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कोविड-19 लॉकडाउन ने संकटग्रस्त ज़ैदपुर हैंडलूम उद्योग के ताबूत में ठोकी आख़िरी कील  
ज़ैदपुर के बुनकर अपने हैंडलूम शहर में दो वक़्त की रोटी को मोहताज़ हो गए हैं, जो 2014 में निर्यात नीतियों में किए गए बदलाव की वजह पहले ही बड़ा झटका झेल चुके थे।
सौरभ शर्मा
13 May 2020
Translated by महेश कुमार
 ज़ैदपुर हैंडलूम उद्योग

बाराबंकी: 47 साल के मोहम्मद नफ़ीस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 24 मार्च को कोविड-19 को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन की घोषणा के बाद से हर हफ्ते घंटों तक अपने करघे को चलाने वाले हाथ को घूरते रहने की आदत को पाल लिया है।

नफीस एक हैंडलूम की कला के माहिर व्यक्ति हैं जो बाराबंकी के ज़ैदपुर शहर में रहते है, जो शहर हैंडलूम के दुपट्टे/ओढ़नी बनाने के लिए काफी प्रसिद्ध है और जिसे दुनिया के विभिन्न शहरों में निर्यात किया जाता था। लेकिन 2014 में निर्यात नीतियों में लाए गए बदलाव से शहर के हथकरघा उद्योग को एक बड़ा झटका लगा है।

सफ़ेद शर्ट और नीले रंग की लुंगी पहने बाहर की तरफ निकली आँखों और दुबले-पतले शरीर वाले नफीस मियां कहते हैं कि, "ज़ैदपुर का हथकरघा उद्योग तो पहले से ही मौत के कगार पर खड़ा था और अब इस  तालाबंदी ने इसके ताबूत में आखिरी कील ही ठोक दी है।" उन्होंने कहा कि, “सभी कारीगर काम के लिए संघर्ष कर रहे हैं। बाज़ारों में धागा उपलब्ध नहीं है और स्टॉक आवाजाही में फंस गया है।”

अपनी तकलीफ़ों के बारे में और अधिक बताते हुए, उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि, “मैं चार बच्चों का पिता हूँ और ये सभी दुपट्टे या ओढ़नी को डिजाइन करने में मेरी मदद करते थे, लेकिन अब हमारे पास कोई भी काम नहीं बचा है और हम अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए जूझ रहे हैं। हमारे पास कुछ दिनों का ख़र्च चलाने के पैसे बचे हैं और उसके बाद अल्लाह ही जानता है कि वह हमें कैसे जिंदा रखेगा।”

उन्हौने राशन की उस मात्र को दिखाया जो उनके पास खाने के लिए बची है, उन्होंने बताया कि, “पिछले तीन हफ्तों से हम केवल चावल और दाल पर ही ज़िंदा हैं, वह भी बिना किसी मसाले के बनाकर खा रहे हैं। सब्जियां महंगी हैं और उन्हे पकाने के लिए तेल भी नहीं खरीद सकते हैं। हर निकलते दिन के साथ हमारी हालत खराब होती जा रही है और मैंने अपने बच्चों को हिदायत दी है कि वे कम से कम भंडारे (सामुदायिक रसोई) से एक वक़्त का भोजन जरूर खाने की कोशिश करें।”

2011 की जनगणना के अनुसार, ज़ैदपुर की आबादी करीब 34,000 थी और उसमें अल्पसंख्यक समुदाय की आबादी बहुमत में है। इस शहर में अब 1,000 से भी कम हथकरघा हैं जो ज्यादातर महिलाओं द्वारा संचालित हैं क्योंकि पुरुष नौकरियों की तलाश में दूसरे देशों में पलायन कर गए है।

37 वर्षीय मेहरुल निशा, जो हाथ से बने दुपट्टे/ओढ़नी पर कढ़ाई के छोटे-छोटे ऑर्डर लेकर अपने बच्चों के लिए आजीविका कमाती हैं, ने कहा कि उसने अपने बच्चों को भूख से मरने से बचाने के लिए कुछ पैसे उधार लिए हैं।

उन्होंने कहा, “मैं छोटे-छोटे काम करके लगभग 2,700 से 3,000 रुपये कमा लेती थी जो काम मुझे पड़ोस के हथकरघों से मिल जाता था। मेरे पति दुबई में रहते हैं और पिछले दो महीनों से उन्होंने भी वहां से कोई पैसा नहीं भेजा है। वे कमाने के लिए बाहर चले गए क्योंकि यहां काम करने की कोई गुंजाइश नहीं बची थी और अब मुझे भी लगता है कि हमारी समस्याओं का कोई अंत नहीं है। यदि कोरोना से नहीं तो निश्चित तौर पर हम काम की कमी के कारण भुखमरी से मर जाएंगे।”

उन्होंने आगे कहा, ''जहां से मुझे काम मिल रहा था वहां की सभी कार्यशालाएं भी बंद हो गई हैं क्योंकि वहाँ अब कोई काम नहीं है और करघे भी नहीं चल रहे हैं। मैंने पूरे गाँव में काम के बारे में पूछताछ की है लेकिन सभी अपने लंबित कामों को पूरा कर चुके है और कस्बे में शायद ही कोई काम बचा है। मैं थोड़ी  चिंतित हूं क्योंकि मेरे पति भी दुबई में फंसे हुए हैं और मुझे नहीं पता कि अगर मुझे मदद की आवश्यकता होगी तो मैं किससे संपर्क करूंगी। हर एक बीतते दिन के साथ हालात बदतर होते जा रहे हैं।”

आज़मी रिज़वी, जो ज़ैदपुर में करघा ऑपरेटरों और कारीगरों के कल्याण के लिए काम करते रहे हैं, का भी कहना है कि इन लोगों की स्थिति काफी दयनीय है।

उन्होंने बताया, “स्थिति इतनी ख़राब है कि आप उन लोगों की पसलियों को गिन सकते हैं जो इस काम को करते हैं। कई परिवार ऐसे हैं जो तालाबंदी के कारण दो वक़्त के भोजन के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। परिवारों ने सरकार का समर्थन किया है लेकिन अब वे भुखमरी के कगार पर हैं। हमने ग्राम प्रधान को सूचित किया तो उन्हौने हमें आश्वासन दिया है कि मदद उन तक पहुंचेगी लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है।”

थोक व्यापारी और पार्टटाईम कार्यकर्ता ने आगे कहा कि, "शहर की एक और बड़ी समस्या यह है कि बहुत से लोग जो कमाई के लिए अस्थायी रूप से खाड़ी देशों में चले गए थे, वे वहां फंस गए हैं और उनके लौटने के लिए कोई साधन नहीं हैं। इस हालत में, जो महिलाएँ यहाँ रह रही हैं, उन्हें महामारी के संकट से निपटने में बड़ी मुश्किल हो रही है।”

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख आप नीचे लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

COVID-19 Lockdown Last Nail in Coffin for Crisis-hit Zaidpur Handloom Industry

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