NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
चांदनी चौक पुनर्विकास परियोजना पर फिर से विचार करने की ज़रूरत
‘चांदनी चौक में जो कुछ हुआ है, वह पुराने ढांचों का संरक्षण नहीं, बल्कि विध्वंस को लेकर चलाया जाने वाला एक अभियान है और इस अभियान के तहत इसकी पुरातनता को ग़ायब कर दिया गया है; यह धरोहर का पुनर्विकास तो नहीं है।'
अंजलि ओझा, टिकेंदर सिंह पंवार
05 Apr 2021
चांदनी चौक पुनर्विकास परियोजना पर फिर से विचार करने की ज़रूरत
फ़ोटो:साभार: द हिंदू

चांदनी चौक पुनर्विकास परियोजना का उद्घाटन 17 अप्रैल को दिल्ली के मुख्यमंत्री द्वारा किया जायेगा; हालांकि, अगर दिल्ली सरकार के पास इस शहर और इस इलाक़े की विरासत और संस्कृति को लेकर बोध और सम्मान को लेकर ज़रा सी भी भावना है, तो इस आयोजन को रोक देना ही अच्छा होगा। सिर्फ इसी कार्यक्रम को नहीं, बल्कि अभी तक किये गये तमाम काम पर भी फिर से विचार करना होगा। क्योंकि इसमें उस विरासत को पूरी तरह से नकार दिये जाने की बू आती है, जिसका सम्बन्ध पुरतनता से है। दरअस्ल यह एक सांस्कृतिक झटका है और पैसे की भारी बर्बादी है।

17 वीं शताब्दी में शाहजहां और उनकी बेटी,जहांआरा द्वारा डिज़ाइन की गयी यह चांदनी चौक ऐसे कई बदलावों से होकर गुज़रा है, जिसे शाहजहां से लेकर केजरीवाल तक के शासनकाल में अंजाम दिया गया है। प्रारंभिक पुनर्विकास परियोजना की कल्पना पूर्व मुख्यमंत्री, शीला दीक्षित ने 2008 में की थी और इस योजना के साथ आगे बढ़ने के लिए एक विशेष उद्देश्य इकाई का गठन किया गया था।

कहा जाता है कि 2009 में हिंदी फ़िल्म, दिल्ली-6 की रिलीज़ होने के बाद दिल्ली की विरासत के पुनर्विकास की ज़रूरत को ज़बरदस्त रूप से महसूस किया गया था। बाद में केजरीवाल सरकार के दौरान इस परियोजना के लिए 65 करोड़ रुपये अलग से रखे गये थे। यहां तक तो सब ठीक रहा। लेकिन, इसका नतीजा क्या रहा? दरअसल यह विरासत का विकास ही नहीं है, बल्कि विगत और वर्तमान की आपदा है। आप पूछ सकते हैं कि ऐसा क्यों?

हालांकि, इस आलेख के लेखक ने हाल-फिलहाल से ही राजधानी में रहना शुरू किया है, लेकिन दिल्ली का असली मतलब और रूप-रंग की महक इस पुनर्विकास परियोजना से ग़ायब है। कुछ हफ़्ते पहले चांदनी चौक की गली से गुज़रते हुए हम इस इलाक़े के डिजाइन, निर्माण सामग्री और यहां से लोगों के एक बड़े हिस्से को हटाये जाने की घिनौनी स्थिति से चकित थे।

इस परियोजना के अलग-अलग पहलुओं पर आने से पहले विरासत के पुनर्विकास के इस अवधारणा पर विचार करना ज़रूरी होगा। इस प्रक्रिया को किसी भी शहर, क़स्बे या क्षेत्र के मूल लोकाचार, उसकी आत्मा, संस्कृति और अवधारणा से मेल खाना ज़रूरी है, जिसकी वजह से यह प्रक्रिया वजूद में आती है। इसी आधार पर चांदनी चौक या दिल्ली पर विचार करें। इसके बुनियादी लोकाचार में पैदल चलना और भोजन, बाज़ार और वहां की पुरानी हवेलियों में रहने की संस्कृति है। किसी भी पुनर्विकास योजना को शहर के इन पहलुओं पर ग़ौर करना ही चाहिए।

