NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
क्या अब बड़े उद्योगपतियों के खुद के बैंक होंगे?
आरबीआई की इंटरनल वर्किंग रिपोर्ट ने सुझाव दिया है कि कॉरपोरेट को भी बैंकिंग व्यवसाय करने की इजाजत दी जाए।
अजय कुमार
27 Nov 2020
आरबीआई
Image courtesy: BFSI

सोचिए अगर रिलायंस, टाटा, बिड़ला, अंबानी, अडानी के खुद के बैंक हो तब क्या होगा? आप कहेंगे इस पर ज्यादा क्या सोचना है? अगर ऐसा हुआ तो टाटा, रिलायंस, बिड़ला, अंबानी को लोन के लिए बैंक में अर्जी नहीं लगानी पड़ेगी। उनका बैंक ही उनके लिए लोन और पूंजी की तरह काम करेगा। आम जनता के पैसे से चलने वाले बैंकों का पैसा कॉरपोरेट अपने ही उद्यम पर खर्च करेंगे। चूंकि बैंक ही उनका होगा तो पारदर्शिता भी कम होगी। रेगुलेशन भी मन मुताबिक होगा। पैसा बैंक में जाएगा पता नहीं चलेगा कहां खर्च हो रहा है। बैड डेब्ट यानी दिया हुआ कर्जा वापस ना मिलने की वजह से बढ़ता चला जाएगा। बैंक अंदर ही अंदर कमजोर होते चले जाएंगे। ब्याज कब मिलेगा। और ऐसा भी होगा कि अचानक बैंक डूब जाए किसी को पता भी ना चले।

इसीलिए अब तक कॉरपोरेट को बैंकिंग व्यवसाय करने की इजाजत नहीं दी जा रही थी। लेकिन हाल फिलहाल आरबीआई की इंटरनल वर्किंग रिपोर्ट ने यह सुझाव दिया है कि कॉरपोरेट को भी बैंकिंग व्यवसाय करने की इजाजत दी जाए। इस सुझाव के बाद फिर से वही डर उजागर हो गया जिसका जिक्र पहले से होते आ रहा है।

अभी तक की स्थिति यह है कि जो पहले से ही वित्तीय कारोबार में लगे हुए हैं उन्हीं प्राइवेट घरानों को बैंकिंग क्षेत्र में लाइसेंस दिया जाता है। यही बैंकिंग क्षेत्र के हालिया दौर के प्राइवेट बैंक हैं। इसलिए अभी तक टाटा, बिड़ला, रिलायंस, अडानी जैसी अकूत संपति वाली कंपनियां भारत में बहुत सारे कारोबार में तो शामिल हैं लेकिन बैंकिंग क्षेत्र में इनका कोई कारोबार नहीं है।

अभी तक भारत में प्राइवेट बैंकों की संख्या सीमित है। तकरीबन 70 से 80 फ़ीसदी बैंकिंग क्षेत्र का हिस्सा सरकारी बैंकों के हाथ में है। यस बैंक, एक्सिस बैंक जैसे प्राइवेट बैंक प्रमोटरों के दम पर स्थापित हुए हैं। जैसा कि बैंकिंग क्षेत्र में इनके आने के समय फायदे गिनाए जा रहे थे। ठीक वैसे ही फायदे कॉरपोरेट के मालिकाना हक के अंदर बनने वाले बैंकों के लिए गिनाए जा रहे हैं। बैंकों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ेगा। ग्राहकों को सहूलियत मिलेगी। बैंकिंग का विस्तार भारत के उन इलाकों तक हो पाएगा जहां अभी तक नहीं हुआ है।

