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भारत
राजनीति
क्या सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले से अडानी ग्रुप को 5,000 करोड़ रुपये का फ़ायदा मिलेगा ?
राजस्थान की बिजली वितरण कंपनियों और अडानी समूह की एक बिजली उत्पादन कंपनी के बीच सात साल से चल रहे लंबे विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ़ से 2 सितंबर से पहले फ़ैसला सुनाये जाने की उम्मीद है। अगर यह फ़ैसला अडानी समूह की कंपनी के पक्ष में जाता है,तो इससे अडानी समूह की कंपनी को 5,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का फ़ायदा मिल सकता है।
अबीर दासगुप्ता, परंजॉय गुहा ठाकुरता
10 Aug 2020
अडानी समूह

मुंबई / गुरुग्राम: न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा की अगुवाई में भारत के सर्वोच्च न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों वाली पीठ की तरफ़ से अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड और राज्य में बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) के बीच बिजली दरों के विवाद में 2 सितंबर से पहले फ़ैसला सुनाये जाने की उम्मीद है।इस मामले की क़रीबी जानकारी रखने वाले दो लोगों ने न्यूज़क्लिक से इसकी पुष्टि इस शर्त पर की है कि न्यूज़क्लिक उनका नाम नहीं लेगी।

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश (उम्र के लिहाज से) जस्टिस मिश्रा तीन जजों की उस पीठ की अगुवाई कर रहे हैं, जिसमें जस्टिस विनीत सरन और मुकेश शाह भी शामिल हैं। इस पीठ ने 29 जुलाई को मामले पर सुनवाई पूरी करने के बाद अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। न्यायमूर्ति मिश्रा दो सितंबर को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त होंगे।

अगर इस क़ानूनी विवाद में आने वाला फ़ैसला अडानी समूह की कंपनी के पक्ष में जाता है,तो कंपनी कथित "क्षतिपूरक टैरिफ़"( Compensatory Tariffs) के ज़रिये 5,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा की रक़म हासिल करने की स्थिति में होगी। जैसा कि न्यूज़क्लिक इस बारे में पहले ही लिख चुका है कि जनवरी 2019 के बाद अडानी समूह से जुड़ा यह सातवां ऐसा मामला होगा,जिसमें न्यायमूर्ति मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ फ़ैसला सुनायेगी। पिछले छह फ़ैसले भारत के दूसरे सबसे अमीर शख़्स, गौतम अडानी के स्वामित्व वाले कॉर्पोरेट समूह के पक्ष में गये हैं।

अनुबंध और "आश्वासन"

2013 में शुरू हुए इस विवाद को समझने के लिए ज़रूरी है कि 2006 और 2009 के बीच की उस अवधि में वापस चला जाये, जब अडानी समूह की कंपनियों ने राजस्थान सरकार द्वारा कोयला खदान और उस थर्मल पॉवर प्लांट को विकसित किये जाने के लिए दिये गये अनुबंधों को हासिल किया था, जो राज्य के उपभोक्ता को बिजली की आपूर्ति करेगी।

अक्टूबर 2006 में राज्य सरकार के स्वामित्व वाली बिजली उत्पादन कंपनी, राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RRVUNL) ने अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (AEL) को सूचित किया कि उसे अपने संयुक्त उद्यम (JV) भागीदार के रूप में चुना गया है। राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RRVUNL) ने कहा कि प्रस्तावित संयुक्त उद्यम (JV) की व्यावसायिक गतिविधियां राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (RRVUNL) के स्वामित्व वाले मौजूदा और नये थर्मल पॉवर स्टेशनों की ज़रूरतों के साथ-साथ राज्य में नये थर्मल पॉवर परियोजनाओं के लिए आवंटित कोयला ब्लॉकों से खनन और कोयले की आपूर्ति तक सीमित रहेंगी। 

अगस्त 2007 में राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड(RRVUNL) द्वारा उत्तरी छत्तीसगढ़ में स्थित पारसा ईस्ट एंड कांटे बसन (PEKB) कोयला ब्लॉक को विकसित करने के लिए आशय पत्र (LoI) जारी किया गया था। इस आशय पत्र (LoI) में कहा गया था कि कोयले का इस्तेमाल नयी आने वाली थर्मल पॉवर परियोजनाओं के लिए राजस्थान सरकार के विवेक से किया जा सकता है।