इस आलेख के लेखकों में से एक लेखक इक्वाडोर की राजधानी क्विटो में अक्टूबर 2016 में आयोजित संयुक्त राष्ट्र-हैबिटेट III सम्मेलन में भाग लेने वाले प्रतिनिधियों में से थे। क्विटो में पुराने और नये, दोनों ही शहर हैं। यहां का पुराना शहर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, यह शहर नये शहर के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा अनूठा है। सवाल है कि यह कैसे मुमकिन हो पाया या पुराने शहर का संरक्षण किस तरह किया गया? यहां सभी पुरानी इमारतों को संरक्षित किया गया है और उन्हें ऐसे आवासीय स्थलों में बदल दिया गया है, जहां सैलानी रहना पसंद करते हैं। यह शहर रात भर नृत्य, भोजन, मौज-मस्ती और सैलानियों को पसंद आने वाली तमाम गतिविधियों से सराबोर रहता है। लेकिन, पुराने शहर का एक पत्थर तक नहीं बदला गया। यहां की इमारतें 500 साल पुरानी हैं। जो कुछ बदलाव हुआ है,वह शौचालय और स्वच्छता को आधुनिक बनाने के लिहाज़ से हुआ है। इसी तरह, उज़्बेकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों ने अपने पुराने ढांचों को बदसूरत, आधुनिक पलस्तर वाली इमारतों में बदले बिना अपनी बहुमूल्य विरासत को विकसित किया है। उज़्बेकिस्तान के एक क़स्बे, खैवा ने इसी तरह अपने पुराने शहर को विकसित किया है और यहां के पुराने घर बेहतरीन पर्यटन स्थल साबित हो रहे हैं।

चांदनी चौक में जो कुछ हुआ है, वह पुराने ढांचों का संरक्षण नहीं, बल्कि विध्वंस को लेकर चलाया जाने वाला अभियान है और इस अभियान के तहत इसकी पुरातनता को ग़ायब कर दिया गया है; यह धरोहर का पुनर्विकास तो नहीं है। इसके बदले, मुख्य सड़क के साथ धातु और कांच के ऐसे शोरूम डिज़ाइन किये गये हैं और उनका निर्माण किया गया है, जो किसी भी लिहाज़ से इस स्थल को आकर्षणक नहीं बनाते हैं।

चांदनी चौक पर जब कोई सत्ता के प्रतीक लाल किले को पार करते हुए नव-निर्मित मुख्यमार्ग में दाखिल होता है, तो ऐसा लगता है कि लाल पत्थर वाली यह पक्की सड़क अतीत की भावना से दूर ले जा रही है। हालांकि, पूरी तरह ऐसा तो नहीं है, लेकिन यह अजीब तरह से किया गया पैचवर्क ही दिखता है।

नये मुख्यमार्ग से लगी इस भीड़-भाड़ वाले बाज़ार की गलियों की दुकानों में किसी तरह का कोई सुधार नहीं किया गया है। यह सड़क अभी भी ठसाठस भरी हुई है। भले ही सड़क किनारे अपनी दुकान लगाने वाले विक्रेता अपना कारोबार करने की कोशिश करते हों, लेकिन उनके लिए किसी भी तरह की वाजिब जगह की गुंज़ाइश नहीं बनायी गयी है। इस सड़क के बीचों-बीच बिना किसी छतरी वाली बेंचों के साथ छोटे-छोटे स्तंभ लगाये गये हैं, जो पैदल चलने वालों को किसी भी तरह की मदद तो नहीं ही पहुंचाते, बल्कि उनके लिए कहीं ज़्यादा बाधायें पैदा करते हैं। आख़िर इन छोटे-छोटे स्तंभों के लगाये जाने का मक़सद क्या है, यह तो समझ नहीं ही आता है। बल्कि इससे इस इलाक़े के सौंदर्य में बढ़ोत्तरी भी हो रही है, इस पर भी संदेह होता है। कचरे को ठिकाने लगाने का विचार यहां धूल फांकता दिखता है और इसके सुबूत यहां जगह-जगह पर लगे कचरों के ढेर हैं।

