NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
महिलाओं को NDA की परीक्षा देने का हक़ तो मिल गया, लेकिन सेना के स्टीरियोटाइप को टूटने में अभी भी वक्त लगेगा!
याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 19 के उल्लंघन का मुद्दा उठाते हुए आरोप लगाया गया है कि महिलाओं को केवल जेंडर के आधार पर एनडीए में शामिल नहीं किया जाता है। यह समानता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
सोनिया यादव
20 Aug 2021
महिलाओं को NDA की परीक्षा देने का हक़ तो मिल गया, लेकिन सेना के स्टीरियोटाइप को टूटने में अभी भी वक्त लगेगा!

"समानता का अधिकार एक तार्किक अधिकार है।"

ये टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने महिलाओं को सेना में स्थायी कमीशन मिलने का अहम फ़ैसला सुनाते हुए की थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया था कि अगर महिलाओं की क्षमता और उपलब्धियों पर शक़ किया जाता है ये महिलाओं के साथ-साथ सेना का भी अपमान है।

अब एक बार फिर देश की सबसे बड़ी अदालत ने महिलाओं के लिए एक और समानता का मार्ग प्रशस्त किया है। अदालत ने साफ कर दिया कि राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) या भारतीय नौसेना अकादमी में प्रवेश से महिलाओं को वंचित नहीं किया जा सकता। यानी अब महिलाएं भी एनडीए की परीक्षा दे सकेंगी।

आपको बता दें कि ये फैसला कुश कालरा द्वारा दायर एक याचिका पर आया है, जो प्रतिष्ठित पुणे स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) और केरल स्थित भारतीय नौसेना अकादमी (आईएनए) में प्रवेश पाने के लिए महिलाओं के वास्ते समान अवसर की मांग कर रही हैं।

क्या है पूरा मामला?

याचिका में संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 19 के उल्लंघन का मुद्दा उठाते हुए आरोप लगाया गया है कि महिलाओं को केवल जेंडर के आधार पर एनडीए में शामिल नहीं किया जाता है। यह समानता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया कि लड़कों को नेशनल डिफेंस एकेडमी और नेवल एकेडमी में 12वीं के बाद शामिल होने दिया जाता है। लेकिन लड़कियों के लिए सेना में शामिल होने के जो अलग-अलग विकल्प हैं, उनकी शुरुआत ही 19 साल से लेकर 21 साल तक से होती है। उनके लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता भी ग्रेजुएशन रखी गई है।

ऐसे में जब तक लड़कियां सेना की सेवा में जाती हैं, तब तक 17-18 साल की उम्र में सेना में शामिल हो चुके लड़के स्थायी कमीशन पाए अधिकारी बन चुके होते हैं। इस भेदभाव को दूर किया जाना चाहिए। याचिका में संबंधित अधिकारियों को निर्देश देने का आग्रह किया गया है कि योग्य महिला उम्मीदवारों को ‘राष्ट्रीय रक्षा अकादमी’ और ‘नौसेना अकादमी परीक्षा’ में बैठने और एनडीए में प्रशिक्षण की अनुमति दी जाए।

लाइव लॉ की खबर के मुताबिक याचिका में आगे कहा गया है कि केवल लिंग के आधार पर महिलाओं को बाहर करना राज्य द्वारा भेदभाव से सुरक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। जबकि पर्याप्त 10+2 योग्यता रखने वाले अविवाहित पुरुष उम्मीदवारों को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और नौसेना अकादमी परीक्षा देने की अनुमति है, पात्र और इच्छुक महिला उम्मीदवारों को उनके लिंग के एकमात्र आधार पर और बिना किसी उचित या उचित स्पष्टीकरण के उक्त परीक्षा देने की अनुमति नहीं है।

पर्याप्त 10+2 स्तर की शिक्षा प्राप्त पात्र महिला उम्मीदवारों को उनके लिंग के आधार पर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और नौसेना अकादमी परीक्षा देने के अवसर से वंचित कर दिया जाता है और इस इनकार का परिणाम यह होता है कि शिक्षा के 10+2 स्तर पर, अधिकारी के रूप में सशस्त्र बलों में शामिल होने के लिए पात्र महिला उम्मीदवारों के पास प्रवेश के किसी भी तरीके तक पहुंच नहीं है। जबकि समान और समान रूप से 10 + 2 स्तर की शिक्षा वाले पुरुष उम्मीदवारों को परीक्षा देने का अवसर मिलता है और योग्यता के बाद राष्ट्रीय रक्षा में शामिल हो जाते हैं।

