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भारत
राजनीति
क्या लैंसेट की तीखी आलोचना के बाद मोदी सरकार कोई सबक़ लेगी?
प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल लैंसेट ने लिखा है कि महामारी के ऐसे मुश्किल दौर में अपनी आलोचना दबाने की पीएम मोदी की कोशिश माफ़ी के काबिल नहीं है। पीएम मोदी को पिछले साल कोरोना महामारी के सफल नियंत्रण के बाद दूसरी लहर से निपटने में हुई अपनी गलतियों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
10 May 2021
Modi

“कुछ महीनों तक मामलों में कमी आने के बाद सरकार ने दिखाने की कोशिश की कि भारत ने कोविड को हरा दिया है। सरकार ने दूसरी लहर के ख़तरों और नए स्ट्रेन से जुड़ी चेतावनियों को नज़रअंदाज़ किया।”

केंद्र की मोदी सरकार के ख़िलाफ़ ये तीखी आलोचना दुनिया की सबसे मशहूर मेडिकल जर्नल ‘द लैंसेट’ में छपी है। पत्रिका ने अपने आठ मई के संपादकीय में पीएम मोदी की आलोचना करते हुए लिखा है कि उनका ध्यान ट्विटर पर अपनी आलोचना को दबाने पर ज़्यादा और कोविड - 19 महामारी पर काबू पाने पर कम है। यही नहीं जर्नल ने आगे लिखा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार महामारी को नियंत्रण करने की बजाय सोशल मीडिया से अपनी आलोचना हटवाने में ज़्यादा रुचि रख रही थी।

संपादकीय में साफ तौर पर लिखा है कि ऐसे मुश्किल समय में पीएम मोदी की अपनी आलोचना और खुली चर्चा को दबाने की कोशिश माफ़ी के काबिल नहीं है। जर्नल के मुताबिक, चेतावनी के बावजूद सरकार ने धार्मिक आयोजन होने दिए जिनमें लाखों लोग जुटे, इसके अलावा चुनावी रैलियां भी हुईं, जहां कोरोना नियमों की जमकर धज्जियां उड़ीं। ऐसे में पीएम मोदी को पिछले साल कोरोना महामारी के सफल नियंत्रण के बाद दूसरी लहर से निपटने में हुई अपनी गलतियों की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।

भारत के अस्पतालों की मौजूदा स्थिति पर सवाल

महामारी ने देश की दयनीय स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है। जर्नल में भारत के अस्पतालों की मौजूदा स्थिति  और स्वास्थ्य मंत्री के उस बयान का भी ज़िक्र किया गया जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत महामारी के अंत की ओर जा रहा है। हेल्थ सिस्टम पर सवाल खड़े करते हुए संपादकीय में लिखा गया है कि अस्पतालों में मरीजों को ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है, वे दम तोड़ रहे हैं। मेडिकल टीम भी थक गई है, वे संक्रमित हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर व्यवस्था से परेशान लोग मेडिकल ऑक्सीजन, बेड, वेंटिलेटर और जरूरी दवाइयों की मांग कर रहे हैं।

केंद्र के स्तर पर टीकाकरण अभियान फेल!

जर्नल में सरकार के टीकाकरण अभियान की आलोचना करते हुए लैंसेट ने लिखा है कि केंद्र के स्तर पर टीकाकरण अभियान भी फेल हो गया। भारत में वैक्सीनेशन की रफ्तार काफी सुस्त रही है और यही वजह है कि महज 2 फीसदी आबादी को ही टीका लग सका है। केंद्र सरकार ने राज्यों से विचार-विमर्श किए बिना ही लगातार वैक्सीनेशन की योजनाएं बदलीं। इन फैसलों ने भयंकर किल्लत पैदा की और लोगों में कन्फ्यूजन भी पैदा हुआ। लैंसेट के अनुसार, केंद्र सरकार ने टीकाकरण को बढ़ाने और 18 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को टीका देने के बारे में राज्यों से सलाह नहीं ली और अचानक पॉलिसी बदल दी जिससे सप्लाई में कमी हुई और अव्यवस्था फैली।

