NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
जनपक्ष : कोरोना वायरस की चिंता वे करें जिनके यहां आदमी की कोई कीमत हो!
मैं एक तरफ़ दिल्ली हिंसा में करीब 50 लोगों की हत्या के बारे में सोचता हूं, नंगे बदन सफाईकर्मियों को सीवर में उतरते और मरते देखता हूं, और दूसरी तरफ अपने बच्चों के लिए महंगे से महंगे मास्क और सैनेटाइज़र खरीदने के लिए मेडिकल स्टोर्स के बाहर लोगों की भीड़ को देखता हूं...
मुकुल सरल
05 Mar 2020
coronavirus
प्रतीकात्मक तस्वीर, साभार :लाइवमिंट

कोरोना वायरस एक वास्तविक ख़तरा है, इससे चिंतित होना वाजिब है, क्योंकि अभी इसका इलाज भी नहीं ढूंढा जा सका है, लेकिन इसके बरअक्स जब हम यह देखते हैं कि हमारे यहां कितनी मामूली बीमारियों से भी रोज़ न जाने कितने ही लोग इलाज के अभाव में दम तोड़ देते हैं, तो कोरोनो को लेकर हो रहे हो-हल्ले, चिंताओं और सलाहों पर खीज होने लगती है।

इस वायरस को लेकर उन देशों की चिंता तो समझ में आती है जिनके यहां आदमी की कोई वैल्यू है, कीमत है, लेकिन हमारे यहां तो सामान्य फ्लू से भी लोग मारे जाते हैं और इसे तो छोड़िए हमने तो अभी देश की राजधानी दिल्ली में ही बेबात करीब 50 लोगों की जान ले ली और कितने अभी भी अस्पताल में ज़िंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं।

तो एक तरफ़ कोरोना वायरस का विश्व व्यापी प्रसार है, दूसरी तरफ़ हमारे यहां नफ़रत, सांप्रदायकिता की बीमारी फैली है, जो बरसो-बरस बढ़ती ही जा रही है। इसका भी कोई इलाज नहीं, क्योंकि हम उसका इलाज ढूंढना भी नहीं चाहते। हमारे पास इलाज के नाम पर साल-दर-साल और हत्याएं, और नरसंहार ही हैं। कोरोना वायरस विश्व में हुक्मरानों की नींद उड़ा रहा है, उनकी गद्दी हिला रहा तो हमारे यहां सांप्रदायकिता का वायरस गद्दी बचाने और मजबूत करने के काम आता है। हमारा वायरस तो सही मायने में राज्य प्रायोजित वायरस है, तो फिर इसका इलाज कौन ढूंढे और कौन करे।

सांप्रदायिकता से अलग अगर हम दूसरे हालात की तरफ़ सोचें तो भी लाशों का अंबार दिखता है। आपको मालूम है कि किसानों के साथ बेरोज़गारों की आत्महत्या की दर भी किस कदर बढ़ती जा रही है। इन आत्महत्याओं के लिए भी सीधे तौर पर सरकार और उसकी नीतियां ही ज़िम्मेदार हैं। जिस समस्या का हम नीति और नीयत में थोड़ा सा बदलाव कर इलाज कर सकते थे, हमने उसे भी लाइलाज बना दिया।

ताजा एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार देश में साल 2018 में हर 24 घंटे में 28 स्टूडेंट्स खुदकुशी कर रहे हैं। 9 जनवरी, 2020 को गृह मंत्रालय के तहत आने वाले राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट ‘क्राइम इन इंडिया-2018’ और 'एक्सीडेंटल डेथ एंड सुसाइड रिपोर्ट' जारी हुई। इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 में 10,000 से ज्यादा छात्रों ने आत्महत्या की जो पिछले 10 सालों में सबसे अधिक है।

एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में बेरोज़गारी के आंकड़े भी काफी बढ़े हैं। रिपोर्ट के मुताबिक साल2018में किसानों से ज्यादा बेरोज़गार युवाओं ने आत्महत्या की है। रिपोर्ट बताती है कि साल2018 में 12,936लोगों ने बेरोजगारी से तंग आकर आत्महत्या की।

इसे पढ़ें : मोदी सरकार के 'न्यू इंडिया' में 10 हज़ार से ज्यादा छात्रों ने की आत्महत्या!

एनसीआरबी की ही रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2018 में कृषि क्षेत्र से जुड़े 10, 349 लोगों ने खुदकुशी की. इनमें भी 5, 763 किसान हैं जबकि शेष 4, 586 खेतिहर मजदूर हैं।

और इस विडंबना पर भी ध्यान दीजिए कि एक तरफ़ हम कोरोना वायरस के एक-एक मरीज पर नज़र रख रहे हैं, हर केस का रूट ट्रैक कर रहे हैं। विमान में चढ़ने से पहले और उतरने के बाद वह कहां-कहां गया, किस-किस से मिला, पूरी कुंडली तैयार की जा रही है। टेलीविज़न पर हाहाकार शुरू हो चुका है। बहस गर्म है। सलाह-मशविरा दिया जा रहा है।

 स्वास्थ्य मंत्री को भी रोज़ सामने आकर अपडेट देना पड़ रहा है। इससे बचने के लिए लगातार एडवाइज़री जारी की जा रही है कि साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें, सार्वजनिक स्थान पर जाने से पहले मुंह पर मास्क लगाए। हाथ अच्छे से धोएं, सैनेटाइज़र साथ रखें। प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्रियों ने होली मिलन कार्यक्रम रद्द कर दिए हैं। लेकिन दूसरी तरफ़ हम देखते हैं कि हमारे सफाईकर्मियों के प्रति ऐसी चिंता नहीं दिखाई जाती, उन्हें कभी अच्छे प्रतिरोधी मास्क तो छोड़िए सामान्य मास्क तक उपलब्ध नहीं कराए जाते। सुप्रीम कोर्ट की रोक और कड़े निर्देशों के बाद भी नंगे बदन सीवर में उतार दिया जाता है।