याचिका में कहा गया है कि अकादमी को भारतीय सशस्त्र बलों में स्थायी कमीशंड अधिकारियों के रूप में नियुक्त करने के लिए प्रशिक्षित किया जाना है। यह सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता के मौलिक अधिकार और राज्य द्वारा भेदभाव से सुरक्षा के मौलिक अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन है। याचिका में यह भी कहा गया है कि महिलाओं को राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में प्रशिक्षित करने और देश के सशस्त्र बलों में स्थायी कमीशन अधिकारियों के रूप में केवल उनके लिंग के आधार पर नियुक्त करने से स्पष्ट बहिष्कार करना मौलिक अधिकार का उल्लंघन है और यह भारतीय संविधान के दायरे में न्यायोचित नहीं है।

आर्मी में महिलाओं के साथ भेदभाव वाली मानसिकता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए!

इस याचिका पर बुधवार, 18 अगस्त को जस्टिस संजय किशन कौल और हृषिकेश राय की खंडपीठ ने अंतरिम फैसला सुनाया। कोर्ट ने एक बार फिर इस बात पर जोर दिया कि आर्मी में महिलाओं के साथ भेदभाव करने वाली मानसिकता के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। अंतरिम आदेश के जरिए कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि आगामी 5 सितंबर को होने वाली एनडीए (नेशनल डिफेंस अकैडमी) प्रवेश परीक्षा में महिलाएं भी बैठ सकेंगी। हालांकि उनका दाखिला इस मामले में आने वाले अंतिम फैसले पर निर्भर करेगा, लेकिन कोर्ट के इस फैसले की अहमियत महज एडमिशन प्रॉसेस तक सीमित नहीं है।

सुनवाई के दौरान सेना ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि यह एक नीतिगत निर्णय है। राष्ट्रीय इंडियन मिलिट्री कॉलेज, यानी आरआईएमसी में लड़कियों को एडमिशन न देने के पीछे तर्क दिया गया कि ये एक 100 साल पुराना स्कूल है।

सेना की ओर से सीनियर एडवोकेट ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट में कहा था, "फिलहाल हम लड़कियों को आरआईएमसी में लेने की स्थिति में नहीं हैं। यह 100 साल पुराना स्कूल है। आरआईएमसी के छात्रों के लिए एनडीए की परीक्षा देना अनिवार्य होता है। उनका अलग बोर्ड है, यह एनडीए का फीडर कैडर है और एनडीए में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे से जुड़ा है।”

इस पर अदालत ने कहा कि यह नीतिगत निर्णय जेंडर भेदभाव पर आधारित है। आप कहते हैं कि आरआईएमसी 100 साल पुराना है, तो आप 100 साल के लैंगिक भेदभाव का समर्थन कर रहे हैं? कोर्ट ने ये भी कहा कि हमने अंतरिम आदेश के जरिए लड़कियों को एनडीए में प्रवेश की अनुमति दे दी है।

भेदभाव पर सेना को फटकार

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने एनडीए, सैनिक स्कूलों, आरआईएमसी में लड़कियों को प्रवेश नहीं देने के विचार पर सेना को फटकार भी लगाई। कोर्ट ने कहा कि आप इस मामले पर आदेश देने के लिए न्यायपालिका को बाध्य कर रहे हैं। बेहतर यह होगा कि आप (सेना) खुद इसके लिए दिशानिर्देश तैयार करें। हम उन लड़कियों को एनडीए की परीक्षा में बैठने की अनुमति दे रहे हैं जिन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया है।

कोर्ट का ध्यान मुख्य तौर पर इस बड़े सवाल पर था कि आखिर आर्मी में महिलाओं के सवाल पर खुलापन क्यों नहीं दिख रहा? क्यों हर बार कोर्ट को दखल देकर फैसला सुनाना पड़ता है और फिर भी बात उस खास मामले से जुड़े फैसले पर अमल तक ही सीमित रह जाती है, उससे आगे नहीं बढ़ती? गौर करने की बात है कि अन्य तमाम क्षेत्रों में तो महिलाएं काफी तेजी से आगे बढ़ी हैं, लेकिन सेना में उनकी गति काफी धीमी रही। करीब 14 लाख सैनिकों वाली आर्मी में आज भी महिलाओं का प्रतिशत 0.56 ही है। इस मामले में पिछले साल फरवरी में आया सुप्रीम कोर्ट का वह फैसला ऐतिहासिक माना जाता है, जिसमें अदालत ने न केवल महिलाओं को कमांड पोस्टिंग के लायक बताया बल्कि केंद्र सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिया कि उन्हें परमानेंट कमिशन दिया जाए।

राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कॉलेज में लड़कियों के प्रवेश की मांग

मालूम हो कि से कुश कालरा की याचिका के अलावा, अदालत इस शैक्षणिक वर्ष से देहरादून में राष्ट्रीय भारतीय सैन्य कॉलेज में लड़कियों के प्रवेश की मांग करने वाली कैलास उधवराव मोरे द्वारा दायर याचिका पर भी विचार कर रही है। यह कॉलेज रक्षा मंत्रालय द्वारा लड़कों के लिए चलाया जाता है। केंद्र सरकार को अभी इस याचिका पर जवाब देना है।

ध्यान रहे कि हर साल यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन के एग्‍जाम के तहत एनडीए में एडमिशन होता है। तीनों सेनाओं में भर्ती के लिए एनडीए ही एक सेंटर प्‍वाइंट है। औसतन 1470 ऑफिसर्स हर साल कमीशन होते हैं। इसमें से 670 ऑफिसर्स एनडीए और इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए) से आते हैं जबकि कुछ अधिकारी ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी (ओटिए) से आते हैं। इंडियन मिलिट्री एकेडमी और ओटीए वो जगह है जहां पर महिलाओं और पुरुषों को एक साथ कमीशन दिया जाता है। इससे अलग 453 ऑफिसर्स शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) के जरिए नॉन-टेक्निकल और टेक्निकल विंग में जाते हैं।

अदालत ने इस बात पर भी सख्त आपत्ति जताई कि आखिर एनडीए में सह-शिक्षा एक समस्या क्यों है? सेना में महिलाओं के लिए प्रवेश का एक और अतिरिक्त स्रोत बंद क्यों है? यह सिर्फ एक लैंगिक सिद्धांत नहीं है बल्कि भेदभावपूर्ण है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान सेना में महिलाओं के स्थाई कमीशन के संघर्ष की बातें भी याद दिलाई। साथ ही सेना की मानसिकता को भी बदलने की जरूरत बताई।

लंबे कानूनी संघर्ष के बाद मिला परमानेंट कमीशन

गौरतलब है कि बीते साल एक लंबे कानूनी संघर्ष के बाद 17 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा था कि महिला अधिकारियों को परमानेंट कमीशन देने से इंकार करना समानता के अधिकार के ख़िलाफ़ है। सरकार द्वारा दी गई दलीलें स्टीरियोटाइप हैं जिसे क़ानूनी रूप से कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

तब केंद्र सरकार ने अपनी दलील में कहा था कि सैन्य अधिकारी महिलाओं को अपने समकक्ष स्वीकार नहीं कर पाएंगे क्योंकि सेना में ज़्यादातर पुरुष ग्रामीण इलाकों से आते हैं। सरकार की तरफ से वकील आर बालासुब्रह्मण्यम और नीला गोखले ने कहा था कि महिला अधिकारियों के लिए कमांड पोस्ट में होना इसलिए भी मुश्किल है, क्योंकि उन्हें प्रेग्नेंसी के लिए लम्बी छुट्टी लेनी पड़ती है। उन पर परिवार की जिम्मेदारियां होती हैं। हालांकि ये भी विडंबना है कि तब महिलाओं के कमीशन के पक्ष में खड़ी ऐश्वर्या भाटी अब सेना की ओर से अदालत के सामने महिलाओं के एनडीए में प्रवेश का विरोध कर रही हैं।

इसे भी पढ़ें:  सेना में महिलाओं के स्थायी कमीशन को मंज़ूरी, सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद बैकफ़ुट पर सरकार!

Indian army
National Defence Academy
NDA
Supreme Court
Constitutional right
Against Gender Discrimination
Rashtriya Indian Military College
Women in army

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?

मलियाना कांडः 72 मौतें, क्रूर व्यवस्था से न्याय की आस हारते 35 साल

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License