वरिष्ठ आर्थिक विश्लेषक अंशुमान तिवारी कहते हैं कि यह सिफारिशें महत्वपूर्ण है। बैंकों में आम लोगों के पैसे जमा होते हैं। इसलिए इन सिफारिशों का जुड़ाव सीधे आम लोगों से है। अभी तक हम देखते आए हैं कि प्राइवेट बैंकों ने उद्योगपतियों को जमकर लोन दिया। नॉन परफॉर्मिंग असेट्स बढ़ते चले गए। प्राइवेट बैंकों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। सीबीआई की रेड पड़ी। यस बैंक और अनिल अंबानी का किस्सा ICICI Bank की सीईओ चंदा कोचर और वीडियोकॉन ग्रुप के बीच लोन लेनदेन की कहानी। यह सब अभी जारी है। यह सारी बातें इस ओर इशारा करती है कि भारत की बैंकिंग व्यवस्था काफी अपारदर्शी है। इस ओर इशारा भी करती हैं कि अगर ऊपर के लोगों से उद्योगपतियों की अच्छी मिलीभगत हो तो पैसे से पैसे कमाने का कारोबार किया जा सकता है। ऐसे में जरा सोचिए अगर कॉरपोरेट यानी उद्योगपतियों को ही बैंक खोलने  चलाने और उनका मालिक बनने का मौका मिलेगा तब क्या होगा? इस सिफारिश के साथ यही सबसे बड़ा डर है।

उद्योगपतियों के हवाले बैंकिंग क्षेत्र करने की मंशा से तो यही सोच आ रही है कि सरकार बैंकिंग क्षेत्र से दूर तो हट नहीं रही है। हाल फिलहाल के एनपीए तकरीबन 12 से 14 लाख करोड़ तक हो गए हैं। सरकार के पास इस एनपीए से बैंकों को बचाने का कोई ठोस तरीका नहीं है। इसलिए प्रत्यक्ष मंतव्य तो यही दिखाई दे रहा है कि सरकार बैंकों को निजी क्षेत्र के हवाले कर खुद को जिम्मेदारी से अलग कर ले। नीति आयोग की रिपोर्ट कहती है कि सरकारी बैंकों में भी निजी क्षेत्र को अधिग्रहित करने का रास्ता देना चाहिए। यह सारे इशारे इसी तरफ है कि सरकार अपना पल्ला झाड़ ले।

आईआईएम अहमदाबाद के प्रोफेसर टीआर मोहन 'द हिंदू' में लिखते हैं कि अगर उद्योगपतियों के बैंक होंगे तो बैंक उद्योगपतियों के लिए पैसों के जुगाड़ का स्रोत बन जाएंगे। उद्योगपति अपने बैंक के जरिए उन्हें लोन दिलवाने का काम करेंगे जिनसे उद्योगपतियों का फायदा जुड़ा होगा। इस तरह से क्रोनी तंत्र का निर्माण होगा। उद्योगपति अपने कस्टमर से लेकर सप्लायर तक सभी से अपने बैंक के जरिए साधने की कोशिश करेंगे। इस तरह से इकोनामिक पावर का संकेंद्रण होगा। जिसका मतलब यह है कि सरकारी कामकाज में उद्योगपतियों की मौजूदा समय से ज्यादा और अधिक कब्जा।

आरबीआई की इंटरनल वर्किंग ग्रुप की रिपोर्ट कहती है कि वह ऐसी परेशानियों को कानून और नियम बनाकर रोक लेगी। लेकिन टी आर मोहन कहते हैं कि यह नामुमकिन है। कुछ विषय कानून और नियम बनाकर भी नहीं रोके जा सकते। बैंक का मालिक किसी ना किसी तरीके से बैंक से पैसा ले ही लेगा। उद्योगपतियों, सरकारी अधिकारियों, राजनेताओं, जांच करने वाली एजेंसियों के बीच जिस तरह का गठजोड़ बनता है। वैसे गठजोड़ के रहते हुए कॉरपोरेट बैंकिंग से जुड़ी खामियों पर लगाम लगा पाना किसी के बस की बात नहीं।

अंत में आप खुद ही सोचिए कि जब कॉरपोरेट का खस्ताहाल होता है तो वह बैंक के पास जाते हैं। जब बैंक की बदहाली होती है तब हमें पता चलता है कि कॉरपोरेट के हालात कैसे हैं? ऐसे में दोनों के हालात बद से बदतर होते रहेंगे और यह फिर भी तभी पता नहीं चलेगा जब कॉरपोरेट और बैंक के मालिक एक ही होंगे। जब किंगफिशर और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया का मालिक विजय माल्या होगा तो कैसे पता चलेगा की विजय माल्या धांधली कर रहा है या नहीं? अंत में एक छोटा सा सवाल कि यह कहां तक जायज है कि बैंक के पैसे उसी के पास जाए जो बैंक का मालिक है।

RBI
Internal working report
Industrialists
Reliance
TATA
Birla
ambani
Adani

Related Stories

लंबे समय के बाद RBI द्वारा की गई रेपो रेट में बढ़ोतरी का क्या मतलब है?