इस तरह का पुनर्निर्माण पेरिस में नेपोलियन के प्रशासकों में से एक, हॉसमैन द्वारा किये गये बहुचर्चित मुख्य मार्ग के निर्माण की याद दिला देता है। चांदनी चौक सही मायने में हमें भारत और ख़ास तौर पर बड़े शहरों के हॉसमैनीकरण के नये रूप की याद दिलाती है। यह बिल्कुल भी टिकाऊ नहीं है। सड़कें चौड़ी कर दी गयी हैं और जो जगहें लोगों के लिए थीं, उन्हें हड़प ली गयी है। जो अच्छा हुआ है,वह यह कि ऊपर लटकने वाले तारों को ज़मीन के अंदर बिछा दिया गया। इतना तो ठीक है,लेकिन 17 वीं शताब्दी में चांदनी चौक से गुज़रने वाली नहर को लेकर क्या सोचा गया है ? डेल्ही वाक्स से जुड़े इतिहासकार सोहेल हाशमी ने बताया कि सही मायने में इस पुनर्विकास योजना में उस नहर को फिर से वजूद में लाने की योजना को भी शामिल किया जाना चाहिए था।

सियोल में वहां के लोगों ने मेट्रोपॉलिटन प्रशासन को एक बड़े फ़्लाईओवर को ध्वस्त करने के लिए मजबूर कर दिया था और उसकी जगह उस नहर को बहाल किया गया, जो शहर से होकर गुज़रती थी। इस नहर की लंबाई सात किलोमीटर से ज़्यादा है और नहर हरियाली से अटी-पड़ी है। ठीक है कि इस तरह की मरम्मत ज़रूरी थी। लेकिन, डिज़ाइनर और सरकार ने जो एक बात ख़ास पर ग़ौर किया है, वह है-उस लाल बलुआ पत्थर का व्यापक इस्तेमाल, जो कि दिल्ली शहर से एकदम उलट है। जैसा कि किसी इतिहासकार ने बताया कि यह पत्थऱ अरावली पहाड़ियों से खनन किया गया पत्थर था, जिसका इस्तेमाल चांदनी चौक सहित यहां से गुज़रने वाली गलियों के फुटपाथ के लिए इस्तेमाल किया गया है। यह लाल बलुआ पत्थर ऊपर दिखायी देने वाली इमारतों के रंग से एकदम विपरीत है और यह ज़बरदस्त बेमेल की एक दर्दनाक तस्वीर पेश करती है।

यहां की हरियाली को भी पूरी तरह से ख़त्म कर दिया गया है। बीच-बीच में पेड़ लगाने के बजाय, यहां लगे सभी पेड़ों को हटा दिया गया है और गर्मी के मौसम के दौरान यहां भीड़-भाड़ होने की वजह से गर्मी का ज़बरदस्त असर दिखायी देगा। चूंकि चांदनी चौक एक ऐसा बड़ा थोक बाज़ार है,जहां पूरी रात सैकड़ों ट्रक आते-जाते हैं, इन पत्थरों की भार-वहन क्षमता को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि इस्तेमाल किया गया यह लाल बलुआ पत्थर एक साल भी टिक पायेगा। ये पहले ही चटकना शुरू हो चुके हैं और इसका लंबे समय तक टिक पाना मुश्किल ही लग रहा है।

इस पुनर्विकास परियोजना की परिकल्पना तो ऐसी होनी चाहिए थी, जिसमें न सिर्फ़ इस योजना से प्रभावित होने वाले लोगों को शामिल होना चाहिए था, बल्कि उसे लेकर यहां लोगों के साथ बड़े पैमाने पर व्यापक बातचीत भी होनी चाहिए थी। वहां के अनुभव को देखते हुए इस परियोजना में देश और दुनिया के बेहतरीन योजनाकारों और डिज़ाइनरों की कल्पनाशक्ति का भी इस्तेमाल करना चाहिए था। इस परियोजना में आतिथ्य, हस्तशिल्प, पर्यटन, संगीत से सजी शाम और पुरानी दिल्ली के मशहूर खाने जैसी पुरातनता को विकसित करने वाले विचारों को शामिल किया जाना चाहिए था।