मार्च 2008 में राजस्थान के बारां जिले के कवाई में कोयला आधारित ताप विद्युत उत्पादन परियोजना स्थापित करने के लिए राजस्थान सरकार और अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (AEL) के बीच समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किये गये। इस समझौता ज्ञापन में कहा गया था कि राज्य सरकार ने कोयला लिंकेज के आवंटन को सुनिश्चित करने में इस परियोजना को अपना समर्थन देने का आश्वासन दिया है।

मई और जून 2008 के बीच, अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (AEL) ने राजस्थान सरकार को अनुरोध करते हुए छह बार लिखा कि वह पारसा ईस्ट एंड कांटे बसन (PEKB) कोयला खदान से कोयले के आवंटन पर विचार करे, जो पहले से ही संयुक्त उद्यम (JV) कंपनी द्वारा विकसित किया जा रहा है। अगस्त 2008 के अंत में ऐसा कोई आवंटन नहीं होते देख अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (AEL) ने राज्य सरकार से कोयला ब्लॉक के लिए केंद्रीय कोयला मंत्रालय को एक कैप्टिव कोल ब्लॉक(जिस कोल ब्लॉक कोयला में मालिकों को पूरी तरह से उसके ख़ुद के उपयोग के लिए उत्पादन की अनुमति सरकार द्वारी दी जाती है,उसे "कैप्टिव कोल ब्लॉक कहा जाता है) के विकास को लेकर कावई परियोजना को आवंटित किये किये जाने के लिए आवेदन करने का अनुरोध किया। 

जिस दरम्यान अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (AEL) के ये प्रयास चल रहे थे, राजस्थान सरकार ने निजी उत्पादकों से बिजली ख़रीदने के लिए नीलामी करने की तैयारी कर ली। अक्टूबर और दिसंबर 2008 के बीच राज्य सरकार ने राज्य डिस्कॉम द्वारा बिजली की ख़रीद को मंजूरी दे दी। यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की नेतृत्व वाली राज्य सरकार का आख़िरी बड़ा फैसला था। इसके बाद राजे सरकार विधानसभा चुनाव हार गयी और अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकार बनी।

इस बात पर ग़ौर किया जाना चाहिए कि राजे सरकार के तहत ही पारसा ईस्ट एंड कांटे बसन (PEKB) ब्लॉक में कोयला खनन करने और कावई में एक थर्मल पावर प्लांट बनाने का ठेका अडानी समूह की कंपनियों को दिया गया था। हालांकि तब कोयला लिंकेज लागू नहीं था।

इस बीच बिजली खरीद प्रक्रिया पहले ही चालू हो चुकी थी। 2009 में राजस्थान डिस्कॉम ने उस मूल्य को निर्धारित करने के लिए एक नीलामी को अंजाम दिया, जिस पर वह बिजली ख़रीद सकता था। फ़रवरी 2009 में बिजली की ख़रीद के लिए एक प्रस्ताव निवेदन (RfP) के ज़रिये एक नीलामी की घोषणा की गयी। उस समय कवाई बिजली परियोजना का विकास कर रही एपीआरएल ने राजस्थान सरकार से एक कोयला लिंकेज के लिए एक प्रतिबद्धता की मांग की।

जून 2009 में अपनी बोली की तैयारी करते हुए अदानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड (APRL) ने राजस्थान सरकार को एक कोयला लिंकेज हासिल करने के लिए समझौता ज्ञापन की शर्तों के तहत अपना समर्थन देने के लिए लिखा, जिसमें या तो पीईकेबी खदान सहित राज्य के स्वामित्व वाली मौजूदा कोयला खदानों से अतिरिक्त कोयले के आवंटन या फिर केंद्र सरकार को एक कैप्टिव कोल ब्लॉक के आवंटन के लिए अपने आवेदन का समर्थन करने को लेकर अनुरोध किया गया था। एपीआरएल ने इस बात की भी मांग की थी कि मार्च 2009 में समाप्त होने वाली कावई परियोजना पर समझौता ज्ञापन को एक वर्ष के लिए बढ़ा दिया जाये।

