन दशक पुरानी दोस्ती टूटी। विचारधारा के लेवल पर अलग अलग छोर पर खड़े कांग्रेस और शिवसेना करीब आए। शुरू में सबसे ज़्यादा फायदा में लग रही एनसीपी का सबसे बुरा हाल है। पार्टी कहा खड़ी है अभी तक साफ नहीं हो पाया है।

शपथ ग्रहण समारोह के बाद शरद पवार ने ट्वीट किया, ‘महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए भाजपा को समर्थन देने का अजित पवार का फैसला उनका व्यक्तिगत निर्णय है। यह राकांपा का फैसला नहीं है। हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हम इस फैसले का समर्थन नहीं करते।’

भावुक दिखायी दे रही राकांपा (एनसीपी) सांसद और अजित पवार की चचेरी बहन सुप्रिया सुले ने अपने व्हाट्सएप स्टेटस में लिखा कि पवार परिवार और पार्टी बंट गयी है।

शरद पवार ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के साथ संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘अजित पवार का फैसला अनुशासनहीनता है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का कोई कार्यकर्ता एनसीपी-भाजपा सरकार के समर्थन में नहीं है। भाजपा का समर्थन करने वाले एनसीपी विधायकों को पता होना चाहिए कि उनके इस कदम पर दल-बदल विरोधी कानून के प्रावधान लागू होते हैं।’

उन्होंने कहा कि इन विधायकों के निर्वाचन क्षेत्रों में जब कभी चुनाव होंगे, तो कांग्रेस-एनसीपी-शिवसेना उन्हें मिलकर हराएंगी। पवार ने कहा कि एनसीपी के 54 नवनिर्वाचित विधायकों ने अंदरूनी उद्देश्यों के लिए अपने नाम और निर्वाचन क्षेत्रों के साथ एक पत्र पर हस्ताक्षर किए थे और समर्थन पत्र के लिए इन हस्ताक्षरों का दुरुपयोग किया गया होगा तथा इसे राज्यपाल को सौंपा गया होगा।

उन्होंने कहा, ‘यदि यह सच है तो राज्यपाल को भी गुमराह किया गया है।’ पवार ने कहा कि यह पत्र अजित पवार ने विधायक दल के नेता के तौर पर लिया होगा।  उन्होंने कहा कि जिन विधायकों को शपथ ग्रहण समारोह की जानकारी दिए बिना राजभवन लाया गया, उन्होंने उनसे संपर्क किया और बताया कि उन्हें कैसे गुमराह किया गया।

बुलढाणा से राजेंद्र शिंगणे और बीड से संदीप क्षीरसागर समेत ऐसे तीन विधायक संवाददाता सम्मेलन में मौजूद थे। विधायकों ने बताया कि उन्हें सुबह सात बजे पार्टी नेता धनंजय मुंडे के आवास बुलाया गया और फिर उन्हें कार से राजभवन ले जाया गया। पवार ने कहा कि उन विधायकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी जो अनजाने में राजभवन गए थे और पार्टी में लौट आए हैं।

कांग्रेस और शिवसेना की हालात

इसी प्रेस कांफ्रेंस में उद्धव ठाकरे ने कहा, ‘पहले ईवीएम का खेल चल रहा था और अब यह नया खेल है। मुझे नहीं लगता कि अब से चुनाव कराने की कोई आवश्यकता भी है।’ उद्धव ने कहा, ‘हर कोई जानता है कि जब छत्रपति शिवाजी महाराज को धोखा देकर उन पर पीछे से वार किया गया था तो उन्होंने क्या किया था।’ उन्होंने कहा कि शिवसेना कार्यकर्ता पार्टी के विधायकों का दल-बदल कराने की सभी कोशिशें नाकाम कर देगी।

तो वहीं कांग्रेस के ज्यादातर नेता इसे लोकतंत्र के खिलाफ ही बता रहे हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने शनिवार को कहा कि देवेन्द्र फड़णवीस ने जिस ‘गुपचुप’ तरीके से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, उसे राज्य के इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जाएगा।

उन्होंने कहा कि राज्यपाल को सौंपी गई अजित पवार की विधायकों की सूची का ‘सत्यापन नहीं’ किया गया और राज्यपाल ने किसी से बात भी नहीं की। पटेल ने कहा, ‘जिस मनमाने तरीके से शपथ ग्रहण कराई गई मुझे लगता है कि यह गलत है... उन्होंने बेशर्मी की हदें लांघ दीं।’

कहानियां और भी हैं...