एक्सपर्ट  की तरफ से बार-बार दूसरी लहर आने की चेतावनी दी जा रही थी, लेकिन सरकार की तरफ से ऐसे संकेत आ रहे थे मानो कोरोना वायरस पर जीत हासिल कर ली गई हो। ये भी ग़लत आकलन किया गया कि भारत हर्ड इम्युनिटी के मुहाने पर पहुंच रहा है। जबकि ICMR के ही सेरो सर्वे में ये बात निकली कि सिर्फ 21 फीसदी लोगों में ही एंटीबॉडीज़ बनी है।

केरल और ओडिशा बेहतर तैयार, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में मेडिकल सुविधाओं में कमी

जर्नल के मुताबिक़ उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे राज्य महामारी की दूसरी लहर के लिए तैयार ही नहीं थे। जिस कारण इन्हें ऑक्सीजन,अस्पतालों में बेड और दूसरी ज़रूरी मेडिकल सुविधाओं यहां तक की दाह-संस्कार के लिए जगह की कमी से जूझना पड़ा। जबकि, केरल और ओडिशा जैसे राज्य बेहतर तैयार थे। वो ज़्यादा ऑक्सीजन का उत्पादन कर दूसरे राज्यों की भी मदद कर रहे हैं। लैंसेट में लिखा गया कि कुछ राज्यों ने बेड और ऑक्सीजन की डिमांड कर रहे लोगों के ख़िलाफ़ देश की सुरक्षा से जुड़े कानूनों का इस्तेमाल किया।

कोरोना वॉयरस पर अपनी गलती मानें सरकार!

संपादकीय में भारत के महामारी से निपटने के तरीके सुझाए गए हैं लेकिन साथ ही कहा गया है कि इन प्रयासों के सफल होने की जिम्मेदारी इस बात पर निर्भर करती है कि सरकार अपनी गलती मानती है या नहीं। जर्नल के मुताबिक़ इस महामारी से निपटने के लिए वैज्ञानिक आधार पर पब्लिक हेल्थ से जुड़े क़दम उठाने होंगे।

लैंसेट ने सुझाव दिया है कि जब तब टीकाकरण पूरी तेज़ी से नहीं शुरू होता, संक्रमण को रोकने के लिए हर ज़रूरी क़दम उठाने चाहिए। और जैसे-जैसे मामले बढ़ रहे हैं, सरकार को समय पर सटीक डेटा उपलब्ध कराना चाहिए, हर 15 दिन पर लोगों को बताना चाहिए कि क्या हो रहा है और इस महामारी को कम करने के लिए क्या क़दम उठाने चाहिए। इसमें देशव्यापी लॉकडाउन की संभावना पर भी बात होनी चाहिए।

संक्रमण को बेहतर तरीक़े के समझने और फैलने से रोकने के लिए जीनोम सीक्वेंसींग को बढ़ावा देना होगा साथ ही सरकार को लोकल और प्राइमरी स्वास्थ्य केंद्रों के साथ मिलकर काम करना होगा। टीकाकरण अभियान में तेज़ी लाने की ज़रूरत है।

जर्नल मे कहा गया है कि लोकल स्तर पर सरकारों ने संक्रमण रोकने के लिए क़दम उठाने शुरू कर दिए हैं, लेकिन ये सुनिश्चित करना की लोग मास्क पहनें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें, भीड़ इकट्ठा न हो, क्वारंटीन और टेस्टिंग हो, इन सब में केंद्र सरकार की अहम भूमिका होती है।

वैक्सीन की सप्लाई और डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर बनाना बड़ी चुनौतियां