उस नीलामी में बोली लगाने को लेकर पात्रता हासिल करने के लिए अदानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड (APRL) को किसी ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर करने की ज़रूरत थी,जो उसे कोयला आपूर्ति की गारंटी देता हो। जून 2009 में इसने कवाई परियोजना के लिए इंडोनेशिया से आयातित कोयले की आपूर्ति के लिए इस समूह की कंपनी,अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (AEL) के साथ एक कोयला आपूर्ति समझौते (CSA) को अंजाम दिया। इसके अलावा, अदानी पावर राजस्थान लिमिटेड (APRL) ने जुलाई 2009 में केंद्रीय कोयला मंत्रालय को एक लंबी अवधि के कोल लिंकेज अनुबंध के लिए भी आवेदन किया था। इस कोयला आपूर्ति समझौते (CSA) के साथ अदानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड (APRL) ने इसकी बोली में उस समझौते को शामिल करते हुए नीलामी में अपनी बोली पेश कर दी।

जब राजस्थान सरकार (GoR) ने अपनी बोली के मूल्यांकन के सम्बन्ध में अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड से स्पष्टीकरण मांगा, तो अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड ने साफ़ कर दिया कि इसका मक़सद "घरेलू कोयले के साथ-साथ आयातित कोयले का इस्तेमाल करना है।" कोयला आपूर्ति समझौते (CSA) की ओर इशारा करते हुए इसने कहा, "इस बोली के साथ 5 वर्षों की अवधि के लिए कोयले की ज़रूरत के 50% से ज़्यादा के लिए एक विधिवत ईंधन आपूर्ति समझौते को पेश किया गया है।" उसने “आगे” कहा, “हमने राजस्थान सरकार (GoR) और अडानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (AEL) के बीच इस बोली के साथ निष्पादित एमओयू को भी पेश किया है… राज्य ने इस बिजली परियोजना के लिए किसी अन्य स्रोत से कोयला लिंकेज / ब्लॉक या कोयला पाने में सहूलित के लिए अपने प्रयास करने का आश्वासन दिया है।”

इसलिए, अदानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड (APRL) ने कहा, "हम आयातित कोयले के समझौते के आधार पर ईंधन की ज़रूरत को पूरा करते हैं," अदानी पावर राजस्थान लिमिटेड (APRL) ने आगे कहा …हम राजस्थान सरकार (GoR) के समर्थन से घरेलू ईंधन पाने के लिए समझौते को लेकर निश्चिंत हैं। इसके मद्देनजर हम यह निवेदन करते हैं कि हमारी बोली का मूल्यांकन घरेलू कोयला समझौते के आधार पर किया जाना चाहिए। हम इस बात का वचन देते हैं कि पीपीए (ऊर्जा ख़रीद क़रार) की अवधि के दौरान घरेलू कोयला में होने वाली बढ़ोत्तरी का भुगतान हमें स्वीकार्य होगा।”

अदानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड (APRL) की बोली सबसे कम थी और इसने अपने 1,320 मेगावॉट (MW) क्षमता के कावई पॉवर प्रोजेक्ट से राज्य के डिस्कॉम को बिजली की आपूर्ति करने का अनुबंध हासिल कर लिया। जनवरी 2010 में अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड और राजस्थान सरकार के स्वामित्व वाली डिस्कॉम के बीच एक पीपीए (ऊर्जा ख़रीद क़रार) पर हस्ताक्षर किये गये।

इसके बाद, एपीआरएल ने एक बार फिर राजस्थान सरकार को पत्र लिखकर अपने कावाई प्रोजेक्ट के लिए एक कैप्टिव कोल ब्लॉक के आवंटन की मांग की। इसने राज्य सरकार से अनुरोध किया कि वह राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड(RRVUNL) (जिसमें PEKB कोयला खदान से कोयले के इस्तेमाल पर विवेकाधीन अधिकार है) के बीच ईंधन आपूर्ति समझौते पर अमल करे। जनवरी 2011 की शुरुआत में ही अशोक गहलोत सरकार ने केंद्र सरकार को कावई बिजली परियोजना के लिए एक कोल ब्लॉक के आवंटन की मांग की।

