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विभाजन के वक़्त मारे गए पंजाबियों की याद में बना स्मारक क्यों ढाया गया?
“ऐतिहासिक स्मारक ऐसे नहीं होते कि उन्हें जब मर्जी ढाह दिया जाए और जब मर्जी बना दिया जाए जैसे कि एनएचएआई कह रही है कि स्मारक में कुछ तब्दीलियां की जाएंगी। सवाल स्मारक को दोबारा बनाने का नहीं, सवाल यह है कि इसे तोड़ा क्यों गया?”
शिव इंदर सिंह
16 Sep 2020
विभाजन के वक़्त मारे गए पंजाबियों की याद में बना स्मारक क्यों ढाया गया?

1947 का विभाजन पंजाबियों के लिए न भूलने वाली ऐतिहासिक घटना है। जब देश आज़ादी का जश्न मना रहा था तब पंजाब में मातम का माहौल था। 1947 की साम्प्रदायिक आंधी में 10 लाख पंजाबियों को अपनी जान गंवानी पड़ी, करीब 1 करोड़ पंजाबियों को बेघर होना पड़ा, हज़ारों औरतों के साथ बलात्कार हुए। पंजाब के बुद्धिजीवी मानते हैं कि समय के बीतने के साथ ये जख़्म भरने की बजाय और गहरे हुए हैं।

दोनों पंजाब साहित्यिक, सांस्कृतिक और भावनात्मक तौर पर एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसी भावना के साथ 1996 में चढ़दे पंजाब (भारतीय पंजाब) के कुछ नौजवानों ने सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संगठनों से मिलकर एक प्रोजेक्ट बनाकर केन्द्र सरकार को भेजा; जिसे स्वीकृति मिलने के बाद वाघा बार्डर के पास विभाजन में मारे गए लोगों की याद में एक स्मारक बनाया गया था। स्मारक पर एक तरफ अमृता प्रीतम की विभाजन बारे मशहूर कविता ‘अज्ज आख्खां वारिस शाह नूं’ और दूसरी तरफ फैज़ अहमद फैज़ की बंटवारे से सम्बन्धित नज़्म उकेरी गई थी।

बीते 15 अगस्त से कुछ दिन पहले नवीनीकरण सौंदर्यीकरण के नाम पर यह स्मारक ढाह दिया गया। अब नेशनल हाईवे ऑथोरिटीऑफ़ इंडिया (NHAI) ने गलती मानते हुए कहा है कि उसने यह कदम किसी बुरी भावना से नहीं उठाया है। वह इस स्मारक को दोबारा अन्य जगह पर बनाने का वादा भी कर रही है पर पंजाबी इस कदम से रोष में हैं। वे स्मारक के ढाह दिए जाने को अपने जज़्बातों के साथ खिलवाड़ के तौर पर देख रहे हैं। कई पंजाबी विद्वान तो इसे मोदी सरकार की कोई साजिश भी समझ रहे हैं।

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पंजाबी के प्रसिद्ध नाटककार और पंजाबी ट्रिब्यून के सम्पादक स्वराजबीर के शब्दों में, “ऐतिहासिक स्मारक ऐसे नहीं होते कि उन्हें जब मर्जी ढाह दिया जाए और जब मर्जी बना दिया जाए जैसे कि एनएचएआई कह रही है कि स्मारक में कुछ तब्दीलियां की जाएंगी। सवाल स्मारक को दोबारा बनाने का नहीं, सवाल यह है कि इसे तोड़ा क्यों गया? देशों, कौमों, भाईचारों के इतिहास बारे संवेदनशीलता यह मांग करती है कि स्मारकों को उनके मौलिक रूप में कायम रखा जाए। 2020 में नया बनाया जाने वाला स्मारक 1996 में बनाये गए स्मारक की रूह को रूपमान नहीं कर सकता। यह स्मारक सरकारी होगा जबकि 1996 का स्मारक पंजाब के नौजवानों के मनों में चढ़दे पंजाब व लहंदे पंजाब के बीच दोस्ती बढ़ाने का प्रतीक था। उस समय नौज़वानों ने राजा पोरस को पुरातन पंजाब का प्रतीक मानते हुए ‘राजा पोरस हिंद-पाक पंजाबी मित्रता’ मेले भी लगाए थे। 14-15 अगस्त की रात को सरहद के दोनों तरफ मोमबत्तियां जलाकर चढ़दे व लहंदे पंजाब की सांझ और दोनों देशों के बीच दोस्ती की दुआएं मांगी गईं।”