पत्रिका के अनुसार वैक्सीनेशन को लेकर अभी सामने दो बड़ी चुनौतियां हैं वैक्सीन की सप्लाई को बढ़ाना और इसके लिए डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर बनाना जो कि ग़रीब और ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों को तक पहुंचे क्योंकि ये देश की 65 प्रतिशत आबादी हैं और इन तक स्वास्थ्य सेवाएं नहीं पहुंचती। इसके अलावा वैक्सीनेशन के साथ-साथ ही इंफेक्शन फैलने से रोकने के लिए हरसंभव काम करना होगा।

पत्रिका ने अपने संपादकीय में लिखा है कि भारत ने कोविड-19 को नियंत्रित करने में अपनी शुरुआती सफलता गवां दी है। सरकार की कोविड-19 टास्क फोर्स ने अप्रैल तक एक बार भी बैठक नहीं की। इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवॉल्यूशन का अनुमान है कि भारत में 1 अगस्त तक कोविड-19 से 10 लाख मौतें हो सकती हैं और इस राष्ट्रीय तबाही के लिए मोदी सरकार ही ज़िम्मेदार होगी।

विपक्ष ने भी उठाए सवाल

लैंसेट की इस रिपोर्ट का हवाला देकर विपक्ष ने सरकार पर हमला बोलना और सवाल उठाना शुरू कर दिया है।

कांग्रेस के नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने ट्विटर पर स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन के इस्तीफ़े की मांग करते हुए लिखा, "लैंसेट के संपादकीय के बाद, अगर सरकार में शर्म है, को उन्हें देश से माफ़ी मांगनी चाहिए।"

The task of battling the pandemic should be left to an Empowered Group and the PM, the Health Minister and the trio of doctor-advisers should have no part in the decision-making process

— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) May 8, 2021

मुंबई कांग्रेस ने अपने ट्विटर हैंडल से लिखा, "दुनिया की सबसे अच्छी मेडिकल जर्नल का कहना है कि मोदी सरकार ने वायरस की पहली लहर के बाद ही जीत की घोषणा कर दी। सरकार ने देश को दुनियाभर में हंसी का पात्र बना दिया है।"

Even Lancet - one of the world's finest medical journals - cannot believe that the Modi govt declared victory against the virus after the first wave.

This govt has made our nation into a global laughing stock. https://t.co/W2lBXcJBWL

— Mumbai Congress (@INCMumbai) May 8, 2021

टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने लिखा, "खुद से लाई नई एक राष्ट्रीय आपदा, ये कहना है लैंसेट का। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बाबा रामदेव को लगता है कि आप बहुत अच्छा काम कर रहे हैं।"

“A self-inflicted national catastrophe" says international medical journal The Lancet

Take a bow, Modiji

And no- it doesn’t matter that Baba Ramdev thinks you are doing a great jobhttps://t.co/l4ePgaLnj5

— Mahua Moitra (@MahuaMoitra) May 8, 2021

गौरतलब है कि देश में कोरोना की दूसरी लहर बेकाबू हो चुकी है। रोज़ाना लाखों की संख्या में नए संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं तो वहीं लाखों लोग अब तक अपनी जान गंवा चुके हैं। पिछले क़रीब तीन-चार हफ़्तों से हर तरफ़ खस्ता स्वास्थ्य व्यवस्था और जरूरी सुविधाओं के अकाल की चर्चा है। कोरोना संक्रमित लोगों के परिजन दर-दर भटक रहे हैं, सोशल मीडिया के ज़रिए एक-दूसरे से मदद मांग रहे हैं और मदद के अभाव में कई मरीज़ दम तोड़ रहे हैं। कोरोना के काल में जो कुछ भी हो रहा है आम आदमी को न सिर्फ़ दिख रहा है, बल्कि हर व्यक्ति उसे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से महसूस भी कर रहा है लेकिन उसे भी बार-बार शासन-प्रशासन द्वारा झुठलाने की कोशिश की जा रही है और सरकार के  कानों पर जूं तक रेंगती नहीं नज़र आ रही।

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