न्यूज़क्लिक के पिछले लेख में इस लेख के लेखकों ने इस प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन किया है:

राजस्थान सरकार ने जनवरी 2011 में कोयला मंत्रालय को पत्र लिखकर कावई सहित राज्य की विभिन्न बिजली परियोजनाओं के लिए कोयला आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए छत्तीसगढ़ में सरकार द्वारा चिह्नित कोयला ब्लॉक आवंटित करने का अनुरोध किया था। एक वर्ष से ज़्यादा समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने के बाद फ़रवरी 2012 में राज्य सरकार ने फिर से केंद्र सरकार को पत्र लिखा, इस बार कोयला मंत्रालय और ऊर्जा मंत्रालय दोनों से अनुरोध किया गया कि कावई परियोजना को 12 वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) का हिस्सा होने के बावजूद केंद्र सरकार की 11 वीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) में अन्य बिजली परियोजनाओं के बराबर माना जाये।

जवाब में ऊर्जा मंत्रालय ने कहा कि यह परियोजना बारहवीं योजना का हिस्सा थी और इसे यथासमय लागू करने पर विचार किया जायेगा। इस बीच, मंत्रालय ने सुझाव दिया कि राजस्थान सरकार छत्तीसगढ़ में पहले आवंटित कोयला ब्लॉकों में खनन क्षमता बढ़ाने की संभावना की जांच करे और इन ब्लॉकों से कवाई परियोजना के लिए कोयला आवंटित करे।

राजस्थान सरकार ने नवंबर 2012 में इसके जवाब में लिखा कि कथित तौर पर उन खदानों से बरामद किये जाने वाले कोयले की मात्रा को संशोधित किये बिना उसके द्वारा आवंटित कोयला ब्लॉकों में पर्याप्त अधिशेष कोयला नहीं है। दरअस्ल, कवाई परियोजना के लिए घरेलू कोयला हासिल करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध करने के बाद, और अदानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड (APRL) और केंद्र सरकार द्वारा छत्तीसगढ़ में अपनी कोयला खदानों से कोयले की आपूर्ति करने के लिए कहने के बाद राजस्थान सरकार ऐसा करने से इनकार कर रही थी।

इसके बाद, राजस्थान सरकार ने नई दिल्ली में अपने पक्ष में लामबंदी तेज़ कर दी। कोयले के तदर्थ आवंटन का अनुरोध करते हुए 26 नवंबर, 2012 को मुख्यमंत्री गहलोत की तरफ़ से कोयला और ऊर्जा मंत्रालयों को एक पत्र भेजा गया था, क्योंकि कवई पावर प्लांट का संचालन शुरू ही होने वाला था। राजस्थान सरकार ने जनवरी 2013 में योजना आयोग को एक और पत्र लिखा। दिसंबर 2012 में कावई पावर प्लांट ने "परीक्षण" के आधार पर आयातित इंडोनेशियाई कोयले को लेकर अपना संचालन शुरू कर दिया, और अगस्त 2013 में राज्य के पॉवर ग्रिड के साथ उसे समायोजित किया गया ।

फ़रवरी 2013 में, अदानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड (APRL) ने डिस्कॉम को यह कहते हुए पत्र लिखा कि घरेलू कोल लिंकेज को हासिल करने के राजस्थान सरकार की तरफ़ से की गयी निरंतर कोशिश नाकाम हो गयी थी और चूंकि यह संयंत्र इंडोनेशियाई कोयले के सहारे चल रहा था, जिसकी कीमत इंडोनेशियाई सरकार के नये क़ानून के लागू होने के बाद बढ़ गयी थी,इसलिए आयातित कोयले के इस्तेमाल के चलते इसकी उच्च लागतों के लिए निजी कंपनी को क्षतिपूर्ति के लिए टैरिफ़ में संशोधन की ज़रूरत होगी।