महाराष्ट्र में पिछले एक महीने से तमाम कहानियां बन और बिगड़ रही है। दरअसल गठबंधन में राज्य विधानसभा चुनाव लड़ने वाली भाजपा और शिवसेना ने 288 सदस्यीय सदन में क्रमश: 105 और 56 सीटें जीती थीं लेकिन शिवसेना ने भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री पद साझा करने से इनकार करने के बाद उसके साथ अपने तीन दशक पुराने संबंध खत्म कर लिए। दूसरी ओर, चुनाव पूर्व गठबंधन करने वाली कांग्रेस और एनसीपी ने क्रमश: 44 और 54 सीटें जीती।

अब पिछले करीब महीने भर से कहानियां बन रही हैं। सबसे नई कहानी के मुताबिक महाराष्ट्र में हैरत में डालने वाला यह घटनाक्रम तब सामने आया है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में शरद पवार की पार्टी की तारीफ की थी वो भी ऐसे समय में जब एनसीपी महाराष्ट्र में गैर भाजपा गठबंधन बनाने के प्रयासों में जुटी थी।

दिल्ली में मोदी के साथ पवार की हाल की बैठक से भी महाराष्ट्र के राजनीतिक गलियारे में अटकलों का दौर चल पड़ा था। इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि भाजपा और एनसीपी को एक साथ लाने में एक बड़े उद्योगपति की भी भूमिका है।

जब पवार से हाल ही में सरकार गठन में एक कोरपोरेट घराने की कथित संलिप्तता के बारे में पूछा गया था तो उन्होंने कहा कि उन्होंने नेताओं के अलावा किसी के साथ भी इस मुद्दे पर चर्चा नहीं की थी। मोदी ने कई मौकों पर पवार की तारीफ की और वह राज्य विधानसभा चुनाव प्रचार अभियान के दौरान भी उनके खिलाफ तीखा हमला करने से बचे।

मोदी ने हाल ही में पवार की तारीफ तब की थी जब वह राज्यसभा के 250वें सत्र में बोल रहे थे। मोदी ने कहा कि भाजपा समेत अन्य दलों को एनसीपी और बीजू जनता दल से सीखना चाहिए कि संसदीय नियमों का कैसे पालन किया जाता है। साल 2016 में जब पवार के निमंत्रण पर मोदी, मंजरी में वसंतदादा शुगर इंस्टीट्यूट आए थे तो उन्होंने एनसीपी  अध्यक्ष की सार्वजनिक जीवन में अन्यों के लिए उदाहरण के तौर पर प्रशंसा की थी।

मोदी ने तब कहा था, ‘मैं निजी तौर पर पवार का सम्मान करता हूं। मैं उस समय गुजरात का मुख्यमंत्री था। उन्होंने मेरी उंगली पकड़कर मुझे चलने में मदद की। मैं सार्वजनिक रूप से यह कहकर गर्व महसूस करता हूं।’

अंत में...

महाराष्ट्र के सियासी उलटफेर पर बीजेपी के दिग्‍गज नेता और केंद्रीय मंत्री न‍ित‍िन गडकरी ने एक कार्यक्रम में कहा, 'मैंने पहले ही कहा था कि क्रिकेट और राजनीति में कुछ भी संभव है। अब आप समझ सकते हैं कि मेरे कहने का क्या मतलब था।' फिलहाल इसके भी कई मतलब निकाले जा सकते हैं। वैसे भी भारतीय राजनीति में न कोई स्थायी दुश्मन है और न दोस्त और जो महाराष्ट्र में घटित हो रहा है उसे देखकर लगता है कि भारतीय राजनीति में नैतिकता और शुचिता को भी सभी पार्टियों ने पूरी तरह तिलांजलि दे दी। सत्तासुख इन दलों का प्रमुख चरित्र बन गया है।

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SHARAD PAWAR

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