इस बार भी 14-15 अगस्त की रात पंजाब हितैषी लोग स्मारक पर मोमबत्तियां जलाने पहुंचे। लेकिन पहले तो उन्हें उस जगह तक जाने नहीं दिया गया, और बाद में पता चला कि स्मारक को तो हटा दिया गया है, जिसके बाद ये लोग सड़क पर ही मोमबत्ती जलाकर लौट आए।

यादगार बनाने वालों में प्रमुख हस्ती व फ़ॉकलोर रिसर्च अकेडमी चंडीगढ़ के प्रधान तारा सिंह संधू ने अपना रोष  प्रकट करते हुए कहा, “यह यादगारी स्मारक किसी राजनैतिक मनोरथ से स्थापित नहीं किया गया था। इस स्मारक का प्रोजेक्ट बीएसएफ के तात्कालिक डीआईजी द्वारा पास करवाया गया था और बाद में इस जगह का चुनाव किया गया था। इस स्मारक पर लहंदे व चढ़दे दोनों पंजाबों के लोगों व नेताओं ने सजदे किए हैं। दुख इस बात का है कि स्मारक को चुपचाप ढाह दिया गया।”

काबिल-ए-गौर है कि यह यादगारी स्मारक जब 30 दिसम्बर 1996 को स्थापित किया गया था तो उस समय पांच दरियाओं का पानी इसकी नींव में डाला गया था। नींव रखने वालों में प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी बाबा भगत सिंह बिलगा, पंजाबी ट्रिब्यून के तत्कालीन सम्पादक हरभजन सिंह हलवारवी, पंजाबी की साहित्यिक पत्रिका ‘प्रीतलड़ी’ की सम्पादक पूनम, प्रोफेसर मोहन सिंह फाउंडेशन के जगदेव सिंह जस्सोवाल और पंजाब के साहित्यिक मैगज़ीन ‘चिराग’ के सम्पादक हरभजन सिंह हुंदल शामिल थे। दोनों देशों की दोस्ती के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता प्रोफेसर ईश्वरदयाल गौड़ व केन्द्रीय श्री गुरु सिंह सभा चंडीगढ़ के जनरल सैक्रेटरी डॉ. खुशहाल सिंह ने केन्द्र सरकार से मांग की है कि यह स्मारक दोबारा बनाया जाए, नहीं तो पंजाबी इकट्ठे होकर नए सिरे से स्वयं इसे बनाएंगे।

पंजाब के नामवर राजनीतिक शास्त्री प्रोफेसर मनजीत सिंह का कहना है, “अटारी सरहद से इस यादगार को हटाने के पीछे कुछ तथाकथित राष्ट्रवादी लोगों का हाथ हो सकता है। मौजूदा मोदी सरकार का दाल-पानी ही पाकिस्तान व हिन्दू-मुसलमान का राग अलाप कर चलता है। भाजपा व आरएसएस जैसी ताकतें नहीं चाहतीं कि दोनों देशों के सम्बन्ध बेहतर बनें। दोनों पंजाबों की आपसी सांझ से इन ताकतों को तकलीफ़ होती है।”

दूसरी तरफ बीएसएफ के डीआईजी भूपेन्द्र सिंह ने बताया है कि यह मामला एनएचएआई के पास है, इस मामले का बीएसएफ से कोई सम्बन्ध नहीं। भारतीय नेशनल हाईवे ऑथोरिटी के अटारी तैनात उच्च अधिकारी सुनील यादव ने माना है कि स्मारक को तोड़ते समय लोगों को विश्वास में न लेने की गलती हुई है पर यह कार्रवाई किसी बुरी भावना से नहीं की गई।”