अगस्त 2013 में घरेलू कोल लिंकेज के साथ बिजली की निर्धारित आपूर्ति शुरू होने के कारण अदानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड (APRL) ने राजस्थान विद्युत नियामक प्राधिकरण (RERC) से 2010 में प्रतिस्पर्धी नीलामी में बोली के आधार पर बिजली दरों में बढ़ोतरी की मांग वाली याचिका के साथ संपर्क किया।

आरईआरसी में राजस्थान सरकार ने स्वयं के हित को कमज़ोर कर दिया

अदानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड (APRL)ने राजस्थान विद्युत नियामक प्राधिकरण (RERC) के सामने यह तर्क दिया कि परिस्थितियां "एकदम अप्रत्याशित" रूप से सामने आ गयी हैं और डिस्कॉम के साथ जो हस्ताक्षर हुए थे,उस पीपीए की धारा वाले "कानून में बदलाव" आ गया है। उसका यह भी कहना था इंडोनेशियाई कोयले की क़ीमतों में हुई बढ़ोतरी किसी "दैवी घटना" की तरह एक ऐसी अप्रत्याशित घटना बन गयी, जिसका पहले से अनुमान नहीं लगाया जा सकता था, और उसने आगे कहा कि राजस्थान सरकार यह सुनिश्चित करने में विफल रही कि अपने सहयोग का आश्वासन देने वाले एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने के बाद उसे एक घरेलू कोल लिंकेज मिल जायेगा,मगर तबतक क़ानून में बदलाव हो गया,नतीजतन वह प्रार्थना करती है कि राजस्थान विद्युत नियामक प्राधिकरण (RERC) उसे क्षतिपूरक टैरिफ़ प्रदान करे।

अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड का विरोध करते हुए डिस्कॉम ने इस बात का ध्यान दिलाया कि अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड की हासिल की गयी बोली समूह कंपनी AEL के साथ CSA के आधार पर ही मिली थी, यानी कि इसकी बोली इंडोनेशिया से आयातित कोयले पर आधारित थी। हालांकि, 31 अगस्त, 2013 को डिस्कॉम की तरफ़ से अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड के केंद्रीय बिंदुओं में से एक को स्वीकार करते हुए एक महत्वपूर्ण हलफ़नामा दायर किया गया था। उस हलफ़नामे में इस बात को स्वीकार किया गया था कि इस पीपीए के "क़ानून में बदलाव" के प्रावधान इस मामले की परिस्थितियों पर लागू होते हैं।

“केंद्र सरकार की ओर से कोयले की अनुपलब्धता और निष्क्रियता ने भी इन याचिकाकर्ता के मामले को बाद के इस घटनाक्रम के दायरे में रखा। यह कहा गया है कि बाद का यह घटनाक्रम भी प्रार्थी को दिये गये उस आश्वासन के साथ-साथ नयी कोयला वितरण नीति दिनांक 18-10-2007 के मुताबिक़ कवाई परियोजना को लिंकेज कोयला आपूर्ति प्रदान करने को लेकर भारत सरकार की ओर से हुई विफलता का ही एक परिणाम है,जिसका उल्लेख “राजस्थान सरकार की कंपनी के हलफ़नामे में महत्वपूर्ण रूप से किया गया है।

18 मई, 2018 को हुई इस फ़ैसले की घोषणा होने तक राजस्थान विद्युत नियामक प्राधिकरण (RERC)के सामने दलील पांच साल तक रखे जाते रहे। राजस्थान सरकार द्वारा मंज़ूर किये जाने के आधार पर राजस्थान विद्युत नियामक प्राधिकरण (RERC)के अध्यक्ष विश्वनाथ हिरेमथ और दो सदस्यों, आर पी बरवार और एस.सी.दिनकर द्वारा दिये गये राजस्थान विद्युत नियामक प्राधिकरण (RERC) के फ़ैसले ने अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड को वह क्षतिपूरक  टैरिफ़ प्रदान कर दिया,जो वह चाह रही थी।