आम आदमी जाए तो कहाँ जाए!

जारी रहेगी पारंपरिक खुदरा की कीमत पर ई-कॉमर्स की विस्फोटक वृद्धि

महंगाई 17 महीने के सबसे ऊंचे स्तर पर, लगातार तीसरे महीने पार हुई RBI की ऊपरी सीमा

रिपोर्टर्स कलेक्टिव का खुलासा: कैसे उद्योगपतियों के फ़ायदे के लिए RBI के काम में हस्तक्षेप करती रही सरकार, बढ़ती गई महंगाई 

आज़ादी के बाद पहली बार RBI पर लगा दूसरे देशों को फायदा पहुंचाने का आरोप: रिपोर्टर्स कलेक्टिव

RBI कंज्यूमर कॉन्फिडेंस सर्वे: अर्थव्यवस्था से टूटता उपभोक्ताओं का भरोसा

किसानों और सरकारी बैंकों की लूट के लिए नया सौदा तैयार

आंशिक जीत के बाद एमएसपी और आपराधिक मुकदमों को ख़ारिज करवाने के लिए किसान कर रहे लंबे संघर्ष की तैयारी

नोटबंदी: पांच साल में इस 'मास्टर स्ट्रोक’ ने अर्थव्यवस्था को तबाह कर दिया


बाकी खबरें

  • hisab kitab
    न्यूज़क्लिक टीम
    लोगों की बदहाली को दबाने का हथियार मंदिर-मस्जिद मुद्दा
    20 May 2022
    एक तरफ भारत की बहुसंख्यक आबादी बेरोजगारी, महंगाई , पढाई, दवाई और जीवन के बुनियादी जरूरतों से हर रोज जूझ रही है और तभी अचनाक मंदिर मस्जिद का मसला सामने आकर खड़ा हो जाता है। जैसे कि ज्ञानवापी मस्जिद से…
  • अजय सिंह
    ‘धार्मिक भावनाएं’: असहमति की आवाज़ को दबाने का औज़ार
    20 May 2022
    मौजूदा निज़ामशाही में असहमति और विरोध के लिए जगह लगातार कम, और कम, होती जा रही है। ‘धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना’—यह ऐसा हथियार बन गया है, जिससे कभी भी किसी पर भी वार किया जा सकता है।
  • India ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेता
    20 May 2022
    India Ki Baat के दूसरे एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, भाषा सिंह और अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं ज्ञानवापी विवाद, मोदी सरकार के 8 साल और कांग्रेस का दामन छोड़ते नेताओं की। एक तरफ ज्ञानवापी के नाम…
  • gyanvapi
    न्यूज़क्लिक टीम
    पूजा स्थल कानून होने के बावजूद भी ज्ञानवापी विवाद कैसे?
    20 May 2022
    अचानक मंदिर - मस्जिद विवाद कैसे पैदा हो जाता है? ज्ञानवापी विवाद क्या है?पक्षकारों की मांग क्या है? कानून से लेकर अदालत का इस पर रुख क्या है? पूजा स्थल कानून क्या है? इस कानून के अपवाद क्या है?…
  • भाषा
    उच्चतम न्यायालय ने ज्ञानवापी दिवानी वाद वाराणसी जिला न्यायालय को स्थानांतरित किया
    20 May 2022
    सर्वोच्च न्यायालय ने जिला न्यायाधीश को सीपीसी के आदेश 7 के नियम 11 के तहत, मस्जिद समिति द्वारा दायर आवेदन पर पहले फैसला करने का निर्देश दिया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License