आपको मालूम है कि हर साल सीवर में कितनी मौतें होती हैं? और जो बच जाते हैं वे किस तरह की गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाते हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के 12 राज्यों में 53,236 लोग मैला ढोने के काम में लगे हुए हैं। यह भी नया और पूरे देश का आंकड़ा नहीं है।

राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) के अनुसार पिछले 25 साल में सेप्टिक टैंकों और सीवरों की पारंपरिक तरीके से सफाई के दौरान634 सफाई कर्मचारियों की जान जा चुकी है। वर्ष 2017 से हर पांचवें दिन कोई न कोई सफाई कर्मी सीवर या सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान मौत का शिकार बन जाता है। इन आंकड़ों में हाथ से मैला उठाने वाले वाल्मीकि समुदाय के स्त्री पुरुषों की विभिन्न रोगों के कारण हुई मृत्यु के आंकड़े सम्मिलित नहीं हैं।

सफाई कर्मचारी आंदोलन (एसकेए) इसे हादसे में मौत नहीं बल्कि राजनीतिक हत्या कहता है।

इसे पढ़ें : निर्मम समाज में स्वच्छता सेनानियों की गुमनाम शहादत

कोरोना को लेकर हमारी मीडिया जिस तरह आज चिंतित दिखाई दे रही है क्या उसने कभी सवाल उठाया कि ऑक्सीजन या स्पेशल किट तो छोड़िए सफाई के दौरान हमारी सरकारें सफाई कर्मियों को बचाव के न्यूनतम साधन भी उपलब्ध क्यों नहीं करातीं।

तो मैं एक तरफ़ इन नंगे बदन सफाईकर्मियों को गटर में उतरते और मरते देखता हूं, कूड़ा बीनते गरीब-बेसहारा बच्चों को देखता हूं, और दूसरी तरफ अपने बच्चों के लिए महंगे से महंगे मास्क और सैनेटाइज़र खरीदने के लिए मेडिकल स्टोरों के बाहर लोगों की भीड़ को देखता हूं। दिखावे के लिए ही सही केंद्र और राज्य सरकारों को दौड़-भाग करते देखता हूं। तो हैरानी होती है कि हमारी चिंताएं भी कितनी सलेक्टिव हो गई हैं। हालांकि हम सब को जान लेना चाहिए कि कोरोना वायरस सलेक्टिव नहीं है यह न अमीर-गरीब देखेगा और न हिन्दू-मुसलमान इसलिए इससे बचने के लिए हम सबको मिलकर प्रयास करने होंगे और हां, सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि हरेक जान कीमती है, तभी हम इसका या किसी भी बीमारी का मुकाबला कर पाएंगे।

Coronavirus
novel coronavirus
Delhi Violence
manual scavenger
suicide
unemployment
farmers suicide
BJP
modi sarkar

Related Stories

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल के ‘गुजरात प्लान’ से लेकर रिजर्व बैंक तक

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती

इस आग को किसी भी तरह बुझाना ही होगा - क्योंकि, यह सब की बात है दो चार दस की बात नहीं

ख़बरों के आगे-पीछे: भाजपा में नंबर दो की लड़ाई से लेकर दिल्ली के सरकारी बंगलों की राजनीति

बहस: क्यों यादवों को मुसलमानों के पक्ष में डटा रहना चाहिए!

ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..

कश्मीर फाइल्स: आपके आंसू सेलेक्टिव हैं संघी महाराज, कभी बहते हैं, और अक्सर नहीं बहते

उत्तर प्रदेशः हम क्यों नहीं देख पा रहे हैं जनमत के अपहरण को!

जनादेश-2022: रोटी बनाम स्वाधीनता या रोटी और स्वाधीनता

त्वरित टिप्पणी: जनता के मुद्दों पर राजनीति करना और जीतना होता जा रहा है मुश्किल


बाकी खबरें

  • मनोलो डी लॉस सैंटॉस
    क्यूबाई गुटनिरपेक्षता: शांति और समाजवाद की विदेश नीति
    03 Jun 2022
    क्यूबा में ‘गुट-निरपेक्षता’ का अर्थ कभी भी तटस्थता का नहीं रहा है और हमेशा से इसका आशय मानवता को विभाजित करने की कुचेष्टाओं के विरोध में खड़े होने को माना गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
    03 Jun 2022
    जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागरत्ना की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आर्यसमाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाणपत्र जारी करना नहीं है।
  • सोनिया यादव
    भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल
    03 Jun 2022
    दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता पर जारी अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट भारत के संदर्भ में चिंताजनक है। इसमें देश में हाल के दिनों में त्रिपुरा, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिमों के साथ हुई…
  • बी. सिवरामन
    भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति
    03 Jun 2022
    गेहूं और चीनी के निर्यात पर रोक ने अटकलों को जन्म दिया है कि चावल के निर्यात पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।
  • अनीस ज़रगर
    कश्मीर: एक और लक्षित हत्या से बढ़ा पलायन, बदतर हुई स्थिति
    03 Jun 2022
    मई के बाद से कश्मीरी पंडितों को राहत पहुंचाने और उनके पुनर्वास के लिए  प्रधानमंत्री विशेष पैकेज के तहत घाटी में काम करने वाले कम से कम 165 कर्मचारी अपने परिवारों के साथ जा चुके हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License