ग़ौरतलब है कि घरेलू कोयले को अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड की बोली में अहम ईंधन के रूप में उद्धृत किया गया था, और आयातित कोयले को "आपातकाल में इस्तेमाल किये जाने वाली सहायक व्यवस्था" के रूप में उद्धृत किया गया था, और कहा गया था कि "अनुबंध की व्याख्या करते समय बाद का तौर-तरीक़ा भी एक प्रासंगिक कारक है", इसमें आगे कहा गया है कि राजस्थान सरकार के कोल लिंकेज को हासिल करने के लिए किये गये प्रयासों ने घरेलू कोयले पर आधारित लगाये जाने वाली बोली के उस तर्क पर मुहर लगा दी है। ऐसा करने के बाद, इसने राजस्थान सरकार द्वारा की जाने वाली उस स्वीकृति की ओर ध्यान दिलाया कि परिस्थितियों ने बाद के घटनाक्रम को जन्म दिया, और उसके मुताबिक़ ही उस क्षतिपूरक टैरिफ़ को मंज़ूरी दी।

ग़ौरतलब है कि यह फ़ैसला अप्रैल 2017 के एक इसी तरह के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के एक ऐतिहासिक फ़ैसले से अलग दिखायी दिया। उस मामले में भी अदानी समूह के स्वामित्व वाली एक बिजली उत्पादन कंपनी ने आयातित इंडोनेशियाई कोयले को लेकर क्षतिपूरक टैरिफ़ की मांग की थी, यह दृष्टांत गुजरात के मुंद्रा में उसके 4,620 मेगावाट क्षमता वाले बिजली संयंत्र का था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया था कि जिन पॉवर प्लांट के पास घरेलू कोयला लिंकेज के लिए CSA थे, लेकिन 2012 में भारत सरकार की कोयला वितरण नीति में बदलाव के कारण कोयले की आपूर्ति नहीं हुई थी, वास्तव में इस क़ानून में हुए बदलाव का उन्हें नुकसान हुआ था और इसकी भरपाई की जानी चाहिए। इस मामले में CSA के लिए कोई जगह नहीं थी। हालांकि, राजस्थान विद्युत नियामक प्राधिकरण (RERC) ने इस दलील की अवहेलना की थी।

बिजली इंजीनियरों का विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL) में हस्तक्षेप

इसके बाद यह मामला विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL) में चला गया। जिन डिस्कॉम को 5,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा के पिछले भुगतान का सामना करना पड़ा था, उन्होंने विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL) के सामने राजस्थान विद्युत नियामक प्राधिकरण (RERC) के आदेश को लेकर अपील की।

सितंबर 2018 में इस  दिशा में विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL) के झुकाव का पहला संकेत मिला था। इसने एक अंतरिम आदेश में डिस्कॉम को निर्देश दिया कि वह अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड को अपने बक़ाये का 70% या 3,591 करोड़ रुपये का भुगतान करे। अपीलीय न्यायाधिकरण का यह फ़ैसला इसकी इस मांग पर आधारित था कि "प्रहली नज़र में" इस मामले के तथ्य अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड के "पक्ष" में थे और "सुविधा संतुलन"( Balance of convenience) अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड के पास था, क्योंकि यह इंडोनेशियाई कोयले की क़ीमत चुकाने के चलते बहुत ज़्यादा ऋण में थी। डिस्कॉम ने सुप्रीम कोर्ट के सामने इस आदेश को लेकर अपील की और अक्टूबर 2018 में शीर्ष अदालत ने देय राशि को घटाकर 50%, या लगभग 2,500 करोड़ रुपये कर दिया।

यह इस मोड़ पर था कि संघ और राज्य सरकारों के स्वामित्व वाले बिजली संस्थाओं के कर्मचारियों के एक प्रतिनिधि संघ,अखिल भारतीय पॉवर इंजीनियर्स फ़ेडरेशन (AIPEF) ने उन विभिन्न मामलों को इंगित करते हुए कार्यवाही में हस्तक्षेप करने का प्रयास किया, जो कि इस मामले के लिए उन्हें महत्वपूर्ण लगा था,लेकिन उसे नज़रअंदाज़ कर दिया गया था। इसने दिसंबर 2018 में हस्तक्षेप करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के सामने एक आवेदन दिया।