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‘हिंद-पाक दोस्ती मंच’ के जनरल सैक्रेटरी सतनाम सिंह मानक ने हमें जानकारी देते हुए कहा है कि उनकी संस्था स्मारक के पुनर्निमाण के लिए बीएसएफ के डीआईजी को चिठ्ठी लिख चुकी है। ‘हिंद-पाक दोस्ती मंच’ व फ़ॉकलोर रिसर्च अकेडमी के नुमाइंदे रमेश यादव और राजिन्द्र सिंह रूबी बीएसएफ व एनएचएआई के अधिकारियों से मुलाकात कर चुके हैं, उन्होंने भरोसा दिया है कि स्मारक अटारी सरहद पर चल रहे सौन्दर्यीकरण के कारणों से हटाया गया है और नई सौन्दर्यीकरण की योजना में इसे जल्द से जल्द बनवाया जाएगा।

पंजाब हितैषी लोगों के एक हिस्से से अब यह आवाज़ उठने लगी है कि हमें यह यादगार सरकारी खर्चे से नहीं बनानी बल्कि पंजाबी स्वयं पैसे इकट्ठे करके यह यादगार बनवाएंगे। कुछ इसी तरह के विचार प्रकट करते हुए पंजाबी विद्वान प्यारे लाल गर्ग कहते हैं, “पहले जो स्मारक बना था वह पंजाबी लोगों के दिलों की भावनाओं को प्रकट करता था उसे देखकर हमें मंटो, अहमद राही, उस्ताद दामन याद आते थे। हमें विभाजन के दौरान मरे अपने दस लाख पंजाबी भाई-बहन याद आते थे। जहां बार्डर पर दोनों तरफ के फौजियों द्वारा राष्ट्रवाद की सुरें बुलंद की जाती हैं वहीं यह स्मारक हमें याद करवाता था कि पंजाबियों के साथ कुछ और भी इतिहास में हुआ है। यह स्मारक दोनों पंजाबों के बीच सांझ का प्रतीक था, पर जो अब सरकार द्वारा निर्मित होगा वह महज़ एक पत्थर होगा। इसलिए पंजाबियों को खुद यह स्मारक पैसे इकट्ठे करके बनाना चाहिए।”

पंजाबियों की भाईचारिक सांझ के प्रतीक को तोड़े जाने का लहंदे पंजाब (पाकिस्तानी पंजाब) में भी विरोध शुरू हो गया है। पाकिस्तान के प्रसिद्ध पत्रकार व ‘साफ़मा’ के सचिव इमतियाज़ आलम अपने जज़्बातों को सांझा करते हुए कहते हैं, “स्मारक का तोड़ा जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। आज जब दोनों देशों के सम्बन्ध नाज़ुक दौर से गुज़र रहे हंल उस समय इस तरह की यादगारें लोगों को एक दूसरे के नज़दीक लाने में सहायक होती हैं।”

भारत-पाक दोस्ती के लिए काम करने वाली पाकिस्तान की प्रसिद्ध पीस एक्टिविस्ट सैयदा दीप सख़्त शब्दों में एतराज़ जताते हुए कहती हैं, “यह स्मारक आम पंजाबियों ने अपनी पहल पर बनाया था। यह यादगार कुलदीप नैयर जैसी हस्तियों की मेहनत का फल था। यह पंजाबियों को याद करवाता था कि 73 साल पहले कैसे उन्होंने साम्प्रदायिक आग में अपनों को मारकर आत्मघात किया था। दुख की बात यह है कि भारत में इस समय ऐसी हुकूमत है जिस तरह की हम अपने मुल्क में कई साल पहले देख चुके हैं। भारत-पाकिस्तान में बेहतर रिश्ते चाहने वालों को इस घटना ने उदास किया है।”

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

India Pakistan partition
Memory of punjabis
Historical monument
independence day
communal violence
Communalism
Communal riots
punjab
Religious riots
hindu-muslim
1947 Partition

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