ऐसा लगता है कि यह परियोजना इस इलाक़े को मुनासिब तरीक़े से विकसित किये जाने से कहीं ज़्यादा विरासत को लेकर एक सांकेतिक श्रद्धांजलि है, जिसमें उन ठेकेदारों और सरकार की सांठगांठ दिखायी देती है, जिनके पास विरासत, उसके संरक्षण और लोगों की आजीविका का रंच मात्र बोध नहीं है।

लोगों और दिल्ली के हित को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री को इस परियोजना पर फिर से ग़ौर करना चाहिए और वास्तविक विरासत संरक्षण को लेकर लोगों से व्यापक बातचीत करनी चाहिए।

अंजलि ओझा गो न्यूज़ के साथ काम कर रहीं दिल्ली स्थित एक पत्रकार हैं। टिकेंद्र सिंह पंवार शिमला के पूर्व डिप्टी मेयर और लेखक हैं। इनके विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

A Need to Revisit the Chandni Chowk Redevelopment Project

Delhi
chandni chowk
Chandni Chowk Redevelopment
Quito
Seoul
heritage
Sheila Dikshit
Arvind Kejriwal

Related Stories

मुंडका अग्निकांड: 'दोषी मालिक, अधिकारियों को सजा दो'

मुंडका अग्निकांड: ट्रेड यूनियनों का दिल्ली में प्रदर्शन, CM केजरीवाल से की मुआवज़ा बढ़ाने की मांग

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

धनशोधन क़ानून के तहत ईडी ने दिल्ली के मंत्री सत्येंद्र जैन को गिरफ़्तार किया

ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

‘आप’ के मंत्री को बर्ख़ास्त करने से पंजाब में मचा हड़कंप

मुंडका अग्निकांड के लिए क्या भाजपा और आप दोनों ज़िम्मेदार नहीं?

ख़बरों के आगे-पीछे: राष्ट्रपति के नाम पर चर्चा से लेकर ख़ाली होते विदेशी मुद्रा भंडार तक

मुंडका अग्निकांड: लापता लोगों के परिजन अनिश्चतता से व्याकुल, अपनों की तलाश में भटक रहे हैं दर-बदर


बाकी खबरें

  • पुलकित कुमार शर्मा
    आख़िर फ़ायदे में चल रही कंपनियां भी क्यों बेचना चाहती है सरकार?
    30 May 2022
    मोदी सरकार अच्छे ख़ासी प्रॉफिट में चल रही BPCL जैसी सार्वजानिक कंपनी का भी निजीकरण करना चाहती है, जबकि 2020-21 में BPCL के प्रॉफिट में 600 फ़ीसदी से ज्यादा की वृद्धि हुई है। फ़िलहाल तो इस निजीकरण को…
  • भाषा
    रालोद के सम्मेलन में जाति जनगणना कराने, सामाजिक न्याय आयोग के गठन की मांग
    30 May 2022
    रालोद की ओर से रविवार को दिल्ली में ‘सामाजिक न्याय सम्मेलन’ का आयोजन किया जिसमें राजद, जद (यू) और तृणमूल कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के नेताओं ने भाग लिया। सम्मेलन में देश में जाति आधारित जनगणना…
  • सुबोध वर्मा
    मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात
    30 May 2022
    बढ़ती बेरोज़गारी और महंगाई से पैदा हुए असंतोष से निपटने में सरकार की विफलता का मुकाबला करने के लिए भाजपा यह बातें कर रही है।
  • भाषा
    नेपाल विमान हादसे में कोई व्यक्ति जीवित नहीं मिला
    30 May 2022
    नेपाल की सेना ने सोमवार को बताया कि रविवार की सुबह दुर्घटनाग्रस्त हुए यात्री विमान का मलबा नेपाल के मुस्तांग जिले में मिला है। यह विमान करीब 20 घंटे से लापता था।
  • भाषा
    मूसेवाला की हत्या को लेकर ग्रामीणों ने किया प्रदर्शन, कांग्रेस ने इसे ‘राजनीतिक हत्या’ बताया
    30 May 2022
    पंजाब के मानसा जिले में रविवार को अज्ञात हमलावरों ने सिद्धू मूसेवाला (28) की गोली मारकर हत्या कर दी थी। राज्य सरकार द्वारा मूसेवाला की सुरक्षा वापस लिए जाने के एक दिन बाद यह घटना हुई थी। मूसेवाला के…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License