हालांकि,शीर्ष अदालत ने फ़रवरी 2019 में उनकी याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि यह याचिका एक ऐसे विषय पर है, जिस पर अदालत ने पहले ही फ़ैसला सुना दिया था। इसके बाद, अखिल भारतीय पॉवर इंजीनियर्स फ़ेडरेशन (AIPEF) ने भी विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL) के सामने वही हस्तक्षेप आवेदन दायर किया। हालांकि, इस हस्तक्षेप को मई 2019 में इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि सर्वोच्च न्यायालय उस आवेदन को पहले ही ख़ारिज कर चुका है। ट्रिब्यूनल ने दावा करते हुए महासंघ की नियत पर सवाल उठाया कि उसने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने आवेदन को ख़ारिज किये जाने को छुपाने की कोशिश की थी।

अखिल भारतीय पॉवर इंजीनियर्स फ़ेडरेशन (AIPEF) के हस्तक्षेप आवेदन में यह तर्क दिया गया था कि न्यायाधिकरण जिन अनेक मुद्दों की अनदेखी कर रहा था, उनमें सबसे महत्वपूर्ण यह था कि अडानी समूह की कंपनियों द्वारा किये जा रहे इंडोनेशियाई कोयले का आयात असल में "ओवर-इनवॉइसिंग" के आरोपों से सम्बन्धित राजस्व ख़ुफिया निदेशालय (DRI), भारतीय आयात कर प्राधिकरणों की अनुसंधान शाखा की एक जांच का विषय था।

राजस्व ख़ुफिया निदेशालय (DRI) ने आरोप लगाया है कि अन्य निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के बीच अडानी समूह की कंपनियों ने चालान और मूल्यांकन में हेरफेर करके आयातित कोयले की क़ीमतों को कृत्रिम रूप से बढ़ाया था। 2019 में इन लेखकों को दिए गये एक साक्षात्कार में अखिल भारतीय पॉवर इंजीनियर्स फ़ेडरेशन (AIPEF)  के मुख्य संरक्षक, पदमजीत सिंह ने ज़ोर देकर कहा था कि जहां तक उनके संगठन का सम्बन्ध है,तो आयातित कोयले की "ओवर-इनवॉइसिंग" के इन आरोपों का काफी महत्व है। जहां तक बोली प्रक्रिया में कथित अनियमितताओं की बात है,तो उनका कहना था कि "ओवर-इनवॉइसिंग" के इन आरोपों की जांच पूरी होने के बाद ही इन मुद्दों को हल किया जा सकता है।

अगर ये आरोप सिद्ध हो जाते हैं, तो विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL) और शीर्ष अदालत की ओर से दिये जाने वाले मुआवज़े की वह राशि,जिसका अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड हक़दार हो सकती है, वह बहुत ही कम हो जायेगी। सिंह की दलील थी कि जब तक यह मुद्दा तय नहीं हो जाता, तब तक डिस्कॉम को यह उच्च वित्तीय बोझ नहीं उठाना चाहिए।

अखिल भारतीय पॉवर इंजीनियर्स फ़ेडरेशन (AIPEF)  की याचिका ख़ारिज होने के साथ ही विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL) ने सितंबर 2019 में राजस्थान विद्युत नियामक प्राधिकरण (RERC) के आदेश को बरक़रार रखते हुए इस मामले पर अपना फ़ैसला सुना दिया। विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL), राजस्थान विद्युत नियामक प्राधिकरण (RERC)से इस बात लेकर सहमत है कि अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड की बोली घरेलू कोयले पर आधारित थी और इसके लिए राजस्थान सरकार की नाकामी के चलते कोयला आवंटन को हासिल करने के लिए ही क़ानून में बदलाव किया गया था। विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL) की प्रमुख जस्टिस मंजुला चेल्लूर और विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL) के सदस्य (तकनीकी) एस.डी.दुबे द्वारा जारी आदेश में डिस्कॉम को शेष 50% टैरिफिक टैरिफ़ का भुगतान करने का आदेश दिया गया।

जस्टिस मिश्रा की अगुवाई वाली पीठ फ़ैसला कैसे सुनायेगी ?

डिस्कॉम ने सर्वोच्च न्यायालय के सामने विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL) के आदेश को लेकर अपील की है, हालांकि अखिल भारतीय पॉवर इंजीनियर्स फ़ेडरेशन (AIPEF)  ने विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL)  द्वारा अपने हस्तक्षेप के आवेदन को ख़ारिज किये जाने को लेकर अपील की है और इसे एक बार फिर शीर्ष अदालत के सामने रखा गया है। ये तीन याचिकायें, जिन्हें एक साथ चिह्नित किया गया है, तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुनी गयी हैं।

जनवरी और जुलाई 2020 के बीच इस मामले में 12 सुनवाइयां हुई हैं, जिनमें से पिछले चार की सुनवाइयां चल रहे कोविड-19 महामारी के कारण जुलाई में वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिये की गयी हैं। दिल्ली स्थित अधिवक्ता,प्रशांत भूषण ने अखिल भारतीय पॉवर इंजीनियर्स फ़ेडरेशन (AIPEF) की ओर से दलील पेश की है, और डिस्कॉम की तरफ़ से वरिष्ठ अधिवक्ता,सी.ए. सुंदरम पेश हुए हैं, जबकि वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और अरविंद दातार अडानी समूह की कंपनी के ओर से पेश हुए हैं।

अडानी समूह की मुंद्रा पॉवर प्लांट के क्षतिपूरक टैरिफ़ पर सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल 2017 के फ़ैसले में कहा गया था, "कोयले की आपूर्ति के लिए यह देय मूल्य पूरी तरह से उस व्यक्ति के लिए है,जो वहन करने के लिए बिजली संयंत्र स्थापित करता है... यह साफ़ है कि कोयले की क़ीमत में अप्रत्याशित वृद्धि उत्पादक कंपनियों को अनुबंध के अपने हिस्से को बहुत अच्छे तरीक़े से संपादित करने की ज़िम्मेदारी से नहीं रोक पायेगी,क्योंकि जब उन्होंने अपनी बोलियां पेश की थी, तो यह एक ऐसा जोखिम था,जिसे उन्होंने जानबूझकर अपने सर पर लिया था।

जस्टिस रोहिंटन नरीमन और पिनाकी चंद्र घोष की शीर्ष अदालत की खंडपीठ का यह निष्कर्ष विद्युत अधिनियम, 2003 के साथ गुजरात में अडानी पॉवर मुंद्रा और डिस्कॉम के बीच हस्ताक्षरित पीपीए के उद्धरण के आधार पर था, जिसके तहत नीलामी द्वारा टैरिफ़ निर्धारण की इस प्रक्रिया को निर्दिष्ट किया गया है।

हालांकि, उस फ़ैसले में देश की शीर्ष अदालत द्वारा व्यक्त किया गया यह मूल सिद्धांत राजस्थान विद्युत नियामक प्राधिकरण (RERC) या विद्युत अपीलीय न्यायाधिकरण (APTEL) द्वारा दिये गये आदेशों में ज़ाहिर नहीं होता है,जिसमें दोनों यह निष्कर्ष निकालते हैं कि अडानी पॉवर राजस्थान लिमिटेड के कवाई संयंत्र में इस्तेमाल होने वाले कोयले की लागत के स्तर से जुड़े जोखिम उस स्तर पर बढ़ रहे हैं,जिस पर उसने अपनी बोली लगायी थी,इसलिए इसे बिजली उपभोक्ताओं द्वारा डिस्कॉम के ज़रिये उन तक पहुंचने वाली बिजली पर उच्चतर टैरिफ़ के रूप में वहन किया जाना चाहिए। जो कुछ देखा जाना अभी बाक़ी है,वह यह है कि क्या इस फ़ैसले को न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा के नेतृत्व वाली पीठ के फ़ैसले में विचार किया जायेगा या नहीं।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं-

Will SC Ruling Help Adani Group Gain Rs 5,000 Crore?

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Justice Arun Mishra
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